भरोसा कोई न कल का
बहुत कर्म कर लिए ,निकम्मा आज हो गया ,
करना चाहे लाख ,मगर ना कुछ कर पाता
धीरे धीरे शिथिल हो रहा तेरा तन है ,
अपने मन में हीन भावना ,क्यों है लाता
सच ये तेरा क्षरण हो रहा साथ समय के ,
हर पग तेरा ,बढ़ता जाता ,मरण राह पर
जीर्ण क्षीर्ण हो रही तुम्हारी कंचन काया ,
लेकिन तेरा ,नहीं नियंत्रण ,कोई चाह पर
बहुत जवानी में तू खेला,उछला कूदा ,
बहुत प्रखर था सूर्य ,लग गया पर अब ढलने
पतझड़ का मौसम आया ,तरु के सब पत्ते,
धीरे धीरे सूख सूख कर लगे बिछड़ने
यह प्रकृति का नियम ,नहीं कुछ तेरे बस में,
जो भी आया है दुनिया में ,वो जाएगा
बस तेरे सत्कर्म ,काम आयेंगे तेरे ,
जिनके कारण तुझको याद किया जाएगा
लाख छोड़ना चाहे तू ,पर छूट न पाती ,
अब भी मोह और माया ,मन में बसी हुई है
और कामना के कीचड में तेरी किश्ती,
निकल न पाती,बुरी तरह से फसी हुई है
क्यों तू इतना दुखी हो रहा,खुश हो जी ले,
जितने भी दिन बचे ,उठा तू सुख हर पल का
कल कल करती जीवन सरिता ,कब सागर में ,
मिल,विलीन हो जाए ,भरोसा कोई न कल का
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बहुत कर्म कर लिए ,निकम्मा आज हो गया ,
करना चाहे लाख ,मगर ना कुछ कर पाता
धीरे धीरे शिथिल हो रहा तेरा तन है ,
अपने मन में हीन भावना ,क्यों है लाता
सच ये तेरा क्षरण हो रहा साथ समय के ,
हर पग तेरा ,बढ़ता जाता ,मरण राह पर
जीर्ण क्षीर्ण हो रही तुम्हारी कंचन काया ,
लेकिन तेरा ,नहीं नियंत्रण ,कोई चाह पर
बहुत जवानी में तू खेला,उछला कूदा ,
बहुत प्रखर था सूर्य ,लग गया पर अब ढलने
पतझड़ का मौसम आया ,तरु के सब पत्ते,
धीरे धीरे सूख सूख कर लगे बिछड़ने
यह प्रकृति का नियम ,नहीं कुछ तेरे बस में,
जो भी आया है दुनिया में ,वो जाएगा
बस तेरे सत्कर्म ,काम आयेंगे तेरे ,
जिनके कारण तुझको याद किया जाएगा
लाख छोड़ना चाहे तू ,पर छूट न पाती ,
अब भी मोह और माया ,मन में बसी हुई है
और कामना के कीचड में तेरी किश्ती,
निकल न पाती,बुरी तरह से फसी हुई है
क्यों तू इतना दुखी हो रहा,खुश हो जी ले,
जितने भी दिन बचे ,उठा तू सुख हर पल का
कल कल करती जीवन सरिता ,कब सागर में ,
मिल,विलीन हो जाए ,भरोसा कोई न कल का
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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