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गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

मुक्तक 


जो दे एहसास माता का, उसे हम सास कहते हैं 


पराई आस,पर खुद का ,जो हो विश्वास कहते हैं


बिना मतलब जरूरत के, बिना रोके बिना टोके,


लोग बकबक जो करते हैं ,उसे बकवास कहते हैं


मदन मोहन बाहेती घोटू

हृदय की बात 

हृदय हमारा कब अपना है 
यह औरों के लिए बना है 

इसको खुद पर मोह नहीं है,
 सदा दूसरों संग खुश रहता 
कभी ना एक जगह पर टिकता 
धक धक धक-धक करता रहता 

कल कल बहता नदियों जैसा,
 लहरों सा होता है प्यारा
मात-पिता के दिल में बसता,
 बन उनकी आंखों का तारा 

कभी धड़कता पत्नी के हित 
कभी धड़कता बच्चों के हित 
यह वह गुल्लक है शरीर का, 
प्यार जहां होता है संचित 

कोई हृदय मोम होता है 
झट से पिघल पिघल है जाता
 तो कोई पाषाण हृदय है ,
निर्दय कभी पसीज पाता 

हृदय हृदय से जब मिल जाते 
एक गृहस्थी बन जाती है 
होते इसके टुकड़े-टुकड़े 
जब आपस में ठन जाती है 

युवा हृदय आंखों से तकता,
रूप देखता लुट जाता है 
नींद ,चैन, सब खो जाते हैं ,
जब भी किसी पर यह आता है 

कभी प्रफुल्लित हो जाता है
 कभी द्रवित यह हो जाता है 
रोता कभी बिरह के आंसू ,
कभी प्यार में खो जाता है 

इसके एक-एक स्पंदन 
में बसता है प्यार किसी का 
इसकी एक-एक धड़कन में 
समा रहा संसार किसी का 

अगर किसी से मिल जाता है 
जीवन स्वर्ग बना देता है 
चलते-चलते अगर रुक गया 
तुमको स्वर्ग दिखा देता है 

इसके अंदर प्यार घना है 
हृदय तुम्हारा कब अपना है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 7 अप्रैल 2025

 दो मुक्तक 
1
यह जीवन कर्ज तेरा था, दिया तूने लिया मैंने

 दिए निर्देश जो जैसे ,उस तरह ही जिया मैंने

मैं मरते वक्त तक बाकी कोई उधार ना रखता ,

दिया था तूने जो जीवन, तुझे वापस किया मैंने 
2
हम अपने ढंग से जी लें,बुढ़ापा इसलिए उनने

अकेला छोड़कर हमको ,बसाया घर अलग उनने 

 हमारी धन और दौलत का,ध्यान पर रखते हैं बच्चे ,
कर लिया फोन करते हैं, हमारी खैरियत सुनने

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 26 मार्च 2025

गुलाब की पंखुड़ी 

सुंदर गुलाब की तू पंखुड़ी 

तेरा स्पर्श मुलायम है तुझसे खुशबू उमड़ी उमड़ी 

मखमली गुलाबी रंगत है,तू है गोरी के अधर चढ़ी 
तू ताजी ताजी नरम नरम चिकनी चिकनी निखरी निखरी 
वरमाला सी तू गले लगी और मिलन सेज पर तू बिखरी 
काम आई ईश वंदना में ,तू भाग्यवान प्रभु चरण चढ़ी 
तू मुझे देखकर मुस्कुराई ,अपनी तो किस्मत निकल पड़ी 
सुंदर गुलाब की तू पंखुड़ी 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चाहत 

तुम्हें लौकी पसंद है तो पकाओ और खाओ तुम

मैं हूं पकवान का प्रेमी, मुझे हलवा खिलाओ तुम

पसंद हर एक इंसान की, होती अपनी-अपनी है,

पसंद तुम मेरे दिल की हो बस इतना जान जाओ तुम 
2
तुम्हारी आंख में बसता,भले ही काला काजल मै

 भरा हूं भावनाओं से,बड़ा गहरा हूं बादल मैं 

ये चाहत है मैं जब बरसूं,तेरा अंगना हो तू भीजे

रहे तू सामने हरदम , निहारूं तुझको पल-पल मै 
3
कसम तुमको मेरे दिल की ,कभी भी दूर मत होना 
जमाना लाख रोके पर ,कभी मजबूर मत होना

भले ही हुस्न बरपा है, खुदा ने अपने हाथों में,
चांदनी चार दिन की है ,कभी मगरूर मत होना
4
तुम्हारा चांद सा चेहरा ,वो जब मेरे करीबआया

उठी लहरें समंदर में,जलजला एक अजीब आया

 हमारा मिलना आपस में,खुदा ने ही लिखा होगा,
जो इतनी पास दोनों को हमारा यह नसीब लाया
 
मदन मोहन बाहेती घोटू 

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