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शुक्रवार, 16 अगस्त 2019
【SEAnews:India Front Line Report】August 15, 2019 (Thu) No. 3935
बुधवार, 14 अगस्त 2019
इंसान और जानवर
हे भगवान !
आपने तो बनाकर भेजा था मुझे इंसान
पर ये संसार ,जो मेरा सगा है
मुझे बार बार जानवर बनाने में लगा है
जब मैं पैदा हुआ ,मुझे देखने लोग आते थे
अपनी गोदी में उठाते थे
और कहते कितना मासूम और अच्छा है
एकदम लगता 'खरगोश 'का बच्चा है
कोई कहता देखो मुंह खोलता है ऐसे
'चिड़िया' का बच्चा मुंह खोलता हो जैसे
वो जब मुझसे बातें करते तो मैं ,
गर्दन हिला कर करता था हूँ हूँ
तो लोग कहते कैसा कर रहा है ,
'कबूतर' सा गुटर गू
फिर मैं बड़ा हुआ ,स्कूल जाने लगा
पाठ वाठ याद नहीं रहता ,
तो गुरूजी को मुझमे 'गधा' नज़र आने लगा
बार मुझे गधा कहते थे
पर जब सजा देते थे तो 'मुर्गा 'बना देते थे
गणित की लंगड़ी भिन्न का हल ,
जब मेरी समझ में नहीं आता था
तो मुझे 'उल्लू' की उपाधि से नवाजा जाता था
और घर पर
मेरी दादी मुझे कहती थी नटखट' बंदर '
घर पर मेरी माँ भी मुझे थी समझाती
पर पढ़ाई की बात मेरी समझ में थी नहीं आती
माँ की खीज देख पिताजी कहते ,
क्यों हो 'भैंस' के आगे बीन बजाती
स्कूल के दोस्त
सब मिल मेरे साथ केन्टीन जाते थे
मस्ती से समोसे खाते थे
और पेमेंट के समय मुझे 'बकरा ' बनाते थे
जवानी में आशिक़ हो फूल जैसी लड़कियों पर
काटता था जब उनके इर्दगिर्द चक्कर
दोस्त कहते क्यों 'भँवरे ' की तरह मंडराते रहते हो
लड़कियों के आगे पालतू 'कुत्ते 'की तरह ,
दुम हिलाते रहते हो
खैर जैसे तैसे 'कछुवे ' की चाल से ,
मैंने पूरी की अपनी पढाई
और किसी की रिकमंडेशन से ,
एक अच्छी नौकरी भी पाई
फिर शादी की ,गृहस्थी बसाई
और गृहस्थी चलाने को ,
कोल्हू के' बैल 'की तरह ,
दिनरात चक्कर काटता रहा
दफ्तर में 'शेर 'बन कर ,
अपने मातहतों को डाँटता रहा
पर घर जाकर हालत हो जाती थी पिलपिल्ली
बीबी के आगे बन जाता था भीगी 'बिल्ली'
रोज रोज की मुश्किलों से होता रहता था गुथ्थमगुथ्था
न घर का रहा न घाट का ,
बन गया धोबी का' कुत्ता '
अब भी जब कभी कभी ,
गर्म जलेबी या पकोड़े खाता हूँ
तो बीबी की फटकार पाता हूँ
क्यों बहशी की तरह इतना खा रहे हो
जरा ध्यान दो, 'हाथी' की तरह फूलते जा रहे हो
अब आप ही देखलो भगवान् ,
मेरे साथ कितनी ज्यादती हो रही है ,
जो मेरा दिल दुखाती है
बार बार मेरी तुलना जानवरों से क्यों की जाती है ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हे भगवान !
