एक सन्देश-

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शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2015

Hello


Hello,

How are you today .

I thank God I'm alive to have this opportunity to contact you for help today. I'm writing you from Ivory Coast. My name is Rokia and I am currently facing difficulties in life soon after my parents were killed by last month bombardment by the rebels in the northern part of my country. My father was a wealthy agro allied farmer and a political figure in our district. He left behind $3.6 million according to the document I found in his secret vault. My life is not safe, I need your help to relocate to your country with this money to start a new life and to continue my education since I'm just 22 years old college student.
Hope to hear from you.

Rokia dodo

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

ऊनी वस्त्रो की पीड़ा

          ऊनी वस्त्रो की पीड़ा

अजब तक़दीर होती है ,हम स्वेटर और शालों की
सिर्फ सर्दी में मिलती है ,सोहबत हुस्नवालों की
गर्मियों वाले मौसम में, विरह की  पीर  सहते है
बड़े घुट घुट के जीते है ,सिसकियाँ भरते रहते है
दबे बक्से में रखते है ,दबाये  दिल के सब अरमां
आये सर्दी और हो जाए,मेहबाँ हम पे मोहतरमा
याद आती,भड़क जाती,दबी सब भावना मन की
गुलाबी गाल की रंगत ,वो संगत रेशमी तन की
भुलाये ना भुला पाते, तड़फती हसरतें दिल की   
थी कल परफ्यूम की खुशबू,है अब गोली फिनाइल की
बड़ी मौकापरस्ती है ,ये फितरत हुस्नवालों की
अजब तक़दीर होती है ,इन स्वेटर और शालों की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मौसम के मुताबिक़ चलो

           मौसम के मुताबिक़ चलो

गर्मी में गोला  बर्फ का ,सर्दी में रेवड़ी ,
                           जो बेचते है ,साल भर उनकी कमाई है
सर्दी में शाल,कार्डिगन,गमी में स्लीवलेस ,
                             पहनावा पहने औरतें पड़ती दिखाई है
 गर्मी में ऐ सी ,कूलरों में आती नींद है ,
                             सर्दी में हमको ओढ़नी पड़ती  रजाई है
मौसम के मुताबिक़ ही बदलो अपनेआप को ,
                            इसमें ही सुख है ,फायदा,सबकी भलाई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'            

किस्मत -कुत्ते की

          किस्मत -कुत्ते की

हर कुत्ते की ऐसी किस्मत कब होती है ,
           कोई कोठी या बंगलें में पाला जाए
हो उसको नसीब सोहबत ऊंचे लोगों की,
          बिस्किट और दूध खाने को डाला जाए
जब जी चाहे प्यार दिखाए 'मेडम जी'कॉ ,
       जब जी चाहे उनके चरण कमल को चूमे 
नाजुक नाजुक प्यारे हाथ जिसे सहलाएं ,
       जब जी चाहे ,मेडम  की बाहों  में  झूमे
साहब को घर छोड़ ,सवेरे शाम प्रेम से ,
       घर की मेडम जिसे प्यार से हो टहलाती
उसके संग संग ,खेल खेल कर गेंदों वाला ,
       बड़े प्यार से हो अपने मन को बहलाती
जिसको घर के अंदर बाहर ,हर कोने में,
        हो स्वच्छंद विचरने की पूरी आजादी
जो मालिक के बैडरूम में और बिस्तर पर,
          प्रेमप्रदर्शन  करने का हो हरदम आदी
अगर अजनबी कोई जो घर में घुस जाए,
         भौंक भौंक कर ,वो उसका जी दहलाता हो
लेकिन एक इशारे पर मालिक के चुप हो,
          दुम को दबा  ,एक कोने में छुप जाता  हो
बाकी कुत्ते गलियों में घूमा करते है ,
          फेंकी रोटी खा कर पेट भरा  करते  है
उनका कोई ठौर ठिकाना ना होता है,
           आवारा से आपस में  झगड़ा करते है
 पर ये किस्मतवाला रहता बड़े शान से ,
              खुशबू वाले शेम्पू से नहलाया जाए
 हर कुत्ते की कब ऐसी किस्मत होती है ,
               कोई कोठी या बंगले में पाला जाए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                       
              

दास्ताने मोहब्बत

           दास्ताने मोहब्बत

चाहे पड़ा हो कितने ही पापड़ को बेलना ,
         कैसे भी खुद को,उनके लिए 'फिट 'दिखा दिया
मजनू कभी फरहाद कभी महिवाल बन ,
        हुस्नो अदा और इश्क़ पर ,मर मिट दिखा दिया
उनकी गली मोहल्ले के ,काटे कई चक्कर,
         चक्कर  में  उनके  डैडी  से भी पिट दिखा दिया 
देखी हमारी आशिक़ी ,वो मेहरबाँ हुए,
           नज़रें झुका  के  प्यार का 'परमिट'दिखा दिया
पहुंचे जो उनसे मिलने हम ,गलती से खाली हाथ,
          मच्छर समझ के हमको काला'हिट' दिखा दिया
दिल के हमारे  अरमाँ सब आंसूं में बह गए,
           'एंट्री' भी  ना  हुई  थी  कि ' एग्जिट' दिखा दिया 

 'मदन मोहन बाहेती'घोटू'             

'

बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

  शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

इसने तो पिया था अमृत ,ये चाँद शरद का क्या जाने
होते है   कितने  दर्द  भरे, बुझते  दीयों के  अफ़साने
कहते है शरद पूर्णिमा पर ,चन्दा अमृत बरसाता है
अपनी सम्पूर्ण कलाओं पर ,इठलाता वह मुस्काता है
ये रूप देख उसका मादक ,मन विचलित सा हो जाता है
यमुना तट के उस महारास की यादों में खो जाता  है
उस मधुर चांदनी में शीतल,तन मन  हो जाता उन्मादा
याद आते  गोकुल,वृन्दावन ,आती है याद बहुत राधा
यूं ही हंस हंस कर रस बरसा,क्या जरूरत है तरसाने की
ये नहीं सोचता कान्हा की ,अब उमर न रास रचाने की
मदमाता मौसम उकसाता ,और चाह मिलन की जगती है
पर दम  न रहा अब साँसों में ,ढंग से न बांसुरी  बजती है
ये  चाँद पहुँच के बाहर है,फिर भी करता है बहुत दुखी
जैसे हमको ललचाती है ,पर घास न डाले  चन्द्रमुखी
वो यादें  मस्त  जवानी की ,लगती है मन को तड़फाने
इसने तो पिया था अमृत , ये चाँद  गगन का क्या जाने
होते   है   कितने  दर्द  भरे ,बुझते  दीयों  के  अफ़साने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 26 अक्टूबर 2015

अजीब रिश्ते

        अजीब रिश्ते

ये रिश्ते भी ,कैसे अजीब होते है
पासवाले दूर ,और दूर वाले करीब होते है
माँ को अपने दामाद पर ,
बेटे से ज्यादा प्यार आता है
क्योंकि वह उसकी बेटी पर  ,
अपना जी भर के प्यार लुटाता है
और दामाद भी ,अपने माँ बाप से ज्यादा,
प्यार करता है अपने ससुर और सास से
जिन्होंने अपनी पाली पोसी बेटी ,
उसके हवाले करदी,उसके विश्वास पे
उसे पराये घर से आये ,
अपने दामाद की हर बात सुहाती है
लेकिन पराये घर से आयी ,
अपनी बहू में कई कमियां नज़र आती है
सोचती है कि बहू ने कुछ जादू टोना किया है
उससे उसका बेटा छीन लिया है
उसके मायके से आयी हर चीज लगती है ,
सस्ती और बेकार
उसको ताने मारे जाते है हर बार
और दामाद को ,बिठाया जाता है,पलकों पर
उसकी आवभगत में जुट जाता है सारा घर
वो तो क्या ,उसके घरवालो का भी ,
'वी आई पी ' की तरह होता है सत्कार
त्योंहारों पर उन्हें भेजे जाते है उपहार
ये उपहार या शादी में दिया हुआ दहेज ,
एक तरह की रिश्वत है ,जिसका मतलब साफ़ है
जरा ख्याल रखियेगा ,
हमारी फ़ाइल आपके पास है
लेकिन मेरी समझ में ये बात नहीं आये
बहू और दामाद के लिए ,
अलग अलग मापदंड क्यों जाते है अपनाये?
जिन्हे समझदार बहू औरअच्छा दामाद मिलता है ,
वो बड़े खुशनसीब होते है
ये रिश्ते भी अजीब होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर की शान-सपाट मैदान

