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गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

आँख मेरी लड़ गयी है

           आँख मेरी लड़ गयी है 

आँख में तुम इस तरह से बस गयी हो,
     सपनो को भी जगह कम पड़ने लगी है
इसलिए तो आजकल गाहे ब गाहे,
         नींद मेरी अचानक उड़ने  लगी  है 
इश्क़ में हालात ऐसे हो गए है ,
      जिधर भी मै देखता हूँ तुम्ही तुम हो,
खुदा जाने होगी तुम कितनी नशीली ,
        देख कर जब खुमारी  चढ़ने लगी है
जबसे तुमसे आँख मेरी लड़ गयी है,
       नज़र तिरछी इस तरह से गढ गयी है,
दिल में मेरे कुछ न कुछ होने लगा है,
         मिलन की संभावना बढ़ने लगी  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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