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बुधवार, 8 जुलाई 2015

ग़लतफ़हमी

                ग़लतफ़हमी

एक दिन मुर्गों के मन में , अचानक बात ये आई ,
            सवेरा तब ही  होता है कि जब हम बांग देते है
और इंसान है हमको ,भून तंदूर में खाता,
             करें हड़ताल एक दिन हम सुबह को टांग देते है
नहीं दी बांग एक दिन ,सूर्य पर निश्चित समय निकला
                   पड़ा ना फर्क रत्ती भर   ,रोज जैसा सवेरा  था
देख दिनचर्या हर दिन सी,ठिकाने आ गई बुद्धि  ,
              समझ औकात निज आयी ,ग़लतफ़हमी ने घेरा था        

घोटू

2 टिप्‍पणियां:

  1. >> कभी मंदिर पे कभी महजिद पे जा बैठते है..,
    कऊओं की भी अपनी मस्लहत नहीं होती.....नई !!!!!

    राजू : -- मसल हत.....?

    " विचारधारा....."

    जवाब देंहटाएं
  2. >> कभी मंदिर पे कभी महजिद पे जा बैठते है..,
    मुर्ग़ों की भी अपनी मस्लहत नहीं होती.....नई !!!!!



    राजू : -- मसल हत.....?

    " विचारधारा....."

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