एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

अंतर की वेदना

अंतर की वेदना का कोई अंत नहीं
दुःख की संयोजना का कोई पंथ नहीं
जो मेरा है वोह मेरा सर नहीं
जिसमें जीवित हूँ वोह मेरा संसार नहीं
रक्त रंजित अधर हैं फिर भी मैं गा रहा हूँ
रुधिर बहते नयन हैं फिर भी मुस्करा रहा हूँ
व्यक्त हूँ अव्यक्त हूँ आक्रोश हूँ पर मौन हूँ
सत्य सह मैं सत्य पर मिथ्या रहा हूँ
अंतर की वेदना का कोई अंत नहीं अब 'निर्जन'
जो होता है अभिव्यक्त समक्ष वोह सहता ही जा रहा हूँ
सहता ही जा रहा हूँ...

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

जीवन बोध

           जीवन बोध

आगम बोध,प्रसूति गृह में,निगमबोध श्मसान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में
आता जब मानव दुनिया में ,होता उसको बोध कहाँ
भोलाभाला निश्छल बचपन,काम नहीं और क्रोध कहाँ
और जब जाता है तो उसको,बोध कहाँ रह पाता  है
खाली हाथ  लिए आता  है,खाली हाथों  जाता है
जिन के खातिर ,सारा जीवन,रहता है खटपट करता
नाते जाते छूट सभी से, सांस आखरी जब  भरता
जीवन भर चिंता में जलता,चिता जलाती मरने पर
एक राख की ढेरी बन कर ,रह जाता  अस्थिपंजर
कंचन काया ,जिस पर रहता ,था अभिमान जवानी में
अस्थि राख बन ,तर जाते है ,गंगाजी के  पानी में
उसे बोध है,मृत्यु अटल है,फिर भी है अनजाना सा
मोह माया के चक्कर में फस,रहता है दीवाना  सा
पास फ़ैल होता रहता है,जीवन के  इम्तिहान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ और बीबी

          माँ और बीबी
                    1
माँ बीबी दोनों खड़े,किसको दूं तनख्वाह
बलिहारी माँ आपकी,बीबी दीनी  लाय
बीबी दीनी लाय ,आपके मै गुण  गाऊं
निशदिन  सेवा करूं ,आपके चरण दबाऊं
अब हिसाब के चक्कर में क्यों पड़ती हो माँ
बहुत कर लिया काम,आप आराम करो माँ
                       2
तनख्वाह  में माया बसे,पुत्र कहे समझाय
माया है ठगिनी बहुत,वेद ,पुराण बताय
वेद पुराण बताय,त्याग चिंताएं सारी
प्रभु को सिमरो ,डाल  बहू पर जिम्मेदारी
'घोटू 'तनख्वाह क्या ,लाखों का तेरा बेटा
तेरी सेवा करने को  हाजिर है    बैठा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

उलाहना

          उलाहना  

तुम ने मुझसे प्यार जता कर ,मीठी मीठी बातों में 
मुझको दीवाना कर डाला ,नींद चुरा कर ,रातों  में 
             मेरी तब नादान उमर थी,मै तो थी  भोलीभाली 
              तुम्हे बसाया था आँखों में,करने दिल की रखवाली 
              ऐसे  चौकीदार बने तुम,खुद ही  लुटेरे बन बैठे 
               मेरे दिल को चुरा ले गए ,साजन मेरे  बन बैठे 
ऐसा जादू डाला मुझ पर,प्यार भरी सौगातों ने 
मुझको  दीवाना कर डाला ,नींद चुरा  कर रातों में 
                दिल के संग संग चैन चुराया,नींद चुरायी आँखों की 
                किस से अब फ़रियाद करू,ये दौलत तो थी लाखों की 
                मै पागल सी ,हुई बावरी,दीवानी सी,लुट कर भी 
                तुम्हारे ख्यालों में खोई,ख़ुशी ख़ुशी,सब खोकर भी 
अपना सब कुछ सौंप दिया है,अब तुम्हारे हाथों में 
मुझको दीवाना कर डाला ,नींद चुरा कर ,रातों में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

दूध और मानव

      दूध और मानव

दूध के स्वभाव और मानव के स्वभाव को ,
एक जैसा बतलाते है
क्योंकि गरम होने पर दोनों उफन जाते है 
दूध का उफनना ,चम्मच के हिलाने से ,थम जाता है
और धीरज के चम्मच से हिलाने से,
उफनता आदमी भी ,शांत बन जाता है
दूध ,जब पकाया  जाता है ,
तो वह बंध  जाता है पर खोया कहलाता है
आदमी भी ,शादी के बाद ,
गृहस्थी के बंधन में बंध  जाता है ,
और बस खोया खोया ही नज़र आता है
जैसे दूध में जावन डालने से ,
वो जम  जाता है,उसका स्वरुप बदल जाता है
और वो दही कहलाता है
वैसे ही  ,पत्नी प्रेम का ,जरासा जावन ,
आदमी के मूलभूत स्वभाव में ,परिवर्तन लाता है
दूध पर ध्यान नहीं दो,
यूं ही पड़ा रहने दो ,तो वो फट जाता है
आदमी पर भी ,जब ध्यान नहीं दिया जाता,
तो उसका ह्रदय ,विदीर्ण हो कर,फट जाता है
दूध से कभी रबड़ी ,कभी कलाकंद,
कभी छेने की स्वादिष्ट मिठाई बनती है
बस इसके  लिए,थोड़ी मिठास की जरूरत पड़ती है
उसी तरह,यदि आदमी का ,असली स्वाद जो पाना  है  
तो आपको बस ,मीठी मीठी बातें बनाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा...

बरसों के बाद देखा एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा
तेवर खींचे खींचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा
अलफ़ाज़ थे के जुगनू आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में नहरों का रास्ता सा
ख्वाबों में ख्वाब उस के यादों में याद उसकी
नींदों में घुल गया हो जैसे के रतजगा सा
पहले भी लोग आये कितने ही ज़िन्दगी में
वोह हर वजह से लेकिन औरों से था जुदा सा
अगली मोहब्बतों ने वोह नामुरादियाँ दी
ताज़ा रफ़ाक़तों से था दिल डरा डरा सा
तेवर  थे बेरुखी के अंदाज़ दोस्ती सा
वोह अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा
कुछ यह के मुद्दतों से में भी नहीं था रोया
कुछ ज़हर में भुजा था अहबाब का दिलासा
फिर यूँ हुआ के सावन आँखों में आ बसा था
फिर यूँ हुआ के जैसे दिल भी था आबला सा
अब सच कहूँ तो यारों मुझको  खबर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत एक वाकेया ज़रा सा
बरसों के बाद देखा एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा...
अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा...

बदलती खुशबुंए

         बदलती खुशबुंए 

नयी नयी शादी होती तो ख़ुशी खनकती बातों में
मादक सी खुशबू आती है,मेंहदी वाले  हाथों में
शादी बाद चंद बरसों तक ,पत्नी है चहका करती
नए नए परफ्यूम ,सेंट की,खुशबू  से महका करती
जब माँ बनती ,तो बच्चे को ,लोरी सुना सुलाती है
बेबी पावडर ,दूध,तेल की,उसमे खुशबू आती है 
फिर चूल्हे,चौके में रमती,सेवा में घर वालों की
आती है हाथो से खुशबू,हल्दी,मिर्च,मसाले की
लोरी,चहक सभी बिसराती, जब  वो चालीस पार हुई 
आयोडेक्स और पेन बाम की खुशबू संग लाचार हुई
पूजा पाठ बुढ़ापे में है,भजन कीर्तन है गाती
धूप,अगरबत्ती,चन्दन की ,खुशबू है उसमे आती
साथ उमर के ,तन की खुशबू,यूं ही बदला करती है
मगर प्यार की खुशबू मन में,उसके सदा महकती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

खुशियों के चार पल

खुशियों  के चार पल ही सदा ढूँढता रहा
क्या ढूँढना था मुझको मैं क्या ढूँढता रहा 
मायूसियों के शहर में मुझ सा गरीब शक्श
लेने को सांस थोड़ी हवा ढूँढता रहा 
मालूम था के उसकी नहीं है कोई रज़ा
फिर भी मैं वहां उसकी रज़ा ढूँढता रहा 
मालूम था के मुझे नहीं मिल सकेगा वोह 
फिर भी मैं उसका सदा पता पूछता रहा
फिर यूँ हुआ के उस से मुलाक़ात हो गई
फिर उम्र भर मैं अपना पता पूछता रहा
खुशियों  के चार पल ही सदा ढूँढता रहा...

