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बुधवार, 15 जुलाई 2015

कान्हा की मुश्किल

          कान्हा की मुश्किल

नहीं वृन्दावन तुम,हो  आते कन्हैया
न लीलायें अपनी  ,दिखाते कन्हैया
सुनी बात ये तो ,कहा ये किशन ने
बहुत कुछ गया अब ,बदल वृन्दावन में
कभी हम चराते थे गायें जहाँ पर
नयी बस्तियां ,बस गयी है वहां पर
नहीं गोपियाँ जा के ,जमुना नहाये 
भला उनके कैसे वसन हम चुराएं
सभी के घरों में ,बने स्नानघर  है
नहा कर वहीं से ,निकलती ,संवर है
सुना करती दिन भर है वो फ़िल्मी गाने
उन्हें क्या लुभाएगी ,मुरली की ताने
घरों में अब मख्खन ,बिलौते नहीं है
चुराऊं क्या, ना दूध है  ना  दही  है 
मैं  जमुना नहाऊँ ,बहुत आता जी में
मगर है प्रदूषण ,बड़ा जमुना जी में
कई कालियानाग,वमन विष का करते
 हुई जमुना मैली,इन्ही की वजह से 
पुलिस से शिकायत ,करेगा जो कोई
दफा,हर दफा वो लगा देंगे  ,कोई
चुराऊं जो माखन,अगर घर में घुस कर
दफा वो लगा देंगे ,तीन सौ अठहत्तर
फोडूं जो मटकी ,अगर मार  कंकर
दफा पांच सौ नो में ,कर देंगे अंदर
अगर गोपियों के ,चुराउंगा  कपडे
तीन सो चोपन में ,वो मुझको पकडे
मै बोला डरो मत,कन्हैया तुम इतने
पुलिस और दारोगा,सभी भाई अपने
तुम्हारे लिए माफ़ ,हर एक खता है
यदुवंशियों का ही  शासन  यहाँ  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

स्वच्छता अभियान

        स्वच्छता अभियान

स्वच्छता अभियान अच्छी बात है
गली,गाँव ,सबको  रखना  साफ़ है
पर सफाई ये सिरफ़ ,काफी नहीं
कहीं पर भी गंदगी  ,भाती  नहीं
राजनीति स्वच्छ होनी चाहिए
नीतियां ,स्पष्ट   होनी    चाहिए
पारदर्शक ,दफ्तरों में काम हो
काम करवाना जहाँ आसान हो
स्वच्छता हो ,आचरण ,व्यवहार में
काम सारे निपट जाएँ,प्यार  में
नहीं मन में मैल होना चाहिए
और सभी में मेल होना चाहिए
नहा धोकर ,साफ़ तुम करलो बदन
कितने ही उजले ,धुले पहनो वसन
पर न मन में पाप होना चाहिए
दिल तुम्हारा साफ़ होना चाहिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 13 जुलाई 2015

बंधन का सुख

           बंधन का सुख

आवश्यक जीवन में बंधन ,बंधन  रहता  अनुशासन
उच्श्रृंखलता बांध जाती है ,जब बंधता शादी का बंधन
बिखरे रहते है अस्त व्यस्त ,पर खुले बाल जब बंधते है
नागिन सी चोटी बन कर ये,कितने ही  दिल को डसते है
जब तक कंचुकी की डोर बंधी, तब तक उन्नत,यौवन उभार
जो  खुली डोर ,स्वच्छंद हुए ,तो नज़र आएंगे ये  निढाल
यदि नहीं रहे जो बंधन में ,ये कलश ढलक फिर जाते है
बंधन है  तब ही तने हुए ,ये  सबके  मन  को  भाते है
कितना ज्यादा सुख देता है ,जब बंधता बाँहों का बंधन
तुम्हारी लाज  बचा कर के , रखता तुम्हारा कटिबंधन
आवारा बादल के जैसे ,  हर कहीं बरसना ठीक नहीं
बंधन में ही सच्चा सुख है ,स्वच्छंद विचरना ठीक नहीं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


प्रभु की रचना -नारी

         प्रभु की रचना -नारी

प्रभु तेरी रचना यह नारी,कितनी अद्भुत,कितनी सुन्दर
सर पर बादल के दल के दल ,मुस्कान गुलाबी गालों पर
चन्दा से चेहरे पर शोभित, दो नयन,मीन से,मतवाले
मोती सी प्यारी दन्त लड़ी,दो अधर ,भरे रस के प्याले
पीछे है भार नितम्बों का,आगे यौवन का भरा भार
इसलिए संतुलित रहता तन,ना कमर लचकती बार बार
वरना इतनी कमनीय कमर ,ना जाने कितने बल खाती
मतवाली चाल देख कर के,कितनी ही नज़र फिसल जाती
नारी तन पर दे युगल कलश ,पहले उन्माद  भरा उनमे
फिर जब मातृत्व जगाया तो,ममता का स्वाद भरा उनमे
नाजुक गोरा तन टिका हुआ ,कदली के दो स्तम्भों पर
कितना महान वह रचयिता ,जिसकी रचना इतनी सुन्दर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ग्रास रुट वर्कर

          ग्रास रुट वर्कर

ये हरे भरे मखमली लॉन ,जो नज़र  आ  रहे है सुन्दर
इनकी ये रौनक,चमक दमक,सब टिकी हमारे ही बल पर 
वो सत्ता पर आसीन हुए ,हम ही लाये है चुनवा  कर
भूले भटके ही मुश्किल से , वो लेने आते कभी खबर
वो राज कर रहे महलों में,हम भटक  रहें है सड़कों पर
फिर भी सेवा को हम तत्पर,हम ग्रास रुट के है वर्कर
 कर बड़ी रैलियां नेताजी  ,जब हाथ जोड़ मुस्काते है
झूंठे  वादे कर ,जनता को ,मीठे सपने दिखलाते है
इतनी जनता जो आती है ,हम ही  वो भीड़ जुटाते है  
करवाते जयजयकार और हम ही ताली बजवाते है
भूले भटके कोई नेता ,तारीफ़ हमारी देता कर
हम उसमे ही खुश हो जाते ,हम ग्रासरूट के है वर्कर
ये कौम मगर नेताओं की ,सत्ता पा हमें भुलाती है
होने लगता मौसम उजाड़ तब याद हमारी आती है
जाने लगती है जब बहार  ,तब याद हमारी आती है
आने वाला होता चुनाव , तब याद हमारी आती है
हम ही दिलवाते उन्हें वोट ,फिर गावों में घर घर जाकर
वो जीत भुला देते हमको, हम ग्रास रुट के है वर्कर
वो पांच साल मे एक बार ,अपना चेहरा है दिखलाते
वो करे प्रदर्शन हम जाते,पोलिस के डंडे हम खाते
मुश्किल से ही छोटे मोटे ,उनसे कुछ काम करा पाते 
गांववाले कहते हमको ,नेताजी,हम खुश हो जाते
वो करे खेल ,हम भरें जेल ,और भटका करते है दर दर
फिर भी हम नहीं बदलते दल,हम ग्रास रुट के है वर्कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 11 जुलाई 2015

अलग अलग राधायें

            अलग अलग राधायें

कोई अपना आपा खोती ,तो कोई तृप्त रहती ,धापी
हर एक राधा के जीवन में ,चलती रहती  आपाधापी 
कोई राधा यमुना तट पर,कान्हा संग रास रचाती है
रहती है व्यस्त कोई घर का ,सब कामकाज निपटाती है
है नहीं जरूरी हर राधा को नाच नाचना  आना है 
तुम उसे नाचने  की बोलो ,तो देती बना बहाना है
कोई राधा ना नाचेगी , बतलाती  टेढ़ा  है  आँगन
कोई राधा तब नाचेगी ,जब तेल मिले उसको नौ मन 
यदि नहीं नाचने का उसके ,मन में जो अटल इरादा है
तो कई बहाने बना बना ,बस नहीं नाचती राधा  है
यमुना तट ,कृष्ण बुलाते है ,मुरली की ताने बजा बजा
 खूंटी ताने सोती रहती  ,राधा निद्रा का लिए  मज़ा
राधा की अलग अलग धारा ,राधा राधा में है अंतर
कोई को विरह वेदना है, कोई बैठी देखे पिक्चर
कोई प्यासी है तो कोई बरिस्ता में जा पीती  है कॉफी
हर एक राधा के जीवन में ,चलती रहती आपाधापी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आओ थोड़ी सी करवट लें