      सर की शान-सपाट मैदान
 
काले काले घुंघराले बाल ,
जो हुआ करते थे कभी जिस सर की शान
वहां है आज एक सपाट मैदान
बढ़ती हुई उमर के साथ
अक्सर कई लोगों में होती है ये बात
सर होने लगता है सपाट 
याने क़ि हम दिखने लगते है खल्वाट
बचपन से कमाई हुई ,सर के बालों की दौलत ,
होने जब लगती है गायब
परेशान हो जाते  है सब
आदमी बेचारा रोता है
क्या आपने कभी सोचा है ,
ऐसा मर्दों के साथ ही क्यों होता है ?
क्या औरतों को कभी मर्दों की तरह ,
इस तरह टकले होते हुए देखा है
या मर्दों ने ही ले रखा इसका ठेका है
टकले होने के बतलाये जाते कई कारण है
संस्कृत में एक उक्ती है,
खल्वाट क्वचित ही होते निर्धन है
याने कि अधिकतर टकले होते है धनवान
लक्ष्मीजी उन पर होती है मेहरबान
दूसरा कारण ये कि कुछ समझदार मर्द,
दिमाग पर जोर डाल कर,ज्यादा सोचते है
और जब बात समझ में नहीं आती ,
तो खीज कर अपना सर नोचते है
हो सकता है इनमे से कोई बात ,
उनके सर के बाल उड़ाती है
पर मेरी समझ में तो तीसरी ही वजह आती है
आदमी शादी के बाद,
बीबी का गुलाम हो जाता है 
उसकी हर बात मानता है ,
उसके आगे सर नमाता है
और उसके आगे ,सर टेकते टेकते ,
हो जाता है उसका बुरा हाल
और उड़ने लगते है उसके सर के आगे के बाल
दफ्तर में भी ,वो बॉस के आगे सर रगड़ता है
तब ही तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता है
इसलिए धीरे धीरे ,सर के आगे का,
बीच का मैदान ,सपाट हो जाता है
सड़क की दोनों तरफ ,वृक्षों की तरह,
कुछ ही बाल उगे रहते है,
और आदमी खल्वाट हो जाता है
कुछ पुरुषार्थी लोगों के,
आगे के बाल तो ठीक रहते है ,
पर पीछे की चाँद निकल आती है
ये उनकी पत्नी के भाई के प्रति,
उनका प्रेम दिखलाती है
चाँद को बच्चे मामा कहते है ,
याने वो बीबी का भाई ,आपका साला है
उसके कारण ही ये गड़बड़ घोटाला है
आपको साले की सेवा करनी पड़ती है,
उसे आप सर पर बैठाते है
इसीलिए सर पर चाँद धरे नज़र आते है
और जिनके जीवन में बहुत सारे घपले होते है
अक्सर वो पूरे के पूरे टकले होते है
कुछ भी हो ,चमकती हुई टाँट के अपने ठाठ है ,
उससे व्यक्तित्व निराला होता है
अनुभवों की पाठशाला होता है
चेहरे पर गंभीरता ,ओढ़ी हुई नज़र आती है
पर जब लड़कियां ,उन्हें अंकल कहती है,
तो दिल पर सैकड़ों छुरियाँ चल जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

पटाया माँ को कैसे था

             पटाया माँ को कैसे था

थे छोटे हम ,पिताजी से ,डरा करते थे तब इतना ,
         कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था
और ये आज के बच्चे, हुए 'मॉडर्न' है  इतने ,
         पिता से पूछते है ,'मम्मी' को ,कैसे पटाया  था
न 'इंटरनेट'होता था,न ही 'व्हाट्सऐप'होता था,
         तो फिर मम्मी से तुम कैसे,कभी थे 'चेट' कर पाते
 सुना है उस जमाने में,शादी से पहले मिलने पर,
           बड़ा प्रतिबन्ध होता था,आप क्या 'डेट'पर जाते 
बड़े 'हेण्डसम 'अब भी हो,जवानी में लड़कियों पर,
           बड़ा ढाते सितम होगे,उस समय जब कंवारे थे
'फ्रेंकली'बात ये सच्ची ,बताना हमको डैडी जी ,
            माँ ने लाइन मारी थी ,या तुम लाइन मारे थे
 कहा डैडी ने ये हंस कर ,थे सीधे और पढ़ाकू हम,       
      कहाँ हमको थी ये फुरसत ,किसी लड़की को हम देखें
तुम्हारी माँ थी सीधी पर ,तुम्हारे 'नाना' चालू थे ,
              पटाया उनने 'दादा' को,'डोवरी 'मोटी  सी देके

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
                                    
         

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

रंग-ए-जिंदगानी: लघु-कथा - मजबूरी या समझदारी

रंग-ए-जिंदगानी: लघु-कथा - मजबूरी या समझदारी: शर्मा जी ने जब अपने बेटे राजेश से अपने खर्चे के सिए कुछ पैसे मांगे, तो राजेश नाक-भौं सिकोड़ने हुए बोला, “ पिताजी आपका क्या हैं ? आप तो ...

ऐसा क्यूँ होता है ?

        ऐसा क्यूँ होता है ?

मिलन के रात हो ,नींद नहीं आती है
पिया जब साथ हो,,नींद नहीं  आती है
खुशी की बात हो,नींद  नहीं   आती है
दुःख ,अवसाद हो ,नींद नहीं   आती है
पेट जब भूखा हो, नींद नहीं आती है
अधिक लिया खा हो,नींद नहीं आती है
हाल ,बदहाल  हो,नींद नहीं आती है
जमा खूब माल हो,नींद नहीं  आती है
आप परेशान हो,नींद नहीं आती है
सर्दी या जुकाम हो,नींद नहीं आती है 
बहुत अधिक गर्मी हो,नींद नहीं आती है
बहुत अधिक सर्दी हो ,नींद नहीं आती है
यदि निर्मल काया है,जी भर के सोता है
घर में ना माया है ,जी भर के सोता है
मेहनतकश थक जाता ,जी भी के सोता है
जब घोडा बिक जाता ,जी भर के सोता है
निपट जाती जब शादी,जी भर के सोता है
बिदा बेटी हो जाती ,जी भर के सोता  है
चिंता ना करता है,जी भर के  सोता है
या फिर जब मरता है,जी भर के सोता है
कई बार सोच सोच,'घोटू ' ना सोता है
 नींद नहीं आती है,ऐसा क्यूँ   होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संगत का असर

          संगत का असर

एक कथा ,आपने सुनी हो या ना सुनी,
फिर से सुनाता हूँ
संगत का असर कैसा होता है,
बतलाता हूँ
समुद्र मंथन के बाद जब अमृत निकला
उसे पाने को,
देवता और दानव में,आरम्भ हो गया झगड़ा
तब भगवान विष्णु ने ,मोहिनी रूप धार ,
अमृत बांटने का कार्य किया
तो एक असुर ने ,देवता की पंक्ती में घुस,
थोड़ा अमृत चख लिया
विष्णु जी को पता लगा तो,
सुदर्शन चक्र से काट दिया उसका सर
तब उसके गले में अटकी ,
अमृत की कुछ बूँदें ,गिर गई थी धरती पर
और जहां वो बूंदे गिरी थी,
वहां पर दो पौधे थे उग आये
जो बाद में लहसुन और प्याज कहलाये
दोनों में ही ,अमृत के गुण पाये जाते है,
और सबके लिए फायदेमंद है
पर क्योंकि ,राक्षस के साथ ,
 उनका सम्पर्क हो गया था ,
इसलिए आती उनमे दुर्गन्ध है
सम्पर्क का असर ,आदमी में,
गुण या अवगुण भर देता है,
अपना असर दिखलाता है
भगवान बुद्ध के सम्पर्क में आकर ,
डाकू अंगुलिमाल भी ,साधू बन जाता है
और 'रॉल्सरॉयल'भी ,
जब कीचड़ से गुजरती है
तो उसके पहियों में भी गंदगी लगती है
मिट्टीके ढेले पर भी ,जब गुलाब गिरता है ,
उसमे गुलाब की खुशबू आ जाती है
सज्जन की संगत ,
हमेशा आपको अच्छा बनाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रंग भेद