मोइली की मार

              मोइली  की मार
बूँद बूँद कर ,भरता है घट,बूँद बूँद कर होता खाली
ऐसी मार,मोइली मारी, एक घोषणा ये कर डाली 
आठ आने प्रति लीटर बढ़ेंगी ,डीजल की कीमत हर महीने
तेल कम्पनी,घाटे  का घट,घटता  जायेगा हर  महीने
बूँद बूँद घट ,मंहगाई का ,हर महीने  भरता जाएगा
सीमित साधन,जनसाधारण ,क्या पहनेगा,क्या खायेगा
पर सरकारी,लाचारी है,जनता का क्या ख्याल करेंगे
झटका देकर ,ना मारेंगे,बस हर माह,हलाल करेंगे
संकट घट,हर माह भरेगा,भूखा पेट,जेब भी खाली
बूँद बूँद कर ,घट भरता है,बूँद बूँद कर ,होता खाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

मित्र पुराने याद आ गये

                   मित्र पुराने याद आ गये

जब यादों ने करवट बदली,मित्र पुराने याद आ गये
आँखों आगे ,कितने चेहरे ,कितने वर्षों बाद आ गये
बचपन में जिन संग मस्ती की ,खेले,कूदे ,करी पढाई 
खो खो और कबड्डी खेली ,गिल्ली डंडे,पतंग उड़ाई
पेड़ों पर चढ़,इमली तोड़ी,जामुन खाये ,की शैतानी 
उन भूले बिसरे मित्रों की,आई  यादें ,कई,पुरानी
धीरे धीरे बड़े हुए तो  ,निकला कोई नौकरी करने
कोई लगा काम धंधे से,गया कोई फिर आगे पढने
सबके अपने अपने कारण थे ,अपनी अपनी मजबूरी
बिछड़ गये  सब बारी बारी,और हो गयी सब में दूरी
सब खोये अपनी दुनिया में,अपने सुख दुःख में,उलझन में
जब लंगोटिया साथी छूटे ,नये दोस्त आये जीवन में
कुछ सहकर्मी ,चंद पड़ोसी,दिल के बड़े करीब छा गये
जब यादों ने करवट बदली ,मित्र पुराने याद आ गये  
कुछ पड़ोस के रहनेवालों के संग इतना बढ़ा घरोपा
एक दूसरे के सुखदुख में ,जिनने साथ दिया अपनों सा
बार बार जब हुआ ट्रांसफर,बार बार  घर हमने बदले
बार बार नूतन सहकर्मी,और पडोसी ,कितने बदले
और रिटायर होने पर जब,कहीं बसे ,तो अनजाने थे
नए पडोसी,नए दोस्त फिर,धीरे धीरे बन जाने थे
क्योंकि उम्र  के इस पड़ाव में,मित्रो की ज्यादा है जरुरत
जो सुख दुःख में ,साथ दे सके ,कह कर आती नहीं मुसीबत
खोल 'फेस बुक ',कंप्यूटर में,वक़्त बिताते हैं कुछ ऐसे
ढूँढा करते दोस्त पुराने,क्या करते है और है कैसे
दूर बसे सब सगे ,सम्बन्धी,अनजाने अब पास आ गये
जब यादों ने करवट बदली,मित्र पुराने,याद आ गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

यह रात

एक अजीब सा एहसास दिलाती है यह रात
एक दिलासा देती है पास बुलाती 
लिपट के सोने को जी चाहता है इसके साथ
हालात हैं की दिन की रौशनी से मुझे डर लगता है
डर लगता है की यह हसीं ख्वाब टूट न जाएँ
डर लगता है की कोई मुझे इस तरह देख न ले
देख ना ले की मैं आज भी अकेले हूँ 
एक उसकी याद है बस वक़्त गुज़ारने के लिए
एक उम्मीद है बस दिल में इन यादों को सँवारने के लिए 
के कभी मिलेगी कहीं तो मिलेगी वोह मुझसे 
यकीन अपने से ज्यादा मुझे उस पर क्यों है
एक अजीब सा एहसास दिलाती है यह रात

स्त्री तेरी यही कहानी

बचपन में पढ़ा
मैथली शरण गुप्त को
स्त्री है तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध
आँखों में है पानी
वो पानी नहीं
आंसू हैं
वो आंसू
जो सागर से
गहरे हैं
आंसू की धार
एक बहते दरिया से
तेज़ है
शायद बरसाती नदी
के समान जो
अपने में सब कुछ समेटे
बहती चली जाती है
अनिश्चित दिशा की ओर
आँचल जिसमें स्वयं
राम कृष्ण भी पले हैं
ऐसे महा पुरुष
जिस आँचल में
समाये थे
वो भी महा पुरुष
स्त्री का
संरक्षण करने में
असमर्थ रहे
मैथली शरण गुप्त की  ये
बातें पुरषों को याद रहती हैं
वो कभी तुलसी का उदाहरण
कभी मैथली शरण का दे
स्वयं को सिद्ध परुष
बताना चाहते हैं या
अपनी ही जननी को
दीन हीन मानते हैं
ऐसा है पूर्ण पुरुष का
अस्तित्व...

बुधवार, 30 जनवरी 2013

ये दूरियां

        ये दूरियां
मै बिस्तर के इस कोने में ,
                           तुम सोई उस कोने में
कैसे हमको नींद आएगी ,
                             दूर दूर यूं    सोने में
ना तो कुछ श्रृंगार किया है ,
                          ना ही तन पर आभूषण
ना ही स्वर्ण खचित कपडे है ,
                           ना ही है हीरक  कंगन
सीधे सादे शयन वसन में ,
                           रूप तुम्हारा अलसाया
कभी चूड़ियाँ,कभी पायलें,
                            बस खनका  करती खन खन 
तेरी  साँसों की सरगम में,
                           जीवन का संगीत भरा,
तेरे तन की गंध बहुत है ,
                              मेरे पागल होने  में
मै बिस्तर के इस कोने में,
                               तुम सोई उस कोने में
तुम उस करवट,मै इस करवट,
                              दूर दूर हम सोये  है
देखें कौन पहल करता है ,
                              इस विचार में खोये है
दोनों का मन आकुल,व्याकुल,
                              गुजर न जाए रात यूं ही ,
टूट न जाए ,मधुर मिलन के,
                                सपने ह्रदय  संजोये है
हठधर्मी को छोड़ें,आओ,                  
                             एक करवट तुम,एक मै लूं,
मज़ा आएगा,एक दूजे की ,
                               बाहुपाश बंध ,सोने में
मै बिस्तर के इस कोने में,
                                 तुम सोयी उस कोने में
कैसे हमको नींद आएगी ,
                                दूर दूर यूं सोने  में

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

नहीं गलती कहीं भी दाल है बुढ़ापे में

      नहीं गलती कहीं भी दाल है बुढ़ापे में

वो भी क्या दिन थे मियां फाख्ता उड़ाते थे ,
                           जवानी ,आती बहुत याद है बुढ़ापे में
करने शैतानियाँ,मन मचले,भले ना हिम्मत,
                               फिर भी आते नहीं हम बाज है बुढ़ापे में 
बड़े झर्राट ,तेज,तीखे,चटपटे  थे हम,
                               गया कुछ ऐसा बदल स्वाद है,बुढ़ापे में
अब तो बातें ही नहीं,खून में भी शक्कर है,
                               आगया  इस कदर मिठास  है बुढ़ापे में
देख कर गर्म जलेबी,रसीले रसगुल्ले ,
                                टपकने  लगती मुंह से लार है बुढ़ापे में
लगी पाबंदियां है मगर मीठा खाने पर ,
                                मन को ललचाना तो बेकार है बुढ़ापे  में 
देख  कर ,हुस्न सजीला,जवान,रंगीला ,
                                 बदन में जोश फिर से भरता है बुढ़ापे में
जब की मालूम है,हिम्मत नहीं तन में फिर भी,
                                 कुछ न कुछ करने को मन करता है बुढ़ापे में
न तो खाने का,न पीने का ,नहीं जीने का,
                                  कोई भी सुख नहीं ,फिलहाल है बुढ़ापे में
कभी अंकल ,कभी बाबा कहे हसीनायें ,
                                     नहीं गलती कहीं भी दाल है ,बुढ़ापे में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

