प्रियतमे कब आओगी
मेरे दिल को तोड़ कर
यूं ही अकेला छोड़ कर
जब से तुम मैके गई
चैन सब ले के गयी
इस कदर असहाय हूँ
खुद ही बनाता चाय हूँ
खाना क्या,क्या नाश्ता
खाता पीज़ा, पास्ता
या फिर मेगी बनाता
काम अपना चलाता
रात भी अब ना कटे
बदलता हूँ करवटें
अब तो गर्मी भी गयी
बारिशें है आ गयी
कब तलक तड़फाओगी
प्रियतमे कब आओगी ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बहुत मजेदार रचना लगी आपकी :-) बधाई
जवाब देंहटाएंवाह ..
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको !
विरह की अग्नि से भयंकर अग्नि और दूसरी नहीं..सुंदर प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंहा हा हा ........... बहुत रोचक
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंरोचक । जल्दी ही वापिस पायें अपनी प्रियतमा को ।
जवाब देंहटाएंwo aa gayi hai aap sab ki shubhkamnaon ke liye dhanywaad
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना वाह वाह दिल
जवाब देंहटाएंखुश कर दिये आप ने