Hello
Recover your ranks with a professional Clean up service
https://www.mg-digital.co/detail.php?id=32
thanks and regards
MG Digital
support@mg-digital.co
https://www.mg-digital.co/unsubscribe/
पृष्ठ
एक सन्देश-
यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |
सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com
pradip_kumar110@yahoo.com
इस ब्लॉग से जुड़े
रविवार, 31 जनवरी 2021
कैसे जाता वक़्त गुजर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
सोना,जगना ,खाना,पीना ,क्या जीवन बस इतना भर है
कम्बल कभी रजाई चादर ,या फिर पंखा ,कूलर,ए सी
ठिठुरन ,सिहरन,तपन,बारिशें ,मौसम की गति बस है ऐसी
अलसाया तन ,मुरझाया मन ,बढ़ी उमर का हुआ असर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
सूरज उगता ,दिन भर तपता ,फिर ढल जाता अस्ताचल में
लेकिन वो बेबस होता जब ,बादल ढक लेते है पल में
कब ढक ले आ बादल कोई, पल पल लगता रहता डर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
बीते दिन की यादों में मन, बस खोया ही रहता अक्सर
आते याद ख़यालों में वो,रख्खा जिनका ख्याल उमर भर
नहीं मगर उनको अब रहता ,ख्याल हमारा ,रत्ती भर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
सोना,जगना ,खाना,पीना ,क्या जीवन बस इतना भर है
कम्बल कभी रजाई चादर ,या फिर पंखा ,कूलर,ए सी
ठिठुरन ,सिहरन,तपन,बारिशें ,मौसम की गति बस है ऐसी
अलसाया तन ,मुरझाया मन ,बढ़ी उमर का हुआ असर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
सूरज उगता ,दिन भर तपता ,फिर ढल जाता अस्ताचल में
लेकिन वो बेबस होता जब ,बादल ढक लेते है पल में
कब ढक ले आ बादल कोई, पल पल लगता रहता डर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
बीते दिन की यादों में मन, बस खोया ही रहता अक्सर
आते याद ख़यालों में वो,रख्खा जिनका ख्याल उमर भर
नहीं मगर उनको अब रहता ,ख्याल हमारा ,रत्ती भर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
शुक्रवार, 29 जनवरी 2021
मनौती
मन की कोई कामना पूरी होने पर ,
कुछ करने का संकल्प ,
होता है मनौती
पर गौर से देखा जाए तो ,
यह एक तरह की रिश्वत है होती
जो हम भगवान को देते है
और ये कहते है
कि प्रभु ,अगर आप
मेरा फलां फलां काम दोगे साध
तो मैं आपको चढ़ाऊंगा इतना परशाद
या मैं आपको सोने या चांदी का छत्र चढ़ाऊंगा
आपके दर्शन के लिए ,परिवार संग आऊंगा
पर जब आप करते है कोई भी कामना
उसके पूरा होने की ,होती है ५०%सम्भावना
और इस तरह आधी मनोतियां पूर्ण हो जाती है
और उस देवता में ,आपकी श्रद्धा बढ़ जाती है
बचपन से ही हमारे संस्कार
ढल जाते है इस प्रकार
कि भगवान अगर परीक्षा में पास हो जाऊँगा
तो इतने रूपये का परशाद चढ़ाऊंगा
और पास होने पर आप प्रशाद चढ़ाएंगे
हालांकि आधी मिठाई खुद खाएंगे
ऐसे में माँ बाप भी मना नहीं करते
क्योंकि वो भी बचपन से ,
सत्यनारायण की कथा आये है सुनते
और घबराते है कि मनौती पूरी नहीं करने पर
लीलावती कलावती का हश्र ,उन पर न जाए गुजर
हमारी ये ही अंध आस्था
खोल देती है रास्ता
कुछ ख़ास मंदिरों में भीड़ बढ़ाने का
मान्यता पूरी होने पर परशाद चढाने का
इस तरह फलां फलां मंदिर के चमत्कार
का करके प्रचार
हम भेड़धसान की तरह मंदिरो में भीड़ बढ़ा रहे है
परशाद चढ़ा रहे है
आप कितने भी बड़े बुद्धिजीवी हो या अज्ञानी
पर काम बन जाता है तो हो जाते दानी
क्योंकि अगर ५०%लोगों की ५०%मनोकामनाएं
अगर प्रोबेबिलिटी के सिंद्धांत से पूर्ण हो जाए
तो इसका श्रेय मिलता है उस भगवान को ,
और कहा जाता है मनौती का असर दिखा है
और अगर कामना पूरी नहीं होती ,
तो सोचते है भाग्य में नहीं लिखा है
ये हमारी आस्था ही है ,जिस पर संसार टिका है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मन की कोई कामना पूरी होने पर ,
कुछ करने का संकल्प ,
होता है मनौती
पर गौर से देखा जाए तो ,
यह एक तरह की रिश्वत है होती
जो हम भगवान को देते है
और ये कहते है
कि प्रभु ,अगर आप
मेरा फलां फलां काम दोगे साध
तो मैं आपको चढ़ाऊंगा इतना परशाद
या मैं आपको सोने या चांदी का छत्र चढ़ाऊंगा
आपके दर्शन के लिए ,परिवार संग आऊंगा
पर जब आप करते है कोई भी कामना
उसके पूरा होने की ,होती है ५०%सम्भावना
और इस तरह आधी मनोतियां पूर्ण हो जाती है
और उस देवता में ,आपकी श्रद्धा बढ़ जाती है
बचपन से ही हमारे संस्कार
ढल जाते है इस प्रकार
कि भगवान अगर परीक्षा में पास हो जाऊँगा
तो इतने रूपये का परशाद चढ़ाऊंगा
और पास होने पर आप प्रशाद चढ़ाएंगे
हालांकि आधी मिठाई खुद खाएंगे
ऐसे में माँ बाप भी मना नहीं करते
क्योंकि वो भी बचपन से ,
सत्यनारायण की कथा आये है सुनते
और घबराते है कि मनौती पूरी नहीं करने पर
लीलावती कलावती का हश्र ,उन पर न जाए गुजर
हमारी ये ही अंध आस्था
खोल देती है रास्ता
कुछ ख़ास मंदिरों में भीड़ बढ़ाने का
मान्यता पूरी होने पर परशाद चढाने का
इस तरह फलां फलां मंदिर के चमत्कार
का करके प्रचार
हम भेड़धसान की तरह मंदिरो में भीड़ बढ़ा रहे है
परशाद चढ़ा रहे है
आप कितने भी बड़े बुद्धिजीवी हो या अज्ञानी
पर काम बन जाता है तो हो जाते दानी
क्योंकि अगर ५०%लोगों की ५०%मनोकामनाएं
अगर प्रोबेबिलिटी के सिंद्धांत से पूर्ण हो जाए
तो इसका श्रेय मिलता है उस भगवान को ,
और कहा जाता है मनौती का असर दिखा है
और अगर कामना पूरी नहीं होती ,
तो सोचते है भाग्य में नहीं लिखा है
ये हमारी आस्था ही है ,जिस पर संसार टिका है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इन्तजार
हर घड़ी मैं घड़ी देखता ही रहा ,
तेरा दीदार हो ,आयी ना वो घड़ी
बेकरारी बढ़ी ,तू है प्यारी बड़ी ,
तेरी तस्वीर मैंने है दिल में मढ़ी
सपने बुनता रहा ,सर मैं धुनता रहा ,
थी निगाहें मेरी ,द्वार पर ही अड़ी
तू नहीं बेवफ़ा ,ना तू मुझसे खफ़ा ,
कौनसी बेबसी ,विपदा आ के पड़ी
मुश्किलें थी बड़ी ,सर उठाये खड़ी ,
कब कहाँ हो गयी है कोई गड़बड़ी
अश्क बहते रहे ,पीर सहते रहे ,
हर घडी लगता था ,सामने तू खड़ी
घोटू
हर घड़ी मैं घड़ी देखता ही रहा ,
तेरा दीदार हो ,आयी ना वो घड़ी
बेकरारी बढ़ी ,तू है प्यारी बड़ी ,
तेरी तस्वीर मैंने है दिल में मढ़ी
सपने बुनता रहा ,सर मैं धुनता रहा ,
थी निगाहें मेरी ,द्वार पर ही अड़ी
तू नहीं बेवफ़ा ,ना तू मुझसे खफ़ा ,
कौनसी बेबसी ,विपदा आ के पड़ी
मुश्किलें थी बड़ी ,सर उठाये खड़ी ,
कब कहाँ हो गयी है कोई गड़बड़ी
अश्क बहते रहे ,पीर सहते रहे ,
हर घडी लगता था ,सामने तू खड़ी
घोटू
एक बेटी की फ़रियाद -माँ से
तेरी कोख में माँ ,पली और बढ़ी मैं
पकड़ तेरी ऊँगली,चली, हो खड़ी मैं
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ ,मैं तेरी जायी
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी
तूने माँ मुझको ,पढ़ाया लिखाया
सहीऔर गलत का है अंतर सिखाया
नसीहत ने तेरी बनाया है लायक
रही तू हमेशा ,मेरी मार्ग दर्शक
तूने संवारा है व्यक्तित्व मेरा
तेरे ही कारण है अस्तित्व मेरा
तेरा रूप, तेरी छवि, प्यार हूँ मैं
जीवन सफ़र को अब तैयार हूँ मैं
मिले सुख हमेशा,यही करके आशा
मेरे लिए ,हमसफ़र है तलाशा
बड़े चाव से बाँध कर उससे बंधन
किया आज तूने ,विवाह का प्रयोजन
ख़ुशी से करेगी ,तू मेरी बिदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी
सभी रस्म मानूंगी ,जो है जरूरी
मगर दान कन्या की ,ना है मंजूरी
न सोना न चांदी ,इंसान मैं हूँ
नहीं चीज दी जाये ,जो दान में हूँ
मुझे दान दे तू ,नहीं मैं सहूंगी
तुम्हारी हूँ बेटी ,तुम्हारी रहूंगी
दे आशीष मुझको,सफल जिंदगी हो
किसी चीज की भी,कभी ना कमी हो
फलें और फूलें ,सदा खुश रहें हम
रहे मुस्कराते ,नहीं आये कोई ग़म
कटे जिंदगी का ,सफर ये सुहाना
मगर भूल कर भी ,मुझे ना भुलाना
रहे संग पति के ,हो माँ से जुदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी पराई
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तेरी कोख में माँ ,पली और बढ़ी मैं
पकड़ तेरी ऊँगली,चली, हो खड़ी मैं
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ ,मैं तेरी जायी
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी
तूने माँ मुझको ,पढ़ाया लिखाया
सहीऔर गलत का है अंतर सिखाया
नसीहत ने तेरी बनाया है लायक
रही तू हमेशा ,मेरी मार्ग दर्शक
तूने संवारा है व्यक्तित्व मेरा
तेरे ही कारण है अस्तित्व मेरा
तेरा रूप, तेरी छवि, प्यार हूँ मैं