रविवार, 27 जनवरी 2013

एक कंवारे की गुहार- कोई मेरी मम्मी को समझाये

  एक कंवारे की गुहार- कोई मेरी मम्मी को समझाये

जैसे कच्ची केरी आ जाती है गार पर ,
और आम बनने को हो जाती है तैयार
उसी तरह मै भी पढ़ा लिखा जवान हो गया हूँ,
ब्रह्मचर्य आश्रम की उम्र को कर लिया है पार
मैंने कई बार ,अपने जवान होने का इशारा,
 करने,अपने दाढ़ी ,मूंछें भी  बढवाई 
मगर घरवाले मुझे छोटा ही समझते है,
ये बात भी उनके समझ में न आई
मै ,जब भी किसी लड़की से मुलाक़ात करता हूँ,
तो मै उससे नज़रें झुका  कर बात करता हूँ
मगर घरवाले समझते है की मै शर्मीला हूँ,
मुझे लड़कियों में कोई इंटरेस्ट ही नहीं है
जब कि मै उसके पैरों की तरफ इसलिए देखता हूँ,
कि  उसने बिछुवे पहन रखे है या नहीं
यानी वो शादीशुदा है या कंवारी,पहले ये पता लगाऊं
और उसके बाद ,बात को आगे बढ़ाऊ
मै अलग शहर में नौकरी करता हूँ ,
और जब भी घर जाता हूँ
घर के खाने की तारीफ़ करता हूँ,
और अपनी खान पान की दिक्कत बताता हूँ
ताकि मम्मी को पता लग जाये कि ,
मुझे खाने पीने की कितनी परेशानी है
और उसे मेरे लिए ,जल्दी से ,
एक अच्छा खाना बनाने वाली बीबी लानी है
पर पता नहीं क्यों,मम्मी मेरी ये 
बात क्यों नहीं समझ लेती है
बस मेरे साथ मिठाई और खाने पीने का,
ढेर सारा सामान बाँध देती है
अब मै उन्हें कैसे बतलाऊं,कि मै क्या चाहता हूँ
मै ,मिठाई नहीं,मिठाई बनाने वाली चाहता हूँ
अब मुझे अकेला घूमने फिरने में शर्म आती है
तो मैंने गिटार का शौक अपनाया है
और अपने साथ गिटार लेकर,घूमकर ,
मैंने घरवालों को ये ही बतलाना चाहां है
कि मुझे गिटार जैसी जीवन संगिनी चाहिए ,
जो मेरे जीवन में मधुर संगीत भर दे
और मेरे दिल के तारों को झंकृत कर दे
पर मेरी मम्मी  ये सब इशारे नहीं समझ पाती है
और कभी कभी जब वो मेरी शादी की बात चलाती है
तो मै दिखाने के लिए यूं ही टालमटोल करता हूँ
उनके सामने सीधे से कैसे बोल सकता हूँ
आखिर बड़ों के आगे कुछ तो शर्म करनी पड़ती है
और मेरी मम्मी ,इसका मतलब उल्टा समझती है
अरे ,अब मै छोटा  बच्चा नहीं रहा ,पढलिख कर,
अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ
प्लीज ,कोई मेरी मम्मी को समझाए कि मै ,
शादी के लायक हूँ,और बढ़ा हो गया हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 


शनिवार, 26 जनवरी 2013

मगर टिमटिमा कर के जलते तो है

     मगर टिमटिमा कर के जलते तो है

पीने की हमको है आदत नहीं,
                      मगर दारू घर में हम रखते तो है
खाने पे मीठे की पाबंदी है ,
                     मिले जब भी मौका तो चखते तो है
खुद का बनाया हुआ हुस्न है,
                      चोरी छुपे  इसको  तकते तो है
नहीं सोने देती तू अब भी हमें ,
                         तेरे खर्राटों से हम जगते तो है  
रहा तुझमे पहले सा वो जलवा नहीं,
                          मगर अब भी तुझ पर हम मरते तो है
अगर नींद हमको जो आती नहीं,
                           तकिये को बाँहों में भरते  तो है 
दफ्तर से तो हम रिटायर हुए,
                           मगर काम घरभर का करते तो है
कहने को तो घर के मुखिय है हम,
                            मगर बीबी,बच्चों से डरते तो है
ये माना कि  हम तो है बुझते दिये ,
                             मगर टिमटिमा करके जलते तो है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

कर तो लो आराम


रंजिश में ही बीत गई है तेरी तो हर शाम,
छुट्टी लेकर बैर भाव से, कर तो लो आराम |

आपा-धापी, भागम-भाग में,
ठोकर खाकर, गिर संभलकर,
कभी किसी की टांग खींचकर,
कभी गंदगी में भी चलकर |

यहाँ से वहाँ दौड़ के करते, उल्टे सीधे काम,
छुट्टी लेकर भाग-दौड़ से, कर तो लो आराम |

कभी किसी की की खुशामद,
कभी कहीं अकड़ कर बोले,
कभी कहीं पे की होशियारी,
कहीं-कहीं पे बन गए भोले |

बक-बक में ही गुजर गया, जीवन हुआ हराम,
छुट्टी लेकर शोर-गुल से, कर तो लो आराम |

वक्त बेवक्त अपनों की सोची,
सबके लिए बस लगे ही रहे,
झूठ-सच की करी कमाई,
पर पथ में तुम जमे ही रहे |

       अपनों के लिए पीते ही रहे, स्वाद स्वाद के जाम,
       कुछ वक्त खुद को भी देकर, कर तो लो आराम |

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

सपनो के सौदागर से

         सपनो के सौदागर से

बहुत जिन्दाबादी के नारे सुने,
                        अब असली मुद्दों पे आओ जरा
करेंगे ये हम और करेंगे वो हम,
                      हमें कुछ तो कर के दिखाओ जरा
ये जनता दुखी है,परेशान  है,
                       उसे थोड़ी राहत  दिलाओ जरा
ये सुरसा सी बढती चली जारही ,
                      इस मंहगाई को तुम घटाओ जरा
भाषण से तो पेट भरता नहीं,
                        खाना मयस्सर  कराओ जरा
खरचते थे सौ ,मिलते पंद्रह थे,
                       नन्यान्वे  अब दिलाओ  जरा 
गरीबों के घर खाली रोटी बहुत,
                        गरीबों को रोटी  खिलाओ जरा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 23 जनवरी 2013

              खट्टा -मीठा

पत्नी जी बोली मुस्का कर
तुम तो कवि  हो मेरे डीयर
अपने मन की परते खोलो
मुझसे कुछ ऐसा तुम बोलो
जिससे मन खुश भी हो जाये
पति बोला क्या बोलूँ प्रियतम
तुम ही तो हो मेरा जीवन
किन्तु मुझे लगता है अक्सर
लानत है ऐसे जीवन पर

घोटू

हे नेताजी ! प्रणाम करूँ


नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
जन्म: 23 जनवरी 1987

नेताजी के जयंती पर अनेकानेक श्रद्धांजलि !!!
हे नेताजी ! प्रणाम करूँ,
तेरे आगे निज शीश धरूँ |

नहीं कोई भक्त माँ भारत का,
तुझ जैसा कभी हो पाया है;
लाल महान तुम इस धरती के,
कोई न तुझसा हो पाया है |

हे नेताजी ! प्रणाम करूँ,
तेरे आगे निज शीश धरूँ |

जिस आज़ादी के दम पर अब,
हम सब यूं इठला सकते हैं;
पाने को तुम लड़े जान से,
कभी न हम झुठला सकते हैं |

