लाल मिर्च और तुम
हरी ना ,काली ना वो लाल लाल मिर्ची थी ,
और बस एक ही चुटकी तो डाली थी हमने
सोच कर ये कि तुमको स्वाद ये सुहायेगा,
पता ना मुंह तुम्हारा इतना क्यों लगा जलने
कहीं कल पान जो खाया था मुंह रचाने को,
किसी ने उसमे अधिक चूना लगाया होगा
काट ली होगी जुबां और मुंह , चूने ने,
स्वाद जो तेरे हसीं होठों का पाया होगा
या कि फिर तुमने ही काटी जुबान खुद होगी ,
बड़े चटखारे ले के खा रही थी कल खाना
या कमी तुममे हो गयी विटामिन डी की,
रही हो 'ए 'क्लास ही तो तुम ,जाने जाना
ये भी हो सकता है कि लाल लाल होठों ने ,
जलन के मारे की हो सारी ये नाकाबंदी
घुसे जो लाल कोई चीज जो मुंह के अंदर ,
लगे मुंह जलने,लगी मिर्च पे यूं पाबंदी
समझ के गोलगप्पा मुझको प्यार करती हो ,
और रह रह के जब भरती हो मुंह से सिसकारी
मेरा दिल बावला सा उछल उछल जाता है,
तुम्हारी ये अदा ,लगती मुझे बड़ी प्यारी
इसलिए चाहता था ,चटपटा सा कुछ खाकर ,
मिलन की आग सी लग जाए तुम्हारे दिल में
हरी ना,काली ना वो लाल लाल मिरची थी,
और बस एक ही चुटकी तो डाली थी हमने
सोच कर ये कि तुमको स्वाद ये सुहायेगा ,
न जाने मुंह तुम्हारा ,इतना क्यों लगा जलने
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हरी ना ,काली ना वो लाल लाल मिर्ची थी ,
और बस एक ही चुटकी तो डाली थी हमने
सोच कर ये कि तुमको स्वाद ये सुहायेगा,
पता ना मुंह तुम्हारा इतना क्यों लगा जलने
कहीं कल पान जो खाया था मुंह रचाने को,
किसी ने उसमे अधिक चूना लगाया होगा
काट ली होगी जुबां और मुंह , चूने ने,
स्वाद जो तेरे हसीं होठों का पाया होगा
या कि फिर तुमने ही काटी जुबान खुद होगी ,
बड़े चटखारे ले के खा रही थी कल खाना
या कमी तुममे हो गयी विटामिन डी की,
रही हो 'ए 'क्लास ही तो तुम ,जाने जाना
ये भी हो सकता है कि लाल लाल होठों ने ,
जलन के मारे की हो सारी ये नाकाबंदी
घुसे जो लाल कोई चीज जो मुंह के अंदर ,
लगे मुंह जलने,लगी मिर्च पे यूं पाबंदी
समझ के गोलगप्पा मुझको प्यार करती हो ,
और रह रह के जब भरती हो मुंह से सिसकारी
मेरा दिल बावला सा उछल उछल जाता है,
तुम्हारी ये अदा ,लगती मुझे बड़ी प्यारी
इसलिए चाहता था ,चटपटा सा कुछ खाकर ,
मिलन की आग सी लग जाए तुम्हारे दिल में
हरी ना,काली ना वो लाल लाल मिरची थी,
और बस एक ही चुटकी तो डाली थी हमने
सोच कर ये कि तुमको स्वाद ये सुहायेगा ,
न जाने मुंह तुम्हारा ,इतना क्यों लगा जलने
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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