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सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

रावण के दस सर

रावण के दस सर
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रावण ,वीर था,और विद्वान था
उसे शास्त्र और शास्त्र  दोनों का ज्ञान था
और उसके दस सर थे
और ये ही मुसीबत की जड़ थे
 एक सर बीच में था,
और एक तरफ चार सर थे ,
और दूसरी तरफ पांच सर थे
इससे उसके दिमाग का बेलेंस बिगड़ गया था,
और वो सीताहरण जैसी हरकत कर गया था
काश उसके नौ या ग्यारह सर होते
और दिमाग का बेलेंस बराबर हो जाता
तो आज उसकी भी तारीफ होती
और वो पूजा जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

नवरात्रि

नवरात्रि
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दूध  जैसी धवल शीतल हो छिटकती चांदनी
पवन मादक,गुनगुनाये,प्रीत की मधु रागिनी
तारिकायें,गुनगुनायें,ऋतू मधुर हो प्यार की
रात हो मधुचंद्रिका सी,मिलन के त्योंहार की
गगन से ले धरा तक हो,पुष्प की बरसात सी
सेज जैसे सज रही,पहले मिलन के रात की
मदभरी सी हो निराली,रात वह अभिसार की
महक हो वातावरण में,प्यार की बस प्यार की
लाज के,संकोच के,हो आवरण सारे  खुले
प्यास युग युग की बुझे,जब बहकते तन मन मिले
तुम शरद के चाँद की  आभा  लिये सुखदात्री हो
संग तुम्हारे बितायी,रात्रि हर, नवरात्रि हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हसरत और हकीकत

हसरत और हकीकत
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झांक कर के देखना या देख कर के झांकना
कुछ दिखे, इस ताक में,बस हर तरफ ही ताकना
तितलियों सी नज़र उडती,फूल कितने ही खिले,
एक पर जा कर कभी भी ,मगर टिकती आँख ना
चाहतों के पंख लम्बे,हैं उड़ाने दूर की ,
सभी चाहे चाँद पाना, मगर मिलता चाँद ना
सभी का मन लुभाती है,खुशबुएँ  पकवान की,
पेट घर की रोटियों  से ही पड़ेगा  पाटना
उनके घर के झाड़ फानूस ,देख कर ललचाओ मत,
लायेगा घर का दिया ही, झोंपड़ी में चांदना
आपकी की जूही कली ही, जिंदगी महकाएगी,
मिल सकेगा,दूसरों के बाग़ का गुलाब ना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

बढती उमर की ग़ज़ल

मेरा प्यार लगता तुझे चोंचला है
मेरी जान तुझको ये क्या हो चला है
किये होंसले पस्त तुने अभी से
बुलंदी पे अब भी मेरा होंसला है
 
बढा प्यार मेरा है संग संग उमर के
उमर ही ढली है न यौवन ढला है
मचलते हैं जोशे जवानी में सब ही
मोहब्बत का असली पता अब चला है
उड़े सब परिंदे बसा अपनी दुनिया
अब हम दो बचे हैं और ये घोंसला है
मोहब्बत भरी ये मेरी धुंधली आँखें
तेरी झुर्रियों का पता कब चला है
चलो फिर से जी ले जवानी के वो दिन
यही सोच कर के नया सिलसिला है

अग़ज़ल-- दिलबाग विर्क


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