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बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

१०० वीं प्रस्तुति

शुभकामनाएं--

File:Onam pookalam.jpg
रचो रँगोली लाभ-शुभ, जले  दिवाली  दीप |
माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||

Deepavali To Complete With Gambling













घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर, व्यापारी |
Diwali Cracker Hamper
नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
दो बच्चों का साथ, रचो मिल सभी रँगोली  ||

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

आत्मदीप


Tuesday, October 25, 2011

आत्मदीप

लो फिर से आ गए दिवाली
मेरे मन के आत्मद्वीप पर
उस प्रदीप पर
काम क्रोध के
प्रतिशोध के
वे बेढंगे
कई  पतंगे
शठ रिपु जैसे थे मंडराए
मुझ पर छाए
पर मैंने तो
उनको सबको
बाल दिया रे
अपने मन से
इस जीवन से
मैंने उन्हें
निकाल दिया रे
मगन में जला
लगन से जला
और मैंने
शांति की दुनिया बसा ली
लो फिर से आ गए दिवाली

सूनी सूनी है दिवाली

सूनी सूनी है दिवाली
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जब से मइके गयी,पड़ी है मेरे दिल की बस्ती खाली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                             सूनी सूनी है दिवाली
थी आवाज़ पटाखे सी पर फिर भी लगती भली बड़ी थी
हंसती थी तो फूल खिलाती,मेरे दिल की फूलझड़ी थी
छोड़ा करती थी अनार सा,हंस कर खुशियों का फंव्वारा
जिसकी पायल की रुनझुन से ,गूंजा करता था घर सारा
जिसके  हर एक इशारे पर,मै,चकरी सा खाता था चक्कर
वह चूल्हे चौके की रौनक,चली गयी है अब पीहर
महीने पहले चली गयी,मेरे घर की खुशियों की ताली
दीपावल आ गयी पर ना ,अब तक घर आई घरवाली
                              सूनी सूनी है दीवाली
कौन मुझे पकवान खिलाये,घेवर,फीनी,बर्फी,गुंझा
गृहलक्ष्मी ही पास नहीं फिर आज करूं मै किसकी पूजा
श्रीमती जी ,आ जाओ ना,दीप जला दो,मेरे दिल का
कुछ तो ख्याल  करो रानीजी,अपने राजा की मुश्किल का
तुम मइके में मना रही होगी दीवाली खुश हो हो कर
मेरी  आँखे,नीर भरी है,बाट तुम्हारी ,बस जो जो कर
देखो तुम्हारे विछोह में,मैंने कैसी दशा बना ली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                                सूनी सूनी है दीवाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

कब

 
कैद हैं कुछ 
यादों के भंवर 
जो सुलगते हैं 
पर पिघलेगे कब ?
- दीप्ति  शर्मा 

दीपोत्सव आये

दीपोत्सव आये
प्रमुदित मन हम करे दीप अभिनन्दन,
आज धरा पर कोटि चन्द्र मुस्काए
दीपोत्सव आये
बाल विधु से कोमल चंचल
सुंदर मनहर स्नेहिल निर्झेर
घर घर दीप जले
पल पल प्रीत पले
अंध तमस मय निशा आज मावस की
भूतल नीलाम्बर से होड़ लगाये
दीपोत्सव आये
रस मय बाती लों का अर्चन
पुलकित हे मन जन जन जीवन
नव प्रकाश आया
ले उल्हास आया
रससिक्त दीपक में लों मुस्काई
ज्यो पल्वल में पद्मावली छाये
दीपोत्सव आये

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