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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

अदृश्य

वो चलती है ,वो बहती है
वो आसपास ही रहती है
है गर्म कभी तो ठंडी है
सुखदायक कभी प्रचंडी है
होती  सबकी जीवनदाती
पर हमको नज़र नहीं आती
जो हम सबकी जीवनरेखा
हमने न हवा को पर देखा
हम खट्टा मीठा खाते है
खाने का मज़ा उठाते है
सबकी जिव्हा और मनभाया
तुमको क्या स्वाद नज़र आया
सब शोर मचाते ढोल सुने
क्या ख़ामोशी के बोल सुने
क्या लड़ता देखा आँखों को
क्या सुना कभी सन्नाटों को
अंधियारे में कुछ ना दिखता
पर अँधियारा  तुमको दिखता
ना चाह दिखे और चाव नहीं
दिखता स्वभाव और भाव नहीं
ऐसी कितनी ही है बातें
जो होती देख न हम पाते
होती अदृश्य ,पर क्षण क्षण में
वो साथ निभाती  जीवन  में

घोटू 

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