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शुक्रवार, 16 अगस्त 2019
【SEAnews:India Front Line Report】August 15, 2019 (Thu) No. 3935
बुधवार, 14 अगस्त 2019
इंसान और जानवर
हे भगवान !
आपने तो बनाकर भेजा था मुझे इंसान
पर ये संसार ,जो मेरा सगा है
मुझे बार बार जानवर बनाने में लगा है
जब मैं पैदा हुआ ,मुझे देखने लोग आते थे
अपनी गोदी में उठाते थे
और कहते कितना मासूम और अच्छा है
एकदम लगता 'खरगोश 'का बच्चा है
कोई कहता देखो मुंह खोलता है ऐसे
'चिड़िया' का बच्चा मुंह खोलता हो जैसे
वो जब मुझसे बातें करते तो मैं ,
गर्दन हिला कर करता था हूँ हूँ
तो लोग कहते कैसा कर रहा है ,
'कबूतर' सा गुटर गू
फिर मैं बड़ा हुआ ,स्कूल जाने लगा
पाठ वाठ याद नहीं रहता ,
तो गुरूजी को मुझमे 'गधा' नज़र आने लगा
बार मुझे गधा कहते थे
पर जब सजा देते थे तो 'मुर्गा 'बना देते थे
गणित की लंगड़ी भिन्न का हल ,
जब मेरी समझ में नहीं आता था
तो मुझे 'उल्लू' की उपाधि से नवाजा जाता था
और घर पर
मेरी दादी मुझे कहती थी नटखट' बंदर '
घर पर मेरी माँ भी मुझे थी समझाती
पर पढ़ाई की बात मेरी समझ में थी नहीं आती
माँ की खीज देख पिताजी कहते ,
क्यों हो 'भैंस' के आगे बीन बजाती
स्कूल के दोस्त
सब मिल मेरे साथ केन्टीन जाते थे
मस्ती से समोसे खाते थे
और पेमेंट के समय मुझे 'बकरा ' बनाते थे
जवानी में आशिक़ हो फूल जैसी लड़कियों पर
काटता था जब उनके इर्दगिर्द चक्कर
दोस्त कहते क्यों 'भँवरे ' की तरह मंडराते रहते हो
लड़कियों के आगे पालतू 'कुत्ते 'की तरह ,
दुम हिलाते रहते हो
खैर जैसे तैसे 'कछुवे ' की चाल से ,
मैंने पूरी की अपनी पढाई
और किसी की रिकमंडेशन से ,
एक अच्छी नौकरी भी पाई
फिर शादी की ,गृहस्थी बसाई
और गृहस्थी चलाने को ,
कोल्हू के' बैल 'की तरह ,
दिनरात चक्कर काटता रहा
दफ्तर में 'शेर 'बन कर ,
अपने मातहतों को डाँटता रहा
पर घर जाकर हालत हो जाती थी पिलपिल्ली
बीबी के आगे बन जाता था भीगी 'बिल्ली'
रोज रोज की मुश्किलों से होता रहता था गुथ्थमगुथ्था
न घर का रहा न घाट का ,
बन गया धोबी का' कुत्ता '
अब भी जब कभी कभी ,
गर्म जलेबी या पकोड़े खाता हूँ
तो बीबी की फटकार पाता हूँ
क्यों बहशी की तरह इतना खा रहे हो
जरा ध्यान दो, 'हाथी' की तरह फूलते जा रहे हो
अब आप ही देखलो भगवान् ,
मेरे साथ कितनी ज्यादती हो रही है ,
जो मेरा दिल दुखाती है
बार बार मेरी तुलना जानवरों से क्यों की जाती है ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हे भगवान !