          रंग भेद

        मैं गेंहूँ वर्ण ,तुम हो सफेद
         हम   दोनों  में है  रंग भेद
मैं गेंहूँ सा ,तुम अक्षत सी ,
मैं पीसा जाता,तुम अक्षत
मैं रहता दबा कलश नीचे,
तुम रहती हो मस्तक पर सज
कुमकुम टीका लगता मस्तक
  उसपर  लगते अक्षत  दाने
 प्रभु की पूजा में अक्षत की 
 महिमा को हम सब पहचाने
चावल उबाल सब खा लेते ,
गेंहू को पिसना  पड़ता है
या फिर खाने में तब आता ,
जब उसका दलिया बनता है
गेंहू बनता हलवा प्रसाद,
चावल से खीर बना करती
जो हवन यज्ञ में,पूजन में ,
डिवॉन का भोग बना करती
चावल का स्वाद बढे दिन दिन,
जितनी है उसकी बढे उमर
 और साथ उमर के गेंहू में ,
पड़ने लगते है घुन अक्सर
चावल होते है देव भोज ,
गेंहू  गरीब  का  खाना है
दो रोटी खा कर भूख मिटे  ,
और पेट तभी भर जाना है
गेंहूँ  के ऊपर है दरार ,
वो इसिलिये क्षत होते है
तुम से सुंदर और चमकीले ,
चावल ही अक्षत होते है
पुत्रेष्ठी यज्ञ हुआ था और
परशाद खीर का खाया था
तब ही तो कौशल्या माँ ने ,
भगवान राम को जाया  था
चावल प्रतीक है समृद्धि का ,
धन धान्य इसलिए कहते है
है मिलनसार ,खिचड़ी बनते,
इडली , डोसे  में रहते है 
      चाहे बिरयानी या पुलाव,
      सब खुश हो जाते तुम्हे देख
      मैं गेंहूँ वर्ण,तम हो सफेद
       हम दोनों में है रंग भेद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

जय जय आरक्षण

       जय जय आरक्षण

आरक्षण महाराज ,आपकी महिमा न्यारी ,
             तुमने मेरी सात सात पुश्तों को तारा
तुम्हारे ही बल पर मैं सत्ता में आया,
           आज हो रहा है लाखों का वारा ,न्यारा
तुम ना थे तो कोई नहीं पूछता हमको,
           निम्न वर्ग के हम सेवक माने जाते थे     
ब्राह्मण,बनिए और क्षत्रिय राज्य करते थे ,
          हम पिछड़े थे और क्षुद्र बस कहलाते थे         
लेकिन जब से आरक्षण वरदान मिला है,
                तब से ही हो रहे हमारे ,वारे न्यारे
भले हमारा शिक्षण और योग्यता कम हो,
               सरकारी पद ,आरक्षित है,लिए हमारे
 आरक्षण है नहीं सिरफ़ भरती में हमको,
             आरक्षण का हक है हमे प्रमोशन में भी
बहुत बड़ी हम वोट बैंक है इसीलिये तो,
              कई चुनावी  सीटें  है ,आरक्षण में भी
आरक्षण के देख इस तरह कई फायदे ,
           उच्चवर्ग भी आज चाह  रहा आरक्षण है
आज दलित बनने को वो सब भी आतुर है ,
      जिनने बरसों तक दलितों का किया दलन है
आरक्षित वर्गों के भी अब कई वर्ग है ,
       सबके लिए सुरक्षित ,प्रतिशत भांति भांति
कोई दलित,महादलित,कोई बैकवर्ड है,
           कोई अल्पसंख्यक है,तो कोई जनजाति
सबसे ज्यादा मज़ा उठती क्रीमी लेयर ,
             लाखों और करोड़ों में जो खेल रही है    
 लेकिन कितनी दलित अल्पसंख्यक जनता है,
        अब भी वो की वो ही मुसीबत झेल रही है
आरक्षण से क्षरण हो रहा प्रतिभाओं का,
         आगे बढ़ने से ,अगड़े ना रोके जाएँ
साथ साथ सब दौड़ें ,जो भी अव्वल आये,
        उसको ही पारितोषिक से बक्शा  जाए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                          



                              

हमवतनो से

       हमवतनो से

यह कह कर वो मुसलमान ,तू हिन्दू है
मारकाट कर ,झगड़ रहा आपस में तू है
गाय और सुवर के चक्कर में पड़ कर के,
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ  है
नेता लोग रोटियां अपनी सेक रहे है
और पड़ोसी ,चटखारे ले देख रहे है
साथ साथ कितने वर्षों से रहते आये,
भाई भाई से,हिन्दू मुस्लिम एक रहे है
कुछ भी दे दो नाम,राम हो चाहे अल्लाह ,
परमपिता वो ऊपरवाला ,एक प्रभू  है
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ  है
मंदिर हो ,मस्जिद हो चाहे हो गुरद्वारे
पूजा के स्थल ,ईश्वर के घर है सारे 
अपने अपने धर्म ,आस्था अपनी अपनी ,
मिलजुल रहते,आपस में थे भाईचारे
नाम धरम का लेकर के,तुमको लड़वाकर ,
नेता लोग कर रहे सीधा निज उल्लू है 
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ है 
हम सब भाई भाई से है,ईश्वर के बन्दे
झगड़ रहे आपस में हो नफरत में अंधे
गोटी हमको बना ,सियासी खेल खेलते ,
ये सब तो है  नेताओं के गोरख धंधे
इनके बहकावे ना आये,एक रहे हम,
एक तरह का लाल ,तुम्हारा ,मेरा खूं है
आपस में इतनी नफरत फैलाई क्यूँ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हमवतनो से

       हमवतनो से

यह कह कर वो मुसलमान ,तू हिन्दू है
मारकाट कर ,झगड़ रहा आपस में तू है
गाय और सुवर के चक्कर में पड़ कर के,
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ  है
नेता लोग रोटियां अपनी सेक रहे है
और पड़ोसी ,चटखारे ले देख रहे है
साथ साथ कितने वर्षों से रहते आये,
भाई भाई से,हिन्दू मुस्लिम एक रहे है
कुछ भी दे दो नाम,राम हो चाहे अल्लाह ,
परमपिता वो ऊपरवाला ,एक प्रभू  है
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ  है
मंदिर हो ,मस्जिद हो चाहे हो गुरद्वारे
पूजा के स्थल ,ईश्वर के घर है सारे 
अपने अपने धर्म ,आस्था अपनी अपनी ,
मिलजुल रहते,आपस में थे भाईचारे
नेता उल्लू साध रहे तुमको लड़वाकर ,
एक तरह का लाल ,तुम्हारा ,मेरा खूं है
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लालू उचाव

         लालू उचाव

मैं ग्वाला,मैंने सत्ता को खूब दुहा है ,
मैं चरवाहा ,मैंने सबको खूब चराया
पशु चरने को घास जंगलों में जाते है,
मेरा राज,इसलिए जंगलराज कहाया
चारा खाकर ,पशु दूध ज्यादा देते है ,
मैंने जमकर चारा खाया इतने सालो
अब मै बूढी भैंस हो गया,दूध न देता,
इसका मतलब नहीं मुझे तुम घास न डालो
अब मेरी औलादें है तैयार हो गयी ,
खूब चरेंगी,और दूध भी  देंगी  ज्यादा
उन्हें वोट का चारा डालो और जितादो ,
दूध मिलेगा तुमको, ये है  मेरा  वादा

घोटू  

जीवन यात्रा

           जीवन यात्रा

जीवन पथ पर तुमको बढ़ते ही जाना है,
ध्येय तुम्हारा अपनी मंजिल को पाना है
बाधाएं कितनी ही आ ,रोकेगी  रस्ता ,
धीरज रख तुमको उनसे ना घबराना है
तुम चुपचाप सड़क पर सीधे जाते होगे ,
तीव्र गति से पास कोई वाहन गुजरेगा
उसके पहिये से गड्ढे में पड़ा हुआ जो,
गंदा और ढेर सारा कीचड़ उछलेगा
और उसके कुछ छींटे ,जाने अनजाने ही ,
तुम्हारे उजले कपड़े ,गंदे  कर देंगे
इस जीवन में ऐसे कई हादसे होंगे ,
तुमको यूं ही परेशान कर,दुःख भर देंगे
इसका मतलब नहीं सड़क से तुम ना गुजरो,
 जीवनपथ लोग कई लोग धोखा करते है
हाथी जब भी चलता शान और मस्ती से,
तो सड़कों पर कुछ कुत्ते भौंका करते है
ये दुनिया है,कुछ ना कुछ होता रहता है,
कई तरह के अच्छे बुरे  लोग मिलते है
किन्तु सबर का फल हरदम मीठा होता है ,
जब मौैसम आता है ,फूल  तभी खिलते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लेंग्वेज प्रॉब्लम