          आओ थोड़ी सी करवट लें

चित्त पड़े चित नहीं लग रहा ,थोड़ा अपना ध्यान पलट लें
                                             आओ थोड़ी सी करवट लें          
रहे देखते आसमान को,लगा टकटकी,आस लगाए
ऊपरवाला कुछ  सुध ले ले,अपनी कृपासुधि बरसाए
लेकिन उसने ध्यान दिया ना,रहे कब तलक ऐसे लेटे
दांयें बाएं करवट लेकर ,अपने अगल   बगल  भी  देखें
कई बार अपना मनचीता ,मिल जाता है आसपास  ही ,
उसको  खोजें और टटोलें ,उसके आने   की आहट   लें
                                      आओ  थोड़ी सी करवट  लें
कई बार ऐसा  होता  है,घर में छोरा ,गाँव   ढिंढोरा
इसीलिये ये आवश्यक है,आस पास भी देखें थोड़ा
आस लगा कर देख रहें है,मन में जिसके सपने प्यारे
बैठी हो वो ऋद्धि सिद्धि ,अगल बगल ही ,पास तुम्हारे
सीधे पड़े लगी है दुखने ,अब तो कमर ,नींद ना आती,
शायद पलट जाय किस्मत ही ,कुछ परिवर्तन,हम झटपट लें
                                             आओ थोड़ी सी करवट लें
सिमटे,सिकुड़ रहें क्यों लेटे ,थोड़ा हाथ पैर फैलाएं
मिल सकते है हमको कितने,मोती बिखरे दांयें बांयें
सीमित बंधे हुए बंधन में ,रहना  बाधक है प्रगति में
कुछ  करके दिखलाना हो तो,रखें हौसला अपने जी में
रहें न कूपमण्डूकों जैसे , बाहर निकले हम कुवें से ,
है विशाल संसार,निकल कर,इसकी भी तो ज़रा झलक लें
                                          आओ थोड़ी सी करवट लें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 8 जुलाई 2015

बिगड़े रिश्ते

          बिगड़े रिश्ते

कई बार ,
सहेजे हुए गेहूं में भी घुन लग  जाते है
पिसे हुए आटे  में, कीड़े  पड़  जाते  है
संभाली हुई दालों में ,फफूंद लग  जाती है 
पर उन्हें हम फेंकते नहीं,
साफ कर,छान कर ,कड़क धूप  देते है
और फिर से सहेज लेते है
इसी तरह ,
जब आपसी रिश्तों में ,
शक के कीड़े और स्वार्थ का घुन लगता है
तो उन्हें ,प्यार की धूप देकर
और सौहार्द की चलनी से छान ,
फिर से सहेजा जा सकता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खाने के शौकीन

      खाने के शौकीन

हमारे शौक खाने के ,हमसे क्या क्या कराते है
हम मूली,गोभी,आलू के,बना खाते  परांठे   है
बड़ा चिकना सा वो बैंगन ,ताज पहने था मतवाला
इस तरह आग में भूना ,उसका भुड़ता बना डाला
गुलाबी छरहरी गाजर का था जो सेक्सी  जलवा
उसको किस किस किया ,भूना,बनाया टेस्टी हलवा
काट मोटे से कद्दू को ,बनाये  आगरा  पेठे
दूध को फाड़,छेना कर,हम रसगुल्ले बना बैठे
बना हम क्या का क्या देते ,बड़े खाने के हैं  रसिया
चने से दाल,फिर बेसन ,कभी लड्डू,कभी भुजिया
फुलकिया आटे की फूली ,में भर कर चरपरा पानी
आठ दस यूं ही गटकाते ,हमारा कोई ना सानी
कभी चटनी दही के संग , मसाला आलू भर खाते  
पानीपूरी ,गोलगप्पा,कहीं पुचका  कह पुचकाते
हम पालक ,मिर्ची ,बेंगन के, पकोड़े तल के खाते है
हमारे शौक खाने के ,हम से क्या क्या कराते है

घोटू

जड़-चेतन

             जड़-चेतन

अंकुरित बीज जब होता ,तो नीचे जड़ निकलती है
पेड़  पौधों में जीवन का ,जड़ें  संचार  करती  है
जड़ों में जान है जब तक ,वृक्ष सब चेतन रहते है
जो चेतन रखती है सबको,उसे फिर जड़ क्यों कहते है

घोटू

रूमानी मौसम

              रूमानी मौसम

कलेजा आसमां का चीर ,बरसती रिमझिम
ये बूँदें बारिशों की ,प्यार की ,जैसे सरगम
भीग कर कपडे भी ,तन से चिपकने लगते है ,
 रूमानी इस कदर बारिश का ये होता मौसम

घोटू 

ग़लतफ़हमी

                ग़लतफ़हमी

एक दिन मुर्गों के मन में , अचानक बात ये आई ,
            सवेरा तब ही  होता है कि जब हम बांग देते है
और इंसान है हमको ,भून तंदूर में खाता,
             करें हड़ताल एक दिन हम सुबह को टांग देते है
नहीं दी बांग एक दिन ,सूर्य पर निश्चित समय निकला
                   पड़ा ना फर्क रत्ती भर   ,रोज जैसा सवेरा  था
देख दिनचर्या हर दिन सी,ठिकाने आ गई बुद्धि  ,
              समझ औकात निज आयी ,ग़लतफ़हमी ने घेरा था        

घोटू

मधुमक्खी सी औरतें

          मधुमक्खी सी औरतें

औरतें होती है ,मधुमक्खी सी कर्मठ
परिवार हित करती दिन भर ही है खटपट
उड़ उड़ कर ,पुष्पों से ,करती है मधु संचित
छत्ते को भर देती ,रह जाती ,खुद  वंचित
डालता छत्ते पर ,कोई जो बुरी  नज़र
काट काट उसका वो बुरा हाल देती कर
एक दूजे संग गहरा ,बड़ा प्यार है इनका
बसा मधु छत्ते में ,परिवार  है  इनका

घोटू 

जमे हुए रिश्ते

           जमे हुए रिश्ते

आजकल हालत हमारी ,इस तरह की हो रही है
रिश्ते ऐसे जम गए है ,जैसे जम जाता  दही है
नींद हमको नहीं आती ,उनको भी आती नहीं है
जानते हम ,हो रहा जो ,सब गलत कुछ ना सही है
हमारे रिश्तों में  पर    ऐसी दरारें पड़  गयी है
अहम का टकराव है ये ,दोष कोई का नहीं है
सो रहे हम मुंह फेरे,वो भी उलटी  सो रही  है
मिलन की मन में अगन पर ,जल रही वो वही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीत का अंदाज

                 जीत का अंदाज          

हरेक चूहे में इतनी काबलियत कहाँ होती है ,
                 मिले एक कपडे की चिंदी ,और बजाज बन जाए
कभी भी जिसके पुरखों ने ,न मारी मेंढकी भी हो,
                 हिम्मती बेटा  यूं निकले  ,कि तीरंदाज  बन जाए
भरा मन में जो ज़ज्बा हो,अगर कुछ कर दिखाने का,
                    तो कायनात की सब ताकतें भी साथ देती है,
तुम्हारे हौंसले को फक्र  से सलाम सब बोलें,  
                    तुम्हारी जीत का कुछ इस तरह ,अंदाज बन जाए  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

यादें -बरसात की

              यादें -बरसात की

हमको तो बारिश में भीगे ,एक अरसा हो गया ,
               मगर वो रिमझिम बरसता प्यारा सावन याद है
याद है वो नन्ही नन्ही ,बूंदों की मीठी चुभन ,
                      श्वेत  भीगे वसन से वो झांकता तन ,याद है
पानी में तरबतर तेरा थरथरा कर कांपना,
                     संगेमरमर से बदन की ,प्यारी सिहरन याद है
तेरी जुल्फों से टपकती ,मोतियों की वो लड़ी,
                      और भीगे से अधर का , मधुर चुम्बन  याद है
मांग से चेहरे बहती लाली वो सिन्दूर की,
                      आग तन मन में लगाता ,तेरा यौवन याद है
तेरे संग बारिश में मेरा ,छपछपा कर नाचना ,
                       आज भी मुझको वो अपना दीवानापन याद है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