आपने तो बनाकर भेजा था मुझे इंसान
पर ये संसार ,जो मेरा सगा है
मुझे बार बार जानवर बनाने में लगा है
जब मैं पैदा हुआ ,मुझे देखने लोग आते थे
अपनी गोदी में उठाते थे
और कहते कितना मासूम और अच्छा है
एकदम लगता 'खरगोश 'का बच्चा है
कोई कहता देखो मुंह खोलता है ऐसे
'चिड़िया' का बच्चा मुंह खोलता हो जैसे
वो जब मुझसे बातें करते तो मैं ,
गर्दन हिला कर करता था हूँ हूँ
तो लोग कहते कैसा कर रहा है ,
'कबूतर' सा गुटर गू
फिर मैं बड़ा हुआ ,स्कूल जाने लगा
पाठ वाठ याद नहीं रहता ,
तो गुरूजी को मुझमे 'गधा' नज़र आने लगा
बार मुझे गधा कहते थे
पर जब सजा देते थे तो 'मुर्गा 'बना देते थे
गणित की लंगड़ी भिन्न का हल ,
जब मेरी समझ में नहीं आता था
तो मुझे 'उल्लू' की उपाधि से नवाजा जाता था
और घर पर
मेरी दादी मुझे कहती थी नटखट' बंदर '
घर पर मेरी माँ भी मुझे थी समझाती
पर पढ़ाई की बात मेरी समझ में थी नहीं आती
माँ की खीज देख पिताजी कहते ,
क्यों हो 'भैंस' के आगे बीन बजाती
स्कूल के दोस्त
सब मिल मेरे साथ केन्टीन जाते थे
मस्ती से समोसे खाते थे
और पेमेंट के समय मुझे 'बकरा ' बनाते थे
जवानी में आशिक़ हो फूल जैसी लड़कियों पर
काटता था जब उनके इर्दगिर्द चक्कर
दोस्त कहते क्यों 'भँवरे ' की तरह मंडराते रहते हो
लड़कियों के आगे पालतू 'कुत्ते 'की तरह ,
दुम हिलाते रहते हो
खैर जैसे तैसे 'कछुवे ' की चाल से ,
मैंने पूरी की अपनी पढाई
और किसी की रिकमंडेशन से ,
एक अच्छी नौकरी भी पाई
फिर शादी की ,गृहस्थी बसाई
और गृहस्थी चलाने को ,
कोल्हू के' बैल 'की तरह ,
दिनरात चक्कर काटता रहा
दफ्तर में 'शेर 'बन कर ,
अपने मातहतों को डाँटता रहा
पर घर जाकर हालत हो जाती थी पिलपिल्ली
बीबी के आगे बन जाता था भीगी 'बिल्ली'
रोज रोज की मुश्किलों से होता रहता था गुथ्थमगुथ्था
न घर का रहा न घाट का ,
बन गया धोबी का' कुत्ता '
अब भी जब कभी कभी ,
गर्म जलेबी या पकोड़े खाता हूँ
तो बीबी की फटकार पाता हूँ
क्यों बहशी की तरह इतना खा रहे हो
जरा ध्यान दो, 'हाथी' की तरह फूलते जा रहे हो
अब आप ही देखलो भगवान् ,
मेरे साथ कितनी ज्यादती हो रही है ,
जो मेरा दिल दुखाती है
बार बार मेरी तुलना जानवरों से क्यों की जाती है ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रविवार, 11 अगस्त 2019
अतिवृष्टि -अनावृष्टि
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
इतनी जगह हृदय में रखना ,जहाँ ठीक से समा सकूं मैं
इतना प्यार मुझे बस देना ,जिसे ठीक से पचा सकूं मैं
न तो प्रेम की बाढ़ चाहिये ,हेयदृष्टि भी नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
ना चाहूँ दुर्लभ हो दर्शन ,ना बस चुंबन के बौछारें
सावन के रिमझिम के जैसी ,रहे बरसती प्रेम फुहारें
अस्त व्यस्त हो जीवन का क्रम ,ऐसी सृष्टि नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
मैं चाहूँ बस इतना बरसो ,प्यास बुझे ,तृप्ति मिल जाए
प्रेम नीर में मुझे भिगो दे ,ऐसी कृपा दृष्टि मिल जाए
भूल जाऊं दुनिया की सुदबुध ,ऐसी मस्ती नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
इतनी जगह हृदय में रखना ,जहाँ ठीक से समा सकूं मैं
इतना प्यार मुझे बस देना ,जिसे ठीक से पचा सकूं मैं
न तो प्रेम की बाढ़ चाहिये ,हेयदृष्टि भी नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
ना चाहूँ दुर्लभ हो दर्शन ,ना बस चुंबन के बौछारें
सावन के रिमझिम के जैसी ,रहे बरसती प्रेम फुहारें
