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एक सन्देश-
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शनिवार, 31 मार्च 2012
मातृ ऋण
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
माता की सेवा कर,थोडा सा मातृऋण चुका रहा हूँ
माँ,जो बुढ़ापे के कारण,बीमार और मुरझाई है
उनके चेहरे पर संतुष्टि,मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है
मुझको तो बस अशक्त माँ को देवदर्शन करवाना है
न श्रवणकुमार बनना है,न दशरथ के बाण खाना है
और मै अपनी झोली ,माँ के आशीर्वादों से भरता जा रहा हूँ
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
संकल्प
बहुत कुछ दिया धरती माँ ने,
बदले में हम क्या देते है
बढ़ा रहे है सिर्फ प्रदूषण,
और कचरा फैला देते है
जग हो जगमग,स्वच्छ ,सुगन्धित,
एसे दीप जलाएं हम सब,
पर्यावरण सुधारेंगे हम,
ये संकल्प आज लेते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अच्छा और अहम् का सम्बन्ध ,
जब तुम ,
बहुत अच्छे हो जाते हो ,
तब स्वयं को एक नाजुक
मोड़ पर खड़े पाते हो ,
सच तो यह है ,
बहुत अच्छा हो जाने से ,
तुम पर जिम्मेदारियों का बोझ ,
और बढ जाता है ,
क्योंकि बड़ा आसान है ,
अच्छा बन जाना ,
और उतना ही दुरूह है
अपने अच्छेपन को निभाना ,
बहुत अच्छा हो जाना ,
स्वयं को आदर्श बना लेना ,
शायद एक दिन तुम्हारे भीतर के अहम् ,
जागृत कर दे ,
हो सकता है अहम् सच्चा हो ,
पर अहम् तो अहम् होता है ,
जो एक क्षण में तुम्हारे ,
आदर्शो की पराकाष्टा ,
के दुर्ग को नेस्तनाबूद कर दे ,
और तब अच्छा होने के सुख की अपेक्षा ,
एक भीषण पीड़ा ,
तुम्हारे हिस्से आएगी ,
अच्छा होना और अहम् का सम्बन्ध ,
आग और फूस का है ,
फूस तो तभी तक सुरक्षित है ,
जब तक आग से दूर है ,
इसलिए अपने अच्छेपन में ,
अहम् को मिलाने का प्रयास ,
कितना घातक है .
विनोद भगत
शुक्रवार, 30 मार्च 2012
सपने क्या हैं?
सपने खिलोने होते है,
थोड़ी सी देर खेल लो,
फिर टूट जाते हैं,आँखों के खुलने पर
सपने पीडायें है,
दबी घुटन है मन की,
प्रस्फुटित होती है,नींद के आने पर
सपने आशायें है ,
जो चित्रित होती है,
जब निश्छल और शांत,होते है तन और मन
सपने कुंठायें है,
जो पलती है मन में,
जब होती प्रतिस्पर्धा,या झगडा और जलन
सपने तो सेतु है,
बिछड़े हुए प्रेमियों का,
विरह की रातों में,मिलन का सहारा है
सपने,पुनर्वालोकन,
बिसरी हुई यादों का,
फिर से दोहराने का,चित्रपट निराला है
सपन तो मुसाफिर है,
आँखों की सराय में ,
केवल रात भर ही तो ,रुकने को आते है
सपने है बंजारे,
घुमक्कड़ है यायावर,
पल भर में दुनिया की,सैर करा लातें है
सपने तो दर्पण है,
जिसमे दिखलाता है,
अपना ही तो चेहरा,कल,आज और कल का
सपन संभावनायें है,
पूर्ण होगी निश्चित ही,
लगन और मेहनत से ,मूर्त रूप है कल का
सपने बेगाने है,
तब तक ही अपने है,
जब तक है बंद आँख,इन पर विश्वास करो
सपने अफ़साने है ,
अफ़साने ही रहते,
पर पूरे भी होते,सच्चा प्रयास करो
सपन कल्पनायें है,
उड़ा तुम्हे ले जाती,
सात आसमानों पर,बिना पंख लगवाये
यदि आगे बढ़ना है ,
तो सपने देखो तुम,
सपनो से मिलती है,जीवन में उर्जायें
यह न कहो की सपने,
तो केवल सपने है,
कब होते अपने है,यूं ही टूट जाते है
श्रोत प्रेरणाओं का,
सपने ही होते है,
प्रगति के सब रस्ते,सपने दिखलाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुरुवार, 29 मार्च 2012
हम बूढ़े हो गये हैं
हम बूढ़े हो गये हैं
---------------------
हम बूढ़े हो गये हैं,
अपना बुढ़ापा इस तरह काटते हैं
अब हम सभी को अपना प्यार बांटते है
राग,द्वेष सबसे पीड़ित थे,जब जवान थे
गर्व से तने रहते थे ,पर नादान थे
काम में व्यस्त रहते थे हरदम
बस एक ही धुन थी,खूब पैसा कमायें हम
भागते रहे, दोड़ते रहे
कितने ही अपनों का दिल तोड़ते रहे
न आगे देखा,न देखा पीछे
बस भागते रहे दौलत के पीछे
न दीन की खबर थी,न ईमान की
बस कमाई में ही अटकी जान थी
और मंजिल मिलती थी जब तलक
बढ़ जाती थी,अगली मंजिल पाने की ललक
फंस गये थे मृगतृष्णा में ऐसे
कि नज़र आते थे बस पैसे ही पैसे
बहुत क्लेश किये,बहुत एश किये
दौलत के लिए दिन रात एक किये
पर शरीर की उर्जा जब ठंडी पड़ने लगी
और जिंदगी,अंतिम पढाव की ओर बढ़ने लगी
जब सारा जोश गया,तब हमें होंश आया
माया के चक्कर में हमने क्या क्या गमाया
दोस्त छोटे,परिवार छूटा
अपनों का प्यार छूटा
और अब जब आने लगी है जीवन की शाम
ख़तम हो गया है सारा अभिमान
और हमें अब आया है ज्ञान
कि इतनी सब भागदौड़,
क्यों और किसके लिये करता है इंसान?
और अब हो गया है इच्छाओं का अंत
तन और मन ,दोनों हो गये हैं संत
सच्चाई पर चलने लग गये है
बुराइयों से डरने लग गये है
अब हम,दिमाग की नहीं,दिल की बात मानते है
हम बूढ़े हो गये है,अपना बुढ़ापा इस तरह काटते है
अब हम सभी को अपना प्यार बांटते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुधवार, 28 मार्च 2012
JAGO HINDU JAGO: आओ शहीद जवानों को श्रधांजली अर्पित करते हुए प्रण ...