         लेंग्वेज प्रॉब्लम

मेरे मित्र मुसद्दीलाल ,
जो कुछ दिन पहले ही हुए थे स्वर्गवासी
कल मेरे सपने में आये,चेहरे पर थी उदासी
हमने कहा यार ,
तुम तो स्वर्ग में रहे हो मज़े मार
तो फिर क्यों चेहरा ग़मगीन है
वो बोले यार,
वैसे तो स्वर्ग का माहौल बड़ा हसीन है
अप्सराएं भी आसपास डोलती है
पर मेरी समझ में कुछ नहीं आता ,
वो न जाने कौनसी भाषा बोलती है
पंडित जी मुझे बड़ा मूरख बनाया है
स्वर्ग आने का रास्ता तो बतलाया है
पर यहाँ की भाषा नहीं सिखलाई
इसलिए यहां ,
बड़ा 'कम्युनिकेशन गेप' है मेरे भाई
यहां के फ़रिश्ते और अप्सराएं
एक अलग ही भाषा में बोलें और गाये
जो हमारी समझ में बिलकुल नहीं पड़ता है
वैसे  यहाँ भी,लोकल और 'ऑउटसाइडर'का,
काफी 'पॉलिटिक्स' चलता है
धरती से जब भी कोई आता है
उसे किसी अनजान भाषा बोलने वाले ,
अजनबी के साथ ठहराया जाता है
जिससे आपस में कोई बातचीत नहीं हो पाती  है
थोड़ी शांती तो रहती है ,पर इस माहौल में,
अपनी तो तबियत घबराती है
सोमरस पियो और पड़े रहो
यार ये भी कोई लाइफ है,तुम्ही कहो
न गपशप ,न नोकझोंक,
 न व्हाट्सऐप ,न इंटरनेट
न फेसबुक ,न टी वी,
कोई क्या करे दिन भर यूं ही बैठ   
निर्धारित समय पर ,
कुछ देर के लिए ,अप्सराएं तो आती  है
थोड़ा मन बहलाती है
पर न हम कुछ कह पाते है
न उनकी समझ में कुछ आता है
और इतनी देर में ,उनका हमारे लिए ,
'अलोटेड 'टाइम भी खतम हो जाता है
भैया,इससे तो अपनी धरती की लाइफ ,
ही बड़ी अच्छी थी
गपसप होती रहती थी,मौजमस्ती थी
यहाँ पर आकर तो हम एक दम ,
 बड़े डिसिप्लीन में बंध  गए है
यार,कहाँ  आकर  फंस गए है ?


मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हम तुम -संग संग

    हम तुम -संग संग

मैं  काहे  कोठी, बंगला लूँ ,
या फ्लेट कहीं बुक करवालूँ
मेरे रहने को तेरे दिल का एक कोना ही काफी है
क्यों चाट पकोड़ी  मैं खाऊँ
'डोमिनो' पिज़ा  मंगवाऊँ
मेरे खाने को तुम्हारी ,मीठी सी झिड़की काफी है
क्यों पियूं कोई शरबत,पेप्सी
बीयर ,दारू  या  फिर  लस्सी
मेरे पीने को तुम्हारा ,ये रूप, प्रेम रस  काफी है
मैं तेरे  दिल में बस जाऊं
और नैनों में तुम्हे बसाऊं 
खुदमें खुद बस कर मुझे मिले,संग तुम्हारा काफी है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

बड़े कैसे बनते हैं

        बड़े कैसे बनते हैं

सबसे पहले अपनी दाल गलानी पड़ती ,
           और फिर मेहनत करना और पिसना पड़ता है
दुनियादारी की कढ़ाई के गरम तेल में,
               धीरे  धीरे  फिर  हमको  तलना  पड़ता  है
फिर जाकर मिलती है कुछ पानी की ठंडक,
            उसमे से भी  निकल, निचुड़ना फिर पड़ता  है
 तब मिलती है हमे दही की क्रीमी लेयर ,
               मीठी  चटनी  और  मसाला  भी  पड़ता  है
जीवन में कितनी ही मेहनत करनी पड़ती ,
                 तब जाकर के कहीं बड़े हम बन पाते है
कोई दहीबड़े कहता है कोई भल्ले ,
                      और  हमारे  बल्ले बल्ल हो जाते है
  
मदन मोहन बाहेती'घोटू'                     
                 
  
              
                 
  
              

गुल और गुलगुले

          गुल और गुलगुले

मित्र हमारे पहुंचे पंडित ,हमने पूछा ,
          है परहेज गुलगुलों से,गुड खाते रहते
मुंह में राम,बगल में छूरी क्यों रखते हो,
          छप्पन छुरियों के संग रास रचाते रहते
बन कर बगुला भगत ढूंढते तुम शिकार हो,
          कथनी और करनी में हो अंतर दिखलाते
सारे नियम आचरण लागू है भक्तों पर ,
         प्याज नहीं खाते पर रिश्वत  जम  कर खाते
उत्तर दिया मित्र ने हमको,कुटिल हंसी हंस ,
           है  परहेज  गुलगुलों से, पर  नहीं  गुलों  से
प्रभू की सुंदर कृतियों का यदि सुख हम भोगें ,
           जीवन का रस पियें ,कोई क्यों हमको कोसे
प्याज अगर खाएं तो मुख से आये बदबू ,
           प्याज खाई है,ये जग जाहिर हो जाता  है
रिश्वत की ना कोई खुशबू या बदबू है,
           पता किसी को इसीलिये ना  चल पाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

नदिया और जीवन

  नदिया और जीवन
         
मैं ,बचपन में थी उच्श्रृंखल
बच्चों सी ,चंचल और चपल 
पर्वतों से उतरते हुए ,
कुलांछे भरते हुए ,
जब जवानी के मैदानी इलाके में आई  ,
इतराई
मेरी छाती चौड़ी होने लगी
और मैं कल कल करती हुई,
मंथर गति से बहने लगी
मेरी जीवन यात्रा इतनी सुगम नहीं थी
मेरे प्रवाह में कई मोड़ आये
कभी ढलान के हिसाब से बही ,
कभी कटाव काट कर,
अपने रस्ते खुद बनाये
लोगों ने मुझे बाँधा ,
मुझ पर बाँध बनाया
मुझसे ऊर्जा ली ,
नहरों से मेरा नीर चुराया
 मेंरे आसपास ,अपना ठिकाना बनाया
मेरी छाती पर चढ़,
अपनी नैया को पार लगाया
किसी ने दीपदान कर ,
मुझे रोशन किया
किसी ने अपना सारा कचरा ,
मुझमे बहा दिया
कभी बादलों  ने ,अपना नीर मुझ में उंढेला
मैंने झेला ,
मुझे बड़ा क्रोध भी आया
मैंने क्रोध की बाढ़ में ,कितनो को ही बहाया
मुझे पश्चाताप हुआ,मैं शांत हुई
 और फिर आगे बढ़ती गयी
राह में कुछ मित्रों ने हाथ मिलाया
मेरे हमसफ़र बने
मेरी सहनशीलता और मिलनसारिता ,
मेरी विशालता का   सहारा बने
आज मैं ,विशाल सी धारा के रूप में,
बाहर से शांत बहती हुई दिखती हूँ
पर मेरे अंतर्मन में ,है बड़ी हलचल
क्योंकि महासागर में,विलीन होने का ,
आनेवाला है पल
आज नहीं  तो कल

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



 

बचत के रोमांटिक तरीके

        बचत के रोमांटिक तरीके

मंहगाई बढ़ रही हमें कुछ करना होगा ,
ऐसा जिससे मज़ा उठायें  मंहगाई का,
रोमांटिक ढंग से यदि थोड़ी बचत करें तो ,
          मंहगाई की चुभन  नहीं   तड़फ़ा पायेगी
तुम परफ्यूम लगाओ,तुम्हे बांह में ,मैं लूँ ,
तो  मुझ में भी आयेगी तुम्हारी  खुशबू ,
इससे परफ्यूमो का खर्चा घट  जाएगा ,
          हम दोनों में एक जैसी खुशबू आएगी
मेरी बढ़ी हुई दाढ़ी जब चुभती तुमकों ,
तुम्हे  सुहाती है ये हरकत मर्दों वाली ,
मैं दाढ़ी के बाल बढ़ा कर तुम्हे चुभाऊँ ,
          शेविंग क्रीम ,ब्लेड की लागत कम आएगी
बाथरूम में एक तौलिया सिरफ रखेंगे ,
तुम पहले नहा लेना ,अपना बदन पोंछना ,
फिर नहाऊंगा मैं ,और उससे  तन पोंछूँगा ,
                   मुझमे भी तुम्हारी रंगत आ जाएगी    
 दालें मंहगी ,पतली दाल बनाया करना ,
एक थाली में साथ बैठ ,हम तुम खांयेंगे ,
इससे प्यार बढ़ेगा ,बरतन भी कम होंगे,
        विम की टिकिया ,ज्यादा दिन तक चल पाएगी
जब भी मैं मांगूं मिठाई ,तुम मीठी पप्पी,
दे  दे  कर , मेरे मन को  बहलाती रहना ,
इससे डाइबिटीज का खतरा भी न रहेगा,
         खर्चा भी कम ,अच्छी सेहत हो जाएगी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
         
         

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी

कलम उठा जब लिखने बैठा,
बाॅस का तब आ गया फोन;
बाकि सारे काम हैं पड़े,
तू नहीं तो करेगा कौन ?