अस्त व्यस्त हो जीवन का क्रम ,ऐसी सृष्टि नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
मैं चाहूँ बस इतना बरसो ,प्यास बुझे ,तृप्ति मिल जाए
प्रेम नीर में मुझे भिगो दे ,ऐसी कृपा दृष्टि मिल जाए
भूल जाऊं दुनिया की सुदबुध ,ऐसी मस्ती नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जिंदगी का सफर
जिंदगानी के सफर के दरमियाँ
सबसे अच्छी उम्र होती बचपना
मन में ना चिंता कोई ना है फिकर ,
परेशानी नहीं कोई खामखाँ
नालियों में नाव कागज की तैरा ,
नाचते थे हम बजा कर तालियां
गोदियों में हसीनो की खेलते ,
मिला करती हमको उनकी पप्पियां
बाद इसके आता ऐसा दौर है ,
खुलने लगती बंद दिल की खिड़कियां
सब पे चढ़ता जवानी का जोश है
अच्छी लगने लगती सारी लड़कियां
इश्क़ है मन में उछालें मारता ,
ये वो आतिश है जलाता जो जिया
नशा इसका बना देता बावला ,
बड़ी मुश्किल से उतरता है मियां
और फिर बन कर के बीबी एक दिन ,
दिल में बस जाती है कोई दिलरुबाँ
फेर में फंस गृहस्थी के आदमी ,
घूमता है बैल कोल्हू का बना
चैन पल भर भी उसे मिलता नहीं ,
इतनी बढ़ जाती है जिम्मेदारियां
पिसते घिसते ,ढलने लगता जिस्म है ,
दिखने लगते है बुढ़ापे के निशां
भोग कर जीवन के सुख और दुःख सभी ,
शुरू बेफिक्री का होता सिलसिला
वृद्धि होती अनुभव की वृद्ध बन ,
आती जीवन जीने की हमको कला
बांटो अपना प्रेम आशीर्वाद तुम ,
सभी अपने परायों को हर दफा
चैन से जियो करो बस मौज तुम ,
बुढ़ापे का हो यही बस फ़लसफ़ा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जिंदगानी के सफर के दरमियाँ
सबसे अच्छी उम्र होती बचपना
मन में ना चिंता कोई ना है फिकर ,
परेशानी नहीं कोई खामखाँ
नालियों में नाव कागज की तैरा ,
नाचते थे हम बजा कर तालियां
गोदियों में हसीनो की खेलते ,
मिला करती हमको उनकी पप्पियां
बाद इसके आता ऐसा दौर है ,
खुलने लगती बंद दिल की खिड़कियां
सब पे चढ़ता जवानी का जोश है
अच्छी लगने लगती सारी लड़कियां
इश्क़ है मन में उछालें मारता ,
ये वो आतिश है जलाता जो जिया
नशा इसका बना देता बावला ,
बड़ी मुश्किल से उतरता है मियां
और फिर बन कर के बीबी एक दिन ,
दिल में बस जाती है कोई दिलरुबाँ
फेर में फंस गृहस्थी के आदमी ,
घूमता है बैल कोल्हू का बना
चैन पल भर भी उसे मिलता नहीं ,
इतनी बढ़ जाती है जिम्मेदारियां
पिसते घिसते ,ढलने लगता जिस्म है ,
दिखने लगते है बुढ़ापे के निशां
भोग कर जीवन के सुख और दुःख सभी ,
शुरू बेफिक्री का होता सिलसिला
वृद्धि होती अनुभव की वृद्ध बन ,
आती जीवन जीने की हमको कला
बांटो अपना प्रेम आशीर्वाद तुम ,
सभी अपने परायों को हर दफा
चैन से जियो करो बस मौज तुम ,
बुढ़ापे का हो यही बस फ़लसफ़ा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
भारत देश महान चाहिए
पतन गर्त में बहुत गिर चुके,अब प्रगति,उत्थान चाहिए
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
ऋषि मुनियों की इस धरती पर,बहुत विदेशी सत्ता झेली
शीतल मलयज नहीं रही अब ,और हुई गंगा भी मैली
अब ना सुजलां,ना सुफलां है ,शस्यश्यामला ना अब धरती
पंच गव्य का अमृत देती ,गाय सड़क पर ,आज विचरती
भूल धरम की सब मर्यादा ,संस्कार भी सब बिसराये
कहाँ गए वो हवन यज्ञ सब,कहाँ गयी वो वेद ऋचाये
लुप्त होरहा धर्म कर्म अब ,उसमे नूतन प्राण चाहिए
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
परमोधर्म अहिंसा माना ,शांति प्रिय इंसान बने हम