आपने तो बनाकर भेजा था मुझे इंसान
पर ये संसार ,जो मेरा सगा है
मुझे बार बार जानवर बनाने में लगा है
जब मैं पैदा हुआ ,मुझे देखने लोग आते थे
अपनी गोदी में उठाते थे
और कहते कितना मासूम और अच्छा है
एकदम लगता 'खरगोश 'का बच्चा है
कोई कहता देखो मुंह खोलता है ऐसे
'चिड़िया' का बच्चा मुंह खोलता हो जैसे
वो जब मुझसे बातें करते तो मैं ,
गर्दन हिला कर करता था हूँ हूँ
तो लोग कहते कैसा कर रहा है ,
'कबूतर' सा गुटर गू
फिर मैं बड़ा हुआ ,स्कूल जाने लगा
पाठ वाठ याद नहीं रहता ,
तो गुरूजी को मुझमे 'गधा' नज़र आने लगा
बार मुझे गधा कहते थे
पर जब सजा देते थे तो 'मुर्गा 'बना देते थे
गणित की लंगड़ी भिन्न का हल ,
जब मेरी समझ में नहीं आता था
तो मुझे 'उल्लू' की उपाधि से नवाजा जाता था
और घर पर
मेरी दादी मुझे कहती थी नटखट' बंदर '
घर पर मेरी माँ भी मुझे थी समझाती
पर पढ़ाई की बात मेरी समझ में थी नहीं आती
माँ की खीज देख पिताजी कहते ,
क्यों हो 'भैंस' के आगे बीन बजाती
स्कूल के दोस्त
सब मिल मेरे साथ केन्टीन जाते थे
मस्ती से समोसे खाते थे
और पेमेंट के समय मुझे 'बकरा ' बनाते थे
जवानी में आशिक़ हो फूल जैसी लड़कियों पर
काटता था जब उनके इर्दगिर्द चक्कर
दोस्त कहते क्यों 'भँवरे ' की तरह मंडराते रहते हो
लड़कियों के आगे पालतू 'कुत्ते 'की तरह ,
दुम हिलाते रहते हो
खैर जैसे तैसे 'कछुवे ' की चाल से ,
मैंने पूरी की अपनी पढाई
और किसी की रिकमंडेशन से ,
एक अच्छी नौकरी भी पाई
फिर शादी की ,गृहस्थी बसाई
और गृहस्थी चलाने को ,
कोल्हू के' बैल 'की तरह ,
दिनरात चक्कर काटता रहा
दफ्तर में 'शेर 'बन कर ,
अपने मातहतों को डाँटता रहा
पर घर जाकर हालत हो जाती थी पिलपिल्ली
बीबी के आगे बन जाता था भीगी 'बिल्ली'
रोज रोज की मुश्किलों से होता रहता था गुथ्थमगुथ्था
न घर का रहा न घाट का ,
बन गया धोबी का' कुत्ता '
अब भी जब कभी कभी ,
गर्म जलेबी या पकोड़े खाता हूँ
तो बीबी की फटकार पाता हूँ
क्यों बहशी की तरह इतना खा रहे हो
जरा ध्यान दो, 'हाथी' की तरह फूलते जा रहे हो
अब आप ही देखलो भगवान् ,
मेरे साथ कितनी ज्यादती हो रही है ,
जो मेरा दिल दुखाती है
बार बार मेरी तुलना जानवरों से क्यों की जाती है ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रविवार, 11 अगस्त 2019
अतिवृष्टि -अनावृष्टि
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
इतनी जगह हृदय में रखना ,जहाँ ठीक से समा सकूं मैं
इतना प्यार मुझे बस देना ,जिसे ठीक से पचा सकूं मैं
न तो प्रेम की बाढ़ चाहिये ,हेयदृष्टि भी नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
ना चाहूँ दुर्लभ हो दर्शन ,ना बस चुंबन के बौछारें
सावन के रिमझिम के जैसी ,रहे बरसती प्रेम फुहारें
अस्त व्यस्त हो जीवन का क्रम ,ऐसी सृष्टि नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
मैं चाहूँ बस इतना बरसो ,प्यास बुझे ,तृप्ति मिल जाए
प्रेम नीर में मुझे भिगो दे ,ऐसी कृपा दृष्टि मिल जाए
भूल जाऊं दुनिया की सुदबुध ,ऐसी मस्ती नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
इतनी जगह हृदय में रखना ,जहाँ ठीक से समा सकूं मैं
इतना प्यार मुझे बस देना ,जिसे ठीक से पचा सकूं मैं
न तो प्रेम की बाढ़ चाहिये ,हेयदृष्टि भी नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
ना चाहूँ दुर्लभ हो दर्शन ,ना बस चुंबन के बौछारें
सावन के रिमझिम के जैसी ,रहे बरसती प्रेम फुहारें
अस्त व्यस्त हो जीवन का क्रम ,ऐसी सृष्टि नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
मैं चाहूँ बस इतना बरसो ,प्यास बुझे ,तृप्ति मिल जाए
प्रेम नीर में मुझे भिगो दे ,ऐसी कृपा दृष्टि मिल जाए
भूल जाऊं दुनिया की सुदबुध ,ऐसी मस्ती नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जिंदगी का सफर
जिंदगानी के सफर के दरमियाँ
सबसे अच्छी उम्र होती बचपना