सोमवार, 6 जुलाई 2015

शिकायत -प्रियतमा से

         शिकायत -प्रियतमा से

 मैं करता थोड़ी छेड़छाड़ ,तुम देती हो फटकार प्रिये
क्या   है ये अदा सताने की , या फिर तुम्हारा प्यार प्रिये
तुम नहीं पवन से कुछ कहती ,जो आँचल रोज उड़ाती है
टकराती तुमसे बार बार  और जुल्फों  को  सहलाती है
 है नहीं शिकायत तुमको जब,मदमाती बूँदें  बारिश की
तुम्हारा बदन भिगो देती ,दीवाने ,पागल आशिक़ सी
वो बाथरूम का    आइना ,अंग अंग निहारा करता है
जब सजती और संवरती हो ,वो तुमको ताड़ा करता है
वो तुम्हे देख कर हँसता है ,खींसे निपोर ,आवारा सा
पर उसे देख तुम मुस्काती ,वो लगता तुमको प्यारा सा
ये सब के सब ही खुले आम,करते है तुमसे छेड़छाड़
पर तुमको अच्छी लगती है,उनकी ये हरकत बार बार
क्या मुझमे कांटे उगे हुए ,जो बदन तुम्हारा छीलेंगे
या मधुमक्खी बन लब मेरे, तेरा सब अमृत पी लेंगे
जो पास न आती हो मेरे ,इतने नखरे दिखलाती हो
मेरी बाहों से छिटक छिटक ,तुम दूर दूर हट जाती हो
तुम पास आओ,मैं बारिश  बन,तेरा अंग अंग भिगा दूंगा
मैं ह्रदय आईने में अपने ,तुम्हारा अक्स दिखा दूंगा
मेरी साँसों की गरम हवा ,देगी तुम्हारे उड़ा होश
दूने रस से  भर जाएंगे  ,तुम्हारे मादक मधुकोश
तुम मुझे समर्पित हो जाओ,जी भर मुझसे अभिसार करो 
सुख  का संसार बसा  दूंगा, तुम मुझे प्यार,बस प्यार करो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

रूढ़ियाँ

                        रूढ़ियाँ
प्रगति हमने बहुत कर ली ,हो रहे है आधुनिक,
              चन्द्रमा ,मंगल ग्रहों पर रखा हमने हाथ है
रूढ़िवादी सोच लेकिन और पुरानी भ्रांतियां ,
               आज भी चिपकी हुई,  रहती  हमारे साथ है
'रेड लाईट 'पर भले ही ,हम रुकें या ना रुकें,
                बिल्ली रास्ता काट देती,झट से रुक जाते है हम
कोई भी शुभ कार्य हो या जा रहे हो हम कहीं,
                 छींक जो देता है कोई ,तो सहम जाते   कदम
आधुनिक से आधुनिकतम ,सुरक्षित,सुविधाजनक ,
                  खरीदा करते कई लाखों की मंहगी  कार हैं
किन्तु पूजा करके नीबू चार लेकर सड़क पर,    
                   चार पहियों से दबाना  ,आज भी बक़रार है
शुभ मुहूर्त देखते रहते है और हर काम में,
                     दिशाशूलम,राहुकालम,आज भी है रोकता  
 आज भी हम ठिठक जाते और लगता है बुरा ,
                     निकलते जब कहीं जाने और कोई टोकता
काम यदि जो बन न पाये कुछ भी हो कारण भले ,
                    और यदि जो कुछ बुरा उस दिन हमारे संग हुआ
अपनी कमजोरी या कमियां ,कुछ नहीं आती नज़र ,
                      सुबह मुंह देखा था जिसका ,उसे  देते   बददुआ
ठेकेदारी धर्म की पण्डे और पंडित कर रहे , 
                        भागवत की कथाएं अब बन गयी व्यापार है
 कुटिल साधू  संत  के संग,चल रहा सत्संग है,
                        पुरानी सब संस्कृति  का ,हुआ  बंटाधार  है
ज्योतिषी  को जन्मपत्री ,हस्त रेखाएं दिखा ,
                        हम ग्रहों का शांति पूजन ,कराते  हर रोज है
महिमामंडित खुद को कितना भी करें हम शान से ,
                       सत्य यह ,अब भी हमारी ,बड़ी कुंठित सोच है
 सवेरे दूकान ,ठेले  और हर   शोरूम  पर ,
                      नीबू और मिर्ची पिरोये  ,लटकते  मिल जाएगे
हम कहाँ थे ,और कहाँ है और कहाँ तक जाएंगे ,
                      पर  पुरानी  मान्यताएं  ,क्या बदल हम पाएंगे             

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 30 जून 2015

तेरे संग भगवान है घोटू

  तेरे संग भगवान है घोटू

समय बड़ा  बलवान है घोटू
तू कितना   नादान  है  घोटू
वो ही इसको शांत  करेगा,
लाया जो  तूफ़ान है घोटू
जीवनपथ में कई अड़चने ,
सफर न ये आसान है घोटू
आज यहाँ तक जो तू पहुंचा,
ये उसका  अहसान है घोटू
वही करेगा एक दिन पूरे  ,
तेरे जो अरमान है घोटू
कल क्या होगा ,कोई न जाने ,
हर कोई अनजान है घोटू
उसके आगे सब है   बेबस,
कुछ भी ना इंसान है घोटू 
साथ नहीं कुछ भी जाएगा ,
दिखा रहा क्यों शान है घोटू 
तेरी  नैया पार करेगा ,
तेरे संग भगवान है घोटू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'






देवी महिमा

                    देवी महिमा

जो भागदौड़ करती दिनभर और जिसके बल चलता है घर
छोटी छोटी सब बातों में  ,सारा घर भर ,जिस  पर  निर्भर
वह अन्नपूर्णा  है घर की  ,वह ज्ञानदायिनी , शिक्षक   है
पति की सुखदायक  रम्भा है और सास ससुर की सेवक है
वह रूप लिए कितने सारे ,है दिन भर ही खटती रहती
हर एक सदस्य के मन माफिक ,थोड़ा थोड़ा बंटती रहती
दे ससुर साहब को गरम दूध,सासू घुटनो पर तेल मले
और पतिदेव की फरमाइश पर चाय,पकोड़े गरम  तले
सबके सुख दुःख की साथी है,अपना कर्तव्य निभाती है
कोई को भी हो कुछ  पीड़ा   ,झट भागी भागी  जाती है
बच्चों को करवा होमवर्क, बाज़ार जाए,सौदा  लाये
देखे बिखरा और अस्त व्यस्त ,घर की सफाई में जुट जाए
वह टूटे हुए बटन टाँके ,और फटे  वस्त्र कर ठीक, सिये
दिन भर मशीन सी काम करे ,अपने मुख पर मुस्कान लिए
वह सरस्वती है ,लक्ष्मी है , देवी दस हाथों वाली है
वह शक्तिशालिनी दुर्गा है,उसकी हर बात निराली है
वह सेवाव्रती  ,सुशीला है ,जिसके मन में है भरा प्यार
उस जग जननी ,माँ,देवी को ,है मेरा शत शत नमस्कार

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पहली बरसात

              पहली बरसात

है हमें याद ,हम भीगे थे ,बारिश की पहली रिमझिम में
उस भीगे भीगे मौसम में भी आग लग गयी थी तन में
लहराता आँचल पागल सा था तेरे तन  से  चिपक गया
थे भीगे भीगे  श्वेत वस्त्र ,तेरा निखरा था  रूप नया
उस मस्त मचलते  यौवन ने,  कुछ ऐसा जादू ढाया था
तू भी थोड़ी पगलाई थी,मैं भी थोड़ा   पगलाया था
तू अमृतघट ले पनघट पर आयी थी प्यारी पनिहारन
मैंने निज प्यास बुझाई थी ,कर घूँट घूँट रस आस्वादन
तेरे गालों को सहला कर ,लब चूम रहे थे  जो मोती
मैंने हौले से निगल लिए थे एक एक कर सब मोती
और जी भर रसपान किया  ,बौराये दीवानेपन में
है हमें याद ,हम भीगे थे ,बारिश की पहली रिमझिम में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बरसात के रंग