ऐसा अतिथि धर्म निभाया,बरसों तलक गुलाम बने हम
पंचशील की बातें करके ,भुला दिया ब्रह्मास्त्र बनाना
आसपास सब कलुष हृदय है,भोलेपन में ये ना जाना
मुंह में राम,बगल में छुरी ,रखनेवाले हमे ठग गए
सोने की चिड़िया का सोना,चुरा लिया सब और भग गए
श्वेत कबूतर बहुत उड़ाए ,अब तलवार ,कृपाण चाहिए
हमको अपने सपनो वाला प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
अगर पुराना वैभव पाना है ,तो हमें बदलना होगा
जिस रस्ते पर दुनिया चलती उनसेआगे चलना होगा
सत्तालोलुप कुछ लोगों से ,अच्छी तरह निपटना होगा
सत्य अहिंसा बहुत हो गयी,साम दाम से लड़ना होगा
हमकोअब चाणक्य नीति से,हनन दुश्मनो का करना है
वक़्त आगया आज वतन के,खातिर जीना और मरना है
हर बंदे के मन में जिन्दा ,जज्बा और तूफ़ान चाहिए
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
कभी स्वर्ग से आयी थी जो,कलकल करती गंगा निर्मल
हमें चाहिए फिर से वो ही ,अमृत तुल्य,स्वच्छ गंगाजल
भारत की सब माता बहने ,बने विदुषी ,लिखकर पढ़कर
उनको साथ निभाना होगा ,साथ पुरुष के ,आगे बढ़ कर
आपस का मतभेद भुला कर ,भातृभाव फैलाना होगा
आपस में बन कर सहयोगी ,सबको आगे आना होगा
हमे गर्व से फिर जीना है ,और पुरानी शान चाहिए
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
सभी हमवतन ,रहे साथ मिल ,तोड़े मजहब की दीवारे
छुपे शेर की खालों में जो ,कई भेड़िये ,उन्हें संहारे
जौहर में ना जले नारियां ,रण में जा दिखलाये जौहर
पृथ्वीराज ,प्रताप सरीखे ,वीर यहाँ पैदा हो घर घर
कर्मक्षेत्र या रणभूमि में ,उतरें पहन बसंती बाना
कुछ करके दिखलाना होगा,अगर पुराना वैभव पाना
झाँसी की रानी के तेवर और आत्म सन्मान चाहिए
हमको अपने सपनो वाला वो ही हिन्दुस्थान चाहिए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सोमवार, 5 अगस्त 2019
【SEAnews】Review:The baptism of the Holy Spirit (Love your neighbor as yourself)-E
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शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२५) - * ये जीवन कढ़ाई में उबलती घनी मलाई की तरह है जिसमें हमारे सदगुण व अवगुण ( विकार, विचार, अच्छाई, बुराई, मोह, तृष्णा, वि...1 वर्ष पहले
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किताबों की दुनिया - 257 - तू वही नींद जो पूरी न हुई हो शब-भर मैं वही ख़्वाब कि जो ठीक से टूटा भी न हो * मेरी आंखे न देखो तुमको नींद आए तो सो जाओ ये हंगामा तो इन आँखों में शब भर होने...1 वर्ष पहले
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Tara Tarini Maha Shaktipeeth. - *Tara Tarini Maha Shaktipeeth* *गंजम जिले में पुरुषोत्तमपुर के पास रुशिकुल्या नदी के तट पर कुमारी पहाड़ियों पर तारा-तारिणी ओडिशा के सबसे प्राचीन शक्तिपीठों...2 वर्ष पहले
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मशहूर कथाएं : काव्यानुवाद - *दो बैलों की कथा :मुंशी प्रेमचंद)* (1) बछिया के ताऊ कहो, कहो गधा या बैल। हीरा मोती मे मगर, नहीं जरा भी मैल। नही जरा भी मैल, दोस्ती बैहद पक्की। मालिक झूरी म...2 वर्ष पहले
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अनूठा रहस्य प्रकृति का... - रात भर जागकर हरसिंगार वृक्ष उसकी सख्त डालियों से लगे नरम नाजुक पुष्पों की करता रखवाली कि नरम नाजुक से पुष्प सहला देते सख्त वृक्ष के भीतर सुकोमल...2 वर्ष पहले
