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गुरुवार, 26 नवंबर 2020

सूखे स्विमिंग पूल के आंसू

कोई मेरा  दरद  न जाने ,मैं 'कोविड 'का मारा
अबकी बरस ,मैं रहा तरस ,पाया ना दरस तुम्हारा

मेरा दिल जो कभी लबालब ,भरा प्रीत से रहता
एक  बरस से सूना है ये ,पीर   विरह की सहता
सूखा सूखा पड़ा हृदय है ,प्रेम नीर का प्यासा
दुःख केआंसू, खुद पी लेता ,रहता सदा उदासा
ना उठती अब मन में लहरें ,ना कोई हलचल है
ना ही शोर मचाते बच्चों की कुछ चहलपहल है
ना ही कपोत ,गुटरगूँ करते ,पिये चोंच भर पानी
ना किलोल करती जलपरियों की वह छटा सुहानी
याद आते वो सुबह शाम,वो रौनक,वो जलक्रीड़ा
सूने तट ,सूना अन्तरघट अब घट घट में पीड़ा
 मैं तुम्हारा ,तरणताल हूँ ,दीन  ,हीन  ,बेचारा
अबके बरस मैं रहा तरस ,पाया ना दरस तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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