रविवार, 25 मार्च 2012
करवटों का मज़ा
नींद ना आती किसी को ,ये सजा है
करवटों का,मगर अपना ही मज़ा है
एक तरफ करवट करो तो दिखे पत्नी,
पड़ी है चुपचाप कुछ बोले नहीं है
एक ये समय है वो मौन रहती,
शांत,शीतल,कोई फरमाईश नहीं है
इस तरह के क्षण बड़े ही प्रिय लगें है,
शांत रहती जब कतरनी सी जुबां है
अगर खर्राटे नहीं यदि भरे बीबी,
भला इतनी शांति मिलती ही कहाँ है
और दूजी ओर जो करवट करो तुम,
छोर दूजा खुला है,आजाद हो तुम
इस तरफ तुम पर नहीं प्रतिबन्ध कोई,
तुम्हारा जो मन करे,वैसा करो तुम
कभी सीधे लेट ,छत के गिनो मच्छर,
बांह में तकिया भरो,जी भर मज़ा लो
करवटों का फायदा एक और भी है,
करवटें ले,पीठ तुम अपनी खुजा लो
करवटें कुछ है विरह की,कुछ मिलन की,
है निराला स्वाद लेकिन करवटों में
करवटों का असर दिखता है सवेरे,
बिस्तरों की चादरों की,सलवटों में
करवटें तुम भी भरो और भरे पत्नी,
नींद दोनों को न आये,एक बिस्तर
जाएँ टकरा ,यूं ही दोनों,करवटों में,
मिलन की यह विधा होती,बड़ी सुख कर
अगर मच्छर कभी काटे,करवटें लो,
जायेंगे दो,चार ,मर,कमबख्त,दब कर
भार सारा इक तरफ ही क्यों सहे तन,
बोझ तन का,हर तरफ बांटो बराबर
नींद के आगोश में चुपचाप जाना,
भला इसमें भी कहीं आता मज़ा है
करवटों से पेट का भोजन पचेगा,
करवटों के लिए ही बिस्तर सजा है
नींद ना आती किसी को ये सजा है
करवटों का मगर अपना ही मजा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
'स्माईल प्लीज'
आपकी एक मुस्कान
जीत सकती है सारा जहान
बस,थोड़ी सी बांछें फैलाइये
और मुस्कराइये
आपकी स्माईल
जीत लेगी लोगों के दिल
गिले शिकवे सब मिट जायेंगे
दुश्मन भी दोस्त बन जायेंगे
क्योंकि मुस्कान
नहीं जानती रंग का भेद,
ना भाषा का ज्ञान
फिर भी दोस्ती करा देती है,
अंजानो को अपना बना देती है
बच्चों की मुस्कान निश्छल होती है,
सब का मन जीत लेती है
मासूम सी किलकारियां,
सभी का ध्यान अपनी और खींच लेती है
जवानी की मुस्कान चंचल होती है,
बिजलियाँ गिराती है
सभी के मन भाती है
कई बार इसे मुस्कराते मुस्कराते ही,
प्रीत हो जाती है
बुढ़ापे की मुस्कान,
पर अगर दो ध्यान,
तो थोड़ी सी बेबस और लाचार होती है
पर ढलती उमर में,
वक़्त गुजारने का,
सबसे बड़ा आधार होती है
इसीलिए जब भी हो कोई आसपास,
जिसको आप,नहीं जानते हो खास,
लिफ्ट में मिले या घूमने में,
उसे देख कर,हल्का सा मुस्कराइये
और अपना दोस्त बनाइये
क्योंकि मुस्कान है ही इसी चीज
इसलिये 'स्माईल प्लीज'
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 24 मार्च 2012
हमारा आज-तुम्हारा कल
-------------------------
ये न समझो ,यूं ही हमने ,काट दी अपनी उमर है
भीग करके ,बारिशों में,अनुभव की हुए तर है
आज तुम जिस जगह पर हो,क्या कभी तुमने विचारा
तुम्हारी इस प्रगति में,सहयोग है कितना हमारा
तुम्हारे सुख ,दुःख ,सभी पर,आज भी रखते नज़र है
हमारा मन मुदित होता,तुम्हे बढ़ता देख कर है
प्यार तुम से कल किया था,प्यार तुमसे आज भी है
देख तुम्हारी तरक्की,हमें तुम पर नाज़ भी है
हमें है ना गिला कोई,आ गया बदलाव तुम मे
बदलना नियम प्रकृति का,क्यों रखें हम क्षोभ मन में
भाग्य का लेखा सभी को,भुगतना है,ख्याल रखना
आज हम को जो खिलाते,पड़ेगा कल तुम्हे चखना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शुक्रवार, 23 मार्च 2012
किया इक तुरंती अगर टिप्पणी
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
परिवर्तन
तब घूंघट पट,लेते थे ढक,उनके सब घट
अब कपडे घट,करे उजागर,उनके घट घट
तब झुक कर,लेते थे मन हर,नयना चंचल
अब तकते है,इधर उधर वो हो उच्श्रंखल
मर्यादित थे,रहते बंध कर,उनके कुंतल
उड़ते रहते,आवारा से ,अब गालों पर
बाट जोहती थी तब आँखें,पिया मिलन की
मोबाईल पर,रखे खबर पति के क्षण क्षण की
पति पत्नी तब,मुख दिखलाते,प्रथम रात में
अब शादी के,पूर्व घूमते,साथ साथ में
पहले रिश्ता,पक्का करते,ब्राह्मण , नाई
अब तो इंटरनेट,चेट,फिर है शहनाई
पति कमाते थे,पत्नी,घरबार संभाले
अब पति पत्नी,दोनों बने,केरियर वाले
यह समता अच्छी ,पर इससे आई विषमता
बच्चे तरसे,पाने को ,माता की ममता
माता पिता ,रहे बच्चों संग,छुट्टी के दिन
प्रगति की गति,लायी है ,कितने परिवर्तन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुरुवार, 22 मार्च 2012
हथियार-बिना धार का
हथियार-बिना धार का
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जिसमे एक तरफ हत्था होता है,
एक तरफ धार होती है ,
वो तलवार होती है
गदा भी एक तरफ से ही पकड़ा जाता है
और दूसरी तरफ से मार लगाता है
सिर्फ एक ही हथियार एसा होता है,
जिसमे दोनों तरफ हत्था होता है
