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रविवार, 16 दिसंबर 2012

गम लिया करते हैं


दाव में रखकर अपनी जिंदगी को हर वक़्त हर घड़ी,
सहम-सहम के लोग आज ये जिंदगी जिया करते हैं |

सौ ग्राम दिमाग के साथ दस ग्राम दिल भी नहीं रखते लोग,
विरले हैं जो आज भी हर फैसला दिल से किया करते हैं |

बच्चे को आया के हवाले कर, पिल्ले को रखते हैं गोद में,
कहते हैं आज के बच्चे माँ-बाप का साथ नहीं दिया करते हैं |

एक दिन फेंकी थी तुमने जो चिंगारी मेरे घर की ओर,
आग बना कर उसे हम आज भी हवा दिया करते हैं |

अपनी अपनी कर के जी लेते हैं जिंदगी किसी तरह,
स्वार्थ की बनी चाय ही सब हर वक़्त पिया करते हैं |
अब तो ये चाँद भी आता है लेकर सिर्फ आग ही आग,
फिर क्यों सूरज से शीतलता की उम्मीद किया करते हैं |


सब हैं खड़े यहाँ कतार में जख्म देने के लिए ऐ "दीप",
कोई भरता नहीं हम खुद ही जख्मों को सिया करते हैं |

अपना तो जिंदगी जीने का फंडा ही अलग है ऐ "दीप",
कोशिश रहती खुशियाँ देने की और गम लिया करते हैं |

ढलती उमर का प्रणय निवेदन


 ढलती उमर  का प्रणय निवेदन

मै जो भी हूँ ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा मत देना
माना तन थोडा जर्जर है ,लेकिन मन में जोश भरा है
इन धुंधली आँखों में देखो,कितना सुख संतोष  भरा है
माना काले केश घनेरे,छिछले और सफ़ेद हो रहे,
लेकिन मेरे मन का तरुवर,अब तक ताज़ा ,हराभरा है
तेरे उलझे बाल जाल में,मेरे नयना उलझ गए है,
इसीलिये शृंगार समय तुम,उलझी लट सुलझा मत लेना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना
चन्दन जितना बूढा होता ,उतना ज्यादा महकाता है
और पुराने चांवल पकते ,दाना दाना खिल जाता है
जितना होता शहद पुराना ,उतने उसके गुण बढ़ते है,
'एंटीक 'है चीज पुरानी,उसका  दाम सदा  ज्यादा है
साथ उमर के,अनुभव पाकर ,अब जाकर परिपक्व हुआ हूँ,
अगर शिथिलता आई तन में,उस पर ध्यान जरा मत देना 
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा  मत देना
साथ उमर  के ,तुममे भी तो,है कितना बदलाव आ गया
जोश,जवानी और उमंग में ,अब कितना उतराव  आ गया
लेकिन मेरी नज़रों में तुम,वही षोडसी  सी रूपवती  हो,
तुम्हे देख कर मेरी बूढी,नस नस में उत्साह   आ गया
बासी रोटी ,बासी कढ़ी   के,साथ,स्वाद ,ज्यादा लगती है ,
सच्चा प्यार उमर ना देखे,तुम इतना बिसरा मत देना
मै  जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

चुम्बक

       चुम्बक
तुझे देख पागल हो जाता
तेरी ओर खिंचा मै  आता
तुझसे मिलता लपक लपक मै
तुझसे जाता चिपक चिपक  मै
नहीं अगाथा मै  तुमको तक
पर मै समझ न पाया अबतक
मै लोहा हूँ और तुम चुम्बक
या तुम लोहा और मै  चुम्बक
      घोटू

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

कटु सत्य

         कटु सत्य

वैज्ञानिक बताते है
कि औसतन हम अपने जीवन के ,
पांच साल खाने  में बिताते है
और  अपने  वजन का ,
सात हज़ार गुना खाना खाते है
जब ये बात मैंने एक नेताजी को बतलाई
तो बोले,सच कह रहे हो मेरे भाई
एक बार जब हमें ,आप चुनाव जितलाये  थे 
पूरे पांच साल ,हमने खाने में  बिताये  थे 
आपसे क्या छुपायें,कितना ,क्या कमाया था ,
अपनी औकात से ,सात हज़ार गुना खाया था
        घोटू 
   
      सपनो को क्या चाटेंगे

तुम भी मुफलिस ,हम भी मुफलिस,आपस में क्या बाटेंगे
बची खुची जो भी मिल जाए ,     बस वो       खुरचन  चाटेंगे 
एक कम्बल है ,वो भी छोटा,और सोने वाले  दो  हैं,
यूं ही सिकुड़ कर,सिमटे ,लिपटे,  सारा  जीवन  काटेंगे
लाले पड़े हुये खाने के,  जो भी दे  ऊपरवाला ,
पीस,पका  कर ,सब खा  लेंगे ,क्या बीनें,क्या छाटेंगे
झोंपड़ पट्टी और बंगलों के बीच खाई एक ,गहरी है,
झूंठे आश्वासन ,वादों से       ,कैसे इसको    पाटेंगे 
क्या धोवेगी और निचोडेगी ,ये किस्मत नंगी है,
यूं ही फांकामस्ती में  क्या  ,बची जिन्दगी काटेंगे
पेट नहीं भरता बातों से ,तुम जानो,हम भी जाने,
मीठे सपने,मत पुरसो  तुम,सपनो को क्या चाटेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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