            बरसात के रंग
                     १
रसिकलाल बरसात में तर होकर  घर जाय
पत्नी जी चिंता करे  ,  सर्दी  ना  लग जाय
सर्दी ना लग जाय  ,वस्त्र  जब  भीगे सारे
अपने हाथों झट  पत्नी जी  उन्हें   उतारे,
पोंछे उनका बदन  ,अगन तन में सुलगाये
तभी भीगने में आनन्द ,दोगुना   आये 
               २
उस भीगी बरसात में ,कितनी गर्मी आय
गरम गरम हो पकोड़े ,गरम गरम हो चाय
गरम गरम हो चाय ,हाल कुछ बिगड़े ऐसे
हो ऐसा  माहोल , कोई  फिसले  ना  कैसे
कह घोटू कविराय ,लगे हर चीज  सुहानी
रोज रोज यूं ही  बरसो ,तुम बरखा  रानी
                     ३
दुखीराम कहने लगे ,बड़े तुम्हारे ठाट
हम भीगें ,घर पर मिले ,पत्नीजी की डाट
पत्नीजी की डाट,बड़ी होती है फजीहत
बीबी कहती क्यों करते हो बच्चों सी हरकत
बड़े हो गए इतने   ,अकल ज़रा  ना आई
आज सुबह ही कपड़ों पर थी प्रेस  कराई

घोटू
 

काटा काटी

             काटा काटी
                      १
चाकू से फल सब्जियां ,काटकाट सब खाय
कैंची  टांगों  बीच जो ,  आये सो  कट  जाय
आये सो कट जाए ,  काटते दांत   कटीले
काटे कटे न रात ,काट मच्छर  खूं    पीले
कह घोटू कविराय ,जानता है मेरा  दिल
तनहाई की रात काटना कितना मुश्किल
                       २
कहते है जो  भौंकता , ना काटे  वो  'डॉग'
बुरा शकुन यदि जाय जो,बिल्ली रस्ता काट  
बिल्ली रस्ता काट  ,कटीले उनके  नयना
समय न कटता ,पड़े दूर जब उनसे रहना
'घोटू' उन संग सात ,अगन के काटे चक्कर
आगे पीछे काट रहे ,  चक्कर  जीवन भर
                           ३
मुफलिसी में कट रहे ,जनता के दिन रात
नेता  चांदी    काटते ,जब सत्ता  हो   हाथ
जब सत्ता हो हाथ  , काटते दिन मस्ती में
सर कढ़ाई में और उँगलियाँ  पाँचों घी में
कह 'घोटू'कविराय ,चरण तुम्हारे छूता
पदरक्षक कहलाय,,काट लेता पर जूता
                        ४
खाते थे जो   दांत  की काटी रोटी , मित्र
अब है कन्नी काटते ,क्या व्यवहार विचित्र
क्या व्यवहार विचित्र ,रहे आपस में कट कर
एक दूसरे  के  जो  रोज  काटते  चक्कर
कह घोटू जब स्वार्थ आदमी पर है छाता
तो फिर भाई से भाई भी है कट  जाता
                           ५
चूना ज्यादा पान में ,खाओ ,कटे जुबान
पत्नीजी की बात ना ,काट सके  श्रीमान
काट सके श्रीमान, बात कर प्यारी प्यारी
पति की काटे जेब ,पत्नियां बड़ी निराली
प्यार जता कर ऐसा काटे और फुसलाये
अब तक उसका काट ,देव तक जान न पाये
                       ६
'घोटू' तुम उड़ते रहो ,बंधे डोर के संग
वरना कट हो जाओगे ,जैसे  कटी पतंग
जैसे कटी पतंग  ,कटे ना जीवन  रस्ता
कटे कटे से रह कर होगी हालत   खस्ता
कह घोटू कविराय ,उमर भर काटा स्यापा
संकट काटो प्रभू ,चैन से    कटे  बुढ़ापा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 25 जून 2015

बदरंगी भाईजान

                बदरंगी भाईजान

इतने बरसों थे सत्ता में ,तब नहीं किसी का रखा ख्याल
बस लिप्त रहे घोटालों में, और रहे कमाते  खूब माल
अब उतर गए जब कुर्सी से ,तो बदल गयी है चाल ढाल
कोई की फसल खराब हुई,पूछा करते हो ,दौड़, हाल
इस हालचाल के तामझाम में जितने पैसे लूटा रहे
पेपर और टी वी वालों की,तुम भीड़ ढेर सी जुटा रहे
यदि उसका पांच प्रतिशत भी,तुम उस गरीब के घर देते
उसकी सब चिंता हर लेते,उसको निहाल  तुंम कर देते
उस त्रसित दुखी के बच्चों को ,मिलती दो रोटी खाने को
तुम बहा रहे हो घड़ियाली ,ये आंसू सिर्फ दिखाने को
हर जगह दौड़ कर जाते हो तुम सहानुभूति दिखलाने को
ये सारा नाटक करते हो तुम अपनी छवि  चमकाने   को
सात आठ साथ में चमचे है ,दो चार रट  लिए है जुमले
जनता का हिती बता खुद को ,सत्तादल पर करते हमले
ये फल है सभी कुकर्मों का ,जनता ने मारी तुम्हे लात
नाकारा समझ नकार दिया ,हर जगह करारी मिली मात
जब हार गए तो भाग गए ,कितने दिन तक लापता रहे
खुद को मुश्किल के मारों का ,तुम आज मसीहा बता रहे
जनता ने काफी झेल लिया ,अब और झेल ना पाएगी
 झूंठे वादों ,आश्वासन के ,बहकावे में ना  आएगी
अब है  तूणीर में तीर नहीं ,और पड़ी हुई ढीली कमान
कल थे बजरंगी भाईजान,अब  हो बदरंगी  भाईजान

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बरसात-तेरे साथ

         बरसात-तेरे साथ
                     १
जब भी   बारिश की  बूँदें छूती  मेरा तन
मुझको आता याद तुम्हारा पहला चुम्बन
ऐसे भिगो दियां करती है ये मेरा तन
जैसे मन को भिगो रहा तेरा अपनापन
                         २
जब जब भी ये मौसम होता है बरसाती
साथ  हवा के होती ,  हल्की  बूंदा बांदी
हाथ पकड़ कर ,तेरे साथ भीगता हूँ जब ,
तब रह रह कर ,ये मन होता है उन्मादी
                           ३
भीगी अलकों से बूँदें ,टपके ,बन मोती 
मधुर कपोलों  पर आभा है दूनी होती
आँचल भी चिपका चिपका जाता है तन से ,
जब ये बूँदें बारिश की  है तुम्हे  भिगोती
                             ४
मौसम ,भीगा भीगा ,आग लगाता तन में
कितने ही अरमान ,भड़क जाते है मन में
मदिरा से ज्यादा मादक ,बारिश की बूँदें ,
रिमझिम रिमझिम जब बरसा करती सावन में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अच्छे दिन

             अच्छे दिन
                     १
प्रगति का पैमाना है जो अगर ऊंचाई
तो फिर हमने बहुत प्रगति कर ली है भाई
सब चीजों के दाम छू  रहे आसमान को ,
दिन  दिन दूनी बढ़ती जाती है  मंहगाई 
                         २
ग्राफ कीमतों का निश दिन है ऊपर चढ़ता
पानी भी अब तो ख़रीद कर  पीना पड़ता 
परिवार का पेट पालना अब मुश्किल है,
क्या ऐसे ही देश प्रगति के पथ पर बढ़ता
                            ३
दालें मंहगी ,अब सूखे पड़  गए निवाले
जीना हुआ  मुहाल ,पड़े  खाने के लाले
फिर भी हम है मन में बैठे आस लगाए ,
आज नहीं कल, अच्छे दिन है आने वाले

घोटू

सोमवार, 22 जून 2015

थोड़ा सा खुदगर्ज होना चाहिए

     थोड़ा सा खुदगर्ज होना चाहिए

ख्याल रखना ,अपना और परिवार का,
                     आदमी का फ़र्ज़  होना  चाहिए
किन्तु अपनों के भले के वास्ते ,
                         औरों का ना हर्ज़ होना  चाहिए
तरक्की हर एक जो अपनी करे,
                        तभी तो होगी तरक्की कौम की,
अपना अपना ख्याल जो रख्खें सभी,       
                            दूर सारे मर्ज़ होना चाहिए
 है हसीना ,खूबसूरत,नाज़नी ,
                              अगर अपनी जो बनाना है उसे
मिलेगी ,पर पटाने के वास्ते ,
                              कुछ तरीके,तर्ज  होना चाहिए
आप अपना फायदा जो सोचते ,
                                तो  बुराई इसमें है  कुछ भी नहीं,
तरक्की के वास्ते इंसान को ,
                               थोड़ा सा खुदगर्ज  होना चाहिए

मदन मोहन बाहेती  'घोटू'