और दोनों तरफ से किया जा सकता है वार
जिधर से चाहो ,पकड़ लो,
कितना सुगम है ये हथियार
बाकी सारे हथियार
लडाई में ही काम आते है,
बाकी समय बेकार
मगर ये हथियार,जिसमे नहीं होती है धार,
युद्ध हो या शांति,
हमेशा काम करने को तैयार
दोनों हत्थों को,दबा कर घुमाओ
तो आटे की लोई भी,
गोल चपाती बन जाती है
इसके दबाब से,टूथपेस्ट की ट्यूब की,
आखरी बूँद भी निकल जाती है
वार भी करता है,उपकार भी करता है
हर आदमी इस हथियार से डरता है
और ये हथियार हर घर में पाया जाता है
औरतों के हाथों में सुहाता है
जी हाँ,ये दो हत्थों का हथियार बेलन कहलाता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बुधवार, 21 मार्च 2012
संबोधन के उदबोधन
समझ सका है क्या कोई ,
जीवन में बदले संबोधनों के साथ ,
पल पल बदलते जीवन के रहस्य ,
संबोधनों की भाषा को क्या पढ़ पाया कोई,
बदले संबोधन के साथ बढ़ता है जीवन ,
बेटा बेटी के संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
चाचा मामा , मौसी फूफा के नए संबोधनों के साथ ,
कब बदल गया औए समय आगे चला गया ,
नित नए संबोधन पुराने संबोधनों के साथ ,
आगे बढ़ता यह जीवन संबोधनों से थकता नहीं ,
स्मरण आते हैं पुराने सबोधन जो अब भी है ,
पर संबोधित करने वाले कहीं खो जाते हैं ,
नए संबोधनों का आकर्षण तो है ,
पर पुराने संबोधनों की तृष्णा मिटती नहीं कभी ,
संबोधन के मायाजाल में उलझा उलझा सा जीवन ,
सुलझाने की चेष्टा में और भी उलझा है ,
संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
संबोधन की यात्रा अनवरत चलती रहेगी ,
संबोधन के मायाजाल से शायद ही कभी ,
मुक्त हो पाए यह जीवन ,
संबोधन है ,
तभी यह जीवन है ,
यही है संबोधन की भाषा और उसका रहस्य
विनोद भगत
मंगलवार, 20 मार्च 2012
कंधमाल में हैं फंसे, इतालवी --
इटली से मेहमान, अगर फुफ्फू घर आये-
सोमवार, 19 मार्च 2012
अनुभूतियाँ
रोज सुबह सुबह,जब मै घूमने जाता हूँ,
कितने ही दृश्य देख कर,
तरह तरह की अनुभूतियाँ पाता हूँ
जब देखता हूँ कुछ मेहतर,
हाथों में झाड़ू लेकर,
सड़क को बुहारते हुए,सफाई करते है
तो मुझे याद आ जाते है वो नेता,
जिनका हम चुनाव करते है
स्वच्छ और साफ़ ,प्रशासन के लिए
मंहगाई और गरीबी को बुहारने के लिए
लेकिन वो देश की सम्पदा को बुहारकर
भर रहें है ,अपनी स्विस बेंक का लॉकर
मै देखता हूँ छोटे छोटे बच्चे,
अपने नाज़ुक से कन्धों पर,
ढेर सारा बोझा लटकाए
उनींदीं पलकें,अलसाये
तेजी से भागते है,
जब स्कूल की बस आती है
और साथ में उनकी माँ,
उनके मुंह में सेंडविच ठूंसती हुई,
उनके साथ साथ जाती है
मुझे इस दृश्य में,माँ की ममता,
और देश के भविष्य की ,
एक जिम्मेदार पीढ़ी पलती नज़र आती है
मुझे दिखती है एक महिला,
तीन तीन श्वानो को
एक साथ साधती हुई,घुमाती है
मुझे महाभारत कालीन,
एक साथ पांच पतियों को निभाती हुई,
द्रोपदी की याद आती है
मुझे नज़र आते है,
लाफिंग क्लब में,
ठहाका मार कर हँसते हुए कुछ लोग
मै सोचता हूँ,
इस कमरतोड़ मंहगाई ने,
जब सब के चेहरे से छीन ली है मुस्कान
हर आदमी है दुखी और परेशान
तो ये चंद लोग
क्यों करते है हंसने का ढोंग
फिर सोचता हूँ कि आज कि जिंदगी में,
जब सब कुछ ही फीका है
मन को बहलाने का ये अच्छा तरीका है
मै भी यही सोच कर मुस्कराता हूँ
जब मै रोज,सुबह सुबह घूमने जाता हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अखबार पढने का मज़ा ही कुछ और है
मैंने अपने मित्र से बोला यार
टी वी की कितनी ही चेनले,
चैन नहीं लेने देती,
दिन रात,बार बार,
सुनाती रहती है सारे समाचार
ख़बरें तो वो की वो ही होती है,
फिर तुम फ़ालतू में,
क्यों खरीदते हो अखबार
मित्र ने मुस्का कर
दिया ये उत्तर,
आप अपनी पत्नी को,
आते,जाते,पकाते,खिलाते,
दिन में देखते हो कितनी ही बार
मगर मेरे यार,
जिस तरह बीबी को बाँहों में लेकर,
नज़रे मिला कर ,
और उसकी खुशबू पाकर,
प्यार करने का मज़ा ही कुछ और है
वैसे ही सुबह सुबह,
सौंधी सौंधी खुशबू वाले अखबार को,
हाथों में लेकर और उस पर नज़रें गढ़ा कर,
उसके पन्ने पलटने,
और ध्यान से पढने का मज़ा ही कुछ और है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
खामोश चाहत
तुम्हें ,
कुछ इस तरह कि,
छूने का अहसास ,
भी होने पायें तुम्हें ,
क्योंकि , तुम मेरी खामोश चाहत का ,
मंदिर हो ,
मेरी चाहत का भूले से भी ,
अहसास ना करना ,
क्योंकि ये अहसास ,
तुम्हें चुभन और तड़पन देगा ,
और मैं तुम्हें तडपाना तो नहीं चाहता ,
मैं तो बस चाहते ही रहना ,
चाहता हूँ तुम्हें ,
तुम्हें अपनी चाहत का अहसास ,
दिलाये बिना ,
और मैंने अपनी इसी चाहत को ,
खामोश चाहत ,
का नाम दिया है .
