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गुरुवार, 25 मई 2023

बदला छोड़ो ,खुद को बदलो

 तुमने मुझ को गाली दी है,
 मैं भी तुमको गाली दूंगा 
 तुमने पीटा, मैं पीटूंगा,
  तुमसे पूरा बदला लूंगा 
  एक दूसरे के आगे हम ,
  लेकर के तलवार खड़े हैं 
  यही भावनाएं बदले की 
  युद्ध कराती बड़े बड़े हैं 
  इसीलिए तुम थोड़ा संभलो
  बदला छोड़ो, खुद को बदलो 
  
यदि जो तुम खुद को बदलोगे 
बदला बदला जगत लगेगा 
नफरत की बदली छट कर के
 प्यार भरा सूरज चमकेगा 
 सदभावों के फूल खिलेंगे ,
 जीवन की बगिया महकेगी 
 कांव-कांव का शोर हटेगा
  कुहू कुहू कोयल कूकेगी
  गुस्सा भूलो,थोड़ा हंस लो 
  बदला छोड़ो ,खुद को बदलो 
  
अपशब्द अगर कोई बोले 
चुपचाप सुनो ,मन शांत रखो 
कोई कितना भी उकसाये,
 व्यवहार मगर संभ्रांत रखो 
 कितनी भी विकट परिस्थितियां
  तुम्हारे जीवन में आए 
  तुम पार करोगे हर मुश्किल,
  विश्वास डगमगा ना पाये 
  मत अपने गले मुसीबत लो
बदला छोड़ो ,खुद को बदलो 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
प्रेम संकेत 

तूने अपनी नजर झुका ली 
छाई कपोलों पर भी लाली 
बादल यह संकेत दे रहे ,
अब बारिश है होने वाली 

हल्की पवन, मंद मुस्काए 
आंख गुलाबी डोरे, छाये
ढलक गया सीने से आंचल,
लाज शर्म कुछ भी ना आए 
अंग अंग पर रंग चढ़ा है ,
हुई बावली ,तू मतवाली 
बादल यह संकेत दे रहे 
अब बारिश है होने वाली 

बढ़ी हुई है दिल की धड़कन 
हुआ मिलन को आतुर है मन 
सोंधी सोंधी खुशबू तन की ,
मौन,दे रही है आमंत्रण 
तन का रोम-रोम आनंदित,
 मन मस्ती ना जाए संभाली 
 बादल यह संकेत दे रहे ,
 अब बारिश है होने वाली

मदन मोहन बाहेती घोटू
नेत्रदान 

आंख मैंने दान कर दी, बस इसी उम्मीद से ,
मर के भी करता रहूंगा, हुस्न का दीदार मैं
करके आंखें चार ,कोई संग डूबूं प्यार में ,
और किसी की जिंदगी को कर सकूं गुलजार मैं

घोटू 
सात जन्म का साथ

मुझको पंडित जी ने बोला ,जो करेगा दान तू अप्सराएं स्वर्ग में पाएगा संगत के लिए 

मौलवी ने भी बताया करेगा खैरात तो 
तुझे जन्नत में मिलेगी हूरें खिदमत के लिए 

स्वर्ग पहुंचा तो खड़ी थी बीबी स्वागत के लिऐ,
स्वर्ग में भी,फिर वही,अफसोस था इस बात का 
बोली मैंने भी किया था दान ,आई हूं यहां ,
सात जन्मों का मुझे तुम संग निभाना साथ था 