जीवन सफ़र को अब तैयार हूँ मैं
मिले सुख हमेशा,यही करके आशा
मेरे लिए ,हमसफ़र है तलाशा
बड़े चाव से बाँध कर उससे बंधन
किया आज तूने ,विवाह का प्रयोजन
ख़ुशी से करेगी ,तू मेरी बिदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी
सभी रस्म मानूंगी ,जो है जरूरी
मगर दान कन्या की ,ना है मंजूरी
न सोना न चांदी ,इंसान मैं हूँ
नहीं चीज दी जाये ,जो दान में हूँ
मुझे दान दे तू ,नहीं मैं सहूंगी
तुम्हारी हूँ बेटी ,तुम्हारी रहूंगी
दे आशीष मुझको,सफल जिंदगी हो
किसी चीज की भी,कभी ना कमी हो
फलें और फूलें ,सदा खुश रहें हम
रहे मुस्कराते ,नहीं आये कोई ग़म
कटे जिंदगी का ,सफर ये सुहाना
मगर भूल कर भी ,मुझे ना भुलाना
रहे संग पति के ,हो माँ से जुदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी पराई
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
भूलने की बिमारी
बुढ़ापे में मुश्किल ये भारी हुई है
मुझे भूलने की , बिमारी हुई है
रखूँ कुछ कहीं पर ,नहीं याद रहता
परेशां हो ढूँढूं ,किसी से न कहता
चश्मा कहीं पर भी रख भूल जाता
दवाई की गोली ,न टाइम से खाता
नहीं नाम लोगों के ,अब याद रहते
बिगड़े बहुत ही , है हालात रहते
बड़ी ही फ़जीयत हमारी हुई है
मुझे भूलने की, बिमारी हुई है
नहीं याद रहती ,मुझे बात कल की
मगर याद ताज़ा ,कई बीते पल की
बचपन के दिन ,वो शरारत की बातें
जवानी के किस्से ,वो मस्ती की रातें
वो भाई बहन संग ,लड़ना ,झगड़ना
वो माता की ममता ,पिताजी से डरना
वो जीवन्त ,सारी की सारी हुई है
मुझे भूलने की ,बिमारी हुई है
अब जब सफ़र कट गया जिंदगी का
संग याद आता है ,बिछड़े सभी का
हरेक दोस्त मुश्किल में जो काम आया
उन्हें भूल कर भी ,भुला मैं न पाया
नाम अब प्रभु का ,सुमरने लगा हूँ
मोह माया से अब ,उबरने लगा हूँ
अंतिम सफर की ,तैयारी हुई है
मुझे भूलने की, बिमारी हुई है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापे में मुश्किल ये भारी हुई है
मुझे भूलने की , बिमारी हुई है
रखूँ कुछ कहीं पर ,नहीं याद रहता
परेशां हो ढूँढूं ,किसी से न कहता
चश्मा कहीं पर भी रख भूल जाता
दवाई की गोली ,न टाइम से खाता
नहीं नाम लोगों के ,अब याद रहते
बिगड़े बहुत ही , है हालात रहते
बड़ी ही फ़जीयत हमारी हुई है
मुझे भूलने की, बिमारी हुई है
नहीं याद रहती ,मुझे बात कल की
मगर याद ताज़ा ,कई बीते पल की
बचपन के दिन ,वो शरारत की बातें
जवानी के किस्से ,वो मस्ती की रातें
वो भाई बहन संग ,लड़ना ,झगड़ना
वो माता की ममता ,पिताजी से डरना
वो जीवन्त ,सारी की सारी हुई है
मुझे भूलने की ,बिमारी हुई है
अब जब सफ़र कट गया जिंदगी का
संग याद आता है ,बिछड़े सभी का
हरेक दोस्त मुश्किल में जो काम आया
उन्हें भूल कर भी ,भुला मैं न पाया
नाम अब प्रभु का ,सुमरने लगा हूँ
मोह माया से अब ,उबरने लगा हूँ
अंतिम सफर की ,तैयारी हुई है
मुझे भूलने की, बिमारी हुई है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुधवार, 20 जनवरी 2021
पहले तो तुम ऐसी ना थी
अब तुमको क्या क्या बतलाऊँ ,अब तुम क्या हो ,पहले क्या थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
जब आयी थी दुल्हन बन कर ,तब तुम्हारा ,रूप ख़ास था
आँखों में लज्जा का पहरा ,अपनापन था और मिठास था
भोलीभाली सी सूरत से ,तुमने सबका मन लूटा था
तुमको पाकर ,मेरे मन में ,एक प्यार झरना फूटा था
आता याद ,मुझे वो कल जब ,तुम कल कल करती सरिता थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
तब तुम्हारे ,काले कुंतल , काँधे पर झूमा करते थे
फूलों से कोमल गालों को ,भ्र्मरों से चूमा करते थे
रक्तिम अधरों पर चुंबन था ,यौवन से थी ,तुम मदमाती
खिल जाते थे फूल हज़ारों ,जब तुम मस्ती में मुस्काती
यौवन से परिपूर्ण ,सुहानी ,सुंदरता की तुम प्रतिमा थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
मेरे बिन बोले ही मेरे ,मन के भाव जान जाती थी
मेरे सारे प्रस्तावों को ,नज़रें झुका ,मान जाती थी
ना तो करती ,कोई प्रश्न थी ,ना गुंजाईश थी विवाद की
ना मन में मलाल रहता था ,अच्छी लगती ,सभी बात थी
निश्च्ल,चंचल,प्यारी प्यारी ,मुस्काती नन्ही गुड़िया थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
पहले कभी हुआ करती थी ,तुम सीधी सादी और भोली
अब सीधे मुंह बात न करती ,बहुत हो गयी हो बड़बोली
पहले प्यार लुटाती थी अब ,मुझे सताती ,बेदरदी हो
पहले बासन्ती बहार थी ,अब तुम दिल्ली की सरदी हो
आपस में विचार मिलते थे ,मेरी हाँ तुम्हारी हाँ थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
पहले पायल की रुनझुन थी ,अब तुम बादल की गर्जन हो
पहले नरम गर्म फुल्का थी ,हुई डबलरोटी अब तुम हो
अब ना तीर चलाते नयना ,अब न रहा वो रूप सलोना
हुई द्विगुणित काया अब तो ,फूला तन का कोना कोना
पहले तुम मेरी सुनती थी ,अब रहती हो मुझे सुनाती
पहले तो तुम ऐसी ना थी
पहले थी तुम कली महकती ,अब कुम्हलाया हुआ फूल हो
पहले कोमल ,कमल फूल सी ,अब चुभने वाला त्रिशूल हो
पहले शर्म हया की पुतली ,बहुत लजीली और शरमीली
अब तेवर तीखे दिखलाती ,बहुत हो गयी हो रोबीली
पहले सेवाभाव भरा था ,तुममे प्रेम भरी गरिमा थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
शांत और शीतल स्वभाव था ,सबके प्रति मन में दुलार था
एक पालतू गैया सी तुम ,देती थी बस दूध प्यार का
अब तो कितना ही पुचकारो ,बात बात पर बिगड़ झगड़ती
मन माफिक यदि कुछ न होता ,झट से सींग मारने लगती
कभी शरम से जो झुकती थी ,वो आँखें रहती ,दिखलाती
पहले तो तुम ऐसी ना थी
अब तो यही प्रार्थना प्रभु से ,कि तुम पहले सी हो जाओ
पहले सी ही प्रीत दिखाओ ,पहले जैसी ही मुस्काओ
बचे खुचे जीवन के कुछ दिन ,हम तुम ,ख़ुशी ख़ुशी मिल काटें
मेलजोल रख ,रहे प्यार से ,सबके संग में ,खुशियां बांटे
हो प्रयाग फिर से जब मिलती ,प्यार भरी गंगा यमुना थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अब तुमको क्या क्या बतलाऊँ ,अब तुम क्या हो ,पहले क्या थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
जब आयी थी दुल्हन बन कर ,तब तुम्हारा ,रूप ख़ास था
आँखों में लज्जा का पहरा ,अपनापन था और मिठास था
भोलीभाली सी सूरत से ,तुमने सबका मन लूटा था
तुमको पाकर ,मेरे मन में ,एक प्यार झरना फूटा था
आता याद ,मुझे वो कल जब ,तुम कल कल करती सरिता थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
तब तुम्हारे ,काले कुंतल , काँधे पर झूमा करते थे
फूलों से कोमल गालों को ,भ्र्मरों से चूमा करते थे
रक्तिम अधरों पर चुंबन था ,यौवन से थी ,तुम मदमाती
खिल जाते थे फूल हज़ारों ,जब तुम मस्ती में मुस्काती
यौवन से परिपूर्ण ,सुहानी ,सुंदरता की तुम प्रतिमा थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
मेरे बिन बोले ही मेरे ,मन के भाव जान जाती थी
मेरे सारे प्रस्तावों को ,नज़रें झुका ,मान जाती थी
ना तो करती ,कोई प्रश्न थी ,ना गुंजाईश थी विवाद की
ना मन में मलाल रहता था ,अच्छी लगती ,सभी बात थी
निश्च्ल,चंचल,प्यारी प्यारी ,मुस्काती नन्ही गुड़िया थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
पहले कभी हुआ करती थी ,तुम सीधी सादी और भोली
अब सीधे मुंह बात न करती ,बहुत हो गयी हो बड़बोली
पहले प्यार लुटाती थी अब ,मुझे सताती ,बेदरदी हो
पहले बासन्ती बहार थी ,अब तुम दिल्ली की सरदी हो
आपस में विचार मिलते थे ,मेरी हाँ तुम्हारी हाँ थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
पहले पायल की रुनझुन थी ,अब तुम बादल की गर्जन हो
पहले नरम गर्म फुल्का थी ,हुई डबलरोटी अब तुम हो
अब ना तीर चलाते नयना ,अब न रहा वो रूप सलोना
हुई द्विगुणित काया अब तो ,फूला तन का कोना कोना
पहले तुम मेरी सुनती थी ,अब रहती हो मुझे सुनाती
पहले तो तुम ऐसी ना थी
पहले थी तुम कली महकती ,अब कुम्हलाया हुआ फूल हो
पहले कोमल ,कमल फूल सी ,अब चुभने वाला त्रिशूल हो
पहले शर्म हया की पुतली ,बहुत लजीली और शरमीली
अब तेवर तीखे दिखलाती ,बहुत हो गयी हो रोबीली
पहले सेवाभाव भरा था ,तुममे प्रेम भरी गरिमा थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
शांत और शीतल स्वभाव था ,सबके प्रति मन में दुलार था
एक पालतू गैया सी तुम ,देती थी बस दूध प्यार का
अब तो कितना ही पुचकारो ,बात बात पर बिगड़ झगड़ती
मन माफिक यदि कुछ न होता ,झट से सींग मारने लगती
कभी शरम से जो झुकती थी ,वो आँखें रहती ,दिखलाती