विनोद भगत
रविवार, 18 मार्च 2012
जियो जील के जाल, टिप्पणी फिर से खोलो
हुवे समर्थक पाँच सौ, दिव्या दिव्य कमाल ।
शनिवार, 17 मार्च 2012
जीते जो तेदुलकर, जो मारे सो मीर -
मेरे भारत रत्न, नई खुशियाँ नित पाओ --
शुक्रवार, 16 मार्च 2012
सौवाँ शतक
सचिन,बधाई ढेरों तुमको,तुमने सौवाँ शतक लगाया
हम सब खेलप्रेमियों का था,जो सपना ,सच कर दिखलाया
बहुत दिनों से आस लगी थी,तुम शतकों का शतक लगाओ
करो नाम भारत का रोशन, एसा करतब कर दिखलाओ
सुबह प्रणव दादा ने हमको,मंहगाई का डोज़ पिलाया
सबका मुंह कड़वा कर डाला, एसा मुश्किल बजट सुनाया
मंहगाई से त्रस्त सभी को ,दिए बजट ने खारे आंसू
लेकिन तुमने शतक लगाके,खिला दिए जैसे सौ लड्डू
मुंह का स्वाद हो गया मीठा,भूल गए हम सब कडवापन
तुम्हारे इस महा शतक ने,जीत लिया है हम सबका मन
तुम क्रिकेट के 'महादेव' हो,तुम गौरव भारत माता के
सच्चे 'भारत रत्न'तुम्ही हो,देश धन्य तुम सा सुत पा के
सचिन ,बधाई तुमको ढेरों,तुमने सौवाँ शतक बनाया
हम सब खेलप्रेमियों का था,जो सपना,सच कर दिखलाया
मदन मोहन बहेती'घोटू'
गुरुवार, 15 मार्च 2012
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
ये न समझना की मै तुमसे डरता हूँ
मै तो तुमसे प्यार ढेर सा करता हूँ
बात मानता हूँ मै जब भी तुम्हारी
तुम होती हो मुदित,निखरती छवि प्यारी
वही विजय मुस्कान देखने चेहरे पर,
जो तुम कहती हो बस वो ही करता हूँ
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
तुम जो कुछ भी,कच्चा पका खिलाती हो
मै तारीफ़ करूं,तो तुम सुख पाती हो
'वह मज़ा आ गया'इसलिए कहता हूँ,
खिली तुम्हारी बाँछों पर मै मरता हूँ
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
कभी सामने आती जब तुम सज धज कर
और पूछती'लगती हूँ ना मै सुन्दर'
मै तुम्हारे गालों पर चुम्बन देकर,
तुम्हारा सौन्दर्य चोगुना करता हूँ
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुधवार, 14 मार्च 2012
फरमाईश
(बजट के पहले या बाद,महंगाई कितनी भी बढे,
एक चीज जिससे हर पति को रूबरू होना पड़ता है,
वो है पत्नी जी की फरमाईशे-ये ऐसी चीज है ,जिसपर
उम्र का कोई बंधन नहीं-नीचे लिखी कविता शायद
आप में से कुछ समझदार बीबियों के पतियों को,
इस फरमाईश की बिमारी से निजात दिलवा दे,
तो अपने इस छोटे से प्रयास को सफल मानूंगा )
फरमाइश
तुमने जब जब भी पहने
सुंदर कपडे ,सुंदर गहने
और सझधज कर तैयार हुई
तुम खिलती हुई बहार हुई
देखा करते श्रृंगार तुम्हे
मन मचला करने प्यार तुम्हे
मैं लेकर तुमको बाँहों में
उड़ चला प्यार की राहों में
जब मन में था तूफ़ान उठा
तो तन का सब श्रंगार हटा
ना वस्त्र रहे तन पर पहने
बिखरे सब इधर उधर गहने
फैला काजल, फैली लाली
बिखरी सब जुल्फे मतवाली
जिनने कि मुझे लुभाया था
कुछ करने को उकसाया था
जब बात प्यार की आती है
सारी चीजे हट जाती है
तन की नेसर्गिक सुन्दरता
पाकर ही है ये मन भरता
तो क्यों गहनों की ख्वाहिश है
और कपड़ो की फरमाइश है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू
मंगलवार, 13 मार्च 2012
राज-पत्नी के 'ना'ना'कहने का
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मैंने पत्नीजी से पूछा,एक बात मुझको बतलाना
मै तुमसे जब भी कुछ कहता,तुम बस कहती हो 'ना'ना'ना
और फिर 'ना'ना' कहते कहते,बातें सभी मान लेती हो
मेरी हर एक चाह,मांग में,तुम सहयोग पूर्ण देती हो
अक्सर लोग कहा करते है,सबके संग एसा होता है
औरत जब भी' ना 'करती है,उसका मतलब'हाँ'होता है
पत्नीजी बोली यूं हंस कर,तुम कितने भोले हो सजना
मुझको भी अच्छा लगता है,तुम्हे रिझाना,और संवरना
तुम्हे सताना,तुम्हे मनाना,और तुम्हारे खातिर सजना
मुझे सुहाता,मन को भाता,संग तुम्हारे,सोना,जगना
अच्छा खाना,पका खिलाना,लटके,झटके ,सब दिखलाना
मीठी मीठी बात बनाना,और दीवाना,तुम्हे बनाना
मेरी चाहत की सब चीजे,अच्छा खाना और पहनना
गाना और बतियाना,या फिर सोने का सुन्दर सा गहना
इन सब में भी तो होती 'ना',इसीलिए मै कहती 'ना'ना'
समझदार को सिर्फ इशारा ही काफी है,समझ गये ना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 12 मार्च 2012
सुनो भागवत है क्या कहती
संबल बन सकती है- शुभकामनाओं सहित-'घोटू')
मुझे दिला दो,स्वर्णाभूषण,तुम हरदम जिद करती रहती
सुनो ,भागवत है क्या कहती
कलयुग आया था धरती पर,बैठ परीक्षित स्वर्ण मुकुट पर
उसको ये वरदान प्राप्त है, उसका वास, स्वर्ण के अन्दर
और तुम पीछे पड़ी हुई हो, तुमको स्वर्णाभूषण लादूं
पागल हूँ क्या,जो कलयुग को,गले तुम्हारे से लिपटा दूं
और यूं भी सोना मंहगा है,दाम चढ़ें है आसमान पर
गहनों की क्या जरुरत तुमको,तुम खुद ही हो इतनी सुन्दर
सोने का ही चाव अगर है,हम तुम साथ साथ सो लेगे
स्वर्ण हार ना,बाहुपाश का,हार तुम्हे हम पहना देंगे
पर मै इतना मूर्ख नहीं जो ,घर में कलयुग आने दूंगा
स्वर्ण तुम्हे ना दिलवाऊंगा,ना ही तुमको लाने दूंगा
प्यार तुम्हारा,सच्चा गहना, तुम हो मेरे दिल में रहती
सुनो भागवत है क्या कहती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रविवार, 11 मार्च 2012
दिल्ली -वाणी
गया मौसम चुनावों का,सर्दियाँ हो गयी कम है
कट गया माया का पत्ता, हुई सत्ता मुलायम है
चैन की ली सांस सबने,लोग थोडा मुस्कराये
फाग आया,जिंदगी में,रंग होली ने लगाये
देख लोगों को विहँसता, केंद्र से आवाज़ आई
पांच रूपया ,पेट्रोल के ,दाम बढ़ने को है भाई
झेल भी लोगे इसे तुम,भूल कर के मुस्कराना
याद रखना ,पांच दिन में,बजट भी है हमें लाना
बोझ मंहगाई का इतना,हम सभी पर लाद देंगे
किया तुमने दुखी हमको,दुखी हम तुमको करेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 10 मार्च 2012
चुनावी चर्चा होली
मस्त गए दिन चार, चुनावी चर्चा होली
शुक्रवार, 9 मार्च 2012
आओ हम होली मनाये
मेट कर मन की कलुषता,प्यार की गंगा बहाये
आओ हम होली मनाये
अहम् का जब हिरनकश्यप,प्रबल हो उत्पात करता
सत्य का प्रहलाद उसकी कोशिशों से नहीं मरता
और ईर्ष्या, होलिका सी,गोद में प्रहलाद लेकर
चाहती उसको जलाना,मगर जाती है स्वयं जल
शाश्वत सच ,ये कथा है,सत्य कल थी,आज भी है
लाख कोशिश असुर कर ले,जीतता प्रहलाद ही है
सत्य की इस जीत की आल्हाद को ऐसे मनाये
द्वेष सारा,क्लेश सारा, होलिका में हम जलायें
भीग जायें, तर बतर हो ,रंग में अनुराग के हम
मस्तियों में डूब जाये, गीत गायें ,फाग के हम
प्यार की फसलें उगा,नव अन्न को हम भून खायें
हाथ में गुलाल लेकर ,एक दूजे को लगायें
गले मिल कर,हँसे खिलकर,ख़ुशी के हम गीत गाये
आओ हम होली मनाये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुरुवार, 8 मार्च 2012
Re: चुनाव के बाद - नारी दिवस
चुनाव के बाद
तुम संग कैसे खेले होली
तुम हो नार बड़ी बडबोली
नारी दिवस पर दुखिया नारी
मायावती बहन बेचारी
अब तक बहुत करी बरजोरी
जनता ऐसी बांह मरोरी
हार चुनाव,कट गया पत्ता
और हाथ से छूटी सत्ता
दुखी दूसरी नार सोनिया
बेटे हित सपने थे क्या क्या
सपने सारे टूट गए पर
सारी मेहनत रही बेअसर
भ्रष्टाचार,नकारी ,जनता
दोष संगठन का भी बनता
और तीसरी उमा भारती
बी जे पी भी गयी हारती
उसका जादू काम न आया
खिला कमल ना,पर कुम्हलाया
साईकिल ने पेडल मारे
हाथी,हाथ,कमल सब हारे
तीनो नार आज बेबस है
भले नारी का आज दिवस है
कोई नहीं आज हमजोली
जनता खेली ऐसी होली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस..'
