भाई देखिये, आज अपनी दीवाली है... सबसे बड़ा त्योहार... दिमाग की ऐसी - तैसी मत कीजिये... हमारा जो मन करेगा करेंगे... आप अपना ये 'पर्यावरण का प्रवचन' अपने पास रखिये.... समझ गये न ?! हम कमाते हैं तो अपने लिये... गरीबों को देने के लिये थोड़े ही?! कोई गरीब है तो उसका नसीब... इसमें हमारी क्या गलती ?! एक तो महंगाई इतनी बढ़ गई है कि जेब का दीवाला निकल जाता है ऊपर से लोगों के भाषण कि 'ये मत करो - वो मत करो'... पिद्दी से पटाखे भी 40-50 रुपये के आते हैं.... मतलब कि कम से कम द हजार के पटाखे तो लेने ही पड़ते हैं... वर्ना पड़ोसियों में नाक कट जाती है... कहते हैं 'भिखमंगा कहीं का'.... कुछ लोग आकर समझाने लगते हैं कि 'बम यहां नहीं, कहीं और छुड़ाओ, फलां को ब्लड प्रेशर की बीमारी है'... अरे भाई जिसको बीमारी है वो कहीं और जाये हम क्यों जायें... हम तो यहीं बम भी दगायेंगे और यहीं रॉकेट भी... हमारा रॉकेट किसी के घर में जाता है तो इसमें हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है, क्योंकि हम थोड़े न बोल के भेजते हैं कि 'जा बेटा फलां के घर में...'?!... अब रही बात प्रदूषण की तो तमाम गाड़ियों और फैक्टरियों से दिन - रात प्रदूषण होता है तब तो नहीं बोलते...पहले उनको बन्द कराओ जाकर.... अगर हम अपने मन का कर न सकें तो काहे की आजादी?! ....इसका मतलब है कि हम अभी भी गुलाम हैं.... इसलिये आओ भाइयों हम सब एकजुट होकर इस गुलामी के खिलाफ मुहिम छेड़ते हैं... अगर हम कामयाब हो गये तो... एक ऐसा राज्य स्थापित करेंगे जहां..... 'कोई भी नियम कानून नहीं होगा'.... 'कोई भी कुछ भी कर सकेगा'... 'कोई भी किसी के भी सिर पर बम फोड़ सकेगा'.... 'कोई भी अपना रॉकेट लिये दिये किसी के भी घर में घुस सकेगा'... 'मिट जायेगा दोपायों और चौपायों के बीच का फर्क'... 'कोई भी गरीब नहीं होगा, सारे अमीर ही होंगे... क्योंकि सबकुछ सबका होगा'... 'न पुलिस होगी न कानून होगा'... 'न रिश्वत होगी न भ्रष्टाचार होगा'...'जिसको जो मिले ले के निकल लो'... है न जबर्दस्त आइडिया ?? तो इसी बात पर प्रेम से बोलो... 'जय हो चर्चित राज की'.... शुभ दीवाली !!!
गुम हो गये सफ़हे
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*गुम हो गये सफ़हे *
*वक्त की किताब से *
*ढूँढे से नहीं मिलते *
*वो जो लोग थे नायाब से *
*आब तो थी *
*लश्करे-आफ़ताब सी *
*ओझल हो गया वही चमन *
*जिसक...
5 घंटे पहले
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