प्रभु की रचना -नारी
प्रभु तेरी रचना यह नारी,कितनी अद्भुत,कितनी सुन्दर
सर पर बादल के दल के दल ,मुस्कान गुलाबी गालों पर
चन्दा से चेहरे पर शोभित, दो नयन,मीन से,मतवाले
मोती सी प्यारी दन्त लड़ी,दो अधर ,भरे रस के प्याले
पीछे है भार नितम्बों का,आगे यौवन का भरा भार
इसलिए संतुलित रहता तन,ना कमर लचकती बार बार
वरना इतनी कमनीय कमर ,ना जाने कितने बल खाती
मतवाली चाल देख कर के,कितनी ही नज़र फिसल जाती
नारी तन पर दे युगल कलश ,पहले उन्माद भरा उनमे
फिर जब मातृत्व जगाया तो,ममता का स्वाद भरा उनमे
नाजुक गोरा तन टिका हुआ ,कदली के दो स्तम्भों पर
कितना महान वह रचयिता ,जिसकी रचना इतनी सुन्दर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रभु तेरी रचना यह नारी,कितनी अद्भुत,कितनी सुन्दर
सर पर बादल के दल के दल ,मुस्कान गुलाबी गालों पर
चन्दा से चेहरे पर शोभित, दो नयन,मीन से,मतवाले
मोती सी प्यारी दन्त लड़ी,दो अधर ,भरे रस के प्याले
पीछे है भार नितम्बों का,आगे यौवन का भरा भार
इसलिए संतुलित रहता तन,ना कमर लचकती बार बार
वरना इतनी कमनीय कमर ,ना जाने कितने बल खाती
मतवाली चाल देख कर के,कितनी ही नज़र फिसल जाती
नारी तन पर दे युगल कलश ,पहले उन्माद भरा उनमे
फिर जब मातृत्व जगाया तो,ममता का स्वाद भरा उनमे
नाजुक गोरा तन टिका हुआ ,कदली के दो स्तम्भों पर
कितना महान वह रचयिता ,जिसकी रचना इतनी सुन्दर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।