हे नेताजी ! प्रणाम करूँ,
तेरे आगे निज शीश धरूँ |

कहाँ तेरे सपनों का भारत,
अब तक हम बनवा पाये हैं;
एक देश हो, हो समानता,
कहाँ ऐसा करवा पाये हैं |

हे नेताजी ! प्रणाम करूँ,
तेरे आगे निज शीश धरूँ |

लेना होगा प्रण हम सबको,
आदर्शों पर चले तुम्हारे;
वही सच्ची श्रद्धांजलि तुमको,
कर्म हो श्रद्धा सुमन हमारे |

हे नेताजी ! प्रणाम करूँ,
तेरे आगे निज शीश धरूँ |

सोमवार, 21 जनवरी 2013

माँ

                          माँ

कलकल करती ,मंद मंद बहती है अविरल
भरा हुआ है जिसमे ,प्यार भरा शीतल जल
दो तट बीच ,सदा जीवन जिसका मर्यादित
जो भी मिलता ,उसे प्यार से करती  सिंचित
गतिवान मंथर गति से बहती सरिता  है
ये मत पूछो ,माँ क्या है,माँ तो बस माँ है
सीधी सादी ,सरल मगर वो प्यार भरी है
अलंकार से होकर आभूषित  निखरी है
जिसमे ममता ,प्यार,छलकता अपनापन है
कभी प्रेरणा देती,विव्हल करती मन है
प्यार,गीत,संगीत भरी कोमल कविता है
ये मत पूछो माँ क्या है,माँ तो बस माँ है
यह जीवन तो कर्मक्षेत्र है ,कार्य करो तुम
सहो नहीं अन्याय ,किसी से नहीं डरो  तुम
मोह माया को छोड़ ,उठो,संघर्ष करो तुम
अपने 'खुद' को पहचानो ,उत्कर्ष करो तुम
जीवन पथ का पाठ पढ़ाती ,वो गीता है
ये मत पूछो माँ क्या है,माँ तो बस माँ है
जिसने तुम्हारे जीवन में कर उजियाला
मधुर प्यार की उष्मा देकर तुमको पाला
जिसकी किरणों से आलोकित होता जीवन
तम को हटा,राह जो दिखलाती है हरदम
अक्षुण उर्जा स्त्रोत ,दमकती वो सविता है
ये  मत पूछो ,माँ क्या है,माँ तो बस माँ है                  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



शनिवार, 19 जनवरी 2013

क्यों होता है ऐसा ?

    क्यों होता है ऐसा ?

            क्यों होता है ऐसा  ये मालूम नहीं है
            लेकिन ऐसा होता है ये बात सही है 
एक बार जब आकर लस जाता है आलस
उठने की कोशिश करो,झपकी आती बस
मन करता बस लेटे रहो ,रजाई    ओढ़े
सुस्ती साथ न छोड़े,बीबी    हाथ न  छोड़े
             सर्दी के मौसम में होता   सदा यही है    
              क्यों होता है ऐसा ,ये मालूम   नहीं है
देख किसी सुन्दर ललना को दिल  ललचाये
उससे करें दोस्ती और  मिलना  मन चाहे 
तुम्हे पता है ,तुम बूढ़े हो,वो जवान   है
लार मगर फिर भी टपकाती ये जुबान है
               ग़ालिब ने सच कहा ,इश्क पर जोर नहीं है
                क्यों होता है  ऐसा         ये मालूम नहीं है 
देख देख कर,दुनिया भर के ये आकर्षण
ये भी पा लूं,वो भी पा लूं,करता है मन
जब कि  पता है ,तुम्हारी जेबें है खाली
पेट भरेगी ,दाल और रोटी , घर वाली
                 मगर लालसा करने पर तो रोक नहीं है  
                   क्यों होता है ऐसा  ये मालूम नहीं है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

खरामा - खरामा

खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,

भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,

अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,

शरम का ख़तम दौर हो सा गया,
खरामा - खरामा मची गन्दगी,

जमाना भलाई का गुम हो गया,
खरामा - खरामा बुरा आदमी,

जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,
खरामा - खरामा जहर सी लगी.....


सादर 
अरुन शर्मा "अनंत'

स्वाभिमान

               स्वाभिमान

किया प्रयास ,दिखूं  अच्छा ,पर दिख न सका मै
ना चाहा था बिकना मैंने, बिक न  सका  मै
मेरे आगे था मेरा स्वाभिमान  आ गया
मै जैसा भी हूँ,अच्छा हूँ, ज्ञान    आ गया
नहीं चाहता था,विनम्र बन,हाथ जोड़ कर
अपने चेहरे पर नकली  मुस्कान ओढ़ कर
करू प्रभावित उनको और मै उन्हें  रिझाऊ
उनसे रिश्ता जोडूं ,अपना  काम बनाऊ
पर मै जैसा हूँ,वैसा यदि उन्हें सुहाए
मेरे असली रूप रंग में ,यदि अपनाएँ
तो ही ठीक रहेगा ,धोका क्यों दूं उनको
करें शिकायत ,ऐसा मौका क्यों दूं उनको
पर्दा उठ ही जाता,शीध्र बनावट पन  का
मिलन हमेशा ,सच्चा होता,मन से मन का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

दिल्ली का मौसम -आज का

      दिल्ली का मौसम -आज का 

रात बारिश हुई थी और गिरे थे ओले,
               बिजलियाँ चमकी थी और खूब घिरे थे बादल
आज तो भोर से ही छा रहा घना कोहरा,
                हवायें ,तेज भी है,सर्द भी है और   चंचल
बड़ी ही ठण्ड है ,छाया है अँधेरा दिन में ,
                सुबह से आज तो सूरज भी हो गया गुम है
आओ हम बैठ कर बिस्तर में पकोड़े खायें ,
                 रजाई में दुबक के रहने का ये मौसम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'    

अपनी अपनी किस्मत

       अपनी अपनी किस्मत

जब तक बदन में था छुपा ,पानी वो पाक था,
बाहर  जो निकला पेट से ,पेशाब बन गया
बंधा हुआ था जब तलक,सौदा  था लाख का,
मुट्ठी खुली तो लगता है वो खाक बन गया
कितनी ही बातें राज की,अच्छी दबी हुई,
बाहर जो निकली पेट से  ,फसाद बन गया
हासिल जिसे न कर सके ,जब तक रहे जगे,
सोये तो ,ख्याल ,नींद में आ  ख्वाब बन गया
जब तक दबा जमीं में था,पत्थर था एक सिरफ ,
हीरा निकल के खान से ,नायाब   बन गया
कल तक गली का गुंडा था ,बदमाश ,खतरनाक,
नेता बना तो गाँव की वो नाक बन गया
काँटों से भरी डाल पर  ,विकसा ,बढ़ा हुआ ,
वो देखो आज महकता  गुलाब बन गया
घर एक सूना हो गया ,बेटी  बिदा  हुई,
तो घर किसी का बहू पा ,आबाद हो गया
अच्छा है कोई छिप के और अच्छा  कोई खुला,
नुक्सान में था कोई,कोई लाभ बन गया
किस का नसीब क्या है,किसी को नहीं खबर,
अंगूर को ही देखलो ,शराब   बन  गया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उम्मीद का दिया

