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गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

महारास

आज छिटकी चांदनी है
मिलन की मधु यामिनी है
पूर्ण विकसा चन्द्रमा है
यह शरद की पूर्णिमा है
आओ आकर  पास हम तुम
रचायें महारास ,हम तुम
राधिका सी सजो सुन्दर
मै तुम्हारा कृष्ण बन कर
बांसुरी पर तान छेड़ूं
मिलन का मधुगान छेड़ूं
रूपसी तुम मदभरी सी
व्योम से उतरी परी सी
थिरकती सी पास आओ
बांह में मेरी समाओ
प्यार में खुद को भिगो कर
दीवाने मदहोश होकर
रात भर हों साथ हम तुम
रचायें महारास  हम तुम
चाँद सा आनन तुम्हारा
और नभ में चाँद प्यारा
मंद शीतल सा पवन हो
चमकता नीला गगन हो
हम दीवाने मस्त नाचें
लगे चलने गर्म साँसें
भले सब श्रिंगार बिखरे
मोतियों का  हार बिखरे
जाय कुम्हला ,फूल ,गजरा
आँख से बह चले  कजरा
तन भरे उन्माद हम तुम
रचायें महारास हम तुम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

धोके बाजी 

क्या धोका देना ,किसी को परेशान करना ,झूठ बोलना .किसी की सरलता का फायदा उठाकर अपने को चतुर और दूसरे को बेवकूफ समझना ये हम इंसानों की फितरत है /और इससे  हम किसका भला कर रहे हैं /कुछ लोग इस तरह की हरकतें करते हैं और इस कारण सही जरुरत मंद इंसान की मदद करने में भी लोग विस्वास नहीं करते/
कुछ लोग बीमारी का बहाना बनाते हैं और लोगों की सहानुभूति क फायदा उठाते है परन्तु जब उनकी असलियत  का पता चलता है तो लोगों का विस्वास खो देते हैं /और फिर जो ब्यक्ति सच में बीमार होता है परन्तु धोका खाने के बाद लोग उसकी भी मदद करने में हिचकिचाते हैं /किसी की मदद करके उसको घर में काम करने के लिए रखो की चलो गरीब आदमी का भला हो जाएगा /परन्तु जब वो ही गरीब आदमी घर से चोरी करके या घर के लोगों को शारीरिक नुक्सान पहुंचाकर फरार हो जाता है /तो और गरीब की मदद करने के लिए इंसान फिर विस्वास नहीं कर पाता है /इसी  प्रकार  साधु सन्यासी के भेष में आकर लोगों को बेबकूफ बनाकर लूटने की घटना आये दिन होती रहती है तो इस कारण अब साधु सन्यासीओं पर कोई विस्वास नहीं करता /   
सड़क पर कई बार लोग दुर्घटना का नाटक कर कर लेट जाते हैं और गाडी वाला कोई भला आदमी गाडी रोककर उसकी मदद करने के लिए रूकता है तो उसके गैंग  के आदमी आकर उसको लूट लेते हैं और वो भला आदमी अच्छे काम के चक्कर में अपने धन के साथ साथ कई बार शारीरिक नुकशान सहने के लिए भी मजबूर हो जाता है /इस कारण अब सच में हुई दुर्घटना के कारण पड़े हुए आदमी को देखकर भी लोग अपनी गाडी नहीं रोकते की पता नहीं सच है की झूठ /जिस कारण कई बार समय पर इलाज नहीं होने के कारण घायल इंसान की जान भी चली जाती है / हमारी कानून ब्यवस्था भी ऐसी है की मदद करने वाला चाह कर भी इन सब झमेलों के कारण मदद नहीं कर पाता /फिर लोग इंसानियत की दुहाई देते हैं की लोगों में इंसानियत नहीं बची //
बीमारी का बहाना करके लोग मदद मांगते हैं /परन्तु जब मदद करनेवाले को ये पता लगता है की वो झूठ बोल रहा है उसे कोई बीमारी नहीं हैं वो तो धोका दे गया है /तो जो सही में बीमार है उसकी मदद करने में भी लोग हिचकचाते हैं की पता नहीं ये सच कह भी रहा है या नहीं /
ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे की अपने स्वार्थ और लालची प्रवृति के कारण इंसान इंसान को धोका दे रहा है .बेईमानी कर रहा है/परन्तु कुछ लोगों के ऐसा करने के कारण इंसान का इंसान से विस्वास उठ रहा है /लोग किसी की मदद करने में .भलाई करने में डरने लगे हैं /अच्छे लोग भी बुरे बनने लगे हैं /इसीलिए दुनिया में अच्छाई कम होने लगी है और बुराई बढ़ने लगी है /    
हमे अपनी सोच बदलने की जरूरत है /बदमाशी ,बेईमानी की जगह मेहनत करके पैसे कमाने की इच्छा रखना चाहिए /   कुछ लोगों की ऐसी हरकतों के कारण आज इंसान अपनों पर भी विस्वास करने में हिचकचाने लगा है /अगर इंसान ये समझ जाए तो इस दुनिया से काफी बुराई कम हो जायेगी /
इंसान इंसान से डरने लगा है 
एक दूसरे पर विस्वास कम करने लगा है 
अपनी बुरी प्रवृतियो को हमने नहीं बदला 
तो इस दुनिया में रहना मुश्किल होने लगा है  
  