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उद्विग्नता - जीवन की उष्णता अभी ठहरी है , उद्विग्न है मन लेकिन आशा भी नहीं कर पा रही इस मौन के वृत्त में प्रवेश बस एक उच्छवास ले ताकते हैं बीता कल , निर्निमे...2 वर्ष पहले
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क्षणिका - हां सच है देहरी पार की मैंने वर्जनाओं की रुढ़िवाद की पाखंड की कुंठा की .... ओह सभ्य समाज ....! तुम्हारी ओर से सिर्फ घृणा .? कहो इतने नाजुक कब से हो लि...2 वर्ष पहले
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महिला दिवस - विशेष - मैंने माँ से पहचाना एक स्त्री होना कितना दुसाध्य है कोई देवता हो जाने से पहचाना अपनी बहिनों से कैसे वो जोड़े रखती हैं एक घर को दूसरे से सीख पाया अपनी बेटियो...3 वर्ष पहले
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चुप गली और घुप खिडकी - एक गली थी चुप-चुप सी इक खिड़की थी घुप्पी-घुप्पी इक रोज़ गली को रोक ज़रा घुप खिड़की से आवाज़ उठी चलती-चलती थम सी गयी वो दूर तलक वो देर तलक पग-पग घायल डग भर प...3 वर्ष पहले
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गलती से डिलीट हो गए मेरे पुराने पोस्टों की पुनर्प्राप्ति : इंटरनेट आर्काइव के सौजन्य से - दो वर्ष पहले ब्लॉग का टेम्पलेट बदलने की की कोशिश रहा था। सहसा पाया कि कुछ पोस्ट गए। क्या हुआ था, पूरा समझ में नहीं आया। बाद में ब्लॉगर वालों को भ...3 वर्ष पहले
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Pooja (laghukatha) - पूजा " सुनिये ! ", पत्नी ने पति से कहा " जी कहिये", पति ने पत्नी की तरह जवाब दिया तो पत्नी चिढ़ गयी. पति को समझ आ गया और पत्नि से पूछा कि क्या बात है...3 वर्ष पहले
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अलसाई शाम तले - यूँ ही एल अलसाई शाम तले बैठें थे कभी दो चार जब पल मिले मदहोश शाम ढल गयी यूँ ही आलस में तकदीर में जाने कब हों फिर ये सिलसिले ..3 वर्ष पहले
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लाॅकडाउन 2 - मोदी जी....सुनो:- धीरे धीरे ही सही बीते इक्किस वार सोम गया मंगल गया कब बीता बुधवार कब बीता बुधवार हो गया अजब अचंभा लगता है इतवार हो गया ज्यादा लंबा दाढ़ी भी ...4 वर्ष पहले
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Gatyatmak Jyotish app - विज्ञानियों को ज्योतिष नहीं चाहिए, ज्योतिषियों को विज्ञान नहीं चाहिए।दोनो गुटों के झगडें में फंसा है गत्यात्मक ज्योतिष, जिसे दोनो गुटों के मध्य सेतु ...4 वर्ष पहले
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2019 का वार्षिक अवलोकन (अट्ठाईसवां) - खत्म होनेवाला है हमारा इस साल का सफ़र। 2020 अपनी गुनगुनी,कुनकुनी आहटों के साथ खड़ा है दो दिन के अंतराल पर। चलिए इस वर्ष को विदा देते हुए कुछ बातें कहती...4 वर्ष पहले
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इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...4 वर्ष पहले
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गुड्डू आओ ... गोलगप्पे खाएँ .... - गुड्डू आओ ... चलें .. गोलगप्पे खाएँ कुछ खट्टे-मीठे .. तो कुछ चटपटे-चटपटे खाएँ चलो .. चलें ... अपने उसी ठेले पे .. स्कूल के पास ... आज .. जी भर के ... मन भ...4 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes di kelamin - *cara mengobati herpes di kelamin* - Penyakit herpes genital baik pada pria maupun pada wanita kerap menjadi permasalahan tersendiri, karena resiko yang le...5 वर्ष पहले