           उम्मीद का दिया

कुछ न कुछ हममे ही शायद कमी  रही होगी
या कि किस्मत ही हमारी  सही नहीं    होगी
जो कि तुमने ये दिल तोड़ने का काम किया
छोड़ कर हमको ,हाथ गैर का है थाम  लिया
तुम्हारे मन में यदि शिकवा कोई रहा होता 
शिकायत हमसे की होती,हमें कहा  होता
करते कोशिश,गिला दूर कर,मनाने की
इस तरह ,क्या थी जरूरत ,तुम्हे यूं जाने की
हमने ,हरदम तुम्हारी ख्वाइशों का  ख्याल रखा
तुम्हारी,जरूरतों,फरमाइशों का  ख्याल रखा
कभी गलती से अगर हमसे हुई कोई खता  
तुम्हारा हक था,हमें प्यार से तुम देती बता
मगर तुम मौन रही ,ओढ़ करके ख़ामोशी
तुम्हारा जीत न विश्वास सके, हम   दोषी
मगर तुमने जो है ये रास्ता अख्तियार किया
छोड़ कर हमको ,किसी गैर से है प्यार किया
खैर,अब जो भी गया है गुजर,गुजरना था
यूं ही ,तिल तिल ,तुम्हारे बिन हमें तड़फना था
मिलोगी एक दिन ,आशा लगाए बैठे है
 हम  तो उम्मीद का दिया जलाये  बैठे है   
फिर से आएगी खुशनसीबियाँ ,देगी दस्तक
करेंगे इन्तजार आपका ,क़यामत तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम खाने में अव्वल नंबर

              हम खाने में  अव्वल नंबर 

कभी समोसा,इडली डोसा,
                      कभी उतप्पम और साम्बर है
हम हिन्दुस्तानी दुनिया में ,
                           खाने में  अव्वल नंबर  है 
फल सब्जी को दुनिया में सब,
                             फल सब्जी जैसे खाते है
पर हम गाजर,लौकी,आलू,
                             सबका हलवा बनवाते है
भला सोच सकता था कोई ,
                            कि  भूरे कद्दू को  लेकर
बने आगरे वाला पेठा ,
                           अंगूरी ,केसर का मनहर
परवल की सब्जी से भी तो,
                           हम स्वादिष्ट मिठाई बनाते
आलू,प्याज और पालक की ,
                           गरमागरम  पकोड़ी खाते
आलू की टिक्की खाते है ,
                             आलू बड़ा ,पाँव और भाजी
सब्जी से ज्यादा सब्जी के ,
                             व्यंजन खाकर होते राजी
खाने की हर एक चीज में ,
                             हम बस देते,लज्जत भर है
हम हिन्दुस्तानी दुनिया में ,
                            खाने में अव्वल नंबर  है 
बना दूध से रबड़ी ,खुरचन,
                            कलाकंद और पेड़े  प्यारे
दूध फाड़ ,छेने से बनते,
                             चमचम,रसगुल्ले ,रसवाले
जमा दूध को दही जमाते,
                                 लस्सी और श्रीखंड खाते 
आइसक्रीम और कुल्फी से ,
                              हम गर्मी से राहत पाते
तिल  से बने रेवड़ी ,लड्डू ,
                            खस्ता गज़क ,सर्द मौसम में 
मेथी,गोंद ,सौंठ ,मेवे के,
                               लड्डू खूब बनाए  हमने 
काजू,पिस्ता ,ड्राय फ्रूट से,
                               हमने कई मिठाई बनायी
ले गुलाब,गुलकंद बनाया ,
                              केसर की खुशबू रंग लायी      
कभी खान्खरे ,कभी फाफड़े ,
                              कभी थेपले और पापड है
हम हिन्दुस्तानी दुनिया में ,
                            खाने  में अव्वल  नंबर  है 
मैदा सड़ा  ,खमीर उठा कर,
                             अंग्रेजों ने ब्रेड  बनायी
लेकिन हमने उस खमीर से ,
                             गरमा गरम जलेबी खायी
मोतीचूर बने बेसन से ,
                               लड्डू,बूंदी,सेव,पकोड़ी 
उड़द दाल से बने इमरती ,
                              हमने कोई चीज न छोड़ी
आटा ,सूजी ,बेसन ,मैदा ,
                              दाल मूंग की ,या बादामे
ऐसी कोई चीज न जिसका ,
                              हलवा  नहीं बनाया हमने
बारीक रेशे वाली फीनी ,
                             जाली वाले , घेवर प्यारे 
मालपुवे ,मीठे  मलाई के,
                            और गुलाब जामुन मतवाले 
चाट ,दही भल्ले ,ललचाते ,
                              मुंह में आता  पानी भर  है
हम हिन्दुस्तानी दुनिया में,
                              खाने में अव्वल  नंबर  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 16 जनवरी 2013

चर्चित दाना - चर्चित दाना....


















चर्चित दाना - चर्चित दाना
छोड़ दो अब तुम खाना खाना...

महंगाई है चरम पे अपने 
शुरू करो अब चुगना दाना
बहुत खा चुके थाली भर भर
बहुत गा चुके गाना वाना....

आने वाला दिन ऐसा है 
खाना कम बस गोली खाना
ऐश की सारी चीज़ें होंगी
सेहत लेकिन ना ना ना ना....

आज नहीं एक दिन सोचोगे
अच्छा है पंछी बन जाना,
मानव जीवन बडा कठिन है
नींद में भी बस पाना - पाना....

चर्चित दाना - चर्चित दाना
छोड़ दो अब तुम खाना खाना....

- VISHAAL CHARCHCHIT

वक्त की लय पर चलो एक राग सुन लें....

















वक्त की लय पर चलो
एक राग सुन लें

है बसंती रुत सुहानी
है बडी चंचल पवन
है हृदय में भाव जागा
ख्वाब से भीगे नयन

आओ मन के मीत सा
एक साज चुन लें

तुम कहां खोये हुए हो
कौन धुन में हो मगन,
कौन सा ऐसा विषय है
कर रहे चिंतन-मनन

आओ हम तुम साथ मिल
एक आज बुन लें....

- VISHAAL CHARCHCHIT

बिन तुम्हारे

      बिन तुम्हारे

क्या बतलाऊँ ,बिना तुम्हारे ,    कैसे कटती          मेरी रातें
मिनिट मिनिट में नींद टूटती ,मिनिट मिनिट में सपने आते 
बांह पसारूं,तो सूनापन,
                 तेरी बड़ी कमी लगती है
बिन ओढ़े सर्दी लगती है,                    
                   ओढूं तो गरमी  लगती है
तेरी साँसों की सरगम बिन,
                        सन्नाटा छाया रहता है
करवट करवट ,बदल बदल कर,
                      ये तन अलसाया रहता है
ना तो तेरी भीनी खुशबू ,और ना मीठी ,प्यारी बातें
क्या बतलाऊँ ,बिना तुम्हारे ,कैसे कटती ,मेरी रातें     
कितनी बार,जगा करता हूँ,
                     घडी  देखता,फिर सो जाता
तकिये को बाहों में भरता ,
                      दीवाना सा ,मै  हो जाता
थोड़ी सी भी आहट होती ,
                    तो एसा लगता  तुम आई
संग तुम्हारे जो बीते थे,
                    याद आते वो पल सुखदायी
सूना सूना लगता बिस्तर ,ख्वाब मिलन के है तडफाते
क्या बतलाऊँ,बिना तुम्हारे,  कैसे कटती ,    मेरी रातें
  तुम जब जब, करवट लेती थी,
                       होती थी पायल की रुन झुन
बढ़ जाती थी ,दिल की धड़कन ,
                       खनक चूड़ियों की ,प्यारी सुन
अपने आप ,अचानक कैसे,
                       बाहुपाश में हम  बंध  जाते
बहुत सताती ,जब याद आती ,
                         वो प्यारी  ,मदमाती  राते
फिर से वो घडियां  आयेंगी ,दिल को ढाढस ,यही बंधाते
क्या बतलाऊँ,बिना तुम्हारे,     कैसे कटती  ,मेरी रातें 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

असर -मौसम का

     असर -मौसम का

आजकल का मौसम ,
ही इतना जालिम है ,
अच्छे भले लोगों की ,कमर तक टूट गयी
तुलसी जी को देखो ,
दो महीने पहले ही,
था इनका ब्याह हुआ,और बिलकुल सूख गयी