भाग-दौड़ फिर शुरु हो गई,
पीछे कोई ज्यों लिए छड़ी;
शब्द अंदर ही घुट से गए,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

घर बैठ आराम से चलो,
कुछ न कुछ लिख जायेगा;
घरवाली तब पुछ ये पड़ी,
कब राशन-पानी आयेगा ?

फिर दौड़ना शुरु हुआ तब,
काम पे काम की लगी झड़ी;
जगे शब्द फिर सुप्त पड़ गए,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

काम खतम सब करके बैठा,
शब्द उमड़ते उनको नापा;
लगा सहेजने शब्दों को जब,
बिटिया बोली खेलो पापा ।

ये काम भी था ही निभाना,
रही रचना बिन रची पड़ी;
जिम्मेदारी और भाग दौड़ मे,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

देर रात अब चहुँ ओर शांति,
अब कुछ न कुछ रच ही दूँ,
निद्रा देवी तब आकर बोली,
गोद में आ सर रख भी दूँ ।

सो गया मैं, सो गई भावना,
रचनामत्कता सुन्न रही खड़ी;
आँख तरेरते शब्द हैं घूरते,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

हर दिन की है एक कहानी,
जीवन का यही किस्सा है;
अंदर का कवि अंदर ही है,
वह भाग-दौड़ का हिस्सा है ।

जिम्मेदारी के बोझ के तले,
दबी है कविता बड़ी-बड़ी;
काम सँवारता चला हूँ लेकिन,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

शनिवार, 10 अक्टूबर 2015

काजल

        काजल

गौरी का गोरापन ही नहीं,
काजल की कालिख के बारे में भी ,
बहुत कुछ कहा जाता है
काजल ,सौ बार धोने  पर भी,
सफेद नहीं हो पाता है
काजल सी कालिख ,
मुंह पर जब पुत जाती है
बहुत बुरी लगती है
उसी काजल की धार,
अपनी आँखों पर लगा कर गौरी ,
छप्पनछुरी लगती है
लाडले बच्चे के माथे पर,
काजल का बिठौना ,
बुरी नज़र से बचा लेता है
और गौरी की आँखों का ,
फैला हुआ कजरा ,
उसकी बीती रात का ,
अफ़साना बता देता है
लोग  अंधियारे का भी, मज़ा ऐसे लेते है
मिलन की रात में ,दीपक बुझा देते है
ये दीपक ,जब बुझता है ,तो भी सताता है
और जलता है ,तो भी सताता है
जलते दीपक की बाती  का धुँवा ,
काजल बनाता है
और वो काजल जब उनकी आँखों में अंजता है
कितने ही दिलों को घायल  करता है
औरतों के सोलह सिंगार
में एक होती है कजरे की धार
जो करती है सबको बेकरार
इसलिए काजल की मार से डरिये
ये दुनिया काजल की कोठरी है ,
कहीं तुम पर काजल की कोई लीक न लग जाए ,
जरा सम्भल कर चलिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पक्षपात -प्रेमघात

                    पक्षपात -प्रेमघात
                      
तुम हो उजली शुक्ल पक्ष सी ,मै हूँ कृष्णपक्ष सा काला
तुम सत्ता में,मैं विपक्ष  में ,घर पर चलता  राज तुम्हारा
मुझे नचाती ही रहती हो ,अपने एक इशारे पर तुम,
मैं बेबस और परेशान हूँ ,मैं  हूँ पक्षपात  का  मारा 
                          
जैसे श्राद्ध पक्ष में पंडित,  न्योता खाना नहीं छोड़ते
सरकारी दफ्तर के बाबू, रिश्वत   पाना  नहीं छोड़ते
वैसे तुम मुझे रिझाते, दिखा दिखा कर अपना जलवा,
औरफिर छिटक छिटक जाते हो,मुझे सताना नहीं छोड़ते

होता जब मौसम चुनाव का ,वोटर तब पूजे जाते है
श्राद्धपक्ष में पंडित ही क्या,कौवे भी दावत खाते है
तुम्हे पूजता हूँ मै हरदम ,चाहे कोई भी हो मौसम ,
फिर भी घास न डालो मुझको,कितना आप भाव खाते है    

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                         
                         


     
             

मौत

        मौत

कलावे हाथों में अपने,भले कितने भी बँधवालो
कई ताबीज और गंडे ,गले में अपने लटकालो
उसे जिस रोज आना है ,वो आ ले जाएगी तुमको,
करो तीर्थ ,बरत कितने,टोटके  लाख   करवा लो 

घोटू

बहू ससुर संवाद

         बहू ससुर संवाद

सवेरे घूमते हो तुम ,रोज व्यायाम करते हो
विटामिन गोलियां कहते,फलों से पेट भरते हो
बहू बोली ससुर से तुम,प्रभू को पूजते हरदम,
वो तुमको याद ना करता,तुम जिसको याद करते हो
ससुर जी बोले यूं हंसकर,ये उसकी मेहरबानी है
उमर बोनस में उसने दी,हमें हंस कर बितानी है
परेशां व्यर्थ होती हो,करेगा याद जब भी वो,
हमारी सारी धनदौलत ,तुम्हारे पास आनी है

घोटू

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

अपनी अपनी किस्मत

         अपनी अपनी किस्मत

यूं ही पेड़ पर कच्चा झड़ जाता है कोई
कोई पक जाता तो सड़  जाता है कोई
कोई बेचारे का बन जाता  अचार है,
होता है रसहीन ,निचुड़  जाता है कोई
होता कोई स्वाद और बेस्वाद कोई है,
कोई किसी को भाता और कोई ना भाता
हर एक फल की कब होती ऐसी किस्मत है,
साथ उमर के वह सूखा  मेवा बन जाता
      कोई फूल डाल  पर बैठा इठलाता  है 
     कोई निज खुशबू से बगिया महकाता है
     कोई प्रभु पर चढ़ता ,कोई लाश पर चढ़ता , 
     कोई पंखुड़ी पंखुड़ी कर के खिर  जाता है  
         कोई सजता सेहरे या सुहाग सेज पर  ,
        और भोर तक,दबा हुआ, है कुम्हला जाता
       हरेक फूल की किस्मत कब होती गुलाब सी ,
       मिश्री संग मिल,बन गुलकंद ,सभी मन भाता
        हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
           साथ उमर के वह सूखा मेवा  बन जाता   
कोई की औलाद निकम्मी है नाकाबिल
लायक कोई होती,कर लेती सब हासिल
कोई की औलाद न पूछे मातपिता को,
तिरस्कार करती है और जलाती है दिल
कितने ही माबाप यूं ही घुट घुट कर जीते ,
और किन्ही को बेटा ,सर आँखों बैठाता 
कब होती सबके नसीब में वो औलादें ,
जिनसे उनका नाम और यश है बढ़ जाता
हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
साथ उमर के ,वह सूखा  मेवा बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जाने क्यूँ है ऐसा होता ?

     जाने क्यूँ है ऐसा होता ?