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आइने की फितरत से नफरत करके क्या होगा - आईने की फितरत से नफरत करके क्या होगा किरदार गर नहीं बदलोगे किस्सा कैसे नया होगा हर बार आईना देखोगे धब्बा वही लगा होगा आईने लाख बदलो सच बदल नहीं सकते ज...6 वर्ष पहले
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शर्मसार होती इंसानियत.. - *इंसानियत का गिरता ग्राफ ...* आज का दिन वाकई एक काले दिन के रूप में याद किया जाना था. सबेरे जब समाचार पत्रों में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले इस समाचा...6 वर्ष पहले
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कूड़ाघर - गैया जातीं कूड़ाघर रोटी खातीं हैं घर-घर बीच रास्ते सुस्तातीं नहीं किसी की रहे खबर। यही हाल है नगर-नगर कुत्तों की भी यही डगर बोरा लादे कुछ बच्चे बू का जिनपर...6 वर्ष पहले
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता - घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ नाम बचे है बाकी तीज त्योहार कहाँ ...6 वर्ष पहले
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लिखते रहना ज़रूरी है ! - पिछले कई महीनों में जीवन के ना जाने कितने समीकरण बदल गए हैं - मेरा पता, पहचान, सम्बन्ध, समबन्धी, शौक, आदतें, पसंद-नापसंद और मैं खुद | बहुत कुछ नया है लेकिन...6 वर्ष पहले
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इन आँखों में बारिश कौन भरता है .. - बेतरतीब मैं (३१.८.१७ ) ` कुछ पंक्तियाँ उधार है मौसम की मुझपर , इस बरस पहले तो बरखा बरसी नहीं ,अब बरसी है तो बरस रही ,शायद ये पहली बारिशों का मौसम...6 वर्ष पहले
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सवाल : हम आपदाओं में फेल क्यों? जवाब में यह हकीकत पढि़ए - राजस्थान के एक हिस्से में बाढ़ का कहर है और लोग आपदा से घिरे हैं। प्रशासनिक अमला इतना असहाय नजर आ रहा है। आपदाएं हमेशा आती है और सरकारी तंत्र लाचार नजर आ...6 वर्ष पहले
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ब्लॉगिंग : कुछ जरुरी बातें...3 - पाठक हमारे ब्लॉग पर हमारे लेखन को पढने के लिए आता है, न कि साज सज्जा देखने के लिए. लेखन और प्रस्तुतीकरण अगर बेहतर होगा तो यकीनन हमारा ब्लॉग सबके लिए लाभदा...6 वर्ष पहले
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गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो - *गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो * लगभग दो वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात् परम श्रद्धेय स्वामीजी संवित् सोमगिरि जी महाराज के दर्शन करने (अभी 1 जुलाई) को गया तो मन भ...6 वर्ष पहले
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जिन्द्गी - जिन्दगी कल खो दिया आज के लिए आज खो दिया कल के लिए कभी जी ना सके हम आज के लिए बीत रही है जिन्दगी कल आज और कल के लिए. दोस्तों आज मेरा जन्म दिन भ...6 वर्ष पहले