घोटू

रविवार, 13 जनवरी 2013

वक़्त वक़्त की बात

  वक़्त वक़्त की बात

एक जवां मच्छर ने,कहा एक बूढ़े से,
                              आपके जमाने में ,बड़ी सेफ लाइफ थी 
ना 'हिट 'ना' डी .डी .टी .'न ही 'आल आउट 'था,
                              और ना धुवां देती ,कछुवे की कोइल थी
एक आह ठंडी भर,बोला बूढा मच्छर,
                               वो तो सब ठीक मगर ,मौज तुम उड़ाते हो
आज के जमाने में ,है इतना खुल्लापन ,
                               जहाँ चाहो मस्ती से ,चुम्बन ले पाते हो
हमारे जमाने में,एक बड़ी मुश्किल थी,
                               औरतों का सारा तन,रहता था ,ढका ,ढका
तरस तरस जाते थे ,मुश्किल से कभी,कहीं,
                                 चूमने का मौका हम,पाते थे यदा कदा
समुन्दर के तट पर या फिर स्विमिंग पूलों पर ,             
                                  खतरा भी कम है और रौनक भी ज्यादा है
तुम तो हो खुश किस्मत ,इस युग में जन्मे हो ,
                                   तुम्हे मौज मस्ती के,मौके भी ज्यादा  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कल और आज

      कल और आज

याद हमें आये है वो दिन ,
                            जब ना होते थे कंप्यूटर
चालीस तक के सभी पहाड़े,
                          बच्चे रटते रहते दिन भर
ना था इंटरनेट उन दिनों ,
                          और न होते थे मोबाईल
कभी ताश या फिर अन्ताक्षरी ,
                           बच्चे ,खेला करते सब मिल
ना था टी वी ,ना एम .पी ,थ्री ,
                           ना ही मल्टीप्लेक्स ,माल थे
ना ही को- एजुकेशन था ,
                            हम सब कितने मस्त हाल थे
हाथों में स्कूल बेग और ,
                             कोपी ,कलम, किताबें होती
रामायण के किस्से होते ,
                             देश प्रेम की बातें होती
रहता था परिवार इकठ्ठा,
                            पांच ,सात  होते थे बच्चे
घर में चहल पहल रहती थी ,
                             सच वो दिन थे कितने अच्छे
अब तो छोटे छोटे से ,बच्चों,,
                                    के हाथों में है मोबाईल
कंप्यूटर और लेपटोप के ,
                                  बिना पढाई करना मुश्किल
नन्हे बच्चे जो कि अपना ,
                               फेस तलक ना खुद धो सकते
खोल फेस बुक,सारा दिन भर,
                                   मित्रों  से  है बातें  करते  
अचरज,छोटे बच्चों में भी ,
                                 पनप रहा ये नया ट्रेंड  है
उमर दस बरस की भी ना है ,
                                 दस से ज्यादा गर्ल फ्रेंड है
मेल भेजते फीमेलों को,
                                  बात करें स्काईप पर मिल
ट्वीटर  पर ट्विट करते रहते ,
                                  हरदम ,हाथों में मोबाईल
हम खाते थे लड्डू,मठरी ,
                                   ये खाते है पीज़ा ,बर्गर
ईयर फोन लगा कानों में,
                                   गाने सुनते रहते दिन भर
क्योकि अब ,एक बेटा ,बेटी ,
                                     एकाकी वाला बचपन है
मम्मी,पापा ,दोनों वर्किंग ,
                                   भाग दौड़ वाला जीवन है
'हाय'हल्लो 'की फोर्मलिटी में,
                                  अपनापन  हो गया गौण है
इतना 'आई' हो गया हावी ,          
                                  'आई पेड 'है ,'आई फोन 'है
ये ही अगर  तरक्की है तो ,
                                    इससे हम पिछड़े अच्छे थे
मिलनसार थे,भोलापन था ,
                                        प्यार मोहब्बत थी,सच्चे थे   

  मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                    

संक्रांति पर

      संक्रांति पर
आया सूर्य मकर में ,आये नहीं तुम मगर
 पर्व उत्तरायण का आया ,पर दिया न उत्तर
तिल तिल कर दिल जला,खिचड़ी  बाल हो गये
और गज़क जैसे हम खस्ता हाल  हो गये
अगन लोहड़ी की है तपा रही ,इस तन को
अब आ जाओ ,तड़फ रहा मन,मधुर मिलन को

मकर संक्रांति की शुभ कामनाये 
घोटू 
 

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

आज ये मन

      आज ये मन
प्यार करने को तड़फता ,आज ये मन 
गिरायेगा ,आज किस पर ,गाज ये मन 
क्या हुआ यदि बढ़ गयी ,थोड़ी उमर है
क्या हुआ यदि हो गयी ,धुंधली नज़र है
क्या हुआ यदि बदन ढीला हो चला  है,
बुलंदी पर मगर फिर भी होंसला  है
इस कदर बेचैन और बेकल हुआ है,
शरारत से आएगा ना बाज ये मन
प्यार करने को तडफता आज ये मन 
एक तो मौसम बड़ा है आशिकाना
सामने फिर रूप का मनहर  खजाना
बावला सा हो गया है दिल दीवाना
है बड़ा मुश्किल ,इसे अब रोक पाना
प्रणय के मधुमिलन की उस मधुर धुन के ,
सजा कर बैठा हुआ है ,साज ये मन
प्यार करने को  तडफता ,आज ये मन
इश्क पर चलता किसी का नहीं बस है
आज फिर वेलेंटाईन का  दिवस है
पुष्प देकर ,प्रेम का करता प्रदर्शन
दे रहा ,अभिसार का तुमको निमंत्रण
मान जाओ,आज तुमको दिखायेगा ,
प्रेम  करने के नए अंदाज ये मन 
प्यार करने को तडफता आज ये मन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बेक बेंचर

             बेक बेंचर

स्कूल के दिनों में ,मै बड़ा बेफिकर  था 
क्योंकि मै बेक बेंचर था
आगे की सीटों पर बेठने वाले बच्चे
कहलाते है  ,होंशियार और अच्छे
 पर हमेशा उनको सतर्क रहना पड़ता है  
हर एक सवाल का जबाब देना पड़ता है 
पर पीछे की बेंच वाला आराम से सो सकता है
जरासा ध्यान दे तो दूर बैठ कर भी पास हो सकता है
कई जगह,बेक बेंचर होने के कई फायदे दिखते है
जैसे सिनेमा में पीछे वाली सीटों के टिकिट मंहगे बिकते है 
और अक्सर पीछे की सीटें आरक्षित होती है
क्योंकि प्रेमी जोड़ों के लिए वो सुरक्षित होती है
कार में पिछली सीट पर बैठनेवाला ,अक्सर ,मालिक  होता है
और आगे बैठ कर ,कार चलाता है ड्रायवर ,
शादी के जुलुस आगे आगे चलते है बाराती ,
और पीछे घोड़ी पर बैठता है दूल्हा यानि  वर
सेना में जवान आगे रहते है ,
और पीछे रहता है कमांडर
कुर्सी हो या बिस्तर
शरीर का पिछला भाग ही ,डनलप के मज़े लेता है अक्सर
बेकवर्ड होने से ,फायदा ये मोटा होता है
 बेकवर्ड लोगो के लिए रिज़र्वेशन का कोटा होता है
आगे वाले लोग फायदे में तभी रहते है
जब वो बाईक चलाते है
और पीछे कमर पकड़ कर बैठी हुई ,
गर्ल फ्रेंड का मज़ा उठाते है
वर्ना मैंने तो ये देखा है अक्सर
फायदे में ही रहा करते है बेक बेंचर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 7 जनवरी 2013

Akbaruddin Owaisi's hate speech at Nirmal, Adilabad Dist - Full Length V...