संगीत

          संगीत

संगीत ,स्वरों की साधना है
संगीत ,ईश्वर की आराधना है
संगीत की सरगम ,सारे गम भुला देती है
संगीत भरी लोरी,रोते बच्चे को सुला देती है
संगीत के सुरों का जादू जब चलता है
तो दीपक राग से ,बुझा दीपक भी जलता है
संगीत  का साज जब सजता है 
तो मेघ मल्हार से जल भी बरस सकता है
पवन की सन सन में ,बादल की गर्जन में
पंछी के कलरव में ,भंवरों की गुंजन में
वर्षा की रिमझिम में ,नदिया के कलकल में
साँसों की सरगम में,जीवन के पलपल में
अगर आप गौर से देंगे ध्यान
पाएंगे ,संगीत है विद्यमान
संगीत में सुर होता है,
 और सुर का मतलब देवता होता है
सुरों का माधुर्य हम में देवत्व संजोता है
संगीत से ओतप्रोत ,प्रकृति का कण कण है
आओ हम संगीत सुने,संगीत ही जीवन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

योगदिवस और पप्पू जी

        योगदिवस और पप्पू जी
                        १
योगदिवस का देख कर ,जनता में उन्माद
 पप्पू जी झट उड़  लिए ,मम्मीजी के  साथ
मम्मी जी के साथ ,हुई तक़दीर निकम्मी
याद आएगी ,पांच बरस,मम्मी की मम्मी
 पदयात्राएं कर कर ,तन में थकन छा गयी
या इटली की छोरी ,मन को कोई भा गयी
                          २
पप्पू से कहने लगी, मम्मी जी समझाय
पेंतालिस का हो गया ,अब तू कर ले ब्याह
अब तू कर ले ब्याह,बढे  बूढ़े   बतलाते
पड़े बहू के पाँव, बुरे दिन भी फिर जाते
शादी कर तेरा भी भाग्य  बदल सकता है
घोड़ी चढ़,तू कुर्सी पर भी   चढ़  सकता है

घोटू

सोमवार, 15 जून 2015

अग्नि और जलन

      अग्नि और जलन

हमारी ये काया , तत्वों से है बनी
जिनमे से एक तत्व है अग्नी
अग्नि की तपिश से चेतना है तन में
और रोज रोज की हलचल है जीवन में
जब तक तपिश है,तन में प्राण है
वरना आदमी,मुर्दे के समान है
जलना एक रासायनिक क्रिया है,
जिस में होता है ऊर्जा का विसर्जन
जलना एक मानसिक क्रिया भी है,
जिसमे लोगों को होती है मन में जलन
 भले ही धुंवा और लपट
दोनों नहीं होते है प्रकट
पर अंदर ही अंदर सब सुलगते रहते है
गौर  से  देखोगे तो सब जलते रहते है   
कोई किसी की चाह में जलता है
कोई प्यार की राह में जलता है
कोई सौतिया डाह में जलता है
कोई ख्वामख्वाह में जलता है
किसी को जलाती है मन की चिंताएं
किसी को विरह की आग है जलाये  
कोई किसी की खुशनसीबी से जलता है
कोई किसी की सुन्दर बीबी से जलता है
कोई किसी की तरक्की देख जलता है
जलन का खेल जीवन भर चलता है
अग्नि ही भोजन पकाती है
और जठराग्नि ,भोजन से ही बुझ पाती  है
कामाग्नि जब तन में भड़कती है ,
तो कामाग्नि ही उसे बुझा पाती है
मतलब आग से सिर्फ आग लगाई ही नहीं जाती ,
बुझाई भी जाती है
मंदिरों में भगवान की आरती ,आग से ही उतरती है
हवन कर्म आदि में आग ही जलती है
अग्नि के सात  फेरे ,
जनम भर का बंधन बाँध देते है
और अंतिम संस्कार में भी आग ही देते है
हमारे दो प्रमुख त्योंहार
होली और दिवाली मनाये जाते है हर साल
होली में होलिका दहन होता है
दीवाली को दीप का पूजन होता है
दीपक जल कर उजाला देते है ,रास्ता बताते है
चाहे ख़ुशी हो या गम,
अग्नि देवता हमेशा पूजे जाते है
लकड़ी जलती है तो देती है लपट
फिर कोयला बनता है जो देता है दहक
और इस तरह सबको  जलाती आग है
पर उसकी अंतिम नियति ,केवल राख है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है

      कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है

लेडीज वस्तुएं छोटी सी ,अक्सर औरत के मन भाती
छोटी छतरी,छोटा रुमाल,लेडीज आइटम  कहलाती
छोटी होती लेडीज घड़ी ,छोटी चोली ,छोटी बिकनी
या छोटी छोटी 'हॉट पेंट'पहना करती स्कर्ट मिनी 
खुश छोटे छोटे वस्त्र पहन ,जिससे तन अधिक उजागर हो
पर चाहे बड़ी बड़ी आँखें,और बड़े बाल,जो सुन्दर हो
वो कमर चाहती पतली सी ,पर उन्नत उभरा वक्षस्थल
लम्बी नाजुक ,पतली बाहें,और हाथ कमल जैसे कोमल
कुछ छोटी चीजें उन्हें रुंचें ,कुछ चीजें बडी ,उन्हें भाये
छोटी छोटी सी बातों पर ,वो  मोटे आंसूं ढलकाये
थोड़ा सा छोटा प्यार दिखा ,वो लूट लिया करती मन है 
छोटा या बड़ा पसंद उन्हें ,कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है

घोटू

क्या बेलेंस बनाता भगवन

        क्या बेलेंस बनाता भगवन

कैसा तू बेलेंस बना कर रखता भगवन
चिंताएं भी दे  देता, जिसको देता धन
परेशान ,बैचैन  हमेशा वो होता  है
निर्धन टांग पसार चैन से पर सोता है
कोई निपट गंवार,लक्ष्मी उस पर बरसे
कोई अति विद्वान मगर पैसों को तरसे
कोई अति बेडौल,प्रिया पर स्वर्ण सुंदरी
कोई सुगढ़,सुडौल,मिले बेमेल सहचरी
कोई की पत्नी नाटी  है तो पति  लम्बा
कोई संत ,फ़कीर,उसे मिल जाती रम्भा
कर देता है दोनों का 'एवरेज ' बराबर
कर 'एडजस्ट ',साथ रहते दोनों जीवनभर
अरे और तो और गढ़ी जब मानव काया
पंच तत्व का इतना सुन्दर मेल बिठाया
अगन तत्व को यदि भड़काता तत्व पवन है
तो जल तत्व ,तुरंत कर देता अग्नि शमन है
अग्नि लपटें ,यदि आकाश तत्व में उड़ती
बुझ जाती जब धरा तत्व की माटी पड़ती
एक दूसरे पर करते  है ,सभी नियंत्रण
कैसा तू बेलेंस बना कर रखता भगवन

घोटू

मचा भूचाल देती है

       मचा भूचाल देती है

हवा में सांस हम लेते , हवा ही प्राण होती है
मगर जब उग्र हो जाती ,तो वो तूफ़ान होती है 
काम आता है हरेक पल ,है जल जीवन ही कहलाता
मगर ढाता कहर सब पर,वो जब सैलाब बन जाता
तपस अग्नि की जीवन है,पका देती,पचा देती
मगर जब वो ,दहकती है,सभी कुछ भस्म कर देती 
बीबियाँ होती है प्यारी ,पति को प्यार  देती है
मगर नाराज जब होती,मचा भूचाल  देती है

घोटू 

बीबी आगे कौन टिका है ?

         बीबी आगे कौन टिका है ?

टिक टिक कितना कहती घड़ियाँ ,
                 किन्तु समय क्या कभी टिका है
कोई कभी भी बदल न पाया ,
                  जो कि भाग्य में गया लिखा है
अच्छे दिन हो या कि बुरे दिन,
                      सबके ही जीवन में आते ,
गिर गिर उठना और संभलना ,
                     सब कुछ देता वक़्त  सिखा है  
 एक दिन की छुट्टी ले लेता,
                     चतुर चन्द्रमा  अम्मावस को ,
पर सूरज  ड्यूटी का पक्का ,
                        छुट्टी लेते   नहीं दिखा है
 कोई कितना तीसमारखां ,
                      बने , दबदबा हो दफ्तर  में,
पर भीगी बिल्ली है घर में ,
                       बीबी आगे कौन  टिका  है ?

