जल कितना नायाब हो गया
ये क्या आज जनाब हो गया ,मिले शुद्ध जल,ख्वाब हो गया
आबो हवा इस तरह बदली ,जीवन बड़ा , खराब हो गया
बिकता आज ,बंद बोतल में ,जल कितना नायाब हो गया
मिला दूध संग ,दूध बन गया ,बहा गंदगी संग बन नाली
जिस रंग मिलता,उस रंग रंगता ,इस पानी की बात निराली
मीठा कभी,कभी खारा है, मादक कभी शराब हो गया
सत्तर प्रतिशत पानी तन में ,फिर भी तन ,पानी को तरसा
उड़ा ग्रीष्म में बादल बन कर,बारिश में रिमझिम कर बरसा
बहा ले गया कितनो को ही ,उग्र हुआ ,सैलाब बन गया
पानी मिला ,लहू के संग तो,दौड़ गया ,तन की नस नस में
पानी ने ,खाना पचवाया , मिल कर आमाशय के रस में
थोड़ा बन कर बहा पसीना ,बचा हुआ पेशाब हो गया
सुख में आँखों को पनियाया ,दुःख में आंसू बनकर टपका
कभी बहा बन गंगा ,जमुना ,सागर से मिलने को लपका
सहमा रहा कभी कूवे में,और कभी तालाब बन गया
खेतों में ,बीजों को सींचा ,तो वह फसल बना ,लहलाया
बगिया में जब गया घूमने ,क्यारी क्यारी को महकाया
नाचा कभी,जूही बेला संग ,तो फिर कभी गुलाब बन गया
कोई पीता चुल्लू भर कर,कोई डूबता चुल्लू भर में
कोई होता पानी पानी,कभी शरम में,या फिर डर में
पानी अगर ,चढ़ा चेहरे पर ,तो वह रूप,शबाब बन गया
पूजा में ,स्नान ध्यान में ,खानपान में जल का सम्बल
मंदिर में चरणामृत बनता ,शिवशंकर को चढ़ता है जल
देख चाँद को उछला करता ,विष्णु का आवास हो गया
मैल दूसरों का हर लेता ,चाहे खुद हो जाता मैला
जल है अमृत ,जल है जीवन ,जलन मिटाता है अलबेला
जम कर बरफ,वाष्प ऊष्मा से ,नारियल में छुप,डाब हो गया
बिकता आज बंद बोतल में ,जल कितना ,नायाब हो गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
ये क्या आज जनाब हो गया ,मिले शुद्ध जल,ख्वाब हो गया
आबो हवा इस तरह बदली ,जीवन बड़ा , खराब हो गया
बिकता आज ,बंद बोतल में ,जल कितना नायाब हो गया
मिला दूध संग ,दूध बन गया ,बहा गंदगी संग बन नाली
जिस रंग मिलता,उस रंग रंगता ,इस पानी की बात निराली
मीठा कभी,कभी खारा है, मादक कभी शराब हो गया
सत्तर प्रतिशत पानी तन में ,फिर भी तन ,पानी को तरसा
उड़ा ग्रीष्म में बादल बन कर,बारिश में रिमझिम कर बरसा
बहा ले गया कितनो को ही ,उग्र हुआ ,सैलाब बन गया
पानी मिला ,लहू के संग तो,दौड़ गया ,तन की नस नस में
पानी ने ,खाना पचवाया , मिल कर आमाशय के रस में
थोड़ा बन कर बहा पसीना ,बचा हुआ पेशाब हो गया
सुख में आँखों को पनियाया ,दुःख में आंसू बनकर टपका
कभी बहा बन गंगा ,जमुना ,सागर से मिलने को लपका
सहमा रहा कभी कूवे में,और कभी तालाब बन गया
खेतों में ,बीजों को सींचा ,तो वह फसल बना ,लहलाया
बगिया में जब गया घूमने ,क्यारी क्यारी को महकाया
नाचा कभी,जूही बेला संग ,तो फिर कभी गुलाब बन गया
कोई पीता चुल्लू भर कर,कोई डूबता चुल्लू भर में
कोई होता पानी पानी,कभी शरम में,या फिर डर में
पानी अगर ,चढ़ा चेहरे पर ,तो वह रूप,शबाब बन गया
पूजा में ,स्नान ध्यान में ,खानपान में जल का सम्बल
मंदिर में चरणामृत बनता ,शिवशंकर को चढ़ता है जल
देख चाँद को उछला करता ,विष्णु का आवास हो गया
मैल दूसरों का हर लेता ,चाहे खुद हो जाता मैला
जल है अमृत ,जल है जीवन ,जलन मिटाता है अलबेला
जम कर बरफ,वाष्प ऊष्मा से ,नारियल में छुप,डाब हो गया
बिकता आज बंद बोतल में ,जल कितना ,नायाब हो गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।