मन में ना चिंता कोई ना है फिकर ,
परेशानी नहीं कोई खामखाँ
नालियों में नाव कागज की तैरा ,
नाचते थे हम बजा कर तालियां
गोदियों में हसीनो की खेलते ,
मिला करती हमको उनकी पप्पियां
बाद इसके आता ऐसा दौर है ,
खुलने लगती बंद दिल की खिड़कियां
सब पे चढ़ता जवानी का जोश है
अच्छी लगने लगती सारी लड़कियां
इश्क़ है मन में उछालें मारता ,
ये वो आतिश है जलाता जो जिया
नशा इसका बना देता बावला ,
बड़ी मुश्किल से उतरता है मियां
और फिर बन कर के बीबी एक दिन ,
दिल में बस जाती है कोई दिलरुबाँ
फेर में फंस गृहस्थी के आदमी ,
घूमता है बैल कोल्हू का बना
चैन पल भर भी उसे मिलता नहीं ,
इतनी बढ़ जाती है जिम्मेदारियां
पिसते घिसते ,ढलने लगता जिस्म है ,
दिखने लगते है बुढ़ापे के निशां
भोग कर जीवन के सुख और दुःख सभी ,
शुरू बेफिक्री का होता सिलसिला
वृद्धि होती अनुभव की वृद्ध बन ,
आती जीवन जीने की हमको कला
बांटो अपना प्रेम आशीर्वाद तुम ,
सभी अपने परायों को हर दफा
चैन से जियो करो बस मौज तुम ,
बुढ़ापे का हो यही बस फ़लसफ़ा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जिंदगानी के सफर के दरमियाँ
सबसे अच्छी उम्र होती बचपना
मन में ना चिंता कोई ना है फिकर ,
परेशानी नहीं कोई खामखाँ
नालियों में नाव कागज की तैरा ,
नाचते थे हम बजा कर तालियां
गोदियों में हसीनो की खेलते ,
मिला करती हमको उनकी पप्पियां
बाद इसके आता ऐसा दौर है ,
खुलने लगती बंद दिल की खिड़कियां
सब पे चढ़ता जवानी का जोश है
अच्छी लगने लगती सारी लड़कियां
इश्क़ है मन में उछालें मारता ,
ये वो आतिश है जलाता जो जिया
नशा इसका बना देता बावला ,
बड़ी मुश्किल से उतरता है मियां
और फिर बन कर के बीबी एक दिन ,
दिल में बस जाती है कोई दिलरुबाँ
फेर में फंस गृहस्थी के आदमी ,
घूमता है बैल कोल्हू का बना
चैन पल भर भी उसे मिलता नहीं ,
इतनी बढ़ जाती है जिम्मेदारियां
पिसते घिसते ,ढलने लगता जिस्म है ,
दिखने लगते है बुढ़ापे के निशां
भोग कर जीवन के सुख और दुःख सभी ,
शुरू बेफिक्री का होता सिलसिला
वृद्धि होती अनुभव की वृद्ध बन ,
आती जीवन जीने की हमको कला
बांटो अपना प्रेम आशीर्वाद तुम ,
सभी अपने परायों को हर दफा
चैन से जियो करो बस मौज तुम ,
बुढ़ापे का हो यही बस फ़लसफ़ा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
भारत देश महान चाहिए
पतन गर्त में बहुत गिर चुके,अब प्रगति,उत्थान चाहिए
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
ऋषि मुनियों की इस धरती पर,बहुत विदेशी सत्ता झेली
शीतल मलयज नहीं रही अब ,और हुई गंगा भी मैली
अब ना सुजलां,ना सुफलां है ,शस्यश्यामला ना अब धरती
पंच गव्य का अमृत देती ,गाय सड़क पर ,आज विचरती
भूल धरम की सब मर्यादा ,संस्कार भी सब बिसराये
कहाँ गए वो हवन यज्ञ सब,कहाँ गयी वो वेद ऋचाये
लुप्त होरहा धर्म कर्म अब ,उसमे नूतन प्राण चाहिए
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
परमोधर्म अहिंसा माना ,शांति प्रिय इंसान बने हम
ऐसा अतिथि धर्म निभाया,बरसों तलक गुलाम बने हम
पंचशील की बातें करके ,भुला दिया ब्रह्मास्त्र बनाना
आसपास सब कलुष हृदय है,भोलेपन में ये ना जाना
मुंह में राम,बगल में छुरी ,रखनेवाले हमे ठग गए
सोने की चिड़िया का सोना,चुरा लिया सब और भग गए
श्वेत कबूतर बहुत उड़ाए ,अब तलवार ,कृपाण चाहिए
हमको अपने सपनो वाला प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
अगर पुराना वैभव पाना है ,तो हमें बदलना होगा
जिस रस्ते पर दुनिया चलती उनसेआगे चलना होगा
सत्तालोलुप कुछ लोगों से ,अच्छी तरह निपटना होगा
सत्य अहिंसा बहुत हो गयी,साम दाम से लड़ना होगा
हमकोअब चाणक्य नीति से,हनन दुश्मनो का करना है
वक़्त आगया आज वतन के,खातिर जीना और मरना है
हर बंदे के मन में जिन्दा ,जज्बा और तूफ़ान चाहिए
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
कभी स्वर्ग से आयी थी जो,कलकल करती गंगा निर्मल