घोटू

गुरुवार, 11 जून 2015

राम मिलाई जोड़ी

            राम मिलाई जोड़ी

कुछ जोड़ी घरवाले  जोड़े, कोई संग टांका जुड़ जाता
पर कहते है सभी जोड़ियां  ,ऊपरवाला ,स्वयं बनाता
कुछ बेजोड़ ,स्वर्ण आभूषण में ज्यों हीरा जाय जड़ाया
ऐसा लगता ,ईश्वर ने खुद,एक दूजे के लिए   बनाया
कुछ जोड़ी बेमेल इस तरह ,जैसे ऊँट गले में बिल्ली
किन्तु मजे से जीवन जीते,चाहे लोग उड़ाएं खिल्ली
कुछ बनती है मजबूरी में ,और कुछ 'शार्टटर्म 'होती है
और किसी के लिए रीत ये ,सबसे बड़ा  धर्म होती है
एक दूजे के गुण अवगुण से ,एडजस्ट है सब हो जाते
और जिंदगी कट जाती है,यूं ही  हँसते,रोते , गाते  
कोई करे कदर बीबी की ,मोटी  लाये ,दहेजी पेटी
कोई पत्नी से डरता है ,क्योंकि बड़े  बाप की  बेटी
कोई का पति दब्बू होता ,कोई की पत्नी दबंग है
पर चढ़ जाता धीरे धीरे ,उन पर एक दूजे का रंग है
पत्नी होती जादूगरनी ,पति पर ऐसा करती जादू
देता भूला ,बाप माँ सबको,पति आता ,पत्नी के काबू
कुछ को रुचे न घर का खाना ,इधर उधर मुंह मारा करते
पर कैसे भी,किसी तरह भी ,जीवन साथ  गुजारा करते
पति पत्नी के बीच हमेशा ,होती रहती खटपट  थोड़ी
किन्तु समर्पित एक दूजे पर ,राम मिलाता सबकी जोड़ी

घोटू

टी.वी. न्यूज़ चैनल

       टी.वी. न्यूज़ चैनल

मैं आत्मउल्झनानन्द 'बेखबर'
आपकी पसंदीदा न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर
आपका स्वागत करता है
आपका यह पसंदीदा चैनल ,
देश में होनेवाली हर हलचल पर,
अपनी पैनी नज़र रखता है
और हर खबर सबसे पहले ,
आप तक पहुंचा दिया करता है
कोई भी खबर को तोड़ मरोड़ कर ,
यानि कि ब्रेक करके ,हम ब्रेकिंग न्यूज़ बनाते है
और उसके बाद ,एक लम्बे ब्रेक में ,
विज्ञापन दिखाते है
और उसीसे हम कमाते है
कोई भी  करेंट टॉपिक पर,
विपरीत विचारधाराओं के लोगों की ,
पैनल बनवा कर ,लेते है उनके व्यूहज
और  लोगों को करते है कन्फ्यूज
हम लोगो को चने के झाड़ पर चढ़ाते है
और  तिल का ताड़ बनाते है
 पर कभी कभी ताड़ का तिल भी बना देते है
और इससे अच्छा कमा लेते है
हमने जिसकी भी डुगडुगी बजाई है
उसने ही सत्ता पाई है
 कुछ ज्योतिषी भी है हमारे पेनल पर
जो रोज बताते है भविष्यफल
पर कई बार जब वो बतलाते है,
कि आज आपका लाभ का योग है
तो पेट्रोल के दाम बढ़ जाते उसी रोज है
कई बाबा लोगों की पोल भी हम खुलवाते है
तो दूसरे दिन ,उनके स्पोन्सर्ड ,
प्रोग्राम भी  दिखलाते है 
क्योंकि बाबा लोगों की सच्चाई बताना ,
हमारा सामाजिक कर्तव्य है
और स्पोंसर्ड प्रोग्राम दिखाना ,
हमारा बिजनेस है ,जिससे मिलता द्रव्य है
हम ख़बरें सुनाते रहते है दिनभर
और बड़े बड़े घोटाले करते है उजागर
और कभी कभी बड़े बड़े घोटाले दबा देते है
और इससे भी कुछ कमा लेते है
हम लोगों को सबकी खबर देते है
और हम सबकी खबर भी  लेते है
और अब थोड़ी देर के लिए ,
एक कमर्शियल ब्रेक लेते है

मदनमोहन बाहेती'घोटू ' 
 

भगवान क्यों हुआ पत्थर का

          भगवान क्यों हुआ पत्थर का

भगवान ने दुनिया को बनाया
उसे नदी,पर्वत और झरनो से सजाया
वृक्ष विकसाये ,पुष्प महकने  लगे
तितलियाँ उड़ने लगी,पंछी चहकने लगे
और इसके बाद जब उसने इंसान को गढ़ा
तो उसे देख कर वह खुश हो गया बड़ा
उसके बाद उसने कुछ दिन तक विश्राम किया
और फिर अपनी सर्वोत्तम कृति ,
औरत का निर्माण किया
और उसे देख कर खुद मुग्ध हो गया विधाता था
बहुत कोशिश करता था उसे समझने की ,
लेकिन समझ न पाता था
पर एक दिन अचानक,ऐसी कुछ बात हो गयी
उसके बनाये आदमी की ,
उस औरत से मुलाक़ात हो गयी
और उनके बीच हो गया कुछ ऐसा आकर्षण
कि वो दोनों मिल कर ,तोड़ने लगे,
भगवान के बनाये हुए सब नियम
उन्होंने उसके बगीचे से तोड़ कर ,
खा लिया एक वर्जित फल
और उनमे आ गयी अकल
और फिर यह देख कर ईश्वर हो गया परेशान
जब वो दोनों मिल कर करने लगे,
खुद ही नर नारी का निर्माण
अपने कार्यक्षेत्र में इंसान की घुसपैठ देख ,
सर घूम गया ईश्वर का
उसको इतना झटका लगा ,
कि हो गया वो पत्थर का

घोटू
 

राजनीति

               राजनीति

राजनीति तो है एक गहरा समन्दर
लोग  मोती  ढूंढते  है  इसके  अंदर
कभी भी स्थिर नहीं रहता यहाँ जल
तरंगे उठती , सदा है  यहाँ हलचल
है बड़ा खारा यहाँ का मगर पानी
कभी आता ज्वार भाटा  या  सुनामी
हुआ करते नित निराले खेल भी है
बहुत सारी शार्क भी है,व्हेल  भी है
दांत जिनके तीखे है और बड़े जबड़े
रोज ही करते  घोटाले और लफ़ड़े
कई  मछुवारे यहां रोजी चलाते
डालते है जाल और मछली फंसाते
कुछ किनारे पर खड़े कुछ कर न पाते
कुशल गोताखोर मोती ढूंढ  लाते
मगर इसमें लोग घुस पाते तभी है
नंगे होकर ,खोलते कपडे  सभी  है
जो है नंगे ,दांत जिनके शार्क से है
रत्नाकर ये बस उन्ही के वास्ते है

घोटू

बुधवार, 10 जून 2015

जवानी के वो दिन

      जवानी के वो दिन

है याद जवानी के वो दिन ,था रूप तुम्हारा मायावी
मैं था दीवाना जोश भरा,अब उम्र हुई मुझ पर हावी
लेकिन मेरे दीवानेपन, का अब भी है वो ही आलम
है प्यार बढ़ गया उतना ही,जितना कि जोश हुआ है कम
अपनी धुंधलाई आँखों से ,तुम मुझे देखती मुस्का कर
मैं तब भी होता था पागल,मैं अब भी होता हूँ पागल
जब जब  भी हाथ पकड़ता हूँ  ,स्पर्श तुम्हारा मैं  पाता
बिजली सी दौड़ा करती है ,तन भी सिहरा सिहरा जाता
ये वृक्ष अभी भी खड़ा तना ,पर हरे रहे अब पान  नहीं
 फिर भी देते है मंद पवन ,माना लाते  तूफ़ान  नहीं
ये पुष्प भले ही सूख गए ,पर खुशबू अब भी है बाकी
मदिरा उतनी ही मादक है ,वो ही प्याला ,वो ही साकी
ये बात भले ही दीगर है,पीने की उतनी  ललक नहीं
गरमी अब भी अंगारों में ,माना की उतनी दहक नहीं
क्या हुआ अगर मै झुर्राया ,और त्वचा तुम्हारी है रूखी
उतना ही दूध गाय देती,हो घास हरी या   फिर  सूखी
सब जिम्मेदारी निपट गयी ,बच्चे खुश अपने अपने घर
अब बचे हुए बस हम और तुम,अवलम्बित एक दूसरे पर
अब भूल गए सब राग रंग,जीवन के बदले रंग ढंग
अब शिथिल हो रहे अंग अंग,और रूठ गया हमसे अनंग
ढल गयी जवानी,जोश गया ,मस्ती का मौसम बीत गया
आओ हम फिर से शुरू करें ,जीवन जीने का दौर  नया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