बुधवार, 7 मार्च 2012
नारी दिवस और होली-8 th march
आज नारी दिवस भी है,
होलिका त्योंहार भी है
पर्व कल था जो दहन का
आस्थाओं के दमन का
कुटिलता के नाश का दिन
भक्ति के विश्वास का दिन
शक्ति के उस परिक्षण में
जीत भी है ,हार भी है
आज नारी दिवस भी है,
होलिका त्योंहार भी है
आग भी है, फाग भी है
जलन है अनुराग भी है
दाह भी है, डाह भी है
चाह भी है, आह भी है
अजब है संयोग देखो,
प्यार है,प्रतिकार भी है
आज नारी दिवस भी है,
होलिका त्योंहार भी है
आज उत्सव है मदन का
पर्व है ये मधु मिलन का
प्रीत का,मनमीत का दिन
मचलते संगीत का दिन
आज रंगों में बरसता,
प्यार है,मनुहार भी है
आज नारी दिवस भी है,
होलिका त्योंहार भी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चुनाव का चक्कर-जनता का उत्तर
चुनाव का चक्कर-जनता का उत्तर
१
पांच साल से हो रहा,था 'हाथी' मदमस्त
दो पहियों की 'सायकिल',उसे कर गयी पस्त
उसे कर गयी पस्त,'कमल' भी है कुम्हलाया
गाँव गाँव में हिला 'हाथ',पर काम न आया
कह घोटू कवि,अब सत्ता हो गयी 'मुलायम'
ख़तम हो गया,'माया' की माया का सब भ्रम
२
बहुजन हो या सर्वजन,कुछ भी दे दो नाम
चाल समझती है सभी,मूरख नहीं अवाम
मूरख नहीं अवाम,परख है बुरे भले की
सारा भ्रष्टाचार, बन गया फांस गले की
सत्ता के मद में माया इतनी पगलायी
खुद के पुतले बना,बन गयी पुतली बाई
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंगलवार, 6 मार्च 2012
मै,तुम और चटपटी जिंदगी
मै,तुम और चटपटी जिंदगी
-------------------------------
मै किचन में काम करती,
सजन तुम मन में बसे हो
रसमलाई सी मधुर मै,
चाट से तुम चटपटे हो
मै स्लिम काजू की कतली,
और मोतीचूर हो तुम
मै जलेबी रसभरी और,
प्रेम रस भरपूर हो तुम
मै पूरी की तरह फूली,
तुम पंराठे से हो केवल
मै हूँ बिरयानी सुहानी,
दो मिनिट के तुम हो नूडल
आलू की टिक्की महकती,
मै हूँ,तुम हो गोलगप्पे
मै करारी सी कचोरी,
तुम तिकोने से समोसे
तुम हो कटहल से कटीले,
और मै लौकी लजीली
तुम हो चमचे,मै छुरी हूँ,
तुम तवा हो मै पतीली
तुम कडाही की तरह हो,
और मै प्रेशर कुकर हूँ
गेस का चूल्हा सजन तुम,
और मै तो लाइटर हूँ
बाटियों सी स्वाद हूँ मै ,
और तड़का दाल हो तुम
मै सजी थाली परोसी,
और टपकती लार हो तुम
मै हूँ धनिया तुम पुदीना,
बनी चटनी जिंदगी है
प्यार झगडे के मसाले,
इसलिए ये चटपटी है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सोना बाथ और स्टीम बाथ
--------------------------------
सोनी,तेरी सुन्दरता ने,मुझको इतना उष्ण किया है
एसा लगता गरम कक्ष में,मैंने 'सोना बाथ 'लिया है
सर्दी में तेरे होठों ने,मुंह से ऐसी भाप निकाली,
मेरे अलसाये होठों को,जैसे 'स्टीम बाथ' दिया हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
होली,तपभंग और पाउडर
१
तप से विश्वामित्र से,हुए इंद्र जब तंग
उनने भेजी मेनका,करने को तप भंग
करने को तपभंग,रूप का जाल बिछाया
था ऋतुराज बसंत,पर्व होली का आया
कह घोटू कवि चली मेनका भर पिचकारी
विश्वामित्र मुनिजी की सूरत रंग डाली
२
ज्ञानी विश्वामित्र पर,बरसी रंग फुहार
उनको गुस्सा आ गया,देखा जब निज हाल
देखा जब निज हाल,उठे वो जल्दी जल्दी
ले धूनी से राख,मेनका मुख पर मल दी
पा नारी स्पर्श गये तप भूल मुनिवर
खेली होली खूब मेनका के संग जी भर
३
उस दिन होली खेल कर,मन में भरे हुलास
ख़ुशी ख़ुशी जब मेनका,पहुंची दर्पण पास
पहुंची दर्पण पास,रूप जब अपना देखा
उजला उजला लगा रंग अपने चेहरे का
ले धूनी से राख, रोज़ वो मुंह उजलाती
शुरू पाउडर का प्रचलन है तबसे साथी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सोमवार, 5 मार्च 2012
परिवर्तन
जब जब मौसम बदला करता,सब में परिवर्तन आता है
लोग वही है,वो ही रिश्ते ,पर व्यवहार बदल जाता है
हवा वही है,सर्दी में जो,ठिठुराती थी सारे तन को
वो ही गर्मी में लू बन कर,जला रही सम्पूर्ण बदन को
वो ही धूप,भली लगती थी,जो सर्दी में बहुत सुहाती
गर्मी में वो ही चुभती है,जब अंग लगती,बदन जलाती
पानी वही जिसे छूने से,सर्दी में होती थी ठिठुरन
अब गर्मी में,उस पानी में,भीग तैरने को करता मन
अधिक ताप में भाप,बरफ बन जमता,होती अधिक शीत है
सूरत,सीरत,नाम बदलती,इस मौसम की यही रीत है
लोग वही पर पैसा पाकर,उनका नाम बदल जाता है
पहले था 'परस्या'फिर 'परसु','परसराम' फिर कहलाता है
होते है माँ बाप वही जो,बचपन में थे सबसे अच्छे
उन्हें बुढ़ापा जब आ जाता,तो ठुकरा देते है बच्चे
ऑंखें वही,अगर दुःख होता,जार जार आंसू ढलकाती
मगर ख़ुशी जब अतिशय होती,तो भी पानी से भर जाती
इसमें दोष नहीं कोई का,परिवर्तन नियम जीवन का
है ऋतू चक्र ,बदलता रहता,है अक्सर मिजाज़ मौसम का
चेहरा वही,कभी मुस्काता,तो अवसाद कभी छाता है
जब जब मौसम बदला करता ,सब में परिवर्तन आता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रविवार, 4 मार्च 2012
पुत्र-पिता पति साथ
बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती
अबकी होली
कई रंग से खेली होली
और उमंग से खेली होली
याद रहेगी वो होली जब,
तीन ढंग से खेली होली
सुबह उठा बीबीजी बोली,सुनो दर्द है मेरे सर में
वैसे आज तुम्हे छुट्टी है,दिन भर रहना ही है घर में
देखो मुझको नींद आ रही,सुबह हो गयी तो होने दो