पहले तो तुम ऐसी ना थी
अब तो यही प्रार्थना प्रभु से ,कि तुम पहले सी हो जाओ
पहले सी ही प्रीत दिखाओ ,पहले जैसी ही मुस्काओ
बचे खुचे जीवन के कुछ दिन ,हम तुम ,ख़ुशी ख़ुशी मिल काटें
मेलजोल रख ,रहे प्यार से ,सबके संग में ,खुशियां बांटे
हो प्रयाग फिर से जब मिलती ,प्यार भरी गंगा यमुना थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
देवता और आदमी
नहीं एक उसमे ,हजारों कमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है
फंसा मोह माया में ,होकर के अँधा
कई गलतियों का ,जो होता पुलंदा
करम से कमीना ,विचारों से गंदा
सदा भूल जाता ,जो अपनी जमीं है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है
समझ जो न पाता ,औरों की पीड़ा
करने की सेवा ,उठाता न बीड़ा
भोगों में डूबा हुआ है जो कीड़ा
लालच और लिप्सा में काया रमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है
बसेगा ह्रदय में जब सत्य उसमे
छलकेगा जब प्यारअपनत्व उसमे
आयेगा तब ही तो देवत्व उसमे
अहम् से रहे दूर ,ये लाजमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
नहीं एक उसमे ,हजारों कमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है
फंसा मोह माया में ,होकर के अँधा
कई गलतियों का ,जो होता पुलंदा
करम से कमीना ,विचारों से गंदा
सदा भूल जाता ,जो अपनी जमीं है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है
समझ जो न पाता ,औरों की पीड़ा
करने की सेवा ,उठाता न बीड़ा
भोगों में डूबा हुआ है जो कीड़ा
लालच और लिप्सा में काया रमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है
बसेगा ह्रदय में जब सत्य उसमे
छलकेगा जब प्यारअपनत्व उसमे
आयेगा तब ही तो देवत्व उसमे
अहम् से रहे दूर ,ये लाजमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं तुमसे गुस्सा हूँ
हम है जनम जनम के साथी ,दिया बाती साथ हमारा
एक दूसरे के सुख दुःख में ,बन कर रहते ,सदा सहारा
पर तुम मन की बात छुपाते ,अपनी पीड़ा नहीं बताते
उसे बांटती ख़ुशी ख़ुशी मैं ,यदि कुछ अपनापन दिखलाते
एक जान जब कि हम तुम है ,मैं तुम्हारा ही हूँ हिस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते ,जाओ,मैं तुमसे हूँ गुस्सा
तुम करते सागर का मंथन ,मेरु जैसी मथनी बन कर
मिलते रतन ,बाँट सब देते ,खुद विष पीते ,बन शिवशंकर
सुखी और खुशहाल रहे हम ,तुम दुःख सहते ,इसीलिये हो
हमें नहीं अपराध बोध हो ,कुछ ना कहते ,इसीलिये हो
खुद पर करते सभी कटौती ,रोज रोज का है ये किस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते , जाओ मैं हूँ तुम पर गुस्सा
तुम पैदल दफ्तर जाते हो ,ताकि कुछ पैसे बच जाये
फटे वस्त्र भी पहनो ताकि ,मेरी नव साड़ी आ जाए
तुमको शौक मिठाई का पर ,ना खाते कह,डाइबिटीज है
अपनी इच्छा दबा दबा कर ,ना खरीदते कोई चीज है
तुमने ये किफायती फंदा ,खुद के ऊपर ही है कस्सा
तुम अपना गम नहीं बताते ,जाओ ,मैं तुम पर हूँ गुस्सा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हम है जनम जनम के साथी ,दिया बाती साथ हमारा
एक दूसरे के सुख दुःख में ,बन कर रहते ,सदा सहारा
पर तुम मन की बात छुपाते ,अपनी पीड़ा नहीं बताते
उसे बांटती ख़ुशी ख़ुशी मैं ,यदि कुछ अपनापन दिखलाते
एक जान जब कि हम तुम है ,मैं तुम्हारा ही हूँ हिस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते ,जाओ,मैं तुमसे हूँ गुस्सा
तुम करते सागर का मंथन ,मेरु जैसी मथनी बन कर
मिलते रतन ,बाँट सब देते ,खुद विष पीते ,बन शिवशंकर
सुखी और खुशहाल रहे हम ,तुम दुःख सहते ,इसीलिये हो
हमें नहीं अपराध बोध हो ,कुछ ना कहते ,इसीलिये हो
खुद पर करते सभी कटौती ,रोज रोज का है ये किस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते , जाओ मैं हूँ तुम पर गुस्सा
तुम पैदल दफ्तर जाते हो ,ताकि कुछ पैसे बच जाये
फटे वस्त्र भी पहनो ताकि ,मेरी नव साड़ी आ जाए
तुमको शौक मिठाई का पर ,ना खाते कह,डाइबिटीज है
अपनी इच्छा दबा दबा कर ,ना खरीदते कोई चीज है
तुमने ये किफायती फंदा ,खुद के ऊपर ही है कस्सा
तुम अपना गम नहीं बताते ,जाओ ,मैं तुम पर हूँ गुस्सा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रजनीचर्या
दिनभर काम में रह कर व्यस्त
थका हुआ मैं ,थकी हुई तुम ,
दोनों पस्त
अक्सर
जब हम लेटते है बिस्तर पर
तेरी बांह मुझको लपेट लेती है
अपने पास समेट लेती है
मैं तेरे सीने पर
सर रख कर
सो जाता हूँ
बड़ा सुकून पाता हूँ
जब तुम मेरे सर को थपथपाती हो
बालों में उँगलियाँ डाल ,सहलाती हो
मेरे दिल की धड़कन
हर क्षण
सुनाई देती है मधुर संगीत बन
और तुम्हारी साँसों के स्वर
मेरी साँसों से टकरा कर
देते है इतना नशा भर
कि मैं सो जाता हूँ ,
तेरी उँगलियों में ,अपनी उँगलियाँ फंसा कर
रोज रोज चलता है यही क्रम
तुम और हम
प्यार का बंधन
यही है जीवन
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दिनभर काम में रह कर व्यस्त
थका हुआ मैं ,थकी हुई तुम ,
दोनों पस्त
अक्सर
जब हम लेटते है बिस्तर पर
तेरी बांह मुझको लपेट लेती है
अपने पास समेट लेती है
मैं तेरे सीने पर
सर रख कर
सो जाता हूँ
बड़ा सुकून पाता हूँ
जब तुम मेरे सर को थपथपाती हो
बालों में उँगलियाँ डाल ,सहलाती हो
मेरे दिल की धड़कन
हर क्षण
सुनाई देती है मधुर संगीत बन
और तुम्हारी साँसों के स्वर
मेरी साँसों से टकरा कर
देते है इतना नशा भर
कि मैं सो जाता हूँ ,
तेरी उँगलियों में ,अपनी उँगलियाँ फंसा कर
रोज रोज चलता है यही क्रम
तुम और हम
प्यार का बंधन
यही है जीवन
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ्ढों का दम
१
सभी सीनियर के लिये ,बड़े गर्व की बात
राष्ट्रपति 'वाइडन 'बने ,मिली 'ट्रम्प 'को मात
मिली 'ट्रम्प' को मात ,उमर जिसकी अठहत्तर
चार साल तक राज्य करेगा ,अमेरिका पर
कह घोटू कविराय , नहीं क्या ऐसा लगता
बूढा हो इंसान ,बहुत कुछ पर कर सकता
२
पत्नी ताने मारती ,थी हम पर हर बार
कि हम अब बूढ़े हुये ,नाकामा ,लाचार
नाकामा ,लाचार ,बचा ना अब हममें दम
अमेरिका की राष्ट्रपति ,जब बने 'वाइडन '
अठहत्तर का बूढा अब सब पर है हावी
समझो मैडम , बुढ्ढों में दम रहता काफी
घोटू
१
सभी सीनियर के लिये ,बड़े गर्व की बात
राष्ट्रपति 'वाइडन 'बने ,मिली 'ट्रम्प 'को मात
मिली 'ट्रम्प' को मात ,उमर जिसकी अठहत्तर
चार साल तक राज्य करेगा ,अमेरिका पर
कह घोटू कविराय , नहीं क्या ऐसा लगता
बूढा हो इंसान ,बहुत कुछ पर कर सकता
२
पत्नी ताने मारती ,थी हम पर हर बार
कि हम अब बूढ़े हुये ,नाकामा ,लाचार
नाकामा ,लाचार ,बचा ना अब हममें दम
अमेरिका की राष्ट्रपति ,जब बने 'वाइडन '
अठहत्तर का बूढा अब सब पर है हावी
समझो मैडम , बुढ्ढों में दम रहता काफी
घोटू
शनिवार, 16 जनवरी 2021
re: I need to make a website`s ranks go down
hi
Yes, it is possible, with our service here
https://negativerseo.co/
for further information please email us here
support@negativerseo.co
thanks
Peter
Unsusbcribe
https://negativerseo.co/unsubscribe/
Yes, it is possible, with our service here
https://negativerseo.co/
for further information please email us here
support@negativerseo.co
thanks
Peter
Unsusbcribe
https://negativerseo.co/unsubscribe/
रविवार, 10 जनवरी 2021
1000 EDU Blog links for more SEO power
hi there
Fastest and Most Effective Way to Dominate the Web. Dominate search engines
and be on the top position for Google. EDU backlinks are considered more
trustworthy therefore are harder to get
Please find more information about our plan here:
https://www.str8creative.co/product/edu-backlinks/
thanks
Mike
support@str8creative.co
Unsubscribe
https://www.str8creative.co/unsubscribe/
Fastest and Most Effective Way to Dominate the Web. Dominate search engines
and be on the top position for Google. EDU backlinks are considered more
trustworthy therefore are harder to get
Please find more information about our plan here:
https://www.str8creative.co/product/edu-backlinks/
thanks
Mike
support@str8creative.co
Unsubscribe
https://www.str8creative.co/unsubscribe/
शुक्रवार, 8 जनवरी 2021
फुर्सत की ग़ज़ल
बैठे थे फुरसत में ,उनका दिल लगाने लग गये
एक दिन जब हम उन्हें गाने सुनाने लग गये