मंगलवार, 2 जून 2015

जल कितना नायाब हो गया

       जल कितना नायाब हो गया

 ये क्या  आज जनाब हो गया ,मिले शुद्ध जल,ख्वाब हो गया
  आबो हवा इस तरह बदली ,जीवन बड़ा , खराब हो गया
             बिकता आज ,बंद बोतल में ,जल कितना नायाब हो गया
मिला दूध संग ,दूध बन गया ,बहा गंदगी संग बन नाली
जिस रंग मिलता,उस रंग रंगता ,इस पानी की बात निराली
                मीठा कभी,कभी खारा है, मादक कभी शराब हो गया
सत्तर प्रतिशत पानी तन में ,फिर भी तन ,पानी को तरसा 
उड़ा ग्रीष्म में बादल बन कर,बारिश में रिमझिम कर बरसा
             बहा ले गया कितनो को ही ,उग्र हुआ ,सैलाब बन गया
पानी मिला ,लहू के संग तो,दौड़ गया ,तन की नस नस में
पानी ने ,खाना पचवाया ,  मिल कर आमाशय  के  रस में         
                 थोड़ा बन कर बहा पसीना ,बचा हुआ पेशाब हो गया
सुख में आँखों को पनियाया ,दुःख में आंसू बनकर टपका
कभी बहा बन गंगा ,जमुना ,सागर से मिलने को लपका
            सहमा रहा कभी कूवे में,और कभी तालाब बन गया
खेतों में ,बीजों को सींचा ,तो वह फसल बना ,लहलाया
बगिया में जब गया घूमने ,क्यारी क्यारी को महकाया
             नाचा कभी,जूही बेला संग ,तो फिर कभी गुलाब बन गया
कोई पीता  चुल्लू  भर कर,कोई डूबता चुल्लू भर में
कोई होता पानी पानी,कभी शरम में,या फिर डर में
                 पानी अगर ,चढ़ा चेहरे पर ,तो वह रूप,शबाब बन गया
पूजा में ,स्नान ध्यान में ,खानपान में जल का सम्बल
मंदिर में चरणामृत बनता ,शिवशंकर को चढ़ता है जल
              देख चाँद को उछला करता ,विष्णु का  आवास  हो गया
मैल दूसरों  का  हर लेता ,चाहे  खुद  हो  जाता  मैला
जल है अमृत ,जल है जीवन ,जलन मिटाता है अलबेला
            जम कर बरफ,वाष्प ऊष्मा से ,नारियल में छुप,डाब हो गया
             बिकता  आज बंद बोतल में ,जल कितना ,नायाब हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

हवा हवाई

              हवा हवाई

हवा कुछ इस तरह से आजकल बदली जमाने की
हवा सब हो गयी है  संस्कृति , रिश्ते  निभाने  की
कमाए चार  पैसे क्या ,  हवा में   लोग उड़ते है
हवा सारी  निकल जाती ,हक़ीक़त से जो जुड़ते है 
बनाते है हवाई  जो किले ,और कुछ  नहीं  करते 
हवा थोड़ी सी भी बदली ,   पतंगों की तरह कटते 
हवाबाजी दिखाते है ,बने अफसर जो  दफ्तर में
हवा उनकी खिसकती है ,पत्नी के सामने ,घर में
हवा के रुख के संग चलना ,समझदारी है कहलाता
हवा में जो उड़ा देता ,बड़ो की सीख,  पछताता
हवा जब तेज चलती है ,तो सब कुछ है उड़ा देती
हवा जब मंद बहती है तो मौसम का मज़ा देती
दर्द होता हवा मुंह से ,आह बन कर निकलती है 
उदर का दर्द, जाता जब, हवा नीचे  खिसकती  है
हवा में सांस हम लेते ,न जी सकते ,हवा के बिन
हवा है खुश्क ,हम सबकी,बढे मंहगाई है हर दिन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

लाल मिर्च और तुम

         लाल मिर्च और तुम

हरी ना ,काली ना वो लाल लाल मिर्ची थी ,
   और बस एक ही चुटकी तो डाली थी हमने
सोच कर ये कि तुमको स्वाद ये सुहायेगा,
  पता ना मुंह तुम्हारा इतना क्यों लगा जलने
कहीं कल पान जो खाया था मुंह रचाने को,
   किसी ने उसमे अधिक चूना लगाया होगा
काट ली होगी जुबां और मुंह , चूने ने,
   स्वाद जो तेरे हसीं होठों का पाया  होगा 
या कि फिर तुमने ही काटी जुबान खुद होगी ,
    बड़े चटखारे ले के खा रही थी कल खाना
या कमी तुममे हो गयी  विटामिन डी की,
      रही हो 'ए 'क्लास ही तो तुम ,जाने जाना
ये भी हो सकता है कि लाल लाल होठों ने ,
      जलन के मारे की हो सारी ये नाकाबंदी
घुसे जो लाल कोई चीज जो मुंह के अंदर ,
     लगे मुंह जलने,लगी मिर्च पे यूं पाबंदी
समझ के गोलगप्पा मुझको प्यार करती हो ,
   और रह रह के जब भरती  हो मुंह से सिसकारी
मेरा दिल बावला सा उछल उछल जाता है,
      तुम्हारी ये अदा ,लगती मुझे बड़ी  प्यारी 
इसलिए चाहता था ,चटपटा सा कुछ खाकर ,
     मिलन की आग सी लग जाए तुम्हारे दिल में
हरी ना,काली ना वो लाल लाल मिरची थी,
     और बस एक ही  चुटकी तो डाली थी हमने
सोच कर ये कि तुमको स्वाद ये सुहायेगा ,
      न जाने मुंह तुम्हारा ,इतना क्यों लगा जलने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये ग़ालिब हो नहीं सकता

           ये ग़ालिब हो  नहीं सकता

तुम्हारे गाल अच्छे है और लब भी खूबसूरत है ,
      मगर ग़ालिब तुम्हे कह दूँ ,ये मुझ से हो नहीं सकता
मियां ग़ालिब का अंदाजे बयां सब से निराला था,
     मगर अंदाज तुम सा भी ,किसी का हो नहीं सकता
बड़ा बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकला हूँ ,
      मैं  कितनी बार ही लेकिन ,तुझे मैं  खो नहीं सकता
दिले नादाँ के दर्दों की ,दवाई पूछता सबसे,
       इश्क़ पर जोर ग़ालिब का भी देखो  हो नहीं सकता
गालिबन रोज तुम गाली ,मुझे देती हो शेरों सी,
        मैं कुत्ते सा हिलाता दुम ,शरम  से रो नहीं सकता 
हमारी फांकामस्ती ने,रंग क्या क्या दिखाये  है ,
       पकाता ,माँजता बर्तन पर कपडे  धो नहीं  सकता

