माचिस की तिली
पेड़ की लकड़ी से बनती,कई माचिस की तिली ,
सर पे जब लगता है रोगन,मुंह में बसती आग है
जरा सा ही रगड़ने पर ,जलती है तिलमिला कर,
और कितने दरख्तों को ,पल में करती खाक है
घोटू
गूँज किसी निर्दोष हँसी की
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गूँज किसी निर्दोष हँसी की खन-खन करती पायलिया सी मधुर रुनझुनी घुँघरू
वाली, खिल-खिल करती हँसी बिखरती ज्यों अंबर से वर्षा होती ! अंतर से फूटे
ज्यों झरना अधरों...
3 घंटे पहले
बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंअधिक संघर्ष से चन्दन भी जल जाता है |
जवाब देंहटाएंअवसर आने पर 'सुप्त ज्वालामुखी' भी उबल जाता है ||