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सोमवार, 17 सितंबर 2012

बुलाया करो


दिलो दिमाग में
यूं छाया करो,
पास कभी आओ
या बुलाया करो;
वफ़ा में जाँ
हम भी दे देंगे,
बस ठेस न दो
न रुलाया करो |

अतिशय प्रेम
बस बरसाया करो,
नैनों में अपने
छुपाया करो;
दूर कर देंगे
हर शिकवा-गिला
एक अवसर तो दो
दिल में बसाया करो |

मन को न
भरमाया करो,
प्रेमगीत नित
गुनगुनाया करो;
छू कर देखो
लफ़्ज़ों को मेरे,
धड़कनों को मेरी
तुम गाया करो |
      समर्पण 

समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण

करूं मै सुदर्शन, बनूँ मै सुदर्शन
सभी काम ,क्रोधा,
सभी रोग चिंता
सभी लोभ मोहा,
सभी द्वेष ,निंदा
गुरु के चरण में,सभी कुछ समर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
अपने ह्रदय से मै,
'मै' को निकालूँ
करूं प्रेम सबको,
मै अपना बनालूँ
करूं प्यार अपना,सभी को मै अर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
ह्रदय में सभी के,
खिले पुष्प सुख के
ख़ुशी ही ख़ुशी बस,
नज़र आये मुख पे
करूं पुष्प सारे,गुरु को मै अर्पण
समर्पण,समर्पण ,समर्पण,समर्पण
साँसों की सरगम से,
मन को हिला दूं
खुदी को मिटा कर,
खुदा से मिला दूं
करूं आत्मदर्शन,बनू मै सुदर्शन
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आओ हम तुम हँसे

         आओ हम तुम हँसे

आओ हम तुम  हंसें

मन में खुशियाँ बसे
जीवन की आपाधापी में,
रहे न यूं ही  फंसे
               खुश हो सबसे मिलें
              दिल की कलियाँ खिले
             नहीं किसी से बैर भाव,
              मन में शिकवे  गिले
बस यूं ही मुस्काके
लगते रहे ठहाके
धीरे धीरे बिसर जायेंगे,
सारे दुःख दुनिया  के
               खिल खिल ,कल कल बहें
                     लगा   सदा  कहकहे
                तन मन दोनों की ही सेहत,
                 सदा    सुहानी      रहे  
चेहरा हँसता लिये
सुखमय जीवन जियें
बहुत मिलेगी खुशियाँ,
यदि कुछ करो किसी के लिये
                 चार दिनों का जीवन
                 हो न किसी से अनबन
                 खुशियाँ बरसेगी,सरसेगी,
                  हँसते रहिये  हरदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चार दिन की जिंदगी

    चार दिन की जिंदगी

जन्म ले रोते हैं पहले,बाद में मुस्काते हैं,
                           और फिर किलकारियों से,हम लुटाते प्यार हैं
फिर पढाई,लिखाई और खेलना मस्ती भरा,
                          ये किशोरावस्था भी,होती गज़ब की यार   है
 प्यार,जलवा,नाज़,अदाएं,मौज,मस्ती रात दिन,
                          ये जवानी,चार दिन का ,मद भरा  त्योंहार  है
और फिर लाचार करता है बुढ़ापा सभी को,
                          कुछ नहीं उपचार इसका,जिंदगी दिन चार है                 

मदन मोहन बहेती'घोटू'

मंहगाई ने कमर तोड़ दी

              मंहगाई ने कमर तोड़ दी

हे मनमोहन!कुछ तो सोचो,

                                 तुमने है दिल तोडा
मंहगाई ने कमर तोड़ दी,
                                 नहीं कहीं का छोड़ा
रोज रोज बढ़ते दामों का,
                               सबको लगता  कोड़ा
घोटालों से लूट देश को,
                               एसा हमें झिंझोड़ा
अब खुदरा व्यापार विदेशी,
                              हाथों में  है छोड़ा
डीजल ने दिल जला दिया है,
                             सभी चीज   का तोडा
और सातवाँ गेस सिलेंडर,
                              महंगा हुआ  निगोड़ा
लंगड़ा लंगड़ा दौड़ रहा,
                             सूरज का सातवां घोड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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