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सोमवार, 25 जून 2012

परेशानी-गर्मी की

       परेशानी-गर्मी की

गर्मियों में इस कदर ,मुश्किल है जीना हो गया

हवायें लू बन गयी, पानी पसीना   हो गया
और डर ने पसीने के,हाल है  एसा  किया
पास भी अब पटखने में,बिदकती है बीबियाँ
बड़ी मनमौजी हुई है, आती जाती  रात दिन
अंखमिचौली खेलती ,बिजली सताती रात दिन
आजकल उतनी हंसीं ,लगती नहीं है  हसीना
चेहरे का मेकअप  बिगाड़े,गाल पर बह पसीना
कम से कम कपडे बदन पर,जिस्म खुल दिखने  लगे
उनको भी ये सुहाता है,हमको भी अच्छा   लगे
गरमियों के दरमियाँ बस फलों का आराम है
लीचियां है,जामुने है,चूंसने  को आम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संगत का असर

        संगत का असर

सुबह की शीतल हवा,

सूरज का  साथ   पा,
               लू बन, सताती है
संगत के असर से,
आदमी की फितरत भी,
               कितनी बदल जाती है
अलग अलग बादल की,
अलग अलग बूँदें भी,
               मिल कर धरती पर से
साथ साथ रहती है,
नदिया बन बहती है,
               मिलने  समंदर   से
 खेल है किस्मत का,
मगर असर संगत का,
               बड़े रंग दिखता   है
शादी हो जाने पर,
आदमी के जीवन का,
               रुख ही बदल जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

शनिवार, 23 जून 2012

भगवान तू बनिया है

  भगवान तू  बनिया है

इस धरा पर इतने

अवतार लिए  तूने
बनिये के घर अभी तक,
अवतार ना लिया है
भगवान तू बनिया है
जब काम से थके तो
घर पर ना रह सके तो
ये आजकल का फेशन
जाते है हिलस्टेशन
कर पार लम्बी दूरी
शिमला कभी मसूरी
तो ठीक इस तरह से
तंग आके गृह कलह से
ऊबा जो उधारी से
तकड़ी से ,तगारी से
तो हार करके आया
अवतार धर के आया
सच कहा है किसीने
औरों की थालियों में
दिखता अधिक ही घी है
ये बात भी सही है
बनिया तो रह चुका था
उस काम से थका था
बनिया नहीं बना तू
छोड़ी बही,तराजू
और धनुष बाण धारा
या फरसा फिर संभाला
क्षत्रिय बना, ब्रह्मण
बलराम और वामन
था मच्छ कच्छ जलचर
बन कर वाराह थलचर
नरसिंह भी बना पर
तू बन न पाया नभचर
डरता है उल्लूओं से
पत्नी के वाहनों से
कितने ही रूप धारे
पर बनिया  ना बना रे
बदला है रूप केवल,
बनने से होता क्या है
भगवान तू  बनिया है
सच  कह् दूं इस बहाने
जो तू बुरा न माने
चोला भले था झूंठा
बनिया पना ना छूटा
मछली से तेज चंचल
बनिये का गुण ये अव्वल
कछुवे सी पीठ करले
बनिया पहाड़ धरले
थोडा भी ना हिले वो
पर  रत्न जब मिले तो
एक बात तो बता तू
वाराह क्यों बना  बना तू
भू पर न कर लगाया
दांतों से क्यों उठाया
ये ही दिखने केवल
दांतों में है कितना बल
जो चाहे वो चबाले
बनिये सा सब पचा ले
वामन बना तू छोटा
बनिये सरीखा खोटा
क्या कहूं में छली को
ठग ही लिया बली को
छोटा सा पग बढाया
धरती को नाप आया
बनिया उधार  कर दे
दस के हज़ार कर दे
जो धन मिले तो नर है
साक्षात् ईश्वर है
पैसा जो कम जरा रे
तू सिंह सा दहाड़े
नरसिंह स्वरुप है तू
बनिये का रूप है तू
तू कृष्ण बना राजा
तू राम बना राजा
सोने के मृग पे दौड़ा
बनिया पना न छोड़ा
पूँजी पति है बनिये
लक्ष्मी पति है बनिये
ये बात भी सही है
तू लक्ष्मी पति है
मतलब की तू है बनिया
मै झूंठ कह रहा क्या
हर रूप तेरा भगवन,
बनिये के गुण लिया है
भगवान तू बनिया  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 20 जून 2012

नींद

         नींद

बिन बुलाये चली आती,नींद ऐसी मेहमां

किन्तु ये होती नहीं है,हर किसी पे मेहरबां
नरम बिस्तर रेशमी,आना नहीं,ना आयेगी
भरी बस या ट्रेन में भी,आना है,आ जायेगी
जब किसी से प्यार होता,और दिल जाता है जुड़
बड़े लम्बे पंख फैला,नींद फिर जाती है उड़
देखने जिसकी झलक को,तरसते है ये नयन
उन्हें आँखों में बसाती,नींद ला सुन्दर  सपन
बहुत जब बेचैन होता,मन किसी की याद में
नींद भी आती नहीं है,उस विरह की रात में
और मिलन की रात में भी,नींद उड़ जाती कहीं
हो मिलन दो प्रेमियों का,बीच में आती नहीं
उठ  रहा हो ज्वार दिल में,और प्रीतम संग  है
प्रीत के उन मधु क्षणों में,नहीं करती तंग  है
ये थकन की प्रेमिका है,बंद होते ही पलक
एक मुग्धा नायिका सी,चली आती बेझिझक
है बडी बहुमूल्य निद्रा,स्वर्ण के भण्डार  से
आती है तो कहते सोना आ गया है प्यार से
गरीबों की दोस्त,खुशकिस्मत बहुत होते है वो
चैन सोने की नहीं ,पर चैन से   सोते है   वो
अमीरों से मगर इसका बैर है दिन रैन का
पास में सोना  बहुत  पर नहीं सोना चैन का
नींद है चाहत सभी की,दोस्त के मानिंद है
नींद क्या है,क्या बताएं,नींद तो बस  नींद है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



सज,संवर मत जाओ छत पर

    सज,संवर मत जाओ छत पर

इस तरह तुम सज संवर कर,नहीं जाया करो छत पर

मुग्ध ना हो जाए चंदा ,   देख कर ये  रूप      सुन्दर
है बड़ा आशिक  तबियत,दिखा कर सोलह कलायें
लगे ना कोशिश करने , किस तरह् तुमको रिझाये
और ये सारे सितारे, टिमटिमा  ना आँख   मारे
छेड़खानी लगे करने ,पवन छूकर  अंग सारे
है बहुत बदमाश ये तम,पा तुम्हे छत पर अकेला
लाभ अनुचित ना उठाले  ,और करदे कुछ  झमेला
देख कर कुंतल तुम्हारे,कुढ़े ना दल बादलों के
लाख गुलाबी लब,भ्रमर, गुंजन करें ना पागलों से
समंदर मारे उंछालें ,रात पूनम की समझ कर
इसलिए जाओ न छत पर,रात में तुम सज संवर कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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