प्लीज बुरा तुम नहीं मानना,थोड़ी देर और सोने दो
सच डीयर कितने प्यारे हो,अच्छा सोने दो ना जाओ
सच्चा प्यार तभी जानू जब ब्रेकफास्ट तुम बना खिलाओ
कह उनने तो करवट बदली,नींद हमारी टूट चुकी थी
काफी दिन भी चढ़ आया था,बड़ी जोर की भूख लगी थी
फिर उनकी प्यारी बातों ने,जोश दिया था कुछ एसा भर
हम भी कुछ कर दिखला ही दें,सोच घुसे चौके के अन्दर
कौन जगह क्या चीज रखी है,इसकी हम को खबर नहीं थी
उचका पैर ढूंढते चीनी,आसपास कुछ नज़र नहीं थी
रखा एक डिब्बा गलती से,गिरी मसालेदानी हम पर
पहली होली उसने खेली,कई रंगों से दिया हमें भर
लाल रंग की पीसी मिर्च थी,और हरे रंग का था धनिया
पीला रंग डाला हल्दी ने, बना अजीब हमारा हुलिया
काला काला गरम मसाला,राई,जीरा अजब रंग थे
हर रंग की अपनी खुशबू थी,मगर मिर्च से हुए तंग थे
छींक छींक हालत खराब थी ,आँखों में थी मिर्च घुल गयी
दुःख तो ये है,छींके सुन कर ,बीबीजी की नींद खुल गयी
उठ आई तो देखा हमको,शक्लो सूरत रंग भरी थी
मै गुस्से में था लेकिन वो मारे हंसी हुई दोहरी थी
देख हमारी हालत उनको,प्यार या दया ऐसी आयी
हमें दूसरी होली उनने,अपने रंगों से खिलवायी
काली काली सी जुल्फें थी,रंग गुलाबी सा चेहरा था
हरा भरा था उनका आँचल ,लाल होंठ का रंग गहरा था
पहली होली भूल गए हम,रंग दूसरी का जब आया
लेकिन इसी समय दरवाजा,आकर यारों ने खटकाया
और तीसरी होली हमने खेली मित्रों की टोली से
बड़ी देर तक धूम मचाई,रंग गुलाल भरी झोली से
पहली थी कुछ तीखी होली
दूजी प्यारी पिय की होली
और तीसरी नीकी होली
सच अबके ही सीखी होली
तीन ढंग से खेली होली
और उमंग से खेली होली
याद रहेगी वो होली जब,
तीन ढंग से खेली होली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आओ होली मनाएं
आओ होली मनाएं
पहले दिन
पुरानी वेमनस्यतायें
दुर्भावनाएं ,कटुता,और
बैरभाव की होली जलाएं
और दूसरे दिन
सदभावनाओं की गुलाल
भाईचारे का अबीर
और प्रेम के रंगों से
मिलजुल कर होली मनाएं
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब मुँह पर खिला बसन्त --
जब मुँह पर खिला बसन्त --
यह भी देखिये
ताकें गोरी छोरियां--
मै कवि हूँ
धूप के संग छाँव को भी,जन्म देता वो रवि हूँ
मै कवि हूँ
कल्पना के समंदर में सिर्फ ना गोते लगाता
बल्कि जा गहराइयों में,सीप मोती ढूंढ लाता
कलकलाती नदियों का,रूप ना केवल निहारा
बल्कि देखा बाढ़ में उनका विनाशक रूप सारा
फूल फल से लदे देखे वृक्ष जब अनुकूल मौसम
वहीँ देखा हुआ पतझड़,जब हुआ प्रतिकूल मौसम
तान सीना,वृक्ष देखे,वनों में ऊंचे खड़े थे
वक़्त का आया बुलावा,कट गए वो गिर पड़े थे
और देखी उन वनों में, उठ रही अट्टालिकाएं
प्रकृति का संहार करके,प्रगति की सारी विधाये
प्रात का कोमल अरुण और दोपहर का सूर्य तपता
चाँद,जो ले क़र्ज़ रवि से,रात को जगमग चमकता
नहीं केवल मिलन का सुख,जुदाई की पीर देखी
वक़्त के संग जमाने की बदलती तस्वीर देखी
जिन्होंने जीवन दिया , वो प्रताड़े माँ बाप देखे
दृश्य कितने ही करुण,आंसू भरे, चुपचाप देखे
इन्ही दृश्यों और जीवन की सभी संवेदनाये
को पिरोया शब्द में जब ,बन गयी वो कवितायेँ
मोम जैसा कभी पिघला,बना भी पाषण हूँ मै
बहुत गहरी चुभन देता,शब्द का वो बाण हूँ मै
प्यार का मादक सपन हूँ,और मिलन का गीत हूँ मै
युद्ध रणभेरी बजाता,हार भी हूँ जीत हूँ मै
समय के खाकर थपेड़े ,बन गया अब अनुभवी हूँ
मै कवि हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 3 मार्च 2012
सर्दी से अब तलक, गया जो नहीं नहाने
तीन समाचार
आज तुम ना नहीं करना
जायेगा दिल टूट वरना
तुम सजी अभिसारिका सी,दे रही मुझको निमंत्रण
देख कर ये रूप मोहक, नहीं अब मन पर नियंत्रण
खोल घूंघट पट खड़ी हो,सजी अमृतघट सवांरे
जाल डोरों का गुलाबी ,नयन में पसरा तुम्हारे
आज आकुल और व्याकुल, बावरा है मन मिलन को
हो रहा है तन तरंगित,चैन ना बेचैन मन को
प्यार की उमड़ी नदी में,आ गया सैलाब सा है
आज दावानल धधकता,जल रहा तन आग सा है
आज सागर से मिलन को,सरिता बेकल हुई है
तोड़ सब तटबंध देगी, कामना पागल हुई है
और आदत है तुम्हारी,चाह कर भी, ना करोगी
बांह में जब बाँध लूँगा,समर्पण सम्पूर्ण दोगी
चाहता मै भी पिघलना,चाहती तुम भी पिघलना
टूट मर्यादा न जाये, बड़ा मुश्किल है संभलना
व्यर्थ में जाने न दूंगा,तुम्हारा सजना ,संवारना
केश सज्जा का तुम्हारी ,आज तो तय है बिखरना
आज तुम ना नहीं करना
जायेगा दिल टूट वरना
मदन मोहन बहेती'घोटू'
मुक्तक
मुक्तक
--------
१
क्या भरोसा जिन्दगी की,सुबह का या शाम का
आज जो हो,शुक्रिया दो,उस खुदा के नाम का
गर्व से फूलो नहीं और ये कभी भूलो नहीं,
अंत क्या था गदाफी का,हश्र क्या सद्दाम का
२
नहीं सौ फ़ीसदी खालिस,इस सदी में कोई है
धन कमाने की ललक में,शांति सबकी खोई है
बीज भ्रष्टाचार के,इतने पड़े है है खेत में,
काटने वो ही मिलेगी,फसल जो भी बोई है
३
है बहुत सी कामनाएं,काम ही बस काम है
ना जरा भी चैन मन में,और नहीं आराम है
आप जब से मिल गए हो,एसा है लगने लगा,
जिंदगी एक खूबसूरत सी बला का नाम है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
शुक्रवार, 2 मार्च 2012
श्रृंगार
सपना था उसका कुछ बनना |
पर उस अग्नि की वेदी में ,
इक दिन उसको भी पड़ा जलना |
सोचती रह गयी बस वो,
सोचा था उसने जो,
क्या कर पायेगी उसे अब पूरा ?
