एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

सौवाँ शतक

               सौवाँ   शतक
सचिन,बधाई ढेरों तुमको,तुमने सौवाँ शतक लगाया
हम सब खेलप्रेमियों  का था,जो सपना ,सच कर दिखलाया
बहुत दिनों से आस लगी थी,तुम शतकों का शतक लगाओ
करो नाम भारत का रोशन, एसा करतब कर दिखलाओ
सुबह प्रणव दादा ने हमको,मंहगाई का डोज़  पिलाया
सबका मुंह कड़वा कर डाला, एसा मुश्किल बजट सुनाया
मंहगाई से त्रस्त सभी को ,दिए बजट ने खारे  आंसू
लेकिन तुमने शतक लगाके,खिला दिए जैसे सौ लड्डू
मुंह का स्वाद हो गया मीठा,भूल गए हम सब कडवापन
तुम्हारे इस महा शतक ने,जीत लिया है हम सबका मन
तुम क्रिकेट के 'महादेव' हो,तुम गौरव भारत माता के
सच्चे 'भारत रत्न'तुम्ही हो,देश धन्य तुम सा सुत पा के
सचिन ,बधाई तुमको ढेरों,तुमने सौवाँ  शतक बनाया
हम सब खेलप्रेमियों का था,जो सपना,सच कर दिखलाया

मदन मोहन बहेती'घोटू'

गुरुवार, 15 मार्च 2012

ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ

ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ

ये न समझना की मै तुमसे डरता हूँ

मै तो तुमसे प्यार ढेर सा करता हूँ
  बात मानता हूँ मै जब भी तुम्हारी
तुम होती हो मुदित,निखरती छवि प्यारी
वही विजय मुस्कान देखने  चेहरे पर,
जो तुम कहती हो  बस वो ही करता हूँ
ये  न समझना कि मै तुमसे डरता  हूँ
तुम जो कुछ भी,कच्चा पका खिलाती हो
मै तारीफ़ करूं,तो तुम सुख पाती हो
'वह मज़ा आ गया'इसलिए कहता हूँ,
खिली तुम्हारी बाँछों पर मै मरता हूँ
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
कभी सामने आती जब तुम सज धज कर
और पूछती'लगती हूँ ना मै  सुन्दर'
मै तुम्हारे गालों पर चुम्बन देकर,
तुम्हारा सौन्दर्य चोगुना  करता हूँ
ये न समझना  कि मै तुमसे डरता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 14 मार्च 2012

फरमाईश

फरमाईश
(बजट के पहले या बाद,महंगाई कितनी भी बढे,
एक चीज जिससे हर पति को रूबरू होना पड़ता है,
वो है पत्नी जी की फरमाईशे-ये ऐसी चीज है ,जिसपर
उम्र का कोई बंधन नहीं-नीचे लिखी कविता शायद
आप में से कुछ समझदार बीबियों के पतियों को,
इस फरमाईश  की बिमारी से निजात दिलवा दे,
तो अपने इस छोटे से प्रयास को सफल मानूंगा )


फरमाइश
तुमने जब जब भी पहने
सुंदर कपडे ,सुंदर गहने
और सझधज कर तैयार हुई
तुम खिलती हुई बहार हुई
देखा करते श्रृंगार  तुम्हे
मन मचला करने प्यार तुम्हे
मैं लेकर तुमको बाँहों में
उड़ चला प्यार की राहों में
जब मन में था तूफ़ान उठा
तो तन का सब श्रंगार हटा
ना  वस्त्र रहे तन पर पहने
बिखरे सब इधर उधर गहने
फैला काजल, फैली लाली
बिखरी सब जुल्फे मतवाली
जिनने कि  मुझे लुभाया था
कुछ करने को उकसाया था
जब बात प्यार की आती है
सारी  चीजे हट जाती है
तन की नेसर्गिक सुन्दरता
पाकर ही है ये मन भरता
तो क्यों गहनों की ख्वाहिश है
और कपड़ो की फरमाइश है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू





मंगलवार, 13 मार्च 2012

राज-पत्नी के 'ना'ना'कहने का

  राज-पत्नी के 'ना'ना'कहने का
  ----------------------------------
मैंने  पत्नीजी से पूछा,एक बात मुझको बतलाना
मै तुमसे जब भी कुछ कहता,तुम बस कहती हो 'ना'ना'ना
और फिर 'ना'ना' कहते कहते,बातें सभी मान लेती हो
मेरी हर एक चाह,मांग में,तुम सहयोग पूर्ण  देती हो
अक्सर लोग कहा करते है,सबके संग एसा होता है
औरत जब भी' ना 'करती है,उसका मतलब'हाँ'होता है
पत्नीजी बोली यूं हंस कर,तुम कितने भोले हो सजना
मुझको भी अच्छा लगता है,तुम्हे रिझाना,और संवरना
तुम्हे सताना,तुम्हे मनाना,और तुम्हारे  खातिर सजना
मुझे सुहाता,मन को भाता,संग तुम्हारे,सोना,जगना
अच्छा खाना,पका खिलाना,लटके,झटके ,सब दिखलाना
मीठी मीठी बात बनाना,और दीवाना,तुम्हे बनाना
मेरी चाहत की सब चीजे,अच्छा खाना और पहनना
गाना  और बतियाना,या फिर सोने का सुन्दर सा गहना
इन सब में भी तो होती 'ना',इसीलिए मै कहती 'ना'ना'
समझदार को सिर्फ इशारा ही काफी है,समझ गये ना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 12 मार्च 2012

सुनो भागवत है क्या कहती

(पत्नी जी  जब सोने के गहने की जिद करे,ये कविता आपका

संबल बन सकती है- शुभकामनाओं  सहित-'घोटू')
मुझे दिला दो,स्वर्णाभूषण,तुम हरदम जिद करती रहती
                                       सुनो ,भागवत है क्या कहती
कलयुग आया था धरती  पर,बैठ परीक्षित स्वर्ण मुकुट पर
उसको ये वरदान प्राप्त है, उसका वास,  स्वर्ण के अन्दर
और तुम पीछे पड़ी हुई हो, तुमको स्वर्णाभूषण लादूं
पागल हूँ क्या,जो कलयुग को,गले तुम्हारे से लिपटा दूं
और यूं भी सोना मंहगा है,दाम चढ़ें है आसमान पर
गहनों की क्या जरुरत तुमको,तुम खुद ही हो इतनी सुन्दर
सोने का ही चाव अगर है,हम तुम साथ साथ  सो लेगे
स्वर्ण हार ना,बाहुपाश का,हार तुम्हे हम पहना देंगे
पर मै इतना  मूर्ख नहीं  जो ,घर में कलयुग आने दूंगा
स्वर्ण तुम्हे ना दिलवाऊंगा,ना ही तुमको लाने दूंगा
प्यार तुम्हारा,सच्चा गहना, तुम हो मेरे  दिल में रहती
                                      सुनो भागवत है क्या कहती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


हलचल अन्य ब्लोगों से 1-