देखो हिन्दूओ तुम्महारे कतल की तैयारी किस तरह हो रही है

जिव्हा और दांत -मिया और बीबी वाली बात

     जिव्हा और दांत -मिया और बीबी वाली बात

जिव्हा और दांत
दोनों रहते है साथ साथ
एक सख्त है ,एक मुलायम है
मगर दोनों सच्चे हमदम है
इनका रिश्ता है ऐसे
मियां और बीबी हो जैसे
जिव्हा ,पत्नी सी ,कोमल और नाजुक
 दांत,पति से ,स्ट्रोंग और मजबूत
दांत चबाते है ,जिव्हा स्वाद पाती है
पति कमाता है,बीबी मज़ा उठाती  है
जिव्हा,चंचल चपल और चुलबुली है
बातें बनाती रहती,जब तक खुली है     
दांत, स्थिर ,थमे हुए और सख्तजान है
चुपचाप ,बिना शिकायत के ,करते काम है
बस जब थक जाते है तो किटकिटाते है
और जीभ जब ज्यादा किट किट करती है,
उसे काट खाते है
जैसे कभी कभी अपनी पत्नी पर ,
पति अंकुश लगाता है
मगर फिर भी ,दांतीं की तरह,
उसे अपने आगोश में छुपाता  है
दांतों के बीच में जब भी कुछ है फंस  जाता
 जिव्हा को झट से ही इसका पता चल जाता
और वह इस फंसे हुए कचरे को निकालने ,
सबसे पहले पहुँच जाती है
और जब तक कचरा निकल नहीं जाता ,
कोशिश किये जाती है
जैसे पति की हर पीड़ा ,पत्नी समझती है
और उसकी हर मुश्किल में ,
आगे बढ़ कर मदद करती है
पति पत्नी जैसे ही इनके हालत होते है
दिन भर अपना अपना काम करते है ,
पर रात को चुपचाप ,साथ साथ  सोते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

सभी को है आता-बुढ़ापा ,बुढ़ापा

    सभी को है आता-बुढ़ापा ,बुढ़ापा

सभी को है आता ,सितम सब पे ढाता
देता है तकलीफ ,सबको  सताता
हंसाता तो कम है,अधिकतर  रुलाता 
बड़े ही बुरे दिन ,सभी को दिखाता 
परेशानियों में है होता  इजाफा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
कभी दांत हिलते है खाने में दिक्कत
चबा कुछ न पाओ ,रहो टूंगते बस 
अगर खा भी लो जो कुछ ,तो पचता नहीं है
 मज़ा जिंदगानी का बचता नहीं है 
ये दुःख इतने देता है,क्यों ये विधाता
बुढ़ापा,बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा
चलने में,फिरने में आती है दिक्कत
जरा सा भी चल लो ,तो आती थकावट
हरेक दूसरे दिन ,बिगडती तबियत
उम्र जैसे बढती है,बढती मुसीबत
नहीं चैन मिलता है हमको जरा सा 
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा 
न चेहरे पे रौनक ,न ताकत बदन में
तमन्नाएँ  दब जाती,सब मन की मन में
बुढ़ापे ने ऐसा जुलम कर दिया है
 गयी सब लुनाई ,पड़ी झुर्रियां है 
मुरझा गया फूल ,जो था खिला सा
बुढ़ापा,बुढ़ापा बुढ़ापा बुढ़ापा
हुई धुंधली आँखें ,नज़र कम है आता
है हाथों में कम्पन,लिखा भी न जाता
करो बंद आँखें तो यादें ,सताती
नहीं ढंग से नींद भी तो  है आती
सपनो में यादों का खुलता लिफाफा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा 
न तो पूछे बच्चे,न पोती न पोते
उमर कट रही है यूं ही रोते रोते
नहीं वक़्त कटता  है,काटें तो कैसे
दुःख दर्द अपना ,हम बांटें  तो कैसे
अपनों का बेगानापन है रुलाता
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
उपेक्षित,अवांछित,अकेले अकेले
बुढ़ापे की तकलीफ,हर कोई झेले
कोई प्यार से बोले,दिल है तरसता
धुंधलाती आँखों से ,सावन बरसता
नहीं देता कोई है आकर दिलासा
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
उमर जब भी बढती ,ये होता अधिकतर
होती है हालत ,बुरी और बदतर
नहीं बाल बचते है ,उड़ जाते अक्सर
या फिर सफेदी सी छा  जाती सर पर 
हसीनाएं कहती है ,दादा या बाबा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा

मदनं मोहन बाहेती'घोटू'


गुरुवार, 3 जनवरी 2013

मेरी डायरी का हर पन्ना .....

मेरी डायरी का हर पन्ना .....

मैंने जो भी लिखा प्यार में,यादगार हर पेज हो गया
मेरी डायरी का हर पन्ना ,अब तो दस्तावेज  हो गया
सर्दी ,गर्मी और बसंत ने,ऐसा ऋतू का चक्र चलाया
आज बन गया कल और कल बनने फिर से अगला कल आया
आये ,गये ,बहुत से सुख दुःख ,कभी हंसाया ,कभी रुलाया 
दिया किसी अपने ने धक्का,और किसी ने गले लगाया  
पल पल बदली ,जीवन की गति ,धीमा ,मध्यम,तेज हो गया
मेरी डायरी का हर पन्ना,अब तो दस्तावेज  हो गया
जब तक कायम रही जवानी,खूब मौज और मस्ती मारी
खूब मज़ा जीवन का लूटा,खूब निभाई दुनियादारी
जब तक दिन था,रहा चमकता ,अब आई ढलने की बारी
बादल ढक ,निस्तेज कर गए  ,पाबंदिया लग गयी सारी
खाया पिया जवानी में जो ,उमर बढ़ी,परहेज हो गया
मेरी डायरी का हर पन्ना ,अब तो दस्तावेज हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

सर्दी का सन्डे

    सर्दी का सन्डे 

सन्डे की छुट्टी और सर्दी का मौसम
बड़ा ही सुहाना ये होता है आलम
जल्दी से उठने में आता है आलस
दुबके ,रजाई में,लेटे  रहो बस 
गुड मोर्निंग का ये तरीका है प्यारा
बिस्तर में मिल जाए,चाय का प्याला
सवेरे सवेरे ,बड़ा मन को मोहे
मिले नाश्ते में ,जलेबी और पोहे
या आलू परांठों को,मख्खन से खाना
और गाजर का हलवा ,लगे है सुहाना
मिले लंच में खाने को ताज़ी ताज़ी
मक्का की रोटी और सरसों की भाजी
दुपहरी में छत पर ,गरम धूप  खाना 
बीबी और बच्चों से गप्पें  लगाना
कभी रेवडी तो कभी मूंगफली हो
गरमा गरम कुछ पकोड़ी तली हो
कभी जामफल तो कभी तिल  की चिक्की 
कभी पाव  भाजी,कभी आलू टिक्की
डिनर में कढी संग,बिरयानी प्यारी
या छोले भठूरे की जोड़ी निराली
और स्वीट डिश  में हो ,गुलाब जामुन
यूं ही खाते पीते ,गुजर जाता है दिन
टी .वी में पिक्चर का लेते मज़ा हम
सन्डे की छुट्टी और सर्दी का मौसम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


मंगलवार, 1 जनवरी 2013

अमर बेल

       अमर बेल

तरु के तने से  लिपटी कुछ लताएँ
पल्लवित पुष्पित हो ,जीवन महकाए
और कुछ जड़ हीन बेलें ,
तने का सहारा ले,
वृक्ष पर चढ़ जाती
डाल डाल ,पात पात ,जाल सा फैलाती
वृक्ष का जीवन रस ,सब पी जाती है
हरी भरी खुद रहती ,वृक्ष को सुखाती है
उस पर ये अचरज वो ,अमर बेल कहलाती है
जो तुम्हे सहारा दे,उसका कर शोषण
हरा भरा रख्खो तुम ,बस  खुद का जीवन
जिस डाली पर बैठो,उसी को सुखाने का
क्या यही तरीका है ,अमरता पाने का ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वर्ना .................?