हमें चाहिए फिर से वो ही ,अमृत तुल्य,स्वच्छ गंगाजल
भारत की सब माता बहने ,बने विदुषी ,लिखकर पढ़कर
उनको साथ निभाना होगा ,साथ पुरुष के ,आगे बढ़ कर
आपस का मतभेद भुला कर ,भातृभाव फैलाना होगा
आपस में बन कर सहयोगी ,सबको आगे आना होगा
हमे गर्व से फिर जीना है ,और पुरानी शान चाहिए
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए
सभी हमवतन ,रहे साथ मिल ,तोड़े मजहब की दीवारे
छुपे शेर की खालों में जो ,कई भेड़िये ,उन्हें संहारे
जौहर में ना जले नारियां ,रण में जा दिखलाये जौहर
पृथ्वीराज ,प्रताप सरीखे ,वीर यहाँ पैदा हो घर घर
कर्मक्षेत्र या रणभूमि में ,उतरें पहन बसंती बाना
कुछ करके दिखलाना होगा,अगर पुराना वैभव पाना
झाँसी की रानी के तेवर और आत्म सन्मान चाहिए
हमको अपने सपनो वाला वो ही हिन्दुस्थान चाहिए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सोमवार, 5 अगस्त 2019
【SEAnews】Review:The baptism of the Holy Spirit (Love your neighbor as yourself)-E
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कविता और कुछ नहीं... - कविताएं और कुछ नहीं आँसू हैं लिखे हुए.... खुशी की आँच कि दुखों के ताप के अतिरेक से पोषित लयबद्ध हुए... #कविताक्याहै5 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes atau dompo - *cara mengobati herpes atau dompo* - Kita harus mengetahui apa Gejala Penyakit Herpes Dan Pengobatannya, agar ketika kita terjangkiti penyakit herpes, kit...5 वर्ष पहले
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तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात - तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी .. तुमसे मिलने के बाद पर समय को किसने थामा है आज तक हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर बहुत दूर चलने के लिए पर रस्ते ...5 वर्ष पहले
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अरे अरे अरे - आ गईं तुम आना ही था तुम्हे देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था, आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी। वह भीगी हुई चने की दाल और हरी मिर्च जो तोते के लिये...5 वर्ष पहले
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यह विदाई है या स्वागत...? - एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है | अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं पह...5 वर्ष पहले
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मन के अंदर चल रहा निरंतर संघर्ष कठिन यह मानव के ... - इच्छाओं के चक्रवात से निरंतर जूझ रहा यह मानव मन उड़ जाता है अशक्त आत्मबलरहित तिनके के माफिक। इधर उधर बेचैन कहीं भी, बिना छोर और बिना ठिकाना दरबदर भटकता व्...6 वर्ष पहले
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BIJASAN DEVI - विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय - [image: Navratri 2018: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय] *मध्यप्रदेश बिजासन देवी धाम को आज कौन नहीं जानता। कई लोगों की कुलदेव...6 वर्ष पहले
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पापा तुम क्यों चले गए ? - पापा ……………………………….. तुम्हारी साँसों में धडकन सी थी मैं , जीवन की गहराई में बचपन सी थी मैं । तुम्हारे हर शब्द का अर्थ मैं , तुम्हारे बिना व्यर्थ मैं , ...6 वर्ष पहले
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कविता- " इक लड़की" 8 मार्च- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर - *इक लड़की* *मुस्कराहट, * *उसकी आँखों से उतर;* *ओठों को दस्तक देती;* *कानों तक फ़ैल गई थी.* *जो* *उसकी सच्चाई की जीत थी. * *और * *उसकी उपलब्धि से आई थी.* *वो ...6 वर्ष पहले
