एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

दिवास्वपन

जब होते है सीमित साधन और महत्वाकांक्षी होता मन
तब कहते लोग देखते है ,हम दिन में ही बस दिवास्वपन
सबके अपने अपने सपने ,मन में होना है आवश्यक  
हो लक्ष्य नहीं यदि निर्धारित, कैसे पहुंचोगे तुम उस तक
बिन सपने देखे तुम कैसे ,सीखोगे मंजिल से जुड़ना
ना पंख फड़फड़ाओगे जबतक,तुम कैसे सीखोगे उड़ना
कितने करने पड़ते प्रयास ,कितनी ही आती है मुश्किल
जी जान लगा कर करो काम ,तब ही हासिल होती मंजिल
चूमेगी चरण सफलता जब ,साकार स्वपन  हो जाएगा
तुम होंगे व्यस्त ,तुम्हे सोने का समय नहीं मिल पायेगा
दिन में ,ऑफिस में थके हुए ,झपकी सी आएगी जिस क्षण
तुम अगली मंजिल पाने का ,फिर से देखोगे दिवास्वपन

घोटू 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-