बुधवार, 12 अक्टूबर 2011

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"




"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

बहुत पुराना है नारा ;

हकीकतन इससे सबने

पर कर लिया किनारा |



वो औद्योगीकरण के नाम पे,

जंगल के जंगल उड़ाते हैं;

पेड़ काट के नई इमारतों का,

अधिकार दिए जाते हैं |



नीति कुछ ऐसी है-

"जंगल हटाओ, विकास रचाओ !" 

पर कहते हैं जनता से,

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

आबो हवा


नहीं रहा अब
दुनिया पे यकीन,
भरोसे जैसी कोई
अब चीज कम है ;
बदल गये लोग
बदल गई मानसिकता,
बदल गई सोच
खतम हुई नैतिकता ;
हमने ही सब बदला
और कहते हैं आज
कि अच्छी नहीं रही
अब आबो हवा |

सोमवार, 10 अक्टूबर 2011

दीपक बाबा की प्रेरणा से -- बक बक

दीपक बाबा की प्रेरणा से -- बक बक

निर्बुद्धि की जिन्दगी, सुख-दुःख से अन्जान |
निर्बाधित जीवन जिए,  डाले  न व्यवधान  ||

बुद्धिमान करता रहे , खाकर-पीकर मौज |
एकाकी जीवन जिए, नहीं  बढ़ाये  फौज ||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUvz9teZpa2M2ixiaFOKLsfi-_I-frqZaTW9ifk8szYEoUlev-F7c5DEaI2M9fmhdTmdfuNJwLlxZ5AQ_jcQG_3btMO4eD1OuClyy8uQY4pLMjx-2hllO4koWwav4BuGG3ivyA10Snd75G/s1600/a_mayawati_0414.jpg
बुद्धिवादी परिश्रमी,  पाले  घर  परिवार |
मूंछे  ऐठें  रुवाब से,  बैठे  पैर  पसार  ||
बुद्धिजीवी  का  बड़ा, रोचक  है  अन्दाज |
जिभ्या ही करती रहे, राज काज आवाज ||
Former Chief Minister of Madhya Pradesh and Congress leader Digvijay Singh gestures during an interview, in New Delhi on March 26, 2009.
बुद्धियोगी  हृदय  से,  लेकर  चले समाज |
करे भलाई जगत का, दुर्लभ हैं पर आज ||
Anna Hazare and Mahatma Gandhi

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