उसकी इच्छाएं ,उसके सपने,सब कुछ रह गया अधूरा |
उसको अपना ये श्रृंगार,लगने लगा था अपनी हार |
नए जीवन में हो रहा था प्रवेश
वो खनखनाहट नहीं थी उसकी चूड़ियों की,
बल्कि आवाज थी उसकी मजबूरियों की |
ये बेड़ियाँ समाज की ,
पायल बन के बंध चुकी थी पैरों में ,
अपनी की सिर्फ यादों को लेकर जा रही थी वो गैरों में |
बिंदिया ,सिदूर और काजल ,
मंडरा रहे थे उसकी उम्मीदों पर बन के बादल |
सोच के गहरे समुद्र में डूबती जा रही थी वो ,
कुछ और ही चाहा था उसने कुछ और ही पा रही थी वो |
अपने ही श्रृंगार में स्वयं ही दबती जा रही थी वो ,
कुछ और ही माँगा था उसने कुछ और ही पा रही थी वो |
ससुराल-मिठाई की दूकान
------------------------------
सालियाँ,नमकीन सुन्दर,और साला चरपरा
टेड़ी सलहज जलेबी सी,मगर उसमे रसभरा
सास रसगुल्ला रसीली,कभी चमचम रसभरी
काजू कतली उनकी बेटी,मेरी बीबी छरहरी
और लड्डू से लुढ़कते, ससुर मोतीचूर हैं
हर एक बूंदी रसभरी है,प्यार से भरपूर है
गुंझिया सा गुथा यह परिवार रस की खान है
ये मेरा ससुराल या मिठाई की दूकान है
(होली की शुभकामनाये)
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
स्वप्नों की मंडी
गुरुवार, 1 मार्च 2012
खेलो होली
होली आई रे
आगे पढ़ने के लिए नीचे के लिंक पर जाइये /और अपने सन्देश जरुर दीजिये /आभार /
http://prernaargal.blogspot.in/2012/02/happy-holi.html
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जियो सेट टॉप बॉक्स - महा बकवास - जियो फ़ाइबर सेवा धुंआधार है, और जब से इसे लगवाया है, लाइफ़ है झिंगालाला. आज तक कभी ब्रेकडाउन नहीं हुआ, बंद नहीं हुआ और स्पीड भी चकाचक. ऊपर से लंबे समय से...4 वर्ष पहले
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परमेश्वर - प्रार्थना के दौरान वह मुझसे मिला उसे मुझसे प्रेम हुआ उसकी मैली कमीज के दो बटन टूटे थे टिका दिया उसने अपना सर मेरे कंधे पर वह युद्ध में हारा सैनिक था शायद!...4 वर्ष पहले
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Aakhir kab ? आखिर कब ? - * आखिर कब ? आखिर क्यों आखिर कबतक यूँ बेआबरू होती रहेंगी बेटीयाँ आखिर कबतक हवाला देंगे हम उनके पहनावे का उनकी आजादी का उनकी नासमझी और समझदारी का क्यों ...5 वर्ष पहले
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तुम्हारा स्वागत है - 1 तुम कहती हो " जीना है मुझे " मैं कहती हूँ ………… क्यों ? आखिर क्यों आना चाहती हो दुनिया में ? क्या मिलेगा तुम्हे जीकर ? बचपन से ही बेटी होने के दंश ...5 वर्ष पहले
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ना काहू से दोस्ती .... - *पुलिस और वकील एक ही परिवार के दो सदस्य से होते हैं, दोनों के लक्ष समाज को क़ानून सम्मत नियंत्रित करने के होते हैं, पर दिल्ली में जो हुआ या हो रहा है उस...5 वर्ष पहले
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Kritidev to Unicode Converter - [image: Real Time Font Converter] DL-Manel-bold. (ã t,a udfk,a fnda,aâ) Unicode (යුනිකෝඩ්) ------------------------------ © 2011 Language Technology R...5 वर्ष पहले
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जल्दी आना ओ चाँद गगन के ..... - *करवा चौथ* *मैं यह व्रत करती हूँ* * अपनी ख़ुशी से बिना किसी पूर्वाग्रह के करती हूँ अपनी इच्छा से अन्न जल त्याग क्योंकि मेरे लिए यह रिश्ता .... इनसे भी ज़...5 वर्ष पहले
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इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...5 वर्ष पहले
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राजू उठ ... चल दौड़ लगाने चल - राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल पानी गरम कर दिया है दूध गरम हो रहा है राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल दूर नहीं अब मंजिल पास खड़े हैं सपने इक दौड़ लगा कर जीत...5 वर्ष पहले
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काया - काया महकाई सतत, लेकिन हृदय मलीन। चहकाई वाणी विकट, प्राणी बुद्धिविहीन। प्राणी बुद्धिविहीन, भरी है हीन भावना। खिसकी जाय जमीन, न करता किन्तु सामना। पाकर उच्चस्...5 वर्ष पहले
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कविता और कुछ नहीं... - कविताएं और कुछ नहीं आँसू हैं लिखे हुए.... खुशी की आँच कि दुखों के ताप के अतिरेक से पोषित लयबद्ध हुए... #कविताक्याहै5 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes atau dompo - *cara mengobati herpes atau dompo* - Kita harus mengetahui apa Gejala Penyakit Herpes Dan Pengobatannya, agar ketika kita terjangkiti penyakit herpes, kit...5 वर्ष पहले
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तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात - तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी .. तुमसे मिलने के बाद पर समय को किसने थामा है आज तक हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर बहुत दूर चलने के लिए पर रस्ते ...5 वर्ष पहले
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अरे अरे अरे - आ गईं तुम आना ही था तुम्हे देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था, आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी। वह भीगी हुई चने की दाल और हरी मिर्च जो तोते के लिये...5 वर्ष पहले
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यह विदाई है या स्वागत...? - एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है | अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं पह...5 वर्ष पहले
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मन के अंदर चल रहा निरंतर संघर्ष कठिन यह मानव के ... - इच्छाओं के चक्रवात से निरंतर जूझ रहा यह मानव मन उड़ जाता है अशक्त आत्मबलरहित तिनके के माफिक। इधर उधर बेचैन कहीं भी, बिना छोर और बिना ठिकाना दरबदर भटकता व्...6 वर्ष पहले
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BIJASAN DEVI - विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय - [image: Navratri 2018: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय] *मध्यप्रदेश बिजासन देवी धाम को आज कौन नहीं जानता। कई लोगों की कुलदेव...6 वर्ष पहले
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पापा तुम क्यों चले गए ? - पापा ……………………………….. तुम्हारी साँसों में धडकन सी थी मैं , जीवन की गहराई में बचपन सी थी मैं । तुम्हारे हर शब्द का अर्थ मैं , तुम्हारे बिना व्यर्थ मैं , ...6 वर्ष पहले
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कविता- " इक लड़की" 8 मार्च- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर - *इक लड़की* *मुस्कराहट, * *उसकी आँखों से उतर;* *ओठों को दस्तक देती;* *कानों तक फ़ैल गई थी.* *जो* *उसकी सच्चाई की जीत थी. * *और * *उसकी उपलब्धि से आई थी.* *वो ...6 वर्ष पहले
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मेरी कविता - जीवन - *जीवन* *चित्र - google.com* *जीवन* * तुम हो एक अबूझ पहेली, न जाने फिर भी क्यों लगता है तुम्हे बूझ ही लूंगी. पर जितना तुम्हे हल करने की कोशिश कर...7 वर्ष पहले
