देश ये पूरा
है धुंध की चपेट में,
चारो ही तरफ
है इसका ही साया;
जीवन अस्त-व्यस्त
आमो-खाश भी परेशान,
रेल, सड़क, वायु तक
हर मार्ग है बाधित;
ठण्ड के जोर से
हर चेहरा कुम्भलाया |
चादर ये कोहरे की
है क्षणभंगुर,
चाँद दिनों के बाद ही
सब यथावत होगा,
बसंत राजा के साथ ही
ये धुंध भी छंटेगा |
ये धुंध तो मेहमान है
चंद दिनों या महीने की,
पर उस धुंध का क्या
जो देश पर है छाया;
भ्रष्टाचार रूपी धुंध का
प्रकोप है हर तरफ,
हर जगह, हर शख्श
है इसके आगोश में |
देश को तबाही की ओर
है इसने बढ़ा रखा,
कारण तो कई है
पर समाधान दिखता नहीं,
पता नहीं कब तक
रहेगा ये घना साया ?
न जाने कब तक
रहेंगे हम लपेटे में ?
इस धुंध से वो धुंध
कहीं ज्यादा विकट है,
इस धुंध से सिर्फ
कुछ सेवाएं है रुकी;
उस धुंध ने तो
है देश को रोक रखा;
देश की प्रगति को
उसने बाधित कर रखा,
अर्श के बदले देश आज
फर्श में है पड़ा |