कुछ करने को मन ना करता ,
मन करता  ,हिम्मत ना होती  ,
हिम्मत होती ,थक जाता हूँ,
परेशान फिर मन है  रोता
                जाने क्यूँ है  ऐसा होता?
जी  ये करता , थोड़ा टहलूं
सुनु किसी की,अपनी कहलूं 
हंसलूँ  मैं भी मार ठहाका,
कल कल कर नदिया सा बहलूं
    घर से निकल न पाता पर बस
    कुछ करने में आता  आलस
    हो ना पाता मैं  टस  से  मस
            और मेरा धीरज है खोता 
              जाने क्यूँ है ऐसा होता?  
मन खोया रहता यादों में
डूबा रहता  अवसादों में
करवट यूं ही बदलता रहता,
नींद नहीं आती  रातों में
      जी न करे खाने पीने का
      मज़ा गया सारा जीने का  
      छुपा दर्द मेरे सीने  का ,
       आंसूं बन है मुझे भिगोता
         जाने क्यूँ है  ऐसा होता  ?
दिन दिन  बढ़ती हुई उमर है
क्या ये उसका हुआ असर है
दिन भर खोया खोया रहता,
चैन नहीं मुझको पल दो पल है
         कोई भी मन ना बहलाता
        कोई प्यार से ना सहलाता 
         भूल गए सब रिश्ता ,नाता
               यही सोच कर मन है रोता
                  जाने क्यों है ऐसा  होता  ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आशिकाना मिजाज -बचपन से

      आशिकाना मिजाज -बचपन से

पैदा होते ही पकड ली थी नर्स की ऊँगली ,
      और फिर बाहों में उसने हमे झुलाया था
कोई आ  नर्स बदलती थी हमारी नैप्पी ,
     गोद में ले के ,बड़े प्यार से खिलाया था
हम मचलते थे ,कोई देखने जब आती थी,
       बाहों में हमको भर के ,सीने से लगाती थी
हमारे घर के आजू बाजू की हसीनाएं ,
       आती जाती  हमारे गाल चूम जाती   थी
बीज जो आशिक़ी के पड़ गए थे बचपन में ,
      फसल को अच्छी बन के फिर तो उग ही आना है
बताएं आपको क्या ,ये मगर हक़ीक़त है,
      अपना मिजाज तो बचपन से आशिकाना  है 

घोटू

जीवन चुनाव

           जीवन चुनाव

ये जीवन क्या ,ये जीवन तो एक चुनाव है ,
        इसमें हम तुम ,और कितने ही प्रत्याशी है
इसमें कोई तो है झगड़ालू प्रकृति  वाला,
        तो कोई ,सीधासादा  और मृदुभाषी   है
सबसे पहले अपने इस जीवन चुनाव में ,
        अच्छा क्या है और बुरा क्या चुनना होगा
केवल अपनी ही हाँकोगे ,नहीं चलेगा ,
        बात दूसरों की भी तुमको  सुनना  होगा
तुम्हारा 'मेनिफेस्टो',क्या है ,कैसा है ,
        सोच समझ कर तुमको इसे बनाना होगा
हो सकता है ,बहुत विरोध तुम्हे मिल जाए ,
        विपदाओं से ,बिलकुल ना घबराना  होगा
अगर जीतना है तुमको यदि इस चुनाव में ,
         और नाव है यदि जो अपनी पार लगानी
कितना भी मिल जाय तुम्हे मौसम तूफानी,
          धीरज अगर धरोगे तो होगी  आसानी
कितने ही लालू ,तुमको आ गाली देंगे,
         कितने ही पप्पू ,विरोध आ, जतलायेंगे
लोग मिलेंगे ऐसे भी तुम्हारे बन कर,
         छेद  करें  उस   थाली में ,जिसमे खाएंगे
लेकिन ये सब एक हक़ीक़त है जीवन की,
         उतर अखाड़े में ,मलयुद्ध ,तुम्हे है लड़ना  
सिर्फ शक्ति ही नहीं ,युक्ति भी काम आएगी ,
         सीख दूसरों के अनुभव से होगा  चलना
 आलोचक भी कई मिलेंगे ,यदि जो तुमको ,
           कई चाहने वाले भी तो  मिल जाएंगे         
उनका सब सहयोग भुनाना होगा तुमको,
          इस चुनाव को तब ही आप जीत पाएंगे
और जीत के बाद बहुत रस्ता मुश्किल है,
         वादे जितने किये ,निभाने  होंगे  सारे    
इसीलिए ,ये उचित करो तुम वो ही वादे ,
         जिनको पूरा करना हो बस में तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गौमाता और मातापिता

         गौमाता और मातापिता

बचपन से अब तक तुमको, दूध पिलाया,पोसा,पाला
दूध हमारा ही पी पी कर ,हुआ हृष्ट पुष्ट ,बदन तुम्हारा
जब तक देती रही दूध हम,गौमाता कह,चारा डाला
दूध हमारा बंद हुआ तो, हमको भेज दिया  गौशाला
हम पशु है पर संग हमारे ,क्या ये अत्याचार नहीं है
हम क्या,अपने मातपिता संग,तुम्हारा व्यवहार यही है
जिनने खून पसीना देकर ,तुम्हे बनाया इतना काबिल
तिरस्कार करते हो उनका ,उनसे सब कुछ करके हासिल
तुमको लेकरउनने मन में ,क्या क्या थे अरमान जगाये
अपने पैरों खड़े क्या हुए ,वो लगते अब तुम्हे पराये
बहुत दुखी,पछताते होंगे,और सोचते होंगे मन में
निश्चित ही कुछ कमी रह गयी ,उनके ही लालन पालन में
दुर्व्यवहार देख तुम्हारा , डूबे रहते होंगे गम में
हमको भेजा गौशाला ,उनको भेजोगे  वृद्धाश्रम में

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

रविवार, 4 अक्टूबर 2015

दीवानगी -तब भी और अब भी

           दीवानगी -तब भी और अब भी

गुलाबी गाल चिकने थे,नज़र जिन पर फिसलती थी,
        अब उनके गाल पर कुछ पड़ गए है,झुर्रियों के सल
इसलिए देखता जब हूँ ,नज़र उन पर टिकी रहती ,
        फिसल अब वो नहीं पाती ,अटक जाती है झुर्री  पर
गजब का हुस्न था उनका ,और जलवा भी निराला था,
        तरस जाते थे दरशन को,देख तबियत मचलती थी
हुई गजगामिनी है वो ,हिरण सी चाल थी जिनकी ,
       ठिठक कर लोग थमते थे ,ठुमक कर जब वो चलती थी
जवानी में गधी  पर भी ,सुना है नूर चढ़ता है,
        असल वो हुस्न ,जो ढाता ,बुढ़ापे में ,क़यामत  है
हम तब भी थे और अब भी है ,दीवाने उनके उतने ही,
      आज भी उनसे करते हम,तहेदिल से मोहब्बत  है
आज भी सज संवर कर वो,गिराती बिजलियाँ हम पर ,
      उमर के साथ ,चेहरे पर ,चढ़ा अनुभव का पानी है
जानती है ,किसे घायल ,करेंगे तीर नज़रों के ,
       उन्हें मालूम ,किस पर कब,कहाँ बिजली गिरानी है
उमर के संग बदल जाता, नज़रिया आदमी का है ,
       उमर  बढ़ती तो आपस में ,दिलों का प्यार है बढ़ता
बुढ़ापे में ,पति पत्नी,बहुत नज़दीक आ जाते ,
          समर्पित ,एक दूजे पर ,बढ़ा करती है निर्भरता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मैं और तू

                 मैं और तू

तू है मेरे साथ सफर में ,मुश्किल आये ,फ़िक्र नहीं है 
मेरी जीवन कथा अधूरी ,जिसमे तेरा  जिक्र  नहीं है
तेरी बाहें  थाम, कोई भी दुर्गम रस्ता कट जाएगा
जीवनपथ में ,कहीं कोई भी ,संकट आये,हट जाएगा
हम तुम दोनों,एक सिक्के के,दो पहलू है,चित और पट है 
दोनों एक दूजे से बढ़ कर ,कोई नहीं किसी से घट  है
जब भी मुश्किल आयी ,तूने,दिया सहारा,मुझे संभाला
मेरी अंधियारी रातों में ,तू दीपक बन ,करे उजाला
हम तुम,तुम हम,संग है हरदम ,एक दूजे के बन कर साथी
तू है चंदन ,मै हूँ पानी,मैं  हूँ  दीया  , तू  है  बाती
तू है चाँद,तू ही है सूरज,आलोकित दिन रात कर रही
बन कर प्यार भरी बदली तू,खुशियों की बरसात कर रही
तू है सरिता ,संबंधों की ,सदभावों का ,तू  है निर्झर
तू पर्वत सी अडिग प्रेमिका ,भरा हुआ तू प्रेम सरोवर
तू तो है करुणा का सागर ,प्रेम नीर छलकाती गागर
सच्ची जीवनसाथी बन कर ,जिसने जीवन किया उजागर
ममता भरी हुई तू लोरी,जीवन का संगीत सुहाना
तू है प्यार भरी एक थपकी,सुख देती,बन कर सिरहाना
तू सेवा की परिभाषा है , तू जीवन की अभिलाषा है
बिन बोले सब कुछ कह देती,तू वो मौन ,मुखर भाषा है
तू क्या क्या है,मै  क्या बोलूं ,तू ही तो सबकुछ है मेरी
तूने ही आकर  चमकाई,जगमग जगमग रात अंधेरी
तू है एक महकती बगिया ,फूल खिल रहे जहां प्यार के  
तेरे साथ ,हरेक मौसम में ,झोंके बासंती  बहार  के
दिन दूना और रात चौगुना ,साथ उमर के प्यार बढ़ रहा
तेरा रूप निखरता हर दिन ,अनुभव का है रंग चढ़ रहा
एक दूजे के लिए बने हम,हममे ,तुममे अमर प्रेम है
जब तक हम दोनों संग संग है ,इस जीवन में कुशल क्षेम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन दर्शन