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“ रे मन ” - *रूह की मृगतृष्णा में* *सन्यासी सा महकता है मन* *देह की आतुरता में* *बिना वजह भटकता है मन* *प्रेम के दो सोपानों में* *युग के सांस लेता है मन* *जीवन के ...7 वर्ष पहले
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मन का टुकड़ा मनका बनाकर - मन का टुकड़ा मनका बनाकर मनबसिया का ध्यान करूं | प्रेम की राह बहुत ही जटिल है ; चल- चल कर आसान करूं | (१५ जुलाई २०१७, रात्रि )7 वर्ष पहले
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ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है? - जात-पात न धर्म देखा, बस देखा इंसान औ कर बैठी प्यारछुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकारहाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपातनाम डुबो दिया,...7 वर्ष पहले
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हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...3 - गत अंक से आगे.....हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रारम्भिक दौर बहुत ही रचनात्मक था. इस दौर में जो भी ब्लॉगर ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह इस माध्यम के प्रति ...7 वर्ष पहले
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प्रेम करती हूँ तुमसे - यमुना किनारे उस रात मेरे हाँथ की लकीरों में एक स्वप्न दबाया था ना उस क्षण की मधुस्मृतियाँ तन को गुदगुदाती है उस मनभावन रुत में धडकनों का मृदंग बज उ...7 वर्ष पहले
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गाँधी जी...... - गाँधी जी...... --------- चौराहॆ पर खड़ी,गाँधी जी की प्रतिमा सॆ,हमनें प्रश्न किया, बापू जी दॆश कॊ आज़ादी दिला कर, आपनॆं क्या पा लिया, बापू आपके सारॆ कॆ सारॆ सि...7 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...8 वर्ष पहले
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आप अदालत हैं - अपना मानते हैं जिन्हें वही नहीं देते अपनत्व। पक्षपात करते हैं सदैव वे पुत्री के आँसुओं का स्वर सुन। नहीं जाना उन्होंने मेरी कटुता को न ही मेरी दृष्टि में बन...8 वर्ष पहले
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फिर अंधेरों से क्यों डरें! - प्रदीप है नित कर्म पथ पर फिर अंधेरों से क्यों डरें! हम हैं जिसने अंधेरे का काफिला रोका सदा, राह चलते आपदा का जलजला रोका सदा, जब जुगत करते रहे हम दीप-बा...8 वर्ष पहले
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चलो नया एक रंग लगाएँ - लाल गुलाबी नीले पीले, रंगों से तो खेल चुके हैं, इस होली नव पुष्प खिलाएँ, चलो नया एक रंग लगाएँ । मानवता की छाप हो जिसमे, स्नेह सरस से सना हो जो, ऐसी होली खू...8 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
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विचार शून्यता। - विचार , कई बार बहते है हवा से, छलकते है पानियों से, झरते है पत्तियों से और कई बार उठते है गुबार से घुटते है, उमड़ते है, लीन हो जाते है शून्य में फिर यह...8 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...9 वर्ष पहले
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एक रामलीला यह भी - एक रामलीला यह भी यूं तो होता है रामलीला का मंचन वर्ष में एक बार पर मेरे शरीर के अंग अंग करते हैं राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के पात्र जीवन्त. देह की सक...9 वर्ष पहले
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मन गुरु में ऐसा रमा, हरि की रही न चाह - ॐ श्री गुरुवे नमः *ॐ ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।* * द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् । ...9 वर्ष पहले
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गुरु पूर्णिमा - आज गुरु पूर्णिमा है ! अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का दिवस ,गुरु शब्द का अर्थ होता है अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला ,अज्ञान ज्ञान की और ले...9 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
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क्रिकेट विश्व कप 2015 विजय गीत - धोनी की सेना निकली दोहराने फिर इतिहास अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस | शास्त्री की रणनीति भी है और विराट का शौर्य , धोनी की तो धूम मची है विश्व ...9 वर्ष पहले
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'मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से' - मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से… मेरे कान फ़ट चुके हैं सवेरे से लाउड वाहियत गाने सुनकर और फ़ुर्र हो चुका है गर्व। ये कौनसा रंग है मेरे देश का? बिल्कुल ऐसा ...9 वर्ष पहले
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कथा सुनो शबाब की - *कथा सुनो शबाब की* *सवाल की जवाब की* *कली खिली गुलाब **की* *बड़े हसीन ख़ाब की* * नया नया विहान था* * घ...9 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...10 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...10 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...10 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...10 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
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रंग रंगीली होली आई. - [image: Friends18.com Orkut Scraps] रंग रंगीली होली आई.. रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...10 वर्ष पहले
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भ्रष्ट आचार - स्वतंत्र भारत की नीव में उस समय के नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रख दिये थे भ्रष्ट आचार फिर देश से कैसे खत्म हो भ्रष्टाचार ?11 वर्ष पहले
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अन्त्याक्षरी - कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इ...11 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर - 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्...11 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...12 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
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Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar - Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the...12 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...13 वर्ष पहले
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अब बक्श दे मैं मर मुकी - चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी, मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी, मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख के ढेर दिल मैं कहीं, सुलग सुलग के आय...13 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
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दरिन्दे - बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ। ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ ढूँढो शयद वह ज़िन...14 वर्ष पहले
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