बरसात का मौसम सुहाना
आ गया,मन भा गया,बरसात का मौसम सुहाना
गेलरी में,बैठ कर के,पकोड़े ,गुलगुले खाना
सांवले से बादलों से बरसती रिमझिम फुहारें
हरीतिमा अपनी बिखेरे,नहाये से ,वृक्ष सारे
कर रहा आराम सूरज,आजकल है छुट्टियों पर
धूप तरसे मिलन को पर ,आ नहीं सकती धरा पर
सजी दुल्हन सी धरा पर,उसे बादल है छुपाये
बड़ा है मनचला चंदा, नजर उसकी पड़ न जाये
एक सौंधी सी महक,वातावरण में घुल गयी है
हो गयी है तृप्त धरती,प्रेमरस से धुल गयी है
वृक्ष पत्तों से लिपट कर,टपकती जल बूँद है यूं
याद में अपने पिया की ,बहाती विरहने आंसूं
पांख भीजे,पंछियों के,अब जरा कम है चहकना
झांकता सुन्दर बदन जब भीगती है श्वेत वसना
बड़ा ही मदमस्त मौसम,सभी को करता दीवाना
आ गया,मन भा गया,बरसात का मौसम सुहाना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रिश्तों और जीवन में संतुलन का पाठ पढ़ाती गणित
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*रिश्तों और जीवन में संतुलन का पाठ पढ़ाती गणित*
बचपन से ही गणित से हमारा एक अजीब-सा रिश्ता रहा है। न जाने क्यों, इस विषय
में जितना गहराई से उतरने की कोशिश...
5 घंटे पहले