हमको ना सुर की पकड़ थी ,ना पकड़ थी ताल की ,
बेसुरे हम ,कान उनके ,बस पकाने लग गये
हमारे गाने की तानो ने बिगाड़ा उनका मन ,
वो खफ़ा होकर हमें ,ताने सुनाने लग गये
बुढ़ापे में आशिक़ी का भूत कुछ ऐसा चढ़ा ,
मूड उनका सोने का था ,हम सताने लग गये
'घोटू 'कुछ ना काम है ना काज है ,हम क्या करें ,
वक़्त अपना इस तरह से ,हम बिताने लग गये
घोटू
बैठे थे फुरसत में ,उनका दिल लगाने लग गये
एक दिन जब हम उन्हें गाने सुनाने लग गये
हमको ना सुर की पकड़ थी ,ना पकड़ थी ताल की ,
बेसुरे हम ,कान उनके ,बस पकाने लग गये
हमारे गाने की तानो ने बिगाड़ा उनका मन ,
वो खफ़ा होकर हमें ,ताने सुनाने लग गये
बुढ़ापे में आशिक़ी का भूत कुछ ऐसा चढ़ा ,
मूड उनका सोने का था ,हम सताने लग गये
'घोटू 'कुछ ना काम है ना काज है ,हम क्या करें ,
वक़्त अपना इस तरह से ,हम बिताने लग गये
घोटू
कसूर और जुर्बाना
मूड उनका सोने का था ,हमने सोने ना दिया ,
जुर्बाने में सोने के जेवर दिलाना पड़ गया
गाने गा गा बेसुरे ,उनको पकाया ,फल मिला ,
खाना उसदिन शाम को ,हमको पकाना पड़ गया
उलटी सीधी ,बेतुकी ,बातों से चाटा इस कदर ,
आलू टिक्की ,चाट सब ,उनको खिलाना पड़ गया
मार उनके प्यार की ,हम पर पड़ी कुछ इस तरह
मारकेटिंग के लिए ,उनको ले जाना पड़ गया
घोटू
मूड उनका सोने का था ,हमने सोने ना दिया ,
जुर्बाने में सोने के जेवर दिलाना पड़ गया
गाने गा गा बेसुरे ,उनको पकाया ,फल मिला ,
खाना उसदिन शाम को ,हमको पकाना पड़ गया
उलटी सीधी ,बेतुकी ,बातों से चाटा इस कदर ,
आलू टिक्की ,चाट सब ,उनको खिलाना पड़ गया
मार उनके प्यार की ,हम पर पड़ी कुछ इस तरह
मारकेटिंग के लिए ,उनको ले जाना पड़ गया
घोटू
दो दो लाइना -खाते पीते
१
तू है मेरी गरम जलेबी ,मैं रबड़ी का लच्छा
दोनों संग मिल स्वाद बढ़ाते ,प्यार हमारा सच्चा
२
फूला हुआ गोलगप्पा मैं ,स्वाद भरा तू पानी
तू दिल में आ ,स्वाद चटपटा ,भर देती तूफानी
३
मैं हूँ पाव और तू भाजी ,सबके मन को भाती
कभी बड़ा बन ,बड़ा पाव हम ,बन जाते है साथी
४
तू इडली सी नरम मुलायम मैं मद्रासी डोसा
तू है फूली हुई कचौड़ी ,मैं हूँ गरम समोसा
५
मैं हूँ गरम भटूरे जैसा ,तू छोले सी शोला
तेरी मदमाती खुशबू से ,मन मेरा भी डोला
६
मैं आलू की टिक्की सा तू चाट पापड़ी प्यारी
दही बड़े सी स्वाद चटपटी ,सब पर पड़ती भारी
७
प्रियतम तू है दाल माखनी ,मैं भड़ता बैंगन का
मिस्सी रोटी सा प्यारा ,जलवा तेरे यौवन का
८
मैं राजस्थानी बाटी तू ,नरम चूरमे जैसी
बेसनगट्टे की सब्जी हो ,स्वाद लगे तू वैसी
९
मैं काले गुलाबजामुन सा ,रसमलाई तू प्यारी
स्लिम काजू की कतली ,तूने ,मेरी नियत बिगाड़ी
१०
मैं मलाई घेवर सा ,तेरा है फीनी सा जलवा
कलाकार मैं कलाकंद सा ,तू गाजर का हलवा
११
मैं मथुरा के पेड़े जैसा ,तू अंगूरी पेठा
खुर्जा की खुर्चन जैसा मैं तेरे दिल में बैठा
१२
सुबह नाश्ते में पोहे सी ,तू है सीधी सादी
बारिश में तू गरम पकोड़ी ,बन जाती उन्मादी
१३
मैं हूँ चम्मच च्यवनप्राश का तू टॉनिक की गोली
तू मेरी ,मैं तेरी ताकत ,तू मेरी हमजोली
१४
मैं उबले चावल जैसा तू चटकीली बिरयानी
मैं हूँ भोजनभट्ट दिवाना ,तू रसोई की रानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
१
तू है मेरी गरम जलेबी ,मैं रबड़ी का लच्छा
दोनों संग मिल स्वाद बढ़ाते ,प्यार हमारा सच्चा
२
फूला हुआ गोलगप्पा मैं ,स्वाद भरा तू पानी
तू दिल में आ ,स्वाद चटपटा ,भर देती तूफानी
३
मैं हूँ पाव और तू भाजी ,सबके मन को भाती
कभी बड़ा बन ,बड़ा पाव हम ,बन जाते है साथी
४
तू इडली सी नरम मुलायम मैं मद्रासी डोसा
तू है फूली हुई कचौड़ी ,मैं हूँ गरम समोसा
५
मैं हूँ गरम भटूरे जैसा ,तू छोले सी शोला
तेरी मदमाती खुशबू से ,मन मेरा भी डोला
६
मैं आलू की टिक्की सा तू चाट पापड़ी प्यारी
दही बड़े सी स्वाद चटपटी ,सब पर पड़ती भारी
७
प्रियतम तू है दाल माखनी ,मैं भड़ता बैंगन का
मिस्सी रोटी सा प्यारा ,जलवा तेरे यौवन का
८
मैं राजस्थानी बाटी तू ,नरम चूरमे जैसी
बेसनगट्टे की सब्जी हो ,स्वाद लगे तू वैसी
९
मैं काले गुलाबजामुन सा ,रसमलाई तू प्यारी
स्लिम काजू की कतली ,तूने ,मेरी नियत बिगाड़ी
१०
मैं मलाई घेवर सा ,तेरा है फीनी सा जलवा
कलाकार मैं कलाकंद सा ,तू गाजर का हलवा
११
मैं मथुरा के पेड़े जैसा ,तू अंगूरी पेठा
खुर्जा की खुर्चन जैसा मैं तेरे दिल में बैठा
१२
सुबह नाश्ते में पोहे सी ,तू है सीधी सादी
बारिश में तू गरम पकोड़ी ,बन जाती उन्मादी
१३
मैं हूँ चम्मच च्यवनप्राश का तू टॉनिक की गोली
तू मेरी ,मैं तेरी ताकत ,तू मेरी हमजोली
१४
मैं उबले चावल जैसा तू चटकीली बिरयानी
मैं हूँ भोजनभट्ट दिवाना ,तू रसोई की रानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
गुरुवार, 7 जनवरी 2021
लगवाओ वेक्सीन रे
ये बिमारी कोरोना की ,जो लाया था चीन रे
आओ बचाएं ,खुद को इससे लगवायें वेक्सीन रे
घातक है ये बहुत बिमारी ,दुनिया को बर्बाद किया
भारतीय विज्ञानिक ने मिल ,ये टीका ईजाद किया
कोरोना की बिमारी से ,खुद को अगर बचाना है
एक माह के अंतर से बस दो टीके लगवाना है
टीके लगवा ,रहे सुरक्षित ,बजे चैन की बीन रे
हमें रोकना है कोरोना ,जो लाया था चीन रे
जनहित में मदन मोहन बहती 'घोटू' द्वारा जारी
ये बिमारी कोरोना की ,जो लाया था चीन रे
आओ बचाएं ,खुद को इससे लगवायें वेक्सीन रे
घातक है ये बहुत बिमारी ,दुनिया को बर्बाद किया
भारतीय विज्ञानिक ने मिल ,ये टीका ईजाद किया
कोरोना की बिमारी से ,खुद को अगर बचाना है
एक माह के अंतर से बस दो टीके लगवाना है
टीके लगवा ,रहे सुरक्षित ,बजे चैन की बीन रे
हमें रोकना है कोरोना ,जो लाया था चीन रे
जनहित में मदन मोहन बहती 'घोटू' द्वारा जारी
बुधवार, 6 जनवरी 2021
मैंने अपने अंदर झाँका
अब तक तो मैं औरों का ही ,मैला दामन करता ताका
पर एक दिन जब,मैंने अपने,उर अन्तर के अंदर झाँका
सहम गया मैं ,भौंचक्का सा ,भरी हुई थी ,कई बुराई ,
अहम और बेईमानी ने ,मचा रखा था ,वहां धमाका
मैंने मन के अंदर झाँका
अब तक मुझे ,नज़र आती थी ,औरों की बुराइयां केवल
समझा करता ,दूध धुला मैं ,मेरा हृदय ,स्वच्छ है निर्मल
मेरी सबसे बड़ी कमी थी ,मैं औरों की कमियां गिनता ,
कमियां भरा ,स्वयं को पाया ,जब मैंने अपने को आँका
मैंने मन के अंदर झाँका
मेरा अहम् कुंडली मारे छुपा हुआ था ,मेरे अंदर
एक दो नहीं ,कई बुराई ,का लहराता भरा समंदर
प्रकट नहीं ,अंदर ही अंदर ,स्पर्धा भी ,घर कर बैठी ,
लालच और लालसाओं ने ,डाल रखा था ,मन पर डाका
मैंने मन के अंदर झाँका
मोह और माया ,मुझे बरगला ,बैठी मुझ पर ,कैसे शिकंजा
रह रह कर ,अभिमान झूंठ भी ,मार रहे थे ,मुझ पर पंजा
अपने स्वार्थ पूर्ति की चाहत ,देती थी ईमान डगमगा ,
राह भले थी सीधी सादी ,मैं चलता था ,आँका बांका
मैंने मन के अंदर झाँका
मन बोला ,मत ढूंढ बुराई औरों में ,खुद को सुधार तू
अपने अंदर ,छुपे हुये सब ,राग द्वेष का ,कर संहार तू
तू सुधरेगा ,तेरी नज़रें ,देखेगी सबकी अच्छाई ,
और फिर तेरे मन के अंदर ,लहरायेगी ,प्रेमपताका
मैंने मन के अंदर झाँका
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अब तक तो मैं औरों का ही ,मैला दामन करता ताका
पर एक दिन जब,मैंने अपने,उर अन्तर के अंदर झाँका
सहम गया मैं ,भौंचक्का सा ,भरी हुई थी ,कई बुराई ,
अहम और बेईमानी ने ,मचा रखा था ,वहां धमाका
मैंने मन के अंदर झाँका
अब तक मुझे ,नज़र आती थी ,औरों की बुराइयां केवल
समझा करता ,दूध धुला मैं ,मेरा हृदय ,स्वच्छ है निर्मल
मेरी सबसे बड़ी कमी थी ,मैं औरों की कमियां गिनता ,
कमियां भरा ,स्वयं को पाया ,जब मैंने अपने को आँका
मैंने मन के अंदर झाँका
मेरा अहम् कुंडली मारे छुपा हुआ था ,मेरे अंदर
एक दो नहीं ,कई बुराई ,का लहराता भरा समंदर
प्रकट नहीं ,अंदर ही अंदर ,स्पर्धा भी ,घर कर बैठी ,
लालच और लालसाओं ने ,डाल रखा था ,मन पर डाका
मैंने मन के अंदर झाँका
मोह और माया ,मुझे बरगला ,बैठी मुझ पर ,कैसे शिकंजा
रह रह कर ,अभिमान झूंठ भी ,मार रहे थे ,मुझ पर पंजा
अपने स्वार्थ पूर्ति की चाहत ,देती थी ईमान डगमगा ,
राह भले थी सीधी सादी ,मैं चलता था ,आँका बांका
मैंने मन के अंदर झाँका
मन बोला ,मत ढूंढ बुराई औरों में ,खुद को सुधार तू
अपने अंदर ,छुपे हुये सब ,राग द्वेष का ,कर संहार तू
तू सुधरेगा ,तेरी नज़रें ,देखेगी सबकी अच्छाई ,
और फिर तेरे मन के अंदर ,लहरायेगी ,प्रेमपताका
मैंने मन के अंदर झाँका
