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मंगलवार, 14 जनवरी 2025

उतरायणी पर्व

उतरायणी है पर्व हमारा,

समता को दर्शाता है।

कहीं मनाते लोहड़ी इस दिन,

कोई बिहू ‌मनाता है।

महास्नान गंगासागर में,

जो उतरायणी को करता।

जप,तप,दान और तर्पण कर,

मानस मन उज्जवल होता।

देवालय में लगते मेले,

तिल, गुड़ के पकवान बनाते।

इसी तरह हो मीठा जीवन,

आपस में सब मिलजुल गाते।

आटे में गुड़ मिला गूंथकर,

घुघुते और खजूर बनाते।

इन्हें पिरोकर माला में फिर,

बच्चे काले कौवा गाते।

त्यौहारों का देश हमारा,

सदा यहां खुशहाली है।

मिलजुल कर त्यौहार मनाते,

भारत की शान निराली है।



हेमलता सुयाल

   स॰अ॰

रा॰प्रा॰वि॰जयपुर खीमा

क्षेत्र-हल्दवानी

जिला-नैनीताल

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

मेहमान का सत्कार

मेरे एक मित्र ने बात चीत में यह बताया कि वह किसी रिश्तेदार  के घर ,रात्रि विश्राम के लिए गये थे।

शेष उनके अनुभव कुछ ऐसे थे। 


।।।।।मेहमान का सत्कार।।। 


बात चीत होगी जी भरकर। 

पहुंचा था मैं यही सोचकर। 

कुशल क्षेम जल पान हुआ। 

भोजन का निर्माण हुआ। 


बैठक कक्ष में खुल गया टी0वी0।

साथ-साथ बैठ गये तब हम भी।

सब के हाथ तब फोन आ गया। 

टी0वी0 का आभाष चला गया। 


सब टप-टप करने लगे फोन पर। 

किसकी किसको सुध वहां पर? 

व्यक्ति पांच पर सभी अकेले। 

थे गुरु को हाथ उठाये चेले।


सब दुनिया से बेखबर वे। 

भ्रांति लोक में पसर गये वे। 

मन ही मन वे कभी मुस्कराते। 

कभी मुख भाव कसैला लाते। 


फिर मैंने भी फोन उठाया। 

भ्रांति लोक में कदम बढाया। 

पल ,मिनट,घंटे बीत गये। 

यहां किसी को सुध नहीं रे। 


तभी किसी का फोन बज उठा। 

अनचाहे वह कान में पहुंचा। 

बात हुई कुछ झुंझलाहट में। 

नजर गयी दीवाल घडी़ में। 


रात्रि के दस बज गये थे। 

शीतल सब पकवान पेड़ थे।  

इतनी जल्दी दस बज गये। 

व्यन्जन सारे गर्म किये गये


खाना खाया फिर सो गये। 

सुबह समय से खडे हो गये। 

फिर मैं अपने घर आ गया। 

सत्कार मेरे ह्रदय छा गया। 




।।।विजय प्रकाश रतूडी़।।।

शनिवार, 4 जनवरी 2025

मेरे महबूब न मांग 

मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग 

बड़े जलते हुए अंगारे थे हम जवानी में 
लगा हम आग दिया करते ठंडे पानी में
 नहीं कुछ रखा हैअब बातें इन पुरानी में

 ऐसी जीवन में बुढ़ापे में अड़ा दी है टांग 
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग 

गए वह दिन जब मियां फाख्ता मारा करते आती जाती हुई लड़कियों को ताड़ा करते 
अब तो जो पास में है उससे ही गुजारा करते

पड़े ढीले ,मगर मर्दानगी का करते स्वांग 
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

हर एक बॉल पर हम मार देते थे छक्का  
हमारा जीतना हर खेल में होता पक्का
मगर इस बुढापे ने हमे कहीं का ना रक्खा 

जरा सी दूरी तक भी अब न लगा सकते 
छलांग 
मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग 

हमारे साथ नहीं सबके साथ यह होता 
अपनी कमजोरियों से करना पड़ता समझौता 
आदमी अपनी सारी चुस्ती फुर्ती है खोता 

हरकतें करने लगता बुढ़ापे में ऊट पटांग 
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 28 दिसंबर 2024

दिव्य प्रेम


दिव्यन और अनुष्का ,रहे प्रेम रस भीज 

दिव्य अणु है प्रेम का, इन दोनों के बीच 

इन दोनों के बीच , बंधा है बंधन ऐसा 

गहरा प्यार ,मिलन स्थल सागर के जैसा 

देते आशीर्वाद तुम्हें है घोटू दादा 

सदा करें ये प्यार, एक दूजे से ज्यादा 


इनका जीवन हमेशा, रहे सुखी संपन्न 

एक दूजे के साथ ये, हरदम रहे प्रसन्न 

हरदम रहे प्रसन्न , प्रार्थना यह ईश्वर से

इनके जीवन में खुशियां ही खुशियां बरसे

चहुमुखी करें विकास,हृदय से हम सब चाहे 

सोने की सीढ़ी, दादा घोटू चढ़ जायें 


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 4 दिसंबर 2024

सपना

गांव भरा था लोगों से। 

लहलहा रहे थे खेत। 

हर आंगन में गाय बंधी थी। 

बैल बंधे थे धवल सफेद। 


कुछ घरों में मुर्रा भैंसें। 

खड़ी हुई थी खाती घास। 

बहुएं उनको नहलाती थी। 

अंदर चुल्हा करती सास। 

बच्चों की किलकारी रह रह। 

मिश्री घोले कान में। 


सबके अपने खेत हैं। 

आम के पेड़ अमरुद के बाग। 

अपनी क्यारी फुलवारी है। 

सब्जी घर की घर का साग। 


घर के अंदर हर बर्तन। 

भरा हुआ है दालों से। 

ठूंस ठूंस कर कुठार भरे हैं। 

नाज झंगोरा दानों से। 

कुछ और ड्रम रखे हैं। 

उनमें मंडवा भरा पडा। 

इस औषधीय सतनाजे से। 

कमरा कमरा भरा पड़ा। 


कुछ तोमडे रखे हुए हैं। 

भरे तिल भंगजीर से। 

कुछ कमोले भरे लवालव। 

घर के देशी घी से। 


बाहर आंगन में है सबके। 

एक एक चुल्हा बना हुआ। 

दाल का भड्डू सुबह से ही। 

उसके ऊपर चढा हुआ। 


खाने वाले हर चुल्हे पर। 

दस बारह से नहीं हैं कम। 

तीन पीढियां साथ में रहती। 

बडे प्यार से तो क्या गम? 


स्वर्ग सी अनुभूति हुई थी। 

प्रेम नहीं तो स्वर्ग नहीं। 

शायद अतीत की थी यादें। 

यादें थीं यह स्वप्न नहीं। 

नींद खूली तो कुछ विश्वे के। 

घर में था मैं पडा हुआ। 

मैं मेरी पत्नी दो बच्चे। 

बाहर पेपर वाला खड़ा हुआ। 


शब्दार्थ।। कुठार =काठ या लकडी के बडे संदूक।। तोमडे =बीज के लिए संभाली लौकी का खोल।। कमोले =लघु घडे। 


।। खोया पाया से।। विजय प्रकाश रतूडी।

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