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सोमवार, 28 जनवरी 2019

अनमना मन 

स्मृतियों के सघन वन में ,
छा रहा कोहरा घना है 
आज मन क्यों अनमना है
 
नहीं कुछ स्पष्ट दिखता 
मन कहीं भी नहीं टिकता 
उमड़ती है भावनायें ,
मगर कुछ कहना मना है 
आज मन क्यों अनमना है 

है अजब सी कुलबुलाहट 
कोई अनहोनी की आहट 
आँख का हर एक कोना ,
आंसुवों से क्यों सना है 
आज मन क्यों अनमना है 

बड़ा पगला ये दीवाना 
टूट ,जुड़ जाता सयाना 
पता ही लगता नहीं ये ,
कौन माटी से बना है 
आज मन क्यों अनमना है 

रौशनी कुछ आस की है 
डोर एक विश्वास की है 
भावनाएं जो प्रबल हो ,
पूर्ण होती  कामना है 
आज मन क्यों अनमना है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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