एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 28 जुलाई 2013

एक होटल के रूम की आत्म गाथा

        एक होटल के रूम की  आत्म गाथा
   
 मै होटल का रूम ,भाग्य पर हूँ  मुस्काता  
मुझ मे  रहने रोज़  मुसाफिर नूतन  आता 
थके हुये और पस्त यात्री है जब   आते 
मुझे देख कर ,मन मे बड़ी शांति  पाते 
नर्म,गुदगुदे बिस्तर पर जब पड़ते आकर 
मै खुश होता,उनकी सारी थकन मिटा कर 
मेरा बाथरूम ,हर लेता ,उनकी पीड़ा 
जब वो टब मे बैठ किया करते जल क्रीडा 
मुझ मे आकर ,आ जाती है नई जवानी 
कितने ही अधेड़ जोड़े  होते  तूफानी 
अपनी किस्मत पर उस दिन इतराता थोड़ा 
हनीमून पर ,आता नया विवाहित जोड़ा 
रात रात भर ,वो जगते,मै भी जगता हूँ 
सुबह देखना,बिखरा,थका हुआ  लगता हूँ 
कभी कभी कुछ खूसट बूढ़े भी आजाते 
खाँस खाँस कर,खुद भी जगते,मुझे जगाते 
तरह तरह के लोग कई अपने,बेगाने 
आते है मेरे संग मे कुछ रात बिताने 
देश देश के लोग ,सभी की अपनी भाषा 
मै खुश होता ,उनको दे आराम  ,जरा सा 
बाकी तो सब ,ये दुनिया है  आनी,जानी   
मै होटल का रूम,मेरी है  यही कहानी 

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-