सपनो को क्या चाटेंगे
तुम भी मुफलिस ,हम भी मुफलिस,आपस में क्या बाटेंगे
बची खुची जो भी मिल जाए , बस वो खुरचन चाटेंगे
एक कम्बल है ,वो भी छोटा,और सोने वाले दो हैं,
यूं ही सिकुड़ कर,सिमटे ,लिपटे, सारा जीवन काटेंगे
लाले पड़े हुये खाने के, जो भी दे ऊपरवाला ,
पीस,पका कर ,सब खा लेंगे ,क्या बीनें,क्या छाटेंगे
झोंपड़ पट्टी और बंगलों के बीच खाई एक ,गहरी है,
झूंठे आश्वासन ,वादों से ,कैसे इसको पाटेंगे
क्या धोवेगी और निचोडेगी ,ये किस्मत नंगी है,
यूं ही फांकामस्ती में क्या ,बची जिन्दगी काटेंगे
पेट नहीं भरता बातों से ,तुम जानो,हम भी जाने,
मीठे सपने,मत पुरसो तुम,सपनो को क्या चाटेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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