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बुधवार, 9 दिसंबर 2020

बुधिया रोए हाय किसानी

 

झर झर झरते आंख से आंसू

बुधिया रोए हाय किसानी....


छुट भैये कुछ नेता आए

डांट डपट कर उन्हें मनाए

हंडिया बर्तन खाली करके

मंगरू काका गठरी बांधे

ठंड ठिठुरते आंख में आंसू

छोड़ गांव घर बेमन भागे

झर झर झरते आंख से आंसू....


चार दिना आंदोलन ठानी

अमृत वर्षा सब  बेईमानी

लल्ली की थम गई पढ़ाई

बिन सींचे जल गई किसानी

साहूकार रोज घर झांके

गिद्ध सरीखा बैठे ताके

झर झर झरते आंख से आंसू....


भूसा जैसे भर ट्राली में

दो टुकड़े डाले थाली में

भालू बंदर और मदारी 

सर्कस खेल दिखाए रहे हैं

तम्बू और मशाल साथ लेे

चिंगारी भड़काय रहे हैं 

झर झर झरते आंख से आंसू....


बाराती से सज कुछ बैठे

काजू मेवा खाय रहे 

भोंपू माइक अख बा रन मा

फोटू रोज खिंचाइ रहे

वो दधीचि की हड्डी खातिर

खीस निपोर रिझाय रहे


झर झर झरते आंख से आंसू 

 बुधिया रोए हाय किसानी....


कुछ पाएं या छिन सब जाए

मेरे ' वो ' सकुशल घर आएं

मंगल सूत्र रहे गर मेरे 

दो गज माटी मिल ही जाए

प्रेम प्रीति सपने संग छौना

घास फूस का रहे बिछौना


झर झर झरते आंख से आंसू 

 बुधिया रोए हाय किसानी....

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

भारत

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