                 जीवन दर्शन

  ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
अपनी गुजर चलाने घर में ,काफी चना चबेना है
  कोई मिलता 'हाई हेलो' ना ,राम राम कह देते है
उनका अभिवादन भी करते,राम नाम ले लेते है
यूं ही किसी की  तीन पांच में ,काहे बीच में पड़ना है
अच्छा मरना ,याने सु मरना ,हरी का नाम सुमरना है 
इस जीवन के भवसागर में,अपनी नैया खेना है
ना ऊधो का कुछ लेना है,ना माधो  का देना है
ऐसे करें आचरण हम जो ,सभी जनो को सुख दे दे
ऐसी बात न मुख से निकले ,जो कोई को दुःख दे दे
बहुत किया अपनों  हित,अब तो अपने हित भी कुछ कर लें
दीन  दुखी की सेवा करके ,पुण्यों से झोली भर लें
अब तो प्रभु के दरशन करने,आकुल,व्याकुल नैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
फंस माया में ,किया नहीं कुछ,हमने इतने सालों में
कब तक उलझे यूं ही रहेंगे,जीवन के जंजालों में
जितने भी है रिश्ते नाते,सब मतलब की है यारी
आये खाली हाथ , जाएंगे, हाथ रहेगें  तब खाली
तन का पिंजरा तोड़ उड़ेगी ,एक दिन मन की मैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

आरक्षण का भूत

          आरक्षण  का भूत

देश में हर तरफ ,
जिधर देखो उधर ,हो रहे है आंदोलन
हर कोई चाहता है ,सरकारी नौकरी में,
उसे भी मिल जाए आरक्षण
और तो और वो कौमे भी ,
जो करती थी ,दलितों का दलन
आज उनके समकक्ष होने के लिए ,
कर रही है आंदोलन
क्योंकि आजकल कई जगह ,
सत्तर प्रतिशत से भी ज्यादा ,सरकारी नौकरियां ,
विभिन्न जाति के लोगों के लिए आरक्षित है ,
इससे सवर्ण त्रसित है
और अब पिछड़ी नहीं,अगड़ी जाति के लोग,
सबसे ज्यादा शोषित है
इनके प्रतिभाशाली  बच्चे ,
अच्छे कॉलेजों में एडमिशन नहीं पाते है
क्योंकि आरक्षण की वजह से ,
घोड़ों की दौड़ में ,गधे घुस जाते है
इस चक्कर में  ,
प्रतिभाशाली  छात्र छले जाते है
और कुछ तो इसीलिये ,आगे की पढ़ाई के लिए ,
 विदेश चले जाते है
कुछ तो विदेशों की व्यवस्था और वैभव देख कर
वहीँ बस जाते है,नहीं आते लौट कर
और बाकी जो लौट कर आते है
अपनी काबलियत और विदेशी डिग्री के कारण ,
यहाँ भी खूब कमाते है
कोई इंजीनियर बना तो उद्योग लगाता है
देश को प्रगति  के पथ पर पहुंचाता है
कोई डॉक्टर बन ,अस्पताल चलाता है
और ये देखा गया है,
इनके प्रायवेट अस्पतालों में ,
मंहगे होने के बावजूद भी ,बड़ी भीड़ रहती है ,
हर कोई यहाँ इलाज कराता है
यहाँ तक की आरक्षित  कोटे से,
भर्ती हुआ बड़ा सरकारी अफसर भी ,
अपने इलाज के लिए ,सरकारी अस्पताल नहीं,
इन्ही प्रायवेट अस्पतालों में जाता है
शायद इन्हे खुद ही ,
अपने जैसे क्वालिफाइड लोगों की ,
कार्यकुशलता पर नहीं है विश्वास
इसलिए ,वो नहीं जाते उनके पास
नेता लोग वोट के चक्कर में ,लोगों को ,
आरक्षण का लोलीपोप चुसा कर,  
देश के साथ कर रहे है विश्वासघात
और अगर ऐसे ही रहे हालत
तो देश की प्रतिभाओं का विदेश में ,
यूं ही 'ब्रेन ड्रेन 'होता रहेगा
या फिर देश का काबिल युवा ,
आरक्षण की मार का मारा ,
अवसर से वंचित रह कर ,
बस यूं ही रोता रहेगा
जब बोये गए बीज ही कमजोर होंगे ,
तो फसल तो बिगड़ ही जाएगी
मेरे देश के कर्णधारों को ,
सदबुद्धि कब आएगी

मदन  मोहन बाहेती 'घोटू'


हुस्न और जवानी

      हुस्न और जवानी

जब हो  जाता हुस्न जवां है
करता सबकी खुश्क  हवा है
लोग  बावरे  से हो  जाते ,
देख देख उसका  जलवा  है
सबकी नज़रें फिसला करती ,
देखा करती  कहाँ  कहाँ  है
कई तमन्नाएँ जग जाती ,
और भड़क जाते  अरमाँ है
जब सर पड़ती जिम्मेदारी ,
होते सारे ख्वाब हवा  है
 'घोटू'कोई तो  बतला दे ,
दर्दे दिल की कौन दवा  है

घोटू
 

शादी और घरवाली

                  शादी और घरवाली

 हर औरत का ,अपने  अपने ,घर में राज हुआ करता है
हर औरत का अपना अपना ,एक अंदाज हुआ करता है
कभी प्यार की बारिश करती,और कभी रूखी रहती  है
जब भी सजती और संवरती ,तारीफ़ की भूखी रहती है
उसका मूड बिगड़ कब जाए ,मुश्किल है यह बात जानना
यह होता  कर्तव्य पति का, पत्नी   की हर बात मानना
हम सगाई  में पहनाते है ,एक ऊँगली में एक अंगूठी
बाकी तीन उँगलियाँ उनकी,इसीलिये रहती है रूठी
जो शादी के बाद हमेशा ,बदला लेती है गिन गिन कर
अपने एक इशारे पर वो ,हमें नचाती है जीवन भर
जिन आँखों के लड़ जाने से ,हुआ हमारा दिल था पगला
शादी बाद लिया करती है ,उस लड़ाई का हमसे बदला
एक इशारा उन आँखों का ,हम से क्या क्या करवाता है
उनकी भृकुटी ,जब तन जाती,बेचारा पति घबराता है
शादी समय ,आँख के आगे ,जो सेहरा पहनाया जाता
नज़रे इधर उधर ना ताके ,ये प्रतिबन्ध लगाया जाता
उनके आगे किसी सुंदरी ,को जो देखें नज़र उठा कर
तो परिणाम भुगतना पड़ता ,है हमको अपने घर आकर
फिर भी कभी कभी गलती से ,यदि हो जाती ये नादानी
तो फिर समझो ,चार पांच दिन,बंद हो जाता हुक्का पानी
उनके साथ,सात ले फेरे, अग्नि कुण्ड के काटे चक्कर
उनके आगे पीछे हरदम ,घूमा करते बन घनचक्कर
प्रेम,मिलन की,और शादी  की,जितनी भी होती है रस्मे
कस निकालती है कस कस कर ,शादी में जो खाते कसमें
पत्नी से मत  करो बगावत,वरना खैर नहीं तुम्हारी
शादी करके,सांप छुछुंदर ,जैसी होती  गति हमारी
शादी है  बूरे  के लड्डू  ,सभी चाहतें है वो खायें
जिसने खाए वो पछताए ,जो ना खाए ,वो पछताए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2015