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चले थी जहाँ से ,वहीँ आ गये है
अनजान थे हम ,जान आ गयी थी ,
हुआ था मिलन जब,हमारा,तुम्हारा
जीवन सफर की ,शुरुवात की थी ,
एक दूसरे का ,लिया था सहारा
बड़ी मुश्किलें थी ,कठिन रास्ता था ,
कहीं पर थे कांटे,कहीं ठोकरें थी
कभी सर्दी गर्मी ,कभी बारिशें थी ,
मौसम की गर्दिश ,हमे तंग करे थी
चमन में हमारे ,खिले फूल प्यारे ,
एक नन्ही जूही ,एक गुलाब प्यारा
मधुर प्यार की जिनने खुशबू बिखेरी ,
महकाया जीवन ,सजाया ,संवारा
मगर वक़्त ने चक्र ,ऐसा चलाया ,
दामाद आया ,गया ले कर बेटी
करी शादी बेटे की ,लाये बहू हम ,
बसा घर अलग ,दूर हमसे वो बैठी
बढ़ती उमर ने ,सितम ऐसा ढाया ,
बुढ़ापे में फिरसे ,हो तनहा गये है
फिर से वही,दो के दो रह गए हम ,
चले थे जहाँ से ,वहीँ आ गये है
घोटू
अनजान थे हम ,जान आ गयी थी ,
हुआ था मिलन जब,हमारा,तुम्हारा
जीवन सफर की ,शुरुवात की थी ,
एक दूसरे का ,लिया था सहारा
बड़ी मुश्किलें थी ,कठिन रास्ता था ,
कहीं पर थे कांटे,कहीं ठोकरें थी
कभी सर्दी गर्मी ,कभी बारिशें थी ,
मौसम की गर्दिश ,हमे तंग करे थी
चमन में हमारे ,खिले फूल प्यारे ,
एक नन्ही जूही ,एक गुलाब प्यारा
मधुर प्यार की जिनने खुशबू बिखेरी ,
महकाया जीवन ,सजाया ,संवारा
मगर वक़्त ने चक्र ,ऐसा चलाया ,
दामाद आया ,गया ले कर बेटी
करी शादी बेटे की ,लाये बहू हम ,
बसा घर अलग ,दूर हमसे वो बैठी
बढ़ती उमर ने ,सितम ऐसा ढाया ,
बुढ़ापे में फिरसे ,हो तनहा गये है
फिर से वही,दो के दो रह गए हम ,
चले थे जहाँ से ,वहीँ आ गये है
घोटू
सोमवार, 4 जनवरी 2021
इक्कीस का 'किस'
इक 'किस' लेकर इक्कीस आया ,ढेरों नेह भरा इसमें
मैं मुश्किल में पड़ा हुआ हूँ ,इसको बांटू किस किस में
एक मेरी प्यारी पत्नी जो जनम जनम की साथी है
एक मेरी प्यारी बेटी जो ,मुझ पर प्यार लुटाती है
एक मेरा अच्छा बेटा जो मेरा वंश चलायेगा
प्यार लुटाते भाई बहन ,ये किस किसमे बंट पायेगा
किस को दूँ और किस को ना दूँ ,पड़ा हुआ इस बंदिश में
मैं मुश्किल में पड़ा हुआ हूँ ,इक 'किस 'बांटूं किस किस में
रिश्तेदार कई प्यारे है दोस्त और शुभचिंतक है
थोड़ा थोड़ा उनको भी दूँ ,उनका भी बनता हक़ है
सूरज ,चंदा और सितारे ,वृक्ष ,फूल पत्ते सारे
प्राणदायिनी हवा और जल ,सब लगते मुझको प्यारे
जी करता है ,सब में बांटूं ,प्यार लुटाया जिस जिस ने
मेरे इतने सारे प्रेमी ,इक 'किस' ,बांटूं किस किस में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इक 'किस' लेकर इक्कीस आया ,ढेरों नेह भरा इसमें
मैं मुश्किल में पड़ा हुआ हूँ ,इसको बांटू किस किस में
एक मेरी प्यारी पत्नी जो जनम जनम की साथी है
एक मेरी प्यारी बेटी जो ,मुझ पर प्यार लुटाती है
एक मेरा अच्छा बेटा जो मेरा वंश चलायेगा
प्यार लुटाते भाई बहन ,ये किस किसमे बंट पायेगा
किस को दूँ और किस को ना दूँ ,पड़ा हुआ इस बंदिश में
मैं मुश्किल में पड़ा हुआ हूँ ,इक 'किस 'बांटूं किस किस में
रिश्तेदार कई प्यारे है दोस्त और शुभचिंतक है
थोड़ा थोड़ा उनको भी दूँ ,उनका भी बनता हक़ है
सूरज ,चंदा और सितारे ,वृक्ष ,फूल पत्ते सारे
प्राणदायिनी हवा और जल ,सब लगते मुझको प्यारे
जी करता है ,सब में बांटूं ,प्यार लुटाया जिस जिस ने
मेरे इतने सारे प्रेमी ,इक 'किस' ,बांटूं किस किस में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रविवार, 3 जनवरी 2021
चलती है
नहीं है पैर ,नहीं सर है नहीं काया है
मगर कुदरत ने उसे इस तरह बनाया है
कभी हलकी है ,कभी तेज, हवा चलती है
दिखाई देती नहीं ,मगर चला करती है
बड़ी नाजुक है जिससे स्वाद हम चखा करते
जिसपे बत्तीस चौकीदार ,नज़र रखा करते
कोई न रोक पाता ,जब जुबान चलती है
एक स्थान पर रहती है मगर चलती है
एक जगह टिकती नहीं ,होती है बड़ी चंचल
देखती ही सदा रहती है इधर और उधर
चलाती तीर भी है ,खुद भी मगर चलती है
बड़ी ही कातिल हुआ करती ,नज़र चलती है
रौब साहब का बहुत चला करता ,दफ्तर में
मामला उल्टा ,मगर हुआ करता है घर में
कोई भी मसला हो बीबी की बात चलती है
साहब चुप रहते है ,बीबी की सदा चलती है
वक़्त अच्छा बुरा ,आता है चला जाता है
बदलता रहता है ,रोता है कभी गाता है
चाल तारों की, पर तक़दीर को बदलती है
नज़र आती नहीं किस्मत जो चाल चलती है
घोटू
नहीं है पैर ,नहीं सर है नहीं काया है
मगर कुदरत ने उसे इस तरह बनाया है
कभी हलकी है ,कभी तेज, हवा चलती है
दिखाई देती नहीं ,मगर चला करती है
बड़ी नाजुक है जिससे स्वाद हम चखा करते
जिसपे बत्तीस चौकीदार ,नज़र रखा करते
कोई न रोक पाता ,जब जुबान चलती है
एक स्थान पर रहती है मगर चलती है
एक जगह टिकती नहीं ,होती है बड़ी चंचल
देखती ही सदा रहती है इधर और उधर
चलाती तीर भी है ,खुद भी मगर चलती है
बड़ी ही कातिल हुआ करती ,नज़र चलती है
रौब साहब का बहुत चला करता ,दफ्तर में
मामला उल्टा ,मगर हुआ करता है घर में
कोई भी मसला हो बीबी की बात चलती है
साहब चुप रहते है ,बीबी की सदा चलती है
वक़्त अच्छा बुरा ,आता है चला जाता है
बदलता रहता है ,रोता है कभी गाता है
चाल तारों की, पर तक़दीर को बदलती है
नज़र आती नहीं किस्मत जो चाल चलती है
घोटू
युग परिवर्तन
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
काली स्लेट ,खड़िया लेकर बच्चे अ आ ई पढ़ते थे
स्याही और होल्डर से लिख कर आगे पढाई में बढ़ते थे
फिर फाउंटेन पेन आया ,और बाल पेन ने किया राज
अब पेपर लेस पढाई से ,चलता है सारा काम काज
कम्यूटर पर और ऑन लाइन ,बच्चे पढाई अब करते है
सारी दुनिया का वृहद ज्ञान ,निज लैपटॉप में भरते है
छोटे बच्चों को बड़े बड़ों ,के कान काटते देखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
उन दिनों सास का शासन था ,बहुएं सासों से डर रहती
करती थी दिन भर काम और उनके ताने भी थी सहती
बच्चे उन्मुक्त खेलते थे ,बस्तों का बोझा भी कम था
चाचा ,ताऊ सब संग रहते ,और मस्तीवाला आलम था
माहौल इस तरह अब बदला ,बहुओं से डरती थी सासें
और मात पिता भी बच्चों से ,डर कर रहते,अच्छे खासे
परिवार नहीं संयुक्त रहे ,अब खिंची बीच में रेखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
तब गावों के कुछ घर में ही ,रखते थे रेडियो लोगबाग
फिर ट्रांजिस्टर ले बड़ी शान से घूमा करते उसे टांग
काले सफ़ेद टेलीविज़न ने नयी क्रांति का बोध दिया
रंगीन हुआ टेलीविजन ,लोगो ने हाथों हाथ लिया
सबको पछाड़ जब मोबाईल ,आया तो सबके मन भाया
रेडियो ,कैमरा और टीवी ,अब सबकी मुट्ठी में आया
यह छोटा उपकरण काम का है और बड़े मजे का है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
तब सिगरेट पांचसोपचपन का , डिब्बा निज हाथों में लेकर
कुछ लोग शान से धूम्रपान ,करते रहते है रह रह कर
फिर पान मसाले ने आकर ,ऐसा लोगों का रुख बदला
सबके हाथों की शान बना,डिब्बा एक पानपराग भरा
वो युग बीता ,कोरोना ने ,फिर फैलाया ऐसा डर है
कि उससे बचने ,लोगों के ,हाथों में सेनेटाइजर है
बदले हालातों के आगे ,हमने घुटनो को टेका है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
काली स्लेट ,खड़िया लेकर बच्चे अ आ ई पढ़ते थे
स्याही और होल्डर से लिख कर आगे पढाई में बढ़ते थे
फिर फाउंटेन पेन आया ,और बाल पेन ने किया राज
अब पेपर लेस पढाई से ,चलता है सारा काम काज
कम्यूटर पर और ऑन लाइन ,बच्चे पढाई अब करते है
सारी दुनिया का वृहद ज्ञान ,निज लैपटॉप में भरते है
छोटे बच्चों को बड़े बड़ों ,के कान काटते देखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
उन दिनों सास का शासन था ,बहुएं सासों से डर रहती
करती थी दिन भर काम और उनके ताने भी थी सहती
बच्चे उन्मुक्त खेलते थे ,बस्तों का बोझा भी कम था
चाचा ,ताऊ सब संग रहते ,और मस्तीवाला आलम था
माहौल इस तरह अब बदला ,बहुओं से डरती थी सासें
और मात पिता भी बच्चों से ,डर कर रहते,अच्छे खासे
परिवार नहीं संयुक्त रहे ,अब खिंची बीच में रेखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
तब गावों के कुछ घर में ही ,रखते थे रेडियो लोगबाग
फिर ट्रांजिस्टर ले बड़ी शान से घूमा करते उसे टांग
काले सफ़ेद टेलीविज़न ने नयी क्रांति का बोध दिया
रंगीन हुआ टेलीविजन ,लोगो ने हाथों हाथ लिया
सबको पछाड़ जब मोबाईल ,आया तो सबके मन भाया
रेडियो ,कैमरा और टीवी ,अब सबकी मुट्ठी में आया
यह छोटा उपकरण काम का है और बड़े मजे का है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
तब सिगरेट पांचसोपचपन का , डिब्बा निज हाथों में लेकर