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मेरी कविता - जीवन - *जीवन* *चित्र - google.com* *जीवन* * तुम हो एक अबूझ पहेली, न जाने फिर भी क्यों लगता है तुम्हे बूझ ही लूंगी. पर जितना तुम्हे हल करने की कोशिश कर...7 वर्ष पहले
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“ रे मन ” - *रूह की मृगतृष्णा में* *सन्यासी सा महकता है मन* *देह की आतुरता में* *बिना वजह भटकता है मन* *प्रेम के दो सोपानों में* *युग के सांस लेता है मन* *जीवन के ...7 वर्ष पहले
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मन का टुकड़ा मनका बनाकर - मन का टुकड़ा मनका बनाकर मनबसिया का ध्यान करूं | प्रेम की राह बहुत ही जटिल है ; चल- चल कर आसान करूं | (१५ जुलाई २०१७, रात्रि )7 वर्ष पहले
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ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है? - जात-पात न धर्म देखा, बस देखा इंसान औ कर बैठी प्यारछुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकारहाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपातनाम डुबो दिया,...7 वर्ष पहले
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हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...3 - गत अंक से आगे.....हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रारम्भिक दौर बहुत ही रचनात्मक था. इस दौर में जो भी ब्लॉगर ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह इस माध्यम के प्रति ...7 वर्ष पहले
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प्रेम करती हूँ तुमसे - यमुना किनारे उस रात मेरे हाँथ की लकीरों में एक स्वप्न दबाया था ना उस क्षण की मधुस्मृतियाँ तन को गुदगुदाती है उस मनभावन रुत में धडकनों का मृदंग बज उ...7 वर्ष पहले
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गाँधी जी...... - गाँधी जी...... --------- चौराहॆ पर खड़ी,गाँधी जी की प्रतिमा सॆ,हमनें प्रश्न किया, बापू जी दॆश कॊ आज़ादी दिला कर, आपनॆं क्या पा लिया, बापू आपके सारॆ कॆ सारॆ सि...7 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...8 वर्ष पहले
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आप अदालत हैं - अपना मानते हैं जिन्हें वही नहीं देते अपनत्व। पक्षपात करते हैं सदैव वे पुत्री के आँसुओं का स्वर सुन। नहीं जाना उन्होंने मेरी कटुता को न ही मेरी दृष्टि में बन...8 वर्ष पहले
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फिर अंधेरों से क्यों डरें! - प्रदीप है नित कर्म पथ पर फिर अंधेरों से क्यों डरें! हम हैं जिसने अंधेरे का काफिला रोका सदा, राह चलते आपदा का जलजला रोका सदा, जब जुगत करते रहे हम दीप-बा...8 वर्ष पहले
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चलो नया एक रंग लगाएँ - लाल गुलाबी नीले पीले, रंगों से तो खेल चुके हैं, इस होली नव पुष्प खिलाएँ, चलो नया एक रंग लगाएँ । मानवता की छाप हो जिसमे, स्नेह सरस से सना हो जो, ऐसी होली खू...8 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
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विचार शून्यता। - विचार , कई बार बहते है हवा से, छलकते है पानियों से, झरते है पत्तियों से और कई बार उठते है गुबार से घुटते है, उमड़ते है, लीन हो जाते है शून्य में फिर यह...8 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...9 वर्ष पहले
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एक रामलीला यह भी - एक रामलीला यह भी यूं तो होता है रामलीला का मंचन वर्ष में एक बार पर मेरे शरीर के अंग अंग करते हैं राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के पात्र जीवन्त. देह की सक...9 वर्ष पहले