वाहन के टायर से

         वाहन  के टायर से
ओ मेरे वाहन के टायर
समयचक्र की तरह हमेशा ,
तीव्रगति से दौड़ा करते
सबको पीछे छोड़ा करते
मुझको तुम मेरी मंजिल तक पहुंचाते हो
किन्तु अकेले ,तुमकुछ भी ना कर पाते हो
तुम्हे हमेशा ,अपने जैसे ,
भाईबन्धु का साथ चाहिये
और वो भी दिनरात चाहिए
ध्येय तुम्हारा ,संग संग चलना
समगति से गंतव्य पहुंचना
जब तक तुममे सांस ,याने कि भरी हवा है
तब तक जीवन का जलवा है
कुछ भी चुभा तुम्हारे तन को,
तो मन खाली हो जाता है
थोड़ा भी ना चल पाता है
किन्तु प्यार की एक चिप्पी से ,
मिलता तुमको पुनर्जन्म है
और फिर से आ जाता दम है
दिखने में चाहे काले हो
भाईचारा किन्तु निभाने वाले,
साथी मतवाले  है
बरसों से उपकार कर रहे,
 तुम दुनिया पर
सबको अपनी अपनी,
 मंजिल तक पहुंचा कर  
मैं भी था पागल दीवाना
एक बार जब बीच राह में
कुपित हुए तुम,
कदर तुम्हारी करना मैंने तबसे जाना
तब ही है गुणगान बखाना
सबका सोच भिन्न होता है
मेरा हृदय खिन्न होता है
जब भी मुझको है यह दिखता
जब आराम कर रहे होते हो ,
तुम,तब ही कोई कुत्ता
पहले तुम्हे सूंघता और फिर,
अपनी एक टांग ऊंची कर ,
तुमको गीला कर जाता है
मुझको बड़ा क्रोध आता है
फिर लगता हूँ अपने मन को मैं समझाने
कुत्ता तो कुत्ता ही होता ,
कदर तुम्हारी वो क्या जाने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

पूजा,प्रसाद और कामनायेँ

         पूजा,प्रसाद और कामनायेँ 

मैंने प्रभु से पूछा कि तेरे मंदिर में  ,
        कितने भगत रोज आते ,परशाद चढ़ाते
बदले में कितनी ही मांगें रख देते है ,
        तब तुझको कैसा लगता  ,ये मुझे बतादे
प्रभु ने मेरी बात सुनी और हंस कर बोले ,
        ऐसा प्रश्न किया है ,उत्तर क्या दूँ तुझको
यही सोच कर कि मैं पत्थर की मूरत हूँ ,
       लोग हमेशा मुर्ख बनाते  रहते  मुझको
एक किलो का डब्बा लाते है लड्डू का ,
      उसमे से दो चढ़ा ,शेष खुद घर ले जाते
मिलता मुझे पचास ग्राम ही है मुश्किल से ,
      एक किलो का वो मुझ पर अहसान चढ़ाते
इस पर ये तुर्रा वो मुझसे आशा करते,
      उन पर क्विंटल ,दो क्विंटल,किरपा बरसा दूँ
सबने मुझको बिलकुल बुद्धू समझ रखा है ,
      बतलाओ, ऐसे भक्तों को , मैं क्या क्या दूँ 
अक्सर उनकी मुझसे मांग हुआ करती है,
      दे दे लम्बी उमर ,हमें  दीर्घायु   कर दे
मुझे चढ़ा कर ,पांच,सात या ग्यारह रूपये,
      करें वंदना ,मेरा घर ,दौलत से भर दे
कोई लड़की ,व्रत करती,पूजा करती है,
      क्योंकि उसे चाहिए अच्छा जीवन साथी 
अच्छा जीवन साथी उसे दिलाया तो फिर ,
     चंद दिनो मे ,बेटा दो  ,अरदास लगाती
बेटा दिया ,चाहती उसको पढ़ा लिखा कर,
      मोटी तनख्वाह वाली कोई नौकरी दे दूँ
और ढेर सा ,संग दहेज लाये जो अपने,
       बहू  रूप  में ,ऐसी कोई  छोकरी  दे  दूँ
उसके मनमाफिक जब उसको बहू दिलादूँ  ,
      तो कुछ दिन में,दादी बनूं ,कामना जगती
हर दिन जब भी करने आती दर्शन ,मंदिर,
      कुछ परसाद चढ़ा,कुछ ना कुछ माँगा करती
इच्छाओं का ,कभी कोई भी अंत नहीं है,
      हर एक मन में रहती कुछ इच्छा जाग्रत है
ये कर दे तो इतना तुझे चढ़ाऊंगा मैं ,
      तरह तरह के देते  मुझे  प्रलोभन  सब  है
हद तब होती , कुछ वो बहुए ,बड़े चाव से,
       जिन्हे मांग कर ,सासू ने थे सपने  पाले
कहती बुढ़िया सासू बहुत तंग करती है,
      भगवन उसको ,जल्दी अपने पास बुलाले
तरह तरह की रोज मुझे फरमाइश मिलती ,
       तरह तरह  के  लोग, टोटके, टोने  करते
कोई नंदी के कानो में कुछ कहता है,
       कोई चूहे  के  कानो में फुसफुस   करते
यही सोच कर कि ये तो है प्रभु के वाहन ,
       प्रभु तक पहुंचा देंगे ,उनकी सब फरियादें
मन में कितना लालच भरा हुआ है सबके ,
      और दिखने में ,सब  दिखते  है सीधे सादे
स्कूल के बच्चे है मुझको शीश नमाते ,
       पेपर  बिगड़ गया है, नंबर बढ़वा  देना
नेतागण ,करवाते यज्ञ ,याचना करते ,
       इस चुनाव में ,हमको सत्ता दिलवा देना
प्रेमी शीश नमाता ,करता यही  कामना,
       उसे प्रेमिका मिलवा उसका घर बसवा दूँ
जो होते बेकार नौकरी माँगा करते ,
       कई चाहते ,उनका अपना घर बनवा दूँ
तरह तरह के लोगों की कितनी ही मांगें ,
       मैं सबकी सुन लेता ,करता अपने  मन की
नहीं जानते,कर्म करो तब फल मिलता है ,
       सबसे बड़ी हक़ीक़त यह होती जीवन की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
  

श्वान और शंका

          श्वान और शंका
मैंने पूछा एक श्वान से ,श्वान महोदय ,
       ये देखा है ,जब भी तुम करते लघुशंका
करने को यह कार्य पसंद तुमको आता है,
      कोई कार का टायर या बिजली का खम्बा 
कहा श्वान ने,जो निचेष्ट पडी रहती है ,
      ऐसी चीजें ,मुझको बिल्कुल नहीं सुहाती
सदा खड़ा ही देखा करता हूँ मैं खम्बा,
      आता मुझको क्रोध, ,टांग मेरी उठ जाती 
और जहाँ तक बात कार के टायर की है,
      कुछ करने के पहले उसे सूंघता हूँ मैं
दिनभर चलकर थका ,अगर आराम कर रहा ,
      मुझे पसीने की खुशबू आती है उसमे
 उसे छोड़,जब मिलता टायर कोई,जिसने,
       कभी किसी भी ,भाई बहन को मेरे कुचला
उसको गीला कर देता मै मूत्रधार से ,
        इसी तरह बस ,ले लेता हूँ ,अपना  बदला
मुझ में भी है भरी भावना,भाईचारा ,
        जो भी मुझे पालता ,करता बहुत प्यार हूँ
मुझमे और तुम इंसानो में फर्क यही है ,
        मैं अपने मालिक संग रहता वफादार  हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

शादी और घरवाली

                   शादी और घरवाली

 हर औरत का ,अपने  अपने ,घर में राज हुआ करता है
हर औरत का अपना अपना ,एक अंदाज हुआ करता है
कभी प्यार की बारिश करती,और कभी रूखी रहती  है
जब भी सजती और संवरती ,तारीफ़ की भूखी रहती है
उसका मूड बिगड़ कब जाए ,मुश्किल है यह बात जानना
यह होता  कर्तव्य पति का, पत्नी   की हर बात मानना
हम सगाई  में पहनाते है ,एक ऊँगली में एक अंगूठी 
बाकी तीन उँगलियाँ उनकी,इसीलिये रहती है रूठी
जो शादी के बाद हमेशा ,बदला लेती है गिन गिन कर
अपने एक इशारे पर वो ,हमें नचाती है जीवन भर
शादी समय ,आँख के आगे ,जो सेहरा पहनाया जाता
नज़रे इधर उधर ना ताके ,ये प्रतिबन्ध लगाया जाता
उनके आगे किसी सुंदरी ,को जो देखें नज़र उठा कर
तो परिणाम भुगतना पड़ता ,है हमको अपने घर आकर
फिर भी कभी कभी गलती से ,यदि हो जाती ये नादानी
तो फिर समझो ,चार पांच दिन,बंद हो जाता हुक्का पानी
उनके साथ,सात ले फेरे, अग्नि कुण्ड के काटे चक्कर
उनके आगे पीछे हरदम ,घूमा करते बन घनचक्कर
प्रेम,मिलन की,और शादी  की,जितनी भी होती है रस्मे
कस निकालती है कस कस कर ,शादी में जो खाते कसमें
पत्नी से मत  करो बगावत,वरना खैर नहीं तुम्हारी
शादी करके,सांप छुछुंदर ,जैसी होती  गति हमारी 
शादी है  बूरे  के लड्डू  ,सभी चाहतें है वो खायें
जिसने खाए वो पछताए ,जो ना खाए ,वो पछताए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

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