कुछ लोग शान से धूम्रपान ,करते रहते है रह रह कर
फिर पान मसाले ने आकर ,ऐसा लोगों का रुख बदला
सबके हाथों की शान बना,डिब्बा एक पानपराग भरा
वो युग बीता ,कोरोना ने ,फिर फैलाया ऐसा डर है
कि उससे बचने ,लोगों के ,हाथों में सेनेटाइजर है
बदले हालातों के आगे ,हमने घुटनो को टेका है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
शुक्रवार, 1 जनवरी 2021
Whitehat monthly plans for blogger.com
hi there
After checking your website SEO metrics and ranks, we determined that you
can get a real boost in ranks and visibility by using any%of our plan below
https://www.cheapseosolutions.co/cheap-seo-packages/index.html
Cheap and effective SEO plan
Onpage SEO included
For the higher value plans, DA50 DR50 TF20 SEO metrics boost is inlcuded
Thank you
Mike
support@cheapseosolutions.co
After checking your website SEO metrics and ranks, we determined that you
can get a real boost in ranks and visibility by using any%of our plan below
https://www.cheapseosolutions.co/cheap-seo-packages/index.html
Cheap and effective SEO plan
Onpage SEO included
For the higher value plans, DA50 DR50 TF20 SEO metrics boost is inlcuded
Thank you
Mike
support@cheapseosolutions.co
दो दो लाइना
१
पहली सुबह धुंध वाली है ,सूरज भी है बुझा बुझा
जैसे हो नाराज बहू से ,मुंह सास का सुझा सुझा
२
ख़ामोशी जैसी छाई है ,लगते है हालत वही
पतिदेव नाराज हो गए ,मिली सुबह की चाय नहीं
३
बिगड़ा वातावरण ठंड में ,आयी है आफत गहरी
घर गंदा ,बर्तन जूंठे है ,छुट्टी चली गयी मेहरी
४
कोहरे की चादर ओढ़े है ,ये पृथ्वी चुपचाप पड़ी
मुझे रजाई छोड़,जगाने की जिद पर तुम मगर अड़ी
५
ओस पेड़ पत्तों से टपके ,तनिक हवा जो चल जाए
जैसे याद पिया की आये ,विरहन आंसूं टपकाये
६
मुड़े तुड़े घर के कोने में ,बिखरे है कल के अखबार
ज्यों किसान आंदोलन करते ,हो दिल्ली की सीमा पार
घोटू
१
पहली सुबह धुंध वाली है ,सूरज भी है बुझा बुझा
जैसे हो नाराज बहू से ,मुंह सास का सुझा सुझा
२
ख़ामोशी जैसी छाई है ,लगते है हालत वही
पतिदेव नाराज हो गए ,मिली सुबह की चाय नहीं
३
बिगड़ा वातावरण ठंड में ,आयी है आफत गहरी
घर गंदा ,बर्तन जूंठे है ,छुट्टी चली गयी मेहरी
४
कोहरे की चादर ओढ़े है ,ये पृथ्वी चुपचाप पड़ी
मुझे रजाई छोड़,जगाने की जिद पर तुम मगर अड़ी
५
ओस पेड़ पत्तों से टपके ,तनिक हवा जो चल जाए
जैसे याद पिया की आये ,विरहन आंसूं टपकाये
६
मुड़े तुड़े घर के कोने में ,बिखरे है कल के अखबार
ज्यों किसान आंदोलन करते ,हो दिल्ली की सीमा पार
घोटू
बीस की बिदाई
जाओ बीस तुम,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में
ताकि फिर से सुख और शांति आ जाए हालात में
आया कोरोना ,एक बहेलिया ,फंसा जाल में हमे लिया
हम उन्मुक्त गगन में उड़ने वालों को था कैद किया
रहे फड़फड़ा पंख ,बंद हम ,पिंजरे में ही सारे थे
भूल चहकना गये ,मौन सब ,परेशानियों मारे थे
दहशत छोड़ ,मिले आजादी ,उड़े खुले आकाश में
जाओ बीस तुम ,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में
हटे बंदिशें ,बाजारों में ,पहले जैसी रौनक हो
हंसी ख़ुशी मिल ,सभी मनाये ,त्योंहारों में रंगत हो
खुलें सिनेमाहाल ,रेस्त्रां,मस्ती हो और चहल पहल
फिर से वही पुराने ढर्रे ,आये जिंदगी की हलचल
ऐसा इक्कीस आये ,भिगो दे ,खुशियों की बरसात में
जाओ बीस तुम ,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जाओ बीस तुम,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में
ताकि फिर से सुख और शांति आ जाए हालात में
आया कोरोना ,एक बहेलिया ,फंसा जाल में हमे लिया
हम उन्मुक्त गगन में उड़ने वालों को था कैद किया
रहे फड़फड़ा पंख ,बंद हम ,पिंजरे में ही सारे थे
भूल चहकना गये ,मौन सब ,परेशानियों मारे थे
दहशत छोड़ ,मिले आजादी ,उड़े खुले आकाश में
जाओ बीस तुम ,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में
हटे बंदिशें ,बाजारों में ,पहले जैसी रौनक हो
हंसी ख़ुशी मिल ,सभी मनाये ,त्योंहारों में रंगत हो
खुलें सिनेमाहाल ,रेस्त्रां,मस्ती हो और चहल पहल
फिर से वही पुराने ढर्रे ,आये जिंदगी की हलचल
ऐसा इक्कीस आये ,भिगो दे ,खुशियों की बरसात में
जाओ बीस तुम ,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
हलचल अन्य ब्लोगों से 1-
-
-
पुस्तक लोकार्पण एवं नवगीत परिचर्चा - 19 जनवरी, 2025 को राजकीय लाइब्रेरी, एल.टी. कॉलेज वाराणसी में नवगीत कुटुंब समूह के बैनर तले पुस्तक लोकार्पण एवं राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन किया गया। समार...14 घंटे पहले
-
परी नहीं बेटी - हिन्दू धर्म की एक प्रसिद्ध उक्ति है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जिसे हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा बहुत ही जोर शोर से उच्चारित किया जाता...23 घंटे पहले
-
नये साल की एक भोर - नये साल की एक भोर वादा किया था उस दिनएक नयी भोर का लो ! आज ही वह भोर मुस्कुराती हुई आ गई है गगन लाल है पावन बेला सितारों ने ले ली है विदा दूर तक फैला है ...1 दिन पहले
-
फुटपाथ .... - कानों में गूँजती अनगिनत स्वर लहरियों के साथ कहीं रास्ते पर चलते कदम अक्सरठिठक कर रुक जाते हैं जब नज़रों के सामने फुटपाथ आ जाते हैं। हाँ सड़क किनारे के वही फु...1 दिन पहले
-
सेल डीड रजिस्टर नहीं होने तक अचल संपत्ति का स्वामित्व ट्रांसफर नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट - संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 (Transfer of Property Act ) की धारा 54 का हवाला देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने कहा कि प्र...2 दिन पहले
-
आठवां वेतन आयोग: खुशी के झूले, जलन के शोले - *आठवां वेतन आयोग: खुशी के झूले, जलन के शोले* आठवां वेतन आयोग घोषित होते ही सरकारी कर्मचारियों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। गुप्ता जी, जो अब तक गुमसुम ...3 दिन पहले
-
पतंजलि अष्टांग योग के प्रारंभिक दो अंग - पतंजलि योग दर्शन में अष्टांगयोग भाग - 02 , यम एवं नियम पिछले अंक में पतंजलि अष्टांगयोग के निम्न अंगों की परिभाषाओं को देखा गया और अब यहां इन अंगों में...3 दिन पहले
-
अवनीश सिंह चौहान की तीन लघुकथाएँ - *चित्र :डॉ श्रद्धांजलि सिंह से साभार * ------------------------------ *लघुकथा-1: भविष्य* उस दिन विश्वविद्यालय के एडमीशन सेल में बड़ी भीड़ थी। नर्सिंग में डिप...4 दिन पहले
-
2025 में विवाह मुहूर्त कब है ? - Marriage dates in 20252025 में विवाह मुहूर्त कब है ? [image: Marriage dates in 2025] भारतवर्ष में हिंदू धर्म में प्रत्येक मांगलिक कार्यों में शुभ मुहूर्त ...6 दिन पहले
-
1445 - *लौट आओ * * - सुशीला शील स्वयंसिद्धा* त्योहारों की रौनको लौट आओ ! कितनी सूनी है मन की गलियाँ बरसों से नहीं चखी लोकगीतों की मिठास ...1 हफ़्ते पहले
-
पाँच लघुकथाएँ - ऋता शेखर - 1. असर कहाँ तक "मीना अब बड़ी हो गई है। उच्च शिक्षा लेने के बाद नौकरी भी करने लगी है। कोई ढंग का लड़का मिल जाये तो उसके हाथ पीले कर दें !" चाय पीते हुए सरला...1 हफ़्ते पहले
-
हम सभी बेचैन से हैं न - अभी कुछ दिनों से मैं अपनी कजिन के घर आई हुई हूं, वजह कुछ खास नहीं बस अपनी खामखाह की बैचेनी को की कुछ कम करने का इरादा था और अपने मन को हल्का करना था। अब वाप...1 हफ़्ते पहले
-
787. तुम्हें जीत जाना है - तुम्हें जीत जाना है *** जीवन की हर रस्म निभाने का समय आ गया है उस चक्रव्यूह में समाने का समय आ गया है जिसमें जाने के रास्तों का पता नहीं न बाहर निकलने का...1 हफ़्ते पहले
-
किन भावों का वरण करूँ मैं? - हर पल घटते नए घटनाक्रम में, ऊबड़-खाबड़ में, कभी समतल में, उथल-पुथल और उहापोह में, किन भावों का वरण करूँ मैं ? एक भाव रहता नहीं टिककर, कुछ नया घटित फिर ह...2 हफ़्ते पहले
-
गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ - कोहरे का घूंघट, हौले से उतार कर। चम्पई फूलों से, रूप का सिंगार कर। अम्बर ने प्यार से, धरती को जब छुआ। गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ। धूप गुनगुनाने ...3 हफ़्ते पहले
-