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हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे - *हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगेहाँ ! चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे* जो रात होगी तो जमी से चाँदी बटोर लेंगे चाँदी की फिर पायल बना लम्हों ...7 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...7 वर्ष पहले
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गीत अंतरात्मा के: आशा - गीत अंतरात्मा के: आशा: मैं एक आशा हूँ मेरे टूट जाने का तो सवाल ही नहीं होता मैं बनी रहती हूँ हर एक मन में ताकि हर मन जीवित रह सके मुझे खुद को बचाए ही र...7 वर्ष पहले
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'जंगल की सैर ' - मेरी पुरुस्कृत बाल कहानी 'जंगल की सैर ' मातृभारती पर। पढ़े और अपनी राय दें http:matrubharti.com/book/5492/7 वर्ष पहले
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पानी की बूँदें - पानी की बूँदे भी, मशहूर हो गई । कल तक जो यूँही, बहती थी बेमतलब, महत्वहीन सी यहाँ वहाँ, फेंकी थी जाती, समझते थे सब जिसके, मामूली सी ही बूँदें, आज वो पहुँच स...8 वर्ष पहले
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खोया बच्चा..... - आज एक हास्य कविता एक बच्चा रो रहा था , मेले में अनाउंसमेंट हो रहा था , जल्दी आएं जिन का बच्चा हो ले जाएँ | तभी सौ से ज्यादा लोग वहां आते है जल्दी से बच...8 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...8 वर्ष पहले
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विंडोज आधारित सिस्टम में गुगल वाइस टाइपिंग - *विंडोज आधारित सिस्टम में गुगल वाइस टाइपिंग* हममें से अधिकांश लोगों को टंकण करना काफी श्रमसाध्य एवं उबाऊ कार्य लगता है और हम सभी यह सेाचते हैं कि व्यक...8 वर्ष पहले
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Happy Teacher's Day - “गुरु का हाथ” - *पिसते… घिसते… तराशे जाते…* *गिरते… छिलते… लताडे जाते…* *मांगते… चाहते… ठुकराए जाते…* *गुजर जाते हैं चौबीस या इससे ज्यादा साल…* *लगे बचपन से… बहुत लोग फरिश...8 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
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ज़िन्दगी का गणित - कोण नज़रों का मेरे सदा सम रहा न्यून तो किसी को अधिक वो लगा घात की घात क्या जान पाये नहीं हम महत्तम हुए न लघुत्तम कहीं रेखा हाथों की मेरे कुछ अधिक वक्र ...9 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...9 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...9 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...9 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...9 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...9 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...9 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...10 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...10 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...11 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...11 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...11 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...11 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...12 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...12 वर्ष पहले
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