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शनिवार, 10 सितंबर 2011

वो लोकगीत

न जाने कहाँ खो गई मिट्टी की वो असली खुशबू गुम हुए आधुनिकता में मीठे-सुरीले वो लोकगीत | कर्ण-फाड़ू संगीत ही रहा वो असली रंगत नहीं रही मूल भारत की याद दिलाती कहाँ गए वो लोकगीत | एफ. एम., पोड ने निगल लिया फिल्मी गानों ने ग्रास लिया अब तो कोई सुनता भी नहीं न गाता कोई वो लोकगीत |

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