ग़लतफ़हमी
एक दिन मुर्गों के मन में , अचानक बात ये आई ,
सवेरा तब ही होता है कि जब हम बांग देते है
और इंसान है हमको ,भून तंदूर में खाता,
करें हड़ताल एक दिन हम सुबह को टांग देते है
नहीं दी बांग एक दिन ,सूर्य पर निश्चित समय निकला
पड़ा ना फर्क रत्ती भर ,रोज जैसा सवेरा था
देख दिनचर्या हर दिन सी,ठिकाने आ गई बुद्धि ,
समझ औकात निज आयी ,ग़लतफ़हमी ने घेरा था
घोटू
एक दिन मुर्गों के मन में , अचानक बात ये आई ,
सवेरा तब ही होता है कि जब हम बांग देते है
और इंसान है हमको ,भून तंदूर में खाता,
करें हड़ताल एक दिन हम सुबह को टांग देते है
नहीं दी बांग एक दिन ,सूर्य पर निश्चित समय निकला
पड़ा ना फर्क रत्ती भर ,रोज जैसा सवेरा था
देख दिनचर्या हर दिन सी,ठिकाने आ गई बुद्धि ,
समझ औकात निज आयी ,ग़लतफ़हमी ने घेरा था
घोटू
>> कभी मंदिर पे कभी महजिद पे जा बैठते है..,
जवाब देंहटाएंकऊओं की भी अपनी मस्लहत नहीं होती.....नई !!!!!
राजू : -- मसल हत.....?
" विचारधारा....."
>> कभी मंदिर पे कभी महजिद पे जा बैठते है..,
जवाब देंहटाएंमुर्ग़ों की भी अपनी मस्लहत नहीं होती.....नई !!!!!
राजू : -- मसल हत.....?
" विचारधारा....."