गुम हो गये सफ़हे - *गुम हो गये सफ़हे * *वक्त की किताब से * *ढूँढे से नहीं मिलते * *वो जो लोग थे नायाब से * *आब तो थी * *लश्करे-आफ़ताब सी * *ओझल हो गया वही चमन * *जिसक...3 हफ़्ते पहले
-
अकेली हो? - पति के गुजर जाने के बाद दिन पहाड़ से लगते हैं रातें हो जाती है लंबी से भी लंबी दूर तक नजर नहीं आती सूरज की कोई किरण मशीन बन जाता है शरीर खाने, पीने की ...1 माह पहले
-
किताब मिली - शुक्रिया - 22 - दुखों से दाँत -काटी दोस्ती जब से हुई मेरी ख़ुशी आए न आए जिंदगी खुशियां मनाती है * किसी की ऊंचे उठने में कई पाबंदियां हैं किसी के नीचे गिरने की कोई भी हद ...1 माह पहले
-
बचपन के रंग - - बहुत पुरानी , घोर बचपन की बातें याद आ रही है. मुझसे पाँच वर्ष छोटे भाई का जन्म तब तक नहीं हुआ था. पिताजी का ट्रांस्फ़र होता रहता था - उन दिनों हमलोग तब ...1 माह पहले
-
क्या अमेरिकन समाज स्त्रीविरोधी है? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी - क्या अमेरिकन समाज स्त्रीविरोधी है? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी अमेरिका के चुनाव परिणाम की मेरी भविष्यवाणी पुनः सत्य हुई। लोग मुझे पूछते और बहुधा हँसते भी हैं क...2 माह पहले
-
शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२६) - * बेशक कोई रिश्ता हमें जन्म से मिलता है परंतु उस रिश्ते से जुड़ाव हमारे मनोभाव पर निर्भर करता है । जन्म मर...3 माह पहले
-
अनजान हमसफर - इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। गैस खिड़कियाँ ...3 माह पहले
-
पुरानी तस्वीर... - कल से लगातार बारिश की झड़ी लगी है। कभी सावन के गाने याद आ रहे तो कभी बचपन की बरसात का एहसास हो रहा है। तब सावन - भादो ऐसे ही भीगा और मन खिला रहता था। ...4 माह पहले
-
बीज - मंत्र . - शब्द बीज हैं! बिखर जाते हैं, जिस माटी में , उगा देते हैं कुछ न कुछ. संवेदित, ऊष्मोर्जित रस पगा बीज कुलबुलाता फूट पड़ता , रचता नई सृष्टि के अंकन...4 माह पहले
-
गुमशुदा ज़िन्दगी - ज़िन्दगी कुछ तो बता अपना पता ..... एक ही तो मंज़िल है सारे जीवों की और वो हो जाती है प्राप्त जब वरण कर लेते हैं मृत्यु को , क्यों कि असल मंज़िल म...8 माह पहले
-
-
-
रामलला का करते वंदन - कौशल्या दशरथ के नंदन आये अपने घर आँगन, हर्षित है मन पुलकित है तन रामलला का करते वंदन. सौगंध राम की खाई थी उसको पूरा होना था, बच्चा बच्चा थ...11 माह पहले
-
क्यों बदलूं मैं तेवर अपने मौसम या दस्तूर नहीं हूँ - ग़ज़ल मंज़िल से अब दूर नहीं हूँ थोड़ा भी मग़रूर नहीं हूँ गिर जाऊँ समझौते कर लूँ इतना भी मजबूर नहीं हूँ दूर हुआ तू मुझसे फिर भी तेरे ग़म से चू...1 वर्ष पहले
-
ज़िन्दगी पुरशबाब होती है - क्या कहूँ क्या जनाब होती है जब भी वो मह्वेख़्वाब होती है शाम सुह्बत में उसकी जैसी भी हो वो मगर लाजवाब होती है उम्र की बात करने वालों सुनो ज़िन्दगी पुरशबाब ह...2 वर्ष पहले
-
अब पंजाबी में - सिन्धी में कविता के अनुवाद के बाद अब पंजाबी में "प्रतिमान पत्रिका" में मेरी कविता " हाँ ......बुरी औरत हूँ मैं " का अनुवादप्रकाशित हुआ है सूचना तो अमरज...2 वर्ष पहले
-
Bayes Theorem and its actual effect on our lives - मित्रों आज बेज़ थियरम पर बात करुँगी। बहुत ही महत्वपूर्ण बात है - गणित के शब्द से परेशान न हों - पूरा पढ़े, गुनें, और समझें। हम सभी ने बचपन में प्रोबेबिलिटी ...4 वर्ष पहले
-
कविता : खेल - शहर के बीच मैदान जहाँ खेलते थे बच्चे और उनके धर्म घरों में खूँटी पर टँगे रहते थे जबसे एक पत्थर लाल हुआ तो दूसरे ने ओढ़ी हरी चादर तबसे बच्चे घरों में कैद...4 वर्ष पहले
-
दोहे "रंगों की बौछार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') - *होली का त्यौहार* *-0-0-0-0-0-* *फागुन में अच्छी लगें, रंगों की बौछार।* *सुन्दर, सुखद-ललाम है, होली का त्यौहार।।* *--* *शीत विदा होने लगा, चली बसन्त बयार।*...4 वर्ष पहले
-
कांच के टुकड़े - सुनो मेरे पास कुछ कांच के टुकड़े हैं पर उनमें प्रतिबिंब नहीं दिखता पर कभी फीका महसूस हो तो उन्हें धूप में रंग देती हूं चमक तीक्ष्ण हो जाते तो दुबारा ...4 वर्ष पहले
-
-
बचपन की यादें - कल अपने भाई के मुख से कुछ पुरानी बातों कुछ पुरानी यादों को सुनकर मुझे बचपन की गालियाँ याद आ गयीं। जिनमें मेरे बचपन का लगभग हर इतवार बीता करता था। कितनी...4 वर्ष पहले
-
मॉर्निंग वॉक- एक सुरक्षित भविष्य - जीवन में चलते चलते कभी कुछ दिखाई दे जाता है, जो अचानक दिमाग में एक बल्ब जला देता है , एक विचार कौंधता है, जो मन में कुनमुनाता रहता है, जब तक उसे अभिव्यक...5 वर्ष पहले
-
2019 का वार्षिक अवलोकन (सत्ताईसवां) - डॉ. मोनिका शर्मा का ब्लॉग Search Results Web results परिसंवाद *आपसी रंजिशों से उपजी अमानवीयता चिंतनीय* अमानवीय सोच और क्रूरता की कोई हद नहीं बची ह...5 वर्ष पहले
-
जियो सेट टॉप बॉक्स - महा बकवास - जियो फ़ाइबर सेवा धुंआधार है, और जब से इसे लगवाया है, लाइफ़ है झिंगालाला. आज तक कभी ब्रेकडाउन नहीं हुआ, बंद नहीं हुआ और स्पीड भी चकाचक. ऊपर से लंबे समय से...5 वर्ष पहले
-
परमेश्वर - प्रार्थना के दौरान वह मुझसे मिला उसे मुझसे प्रेम हुआ उसकी मैली कमीज के दो बटन टूटे थे टिका दिया उसने अपना सर मेरे कंधे पर वह युद्ध में हारा सैनिक था शायद!...5 वर्ष पहले
-
Aakhir kab ? आखिर कब ? - * आखिर कब ? आखिर क्यों आखिर कबतक यूँ बेआबरू होती रहेंगी बेटीयाँ आखिर कबतक हवाला देंगे हम उनके पहनावे का उनकी आजादी का उनकी नासमझी और समझदारी का क्यों ...5 वर्ष पहले
-
तुम्हारा स्वागत है - 1 तुम कहती हो " जीना है मुझे " मैं कहती हूँ ………… क्यों ? आखिर क्यों आना चाहती हो दुनिया में ? क्या मिलेगा तुम्हे जीकर ? बचपन से ही बेटी होने के दंश ...5 वर्ष पहले
-
ना काहू से दोस्ती .... - *पुलिस और वकील एक ही परिवार के दो सदस्य से होते हैं, दोनों के लक्ष समाज को क़ानून सम्मत नियंत्रित करने के होते हैं, पर दिल्ली में जो हुआ या हो रहा है उस...5 वर्ष पहले
-
Kritidev to Unicode Converter - [image: Real Time Font Converter] DL-Manel-bold. (ã t,a udfk,a fnda,aâ) Unicode (යුනිකෝඩ්) ------------------------------ © 2011 Language Technology R...5 वर्ष पहले
-
जल्दी आना ओ चाँद गगन के ..... - *करवा चौथ* *मैं यह व्रत करती हूँ* * अपनी ख़ुशी से बिना किसी पूर्वाग्रह के करती हूँ अपनी इच्छा से अन्न जल त्याग क्योंकि मेरे लिए यह रिश्ता .... इनसे भी ज़...5 वर्ष पहले
-
इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...5 वर्ष पहले
-
राजू उठ ... चल दौड़ लगाने चल - राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल पानी गरम कर दिया है दूध गरम हो रहा है राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल दूर नहीं अब मंजिल पास खड़े हैं सपने इक दौड़ लगा कर जीत...5 वर्ष पहले
-
काया - काया महकाई सतत, लेकिन हृदय मलीन। चहकाई वाणी विकट, प्राणी बुद्धिविहीन। प्राणी बुद्धिविहीन, भरी है हीन भावना। खिसकी जाय जमीन, न करता किन्तु सामना। पाकर उच्चस्...5 वर्ष पहले
-
-
कविता और कुछ नहीं... - कविताएं और कुछ नहीं आँसू हैं लिखे हुए.... खुशी की आँच कि दुखों के ताप के अतिरेक से पोषित लयबद्ध हुए... #कविताक्याहै5 वर्ष पहले
-
cara mengobati herpes atau dompo - *cara mengobati herpes atau dompo* - Kita harus mengetahui apa Gejala Penyakit Herpes Dan Pengobatannya, agar ketika kita terjangkiti penyakit herpes, kit...5 वर्ष पहले
-
तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात - तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी .. तुमसे मिलने के बाद पर समय को किसने थामा है आज तक हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर बहुत दूर चलने के लिए पर रस्ते ...5 वर्ष पहले
-
अरे अरे अरे - आ गईं तुम आना ही था तुम्हे देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था, आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी। वह भीगी हुई चने की दाल और हरी मिर्च जो तोते के लिये...5 वर्ष पहले
-
यह विदाई है या स्वागत...? - एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है | अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं पह...6 वर्ष पहले
-