  वर्ना .................?
नए वर्ष की नयी सुबह,
दिल्ली में सूरज नहीं निकला
शायद  वह ,दिल्ली में ,
देश की एक बेटी के साथ ,
कुछ दरिंदों द्वारा किये गए ,
बलात्कार से लज्जित था
या शायद,
देश के नेताओं की सुस्त प्रतिक्रिया ,
और व्यवहार से लज्जित था
या शायद ,
दामिनी की आत्मा ने ऊपर पहुँच कर,
उससे कुछ प्रश्न किये  होंगे,
और उससे कुछ जबाब देते न बना होगा ,
तो उसने कोहरे की चादर  में,
अपना मुंह छुपा लिया होगा
क्योंकि अगर सूरज दिल्ली का नेता होता ,
तो बयान  देता,
ये घटना उसके अस्त होने के बाद हुई,
इसलिए इसकी जिम्मेदारी चाँद पर है
उससे जबाब माँगा जाय   
और यदि उससे यह पूछा जाता कि ,
क्या दिन में ऐसी  घटनाएं नहीं होती ,
तो शायद वो स्पष्टीकरण देता ,
कि  जब बादल उसे ढक  लेते है,
तब ऐसा हो जाता होगा
सब अपनी जिम्मेदारी से,
कैसे कैसे बहाने बना ,
बचने की कोशिश करते रहते है  
और दामिनियोन  की अस्मत लुटती रहती है
पर अब जनता का आक्रोश जाग उठा है ,
बहाने बनाना छोड़ दो ,
थोडा सा डरो ,
और कुछ करो
वरना .............?
मदन मोहन बहेती'घोटू'

नए साल में


सभी पंक्तियों का पहला अक्षर मिलाने पर "नया साल सबके लिए सुखद एवं मंगलमय हो" )

वरंग सी उमंग लिए,
या आसमान के जैसे खुले विचार;
सागर से भी गहरी सोच या,
श्कर लिए ख़ुशी का, गम दरकिनार|

रस कर इन चार लम्हों को,
रसती सावन की बूंदों का झार;
केंद्र में लिए लक्ष्य को अपने,
लिख दे हर दिल में बस प्यार ही प्यार|

क अकेला चल पथ में,
सुप्त पड़ जाये गर ये संसार;
बर दे सबको बस खुशियों भरा,
वा बन सबका, लगा दे पार|

कल व्यक्तित्व गर ढह भी जाये,
वंदन और पूजन न हो तार-तार;
मंगल पथ में कर मगल कर्म,
र आ भी जाये दुखते आसार|

य पर सीधा चलते चल,
र्म तब जानेगा जीवन के चार;
ह मान ले पथ में सिर्फ कांटें नहीं हैं,
होगा भला करले भला अपार|

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

जवानी पर,चढ़ गयी है सर्दियाँ

 जवानी पर चढ़ गयी है सर्दियां

रात की ठिठुरन से बचने, भूल सब शिकवे ,गिले
शाम ,डर  कर,उलटे पैरों,दोपहर  से जा  मिले
ओढ़ ले कोहरे की चादर ,धूप ,तज अपनी अकड़
छटपटाये चमकने को ,सूर्य पीला जाये     पड़ 
हवायें जब कंपकंपाये ,निकलना मुश्किल करे
चूमने को चाय प्याला ,बारहां जब दिल करे
जेब से ना हाथ निकले ,दिखाये कन्जूसियाँ
पास में बैठे रहे बस ,लगे मन  भाने  पिया
लिपट तन से जब रजाई ,दिखाये हमदर्दियाँ
तो समझ लो ,जवानी पर,चढ़ गयी है सर्दियाँ
घोटू

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

ख्वाब क्या अपनाओगे ?

प्रत्यक्ष को अपना न सके, ख्वाब क्या अपनाओगे;
बने कपड़े भी पहन न पाये, नए कहाँ सिलवाओगे |

दुनिया उटपटांगों की है, सहज कहाँ रह पावोगे,
हर हफ्ते तुम एक नई सी, चोट को ही सहलाओगे |

सारे घुन को कूट सके, वो ओखल कैसे लावोगे,
जीवन का हर एक समय, नारेबाजी में बिताओगे |

जीवन भर खुद से ही लड़े, औरों को कैसे हराओगे,
मौके दर मौके गुजरे हैं, अंत समय पछताओगे |

गमों को हंसी से है छुपाया, आँसू कैसे बहाओगे,
झूठ का ही हो चादर ओढ़े, सत्य किसे बतलाओगे |

सीख न पाये खुद ही जब, क्या औरों को सिखलाओगी,
बने हो अंधे आँखों वाले, राह किसे दिखलाओगे |

व्यवस्था यहाँ की लंगड़ी है, क्या लाठी से दौड़ाओगे,
बोल रहे बहरे के आगे, दिल की कैसे सुनाओगे |


हक खुद का लेने के लिए भी, हाथ बस फैलाओगे,
भीख मांगने के ही जैसा, हाथ जोड़ गिड़गिड़ाओगे |

लोकतन्त्र के राजा तुम हो, प्रजा ही रह जाओगे,
कृतघ्न हो जो वो प्रतिनिधि, खुद ही चुनते जाओगे |

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

कृष्ण हूँ मै

                कृष्ण हूँ मै
बालपन में गोद जिसकी खूब खेला
छोड़ कर उस माँ यशोदा को अकेला
नन्द बाबा ,जिन्होंने गोदी खिलाया
और गोपी गोप ,जिनका प्यार पाया
फोड़ कर हांडी,किसी का दधि  लूटा
बना माखन चोर मै ,प्यारा  अनूठा 
स्नान करती गोपियों के वस्त्र चोरे
राधिका संग ,प्रीत करके ,नैन जोड़े
रास करके,गोपियों से दिल लगाके
गया मथुरा ,मै सभी  का ,दिल दुखाके
मल्ल युद्ध में,हनन करके ,कंस का मै
बना था ,नेता बड़ा ,यदुवंश  का मै
और इतना मुझे मथुरा ने लुभाया
लौट कर गोकुल ,कभी ना लौट पाया
बन सभी से ,गयी इतनी दूरियां थी
क्या हुआ ,ये कौनसी मजबूरियां थी
रहा उन संग,अनुचित  व्यवहार मेरा
 अचानक क्यों,खो गया था प्यार मेरा  
जो भी है ,ये कसक मन में आज भी है,
सुलझ ना पाया ,कभी वो प्रश्न हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
और मथुरा भी नहीं ज्यादा टिका मै
जरासंध से हार भागा द्वारका  मै
रुकमणी  का हरण करके कभी लाया
सत्यभामा से कभी नेहा लगाया
कभी मै लड़ कर किसी से युद्ध जीता
उसकी बेटी ,बनी मेरी परिणीता
आठ पट रानी बनी और कई रानी
हर एक शादी की निराली थी कहानी
महाभारत का हुआ संग्राम था जब
साथ मैंने पांडवों का दिया था तब
युद्ध कौशल में बड़ा ही महारथी था
पार्थ रथ का बना केवल ,सारथी  था
देख रण में,सामने ,सारे परिचित
युद्ध पथ से ,हुआ अर्जुन,जरा विचलित
उसे गीता ज्ञान की देकर नसीहत
युद्ध करने के लिए फिर किया उद्यत
और रणनीति बता कर पांडवों को
महाभारत में हराया कौरवों को
अंत,अंतर्कलह से ,लेकिन रुका  ना,
था कभी उत्कर्ष पर यदुवंश हूँ मै
कृष्ण हूँ मै 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


कुछ तो ख्याल किया होता

    कुछ तो ख्याल किया होता

जिनने जीवन भर प्यार किया ,
                उन्हें कुछ तो प्यार दिया  होता
मेरा ना मेरी बुजुर्गियत ,
                का कुछ तो ख्याल  किया होता
छोटे थे थाम  मेरी उंगली ,  
                   तुम पग पग चलना सीखे थे,
मै डगमग डगमग गिरता था,
                   तब मुझको  थाम लिया होता
जब तुम पर मुश्किल आई तो ,
                     मैंने आगे बढ़ ,मदद करी,
जब मुझ पर मुश्किल आई तो,
                       मेरा भी साथ दिया होता
मैंने तुमसे कुछ ना माँगा ,
                        ना मांगू ,ये ही कोशिश है,
अहसानों के बदले मुझ पर,
                        कुछ तो अहसान किया होता


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आप आये

       आप  आये

सर्द मौसम,आप आये
अकेलापन ,आप आये
दुखी था बमन,आप आये
बड़ी तडफन ,आप आये
खिल उठा मन,आप आये
हुई सिहरन,आप आये
मिट गया तम,आप आये 
रौशनी बन ,आप आये
खनका आँगन,आप आये
बंधे बंधन,आप आये
बहका ये तन,आप आये
महका जीवन आप आये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-