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मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

बुढ़ापा होता है कैसा

बुढ़ापा होता है कैसा 
बुढ़ापा होता है ऐसा 

अभी जोशे जवानी है 
चमक चेहरे पर पानी है 
मटकती चाल बलखाती
जुल्फ काली है लहराती 
उमर जब बढ़ती जाएगी 
लुनाई घटती जाएगी 
कोई जब आंटी बोलेगा 
तुम्हारा खून खोलेगा 
भुगतनी पड़ती जिल्लत है 
उमर की यह हकीकत है 
सफेदी सर पे आती है,
 उमर देती है संदेशा 
 बुढ़ापा होता है ऐसा 
 बुढ़ापा होता है कैसा 
 
तुम्हारी अपनी संताने 
जो चलती उंगली को थामें 
बड़ी होने लगेगी जब 
ध्यान तुम पर न देगी तब 
तुम्हारी कुछ न मानेगी 
सिर्फ अपनी ही तानेगी 
कहेगी तुम हो सठियाये
रिटायर होने को आए 
रमाओ राम में निज मन 
छोड़ दो काम का बंधन 
नियंत्रण उनका धंधे पर ,
और उनके हाथ है पैसा 
बुढ़ापा होता है ऐसा 
बुढ़ापा होता है कैसा 

बदन थोड़ा सा कुम्हलाता
चिड़चिड़ापन है आ जाता 
बहुत कम खाते पीते हैं 
दवाई खा कर जीते हैं 
मिठाई खा नहीं सकते 
बहुत परहेज है रखते 
गुजारे वक्त ना कटता 
बड़ी आ जाती नीरसता 
नहीं लगता कहीं भी मन 
खटकता है निकम्मापन
न घर के घाट के रहते ,
हाल कुछ होता है ऐसा
 बुढ़ापा होता है कैसा 
 बुढ़ापा होता है ऐसा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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