घोटू

राहुल के -मन की बात -मोदीजी से

             राहुल के -मन की बात -मोदीजी से

मुझे मालूम  स्विज़रलैंड है इंग्लैंड ,अमरीका,
     पता है इटली का,थाईलैंड का बैंकॉक है मालूम
और तुम घूमते ही रहते हो ,देशों,विदेशों में,
    न जाने साल भर में देश कितने घूम आये तुम
कहीं बच्चों के संग खेलो ,कहीं तबला बजाते हो ,
    जिधर भी जाते हो,होता उधर मोदी ही मोदी है 
न जाने कौन सा जादू चलाते हो तुम लोगों पर,
    मुझे ना पूछता कोई, मेरी लुटिया  डुबो दी  है
अभी तक देश की सत्ता ,हमारे हाथों में ही थी ,
      हमारे पुश्तैनी धंधे पे , तुमने सेंध  मारी  है
मैं तपती धूप में,गाँवों में सड़कों पर रहूँ फिरता,
    करूं पदयात्राएं ,तुमने वो  हालत  बिगाड़ी  है
मैं भी पीएम बन सकता था पर अम्मा खिलाड़ी है,
  अपने रिमोट से दस साल तक सत्ता चलाई है
बना कर सबको कठपुतली ,नचाया उँगलियों पर था,
   घोटाले करवा हमने की ,करोड़ों की कमाई है
मगर हम ये समझते थे कि हिन्दुस्थान की जनता ,
  बड़ी भोली है,बहकावे में ,आ जाएगी  वादों पर
मगर तुमने दिखा सपने कि अब आएंगे अच्छे दिन,
   पलीता ही लगा डाला, हमारे सब इरादों पर
जो वादे इतने सालों से ,किये हमने चुनावों मे ,
    हमारे उन ही वादों को,चुरा ,जीते इलेक्शन तुम
अगर इनमे से आधे भी ,जो वादे पूर्ण कर दोगे ,
  तो फिर अगले इलेक्शन तक,हमारी हस्ती होगी गुम
घूम कर इतने देशों में,छवि अपनी निखारी है,
   हमारे देश की छवि को भी ,कुछ  तुमने सुधारा  है
मगर मैं और मेरी पार्टी आ जाए हाशिये पर,
   कभी भी बात ये मुझको ,नहीं होती गंवारा    है
मुझे मालूम है कि कुछ पुराने मेरे चमचे है,
    चने के झाड़ पर मुझको ,चढ़ाते  रहते है अक्सर
भले ही कुछ भी दूँ भाषण,मगर ये जानता हूँ मैं ,
    कि ये सरकार तुम्हारी ,कर रही काम है बेहतर
मगर मजबूरी मेरी है,तभी आलोचना करता,
     मुझे अस्तित्व अपना भी तो रखना देश में कायम
इसलिए रोज हंगामा,ये पदयात्रायें  और ड्रामा,
       प्रदर्शन  ,मोरचेबाजी ,रोज ही करते रहते हम
भले तुम सूट पहनो या कि आधी बांह का कुरता ,
     पहनना वस्त्र मरजी के,सभी को है ये आजादी
हम पिछले साठ  सालों से ,सिर्फ वादे रहे करते ,
     मगर तुमने,बरस भर में तरक्की करके दिखलादी
     
   मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शनिवार, 30 मई 2015

मोदी उचाव -पप्पूजी से

           मोदी  उचाव -पप्पूजी से

सत्ताच्युत शहजादे जी ,
और रूठ कर लौटे हुए राजकुमार
तुम्हे नरेन्द्र मोदी का ढेर सारा प्यार
जब तुम्हारी पार्टी पॉवर में थी,
हुए थे बहुत घोटाले
तुम्हारे इशारों पर नाचते थे सारे
देश की जनता को जब ये नज़र आया
इस चुनाव में तुम्हे सत्ता से हटाया
ये बात तुम्हारी पार्टी पचा नहीं पारही है
और बिना बात ,हाय तोबा मचा रही है
हमारे एक साल के शासन में ,
जब तुम ढूंढ न पाये कोई लफ़ड़े
तो तुमको नज़र आने लगे मेरे कपडे
विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के सामने या ठन्डे मुल्कों में ,
अगर मैं सूट पहनू तो तुम्हे सूट नहीं करता
और मैं  तुम्हारी तरह ,
जीन्स और टीशर्ट पहन नहीं सकता
क्योकि हर पद की होती है एक मर्यादा
अब तुम्हे क्या कहूँ ज्यादा
अगर मैं महात्मा गांधी की तरह धोती पहनू ,
तो बोलोगे मोदी कर रहा नाटक है
हम गांधी है और गांधीजी की वेशभूषा ,
हमारी विरासत है
मैं जैकेट पहनू तो तुम कहोगे कि  उस पर,
तुम्हारे पिताजी के नाना का नाम है
नक़ल करना ही मोदीजी का काम है
कॉंग्रेस साठ  साल से नारा दे रही है कि ,
हम गरीबी हटाने वाले है
मोदीजी ने नाम बदल कर कह दिया
कि अच्छे दिन आने वाले है
हम कोई भी योजना लाते है ,तुम कहते हो,
ये तुम्हारी सरकार ने चालू की थी
और मोदीजी ने नाम बदल कर,
 वाह वाही जीती 
मैं कुर्ता पाजामा भी पहनू तो कहोगे ,
ये तो  मेरी नक़ल है
पर अगर तुममे थोड़ी सी भी अकल है
तो देखोगे कि तुम्हारे कुरते की बांहे
पूरी लम्बी  है ,जिन्हे तुम चढ़ाते हो गाहे बगाहे
और मेरे कुरते की तो पहले से ही है आधी बाहें
दर असल छप्पन दिनों के अज्ञातवास में
तुमने क्या किया बैंकॉक में
मुझे ये बात तो नहीं मालूम
पर जबसे लौट के आये हो तुम
जैसे कोई तुतला र को ल बोलता है
तुम 'झ 'को 'ट 'बोलने लगे हो
पहले झल्ले थे अब ठल्ले  लगने लगे हो
' सूझ बूझ 'की सरकार  को ,
' सूट बूट 'की सरकार  कहते हो
और यूं ही दिन भर बिलबिलाते रहते हो
'मैं गरीब किसान के घर गया था ,
मोदीजी किसी किसान के घर गए क्या ?
कल ये पूछोगे 'मैं इतने दिन बैंकॉक रहा ,
मोदीजी बैंकॉक रहे क्या  ?
भैया तुम्हे जो करना है तुम करो,
मुझे जो उचित लगता है ,मैं करूंगा
 जनता के भले के लिए मैं जीऊंगा,मरूंगा
तुम्हारे बेवकूफी भरे जुमलों पर,
तुम्हारे चमचे ताली बजा देते है
कुछ न्यूज़ चैनल हेड  लाइन बना देते है
कुछ तुम्हे कांग्रेस प्रेसिडेंट बनाने की कह ,
तुम्हे सर पर चढ़ाते रहते है
अब तुम्ही समझ जाओ,
लोग तुम्हे पप्पू क्यों कहते है       

मदन मोहन बाहेती'घोटू'          

बुधवार, 27 मई 2015

वहाँ के वहीँ

          वहाँ  के वहीँ

वो पहुंचे ,कहाँ से  कहीं है
हम जहाँ थे, वहीँ  के वहीँ है 
मुश्किलें सामने सब खड़ी थी
उनमे जज्बा था,हिम्मत बड़ी थी
हम बैठे रहे   बन  के  बुजदिल
वो गए बढ़ते और पा ली मंजिल
हम रहे हाथ पर हाथ धर कर
सिर्फ किस्मत पे विश्वास कर  कर
कर्म करिये, वचन ये सही  है
वो  पहुंचे कहाँ से कहीं है
जब मिला ना जो कुछ,किसको कोसें  
आदमी बढ़ता , खुद के  भरोसे
है जरूरी  बहुत  कर्म करना 
यदि जीवन में है आगे बढ़ना
वो मदद करता  उसकी ही प्यारे
मुश्किलों में जो हिम्मत न हारे
बात अब ये समझ आ गयी है
वो  पहुंचे ,कहाँ  से  कहीं है
 हम जहाँ थे , वहीँ  के वहीँ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेरा मेहबूब

           मेरा मेहबूब

मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह नहीं
मगर मेरी तो उसको  ज़रा भी परवाह नहीं
उसके वो गेसू,उसका हुस्न,तराशा वो बदन
करता परवाह ,बेपनाह ,करके सारे  जतन
उसको फुर्सत ही कहाँ मिलती है ले मेरी खबर
कभी तो डाले मुझ पे ,प्रेम भरी अपनी नज़र
बैठ कर,आईने में, खुद को निहारा करता
कभी चेहरा तो कभी जुल्फें संवारा  करता
ये सब वो करताहै तो मुझको ही रिझाने को,
कैसे कहदूं कि  उसके दिल में मेरी चाह नहीं
मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह नहीं
नहीं ये बेरुखी है ,ये है उसकी मजबूरी
बना के रख्खी है जो उसने मुझसे ये दूरी
क्योंकि मै मिलता हूँ उससे तो होता बेकाबू
इस तरह चलता मुझ पे हुस्न का उसके जादू
मुझको कुछ इस तरह से उसपे प्यार आता है
बिगड़ उसका ,किया श्रृंगार  सारा जाता  है
फिर भी होता नहीं है ख़त्म मेरा जोश-ओ-जूनून ,
इसलिए डरता हूँ और करता ये गुनाह नहीं
मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह  नहीं
मगर मेरी तो उसको ज़रा भी परवाह नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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