मन के अंदर चल रहा निरंतर संघर्ष कठिन यह मानव के ... - इच्छाओं के चक्रवात से निरंतर जूझ रहा यह मानव मन उड़ जाता है अशक्त आत्मबलरहित तिनके के माफिक। इधर उधर बेचैन कहीं भी, बिना छोर और बिना ठिकाना दरबदर भटकता व्...6 वर्ष पहले
-
BIJASAN DEVI - विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय - [image: Navratri 2018: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय] *मध्यप्रदेश बिजासन देवी धाम को आज कौन नहीं जानता। कई लोगों की कुलदेव...6 वर्ष पहले
-
पापा तुम क्यों चले गए ? - पापा ……………………………….. तुम्हारी साँसों में धडकन सी थी मैं , जीवन की गहराई में बचपन सी थी मैं । तुम्हारे हर शब्द का अर्थ मैं , तुम्हारे बिना व्यर्थ मैं , ...6 वर्ष पहले
-
कविता- " इक लड़की" 8 मार्च- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर - *इक लड़की* *मुस्कराहट, * *उसकी आँखों से उतर;* *ओठों को दस्तक देती;* *कानों तक फ़ैल गई थी.* *जो* *उसकी सच्चाई की जीत थी. * *और * *उसकी उपलब्धि से आई थी.* *वो ...6 वर्ष पहले
-
मेरी कविता - जीवन - *जीवन* *चित्र - google.com* *जीवन* * तुम हो एक अबूझ पहेली, न जाने फिर भी क्यों लगता है तुम्हे बूझ ही लूंगी. पर जितना तुम्हे हल करने की कोशिश कर...7 वर्ष पहले
-
“ रे मन ” - *रूह की मृगतृष्णा में* *सन्यासी सा महकता है मन* *देह की आतुरता में* *बिना वजह भटकता है मन* *प्रेम के दो सोपानों में* *युग के सांस लेता है मन* *जीवन के ...7 वर्ष पहले
-
-
मन का टुकड़ा मनका बनाकर - मन का टुकड़ा मनका बनाकर मनबसिया का ध्यान करूं | प्रेम की राह बहुत ही जटिल है ; चल- चल कर आसान करूं | (१५ जुलाई २०१७, रात्रि )7 वर्ष पहले
-
ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है? - जात-पात न धर्म देखा, बस देखा इंसान औ कर बैठी प्यारछुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकारहाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपातनाम डुबो दिया,...7 वर्ष पहले
-
हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...3 - गत अंक से आगे.....हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रारम्भिक दौर बहुत ही रचनात्मक था. इस दौर में जो भी ब्लॉगर ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह इस माध्यम के प्रति ...7 वर्ष पहले
-
प्रेम करती हूँ तुमसे - यमुना किनारे उस रात मेरे हाँथ की लकीरों में एक स्वप्न दबाया था ना उस क्षण की मधुस्मृतियाँ तन को गुदगुदाती है उस मनभावन रुत में धडकनों का मृदंग बज उ...7 वर्ष पहले
-
गाँधी जी...... - गाँधी जी...... --------- चौराहॆ पर खड़ी,गाँधी जी की प्रतिमा सॆ,हमनें प्रश्न किया, बापू जी दॆश कॊ आज़ादी दिला कर, आपनॆं क्या पा लिया, बापू आपके सारॆ कॆ सारॆ सि...7 वर्ष पहले
-
Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...8 वर्ष पहले
-
आप अदालत हैं - अपना मानते हैं जिन्हें वही नहीं देते अपनत्व। पक्षपात करते हैं सदैव वे पुत्री के आँसुओं का स्वर सुन। नहीं जाना उन्होंने मेरी कटुता को न ही मेरी दृष्टि में बन...8 वर्ष पहले
-
फिर अंधेरों से क्यों डरें! - प्रदीप है नित कर्म पथ पर फिर अंधेरों से क्यों डरें! हम हैं जिसने अंधेरे का काफिला रोका सदा, राह चलते आपदा का जलजला रोका सदा, जब जुगत करते रहे हम दीप-बा...8 वर्ष पहले
-
-
चलो नया एक रंग लगाएँ - लाल गुलाबी नीले पीले, रंगों से तो खेल चुके हैं, इस होली नव पुष्प खिलाएँ, चलो नया एक रंग लगाएँ । मानवता की छाप हो जिसमे, स्नेह सरस से सना हो जो, ऐसी होली खू...8 वर्ष पहले
-
-
स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
-
विचार शून्यता। - विचार , कई बार बहते है हवा से, छलकते है पानियों से, झरते है पत्तियों से और कई बार उठते है गुबार से घुटते है, उमड़ते है, लीन हो जाते है शून्य में फिर यह...9 वर्ष पहले
-
बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...9 वर्ष पहले
-
एक रामलीला यह भी - एक रामलीला यह भी यूं तो होता है रामलीला का मंचन वर्ष में एक बार पर मेरे शरीर के अंग अंग करते हैं राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के पात्र जीवन्त. देह की सक...9 वर्ष पहले
-
-
-
-
मन गुरु में ऐसा रमा, हरि की रही न चाह - ॐ श्री गुरुवे नमः *ॐ ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।* * द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् । ...9 वर्ष पहले
-
गुरु पूर्णिमा - आज गुरु पूर्णिमा है ! अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का दिवस ,गुरु शब्द का अर्थ होता है अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला ,अज्ञान ज्ञान की और ले...9 वर्ष पहले
-
-
-
-
हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
-
क्रिकेट विश्व कप 2015 विजय गीत - धोनी की सेना निकली दोहराने फिर इतिहास अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस | शास्त्री की रणनीति भी है और विराट का शौर्य , धोनी की तो धूम मची है विश्व ...9 वर्ष पहले
-
'मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से' - मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से… मेरे कान फ़ट चुके हैं सवेरे से लाउड वाहियत गाने सुनकर और फ़ुर्र हो चुका है गर्व। ये कौनसा रंग है मेरे देश का? बिल्कुल ऐसा ...9 वर्ष पहले
-
-
कथा सुनो शबाब की - *कथा सुनो शबाब की* *सवाल की जवाब की* *कली खिली गुलाब **की* *बड़े हसीन ख़ाब की* * नया नया विहान था* * घ...10 वर्ष पहले
-
कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...10 वर्ष पहले
-
जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...10 वर्ष पहले
-
झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...10 वर्ष पहले
-
-
आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
-
झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
-
हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...10 वर्ष पहले
-
-
गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
-
-
रंग रंगीली होली आई. - [image: Friends18.com Orkut Scraps] रंग रंगीली होली आई.. रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...10 वर्ष पहले
-
-
भ्रष्ट आचार - स्वतंत्र भारत की नीव में उस समय के नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रख दिये थे भ्रष्ट आचार फिर देश से कैसे खत्म हो भ्रष्टाचार ?11 वर्ष पहले
-
अन्त्याक्षरी - कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इ...11 वर्ष पहले
-
संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
-
प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
-
रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर - 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्...11 वर्ष पहले
-
आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
-
OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...12 वर्ष पहले
-
इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
-
यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
-
आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
-
-
Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar - Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the...12 वर्ष पहले
-
क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
-
कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
-
HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...13 वर्ष पहले
-
"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...13 वर्ष पहले
-
अब बक्श दे मैं मर मुकी - चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी, मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी, मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख के ढेर दिल मैं कहीं, सुलग सुलग के आय...13 वर्ष पहले
-
अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
-
-
दरिन्दे - बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ। ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ ढूँढो शयद वह ज़िन...14 वर्ष पहले
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-