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मन गुरु में ऐसा रमा, हरि की रही न चाह - ॐ श्री गुरुवे नमः *ॐ ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।* * द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् । ...9 वर्ष पहले
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गुरु पूर्णिमा - आज गुरु पूर्णिमा है ! अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का दिवस ,गुरु शब्द का अर्थ होता है अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला ,अज्ञान ज्ञान की और ले...9 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
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क्रिकेट विश्व कप 2015 विजय गीत - धोनी की सेना निकली दोहराने फिर इतिहास अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस | शास्त्री की रणनीति भी है और विराट का शौर्य , धोनी की तो धूम मची है विश्व ...9 वर्ष पहले
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'मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से' - मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से… मेरे कान फ़ट चुके हैं सवेरे से लाउड वाहियत गाने सुनकर और फ़ुर्र हो चुका है गर्व। ये कौनसा रंग है मेरे देश का? बिल्कुल ऐसा ...9 वर्ष पहले
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कथा सुनो शबाब की - *कथा सुनो शबाब की* *सवाल की जवाब की* *कली खिली गुलाब **की* *बड़े हसीन ख़ाब की* * नया नया विहान था* * घ...9 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...10 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...10 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...10 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...10 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
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रंग रंगीली होली आई. - [image: Friends18.com Orkut Scraps] रंग रंगीली होली आई.. रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...10 वर्ष पहले
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भ्रष्ट आचार - स्वतंत्र भारत की नीव में उस समय के नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रख दिये थे भ्रष्ट आचार फिर देश से कैसे खत्म हो भ्रष्टाचार ?11 वर्ष पहले
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अन्त्याक्षरी - कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इ...11 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर - 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्...11 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...12 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
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Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar - Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the...12 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...13 वर्ष पहले
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अब बक्श दे मैं मर मुकी - चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी, मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी, मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख के ढेर दिल मैं कहीं, सुलग सुलग के आय...13 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
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दरिन्दे - बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ। ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ ढूँढो शयद वह ज़िन...14 वर्ष पहले
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