हाँ,
मुद्दा यही है,
पर क्या ये सही है,
वास्तविकता का कोई अंश है,
या सब ढपोरशंख है,
एक तरफ चीर हरण है,
फिर अनशन आमरण है,
क्या वाकई हृदय का जागरण है ?
हाँ, तावा वस्तुतः गरम है,
कई सेंक रहे रोटी नरम है,
चाह सबकी एक नई दिशा है,
पर दिखती दूर-दूर तक निशा है |
ओज है, साहस है,
पर मिलता सिर्फ ढाढ़स है |
चोर ही चौकीदार है,
कौन वफादार है ?