घोटू 
जीवन संध्या 

सर की खेती उजड़ गई है 
तन की चमड़ी सिकुड़ गई है 
मुंह में दांत हो गए हैं कम 
आंखों से दिखता है मध्यम
 सहमी सहमी चाल ढाल है 
 याददाश्त का बुरा हाल है 
 नींद आती है उचट उचट कर 
 सोते, करवट बदल-बदल कर 
 बीमारी का जोर हुआ है 
 पाचन भी कमजोर हुआ है 
 कांटे वक्त नहीं है कटता 
 बार-बार मन रहे उचटता 
 हाथ पांव में बचा नहीं दम 
 थोड़ी मेहनत कर थकते हम 
 बढ़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर 
 मीठा खा लो, बढ़ती शक्कर 
 चाट पकोड़े खाना वर्जित 
 खाओ दवाई ,पियो टॉनिक 
 खेल बुढ़ापे ने है खेला 
 आई जीवन संध्या बेला 
 किंतु बुलंद हौसले फिर भी 
 मस्ती से हम जीते फिर भी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 19 मई 2023


मेरी बीवी , मेरी डॉक्टर 

तेरी मीठी मीठी बातें ,
नहीं बढ़ाती मेरी शुगर 
तेरा थोड़ा प्यार दिखाना ,
कंट्रोल करता ब्लड प्रेशर 

तू हल्का सा प्यार दिखाती,
सर का दर्द, दूर हो जाता 
तू हल्का सा मुस्कुरा देती
सारा डिप्रेशन हट जाता 

प्यार भरी नजरों से जब तू 
मुझे देखती ,टेंशन गायब 
और लिपटती सीने से जब
 मुझको खुशियां मिल जाती सब 
 
 तेरे हाथ पकाए भोजन 
 में सब मिनरल और विटामिन 
 तेरे आगे घुटने टेकूं,
 दर्द नहीं होता कोई दिन 
 
 तेरे साथ चाय प्याली पी
 मिट जाती सारी थकान है 
 तुझे नमन कर ,कमर दर्द का 
 मेरे हो जाता निदान है 
 
 मेरी नब्ज,हाथ में तेरे 
 तू ही वैद्य है, तू ही डॉक्टर 
 मेरे दिल की हर धड़कन में 
 तेरा नाम लिखा है, दिलवर 
 
 मेरी सारी बीमारी का 
 तू इलाज करने में सक्षम 
 तेरे पीछे मेड हुए हम ,
 मैडम तुझमें है दम ही दम 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 17 मई 2023

सुनिए सबकी ,करिए मन की

कुंजी यही सफल जीवन की 
सुनिए सबकी, करिए मन की 

परेशानियां हो या सुख दुख 
रायचंद आ जाते सन्मुख 
दे सलाह तुमको समझाते
जितने मुंह हैं,उतनी बातें 
सबके अपने अपने अनुभव 
पर लेना है तुमको निर्णय 
आगा पीछा सभी देख के
अपनी बुद्धि और विवेक से 
भला बुरा परिणाम सोच कर
 निर्णय लेना होगा श्रेयकर
 मन मस्तक में बना संतुलन 
 वही करो जो कहता है मन 
 सीमा में अपने साधन की 
 सुनिए सबकी ,करिए मन की 
 
हमने यह देखा है अक्सर 
असफल जो होते जीवन भर 
वह बन जाते सलाहकार हैं 
और उनमें हिम्मत अपार है 
मुफ्त सलाह बांटते रहते 
अपना समय काटते रहते 
उनके चक्कर में मत पड़ना
 ऐसे सलाहकार से बचना 
 वह जो कहते उनकी सुनिए 
 लेकिन सही रास्ता चुनिए 
 जो मन बोले ,माने मस्तक 
 निर्णय होगा वही सार्थक 
 कृपा दृष्टि होगी भगवन की 
 सुनिए सबकी ,करिए मन की

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मां की ममता 

प्यार उमड़ता है आंखों से,वात्सल्य है ,अपनापन है 
मां, तू ममता की देवी है ,तुझ को सौ सौ बार नमन है 

तूने मुझे कोख में पाला, नौ महीने तक बोझ उठाया 
मैं जन्मा ,सीने से लिपटा, तूने अपना दूध पिलाया 
मेरे गालों की पुच्ची ली ,मेरे माथे को सहलाया 
तिल तिल मुझको बड़ा किया है ,पल पल अपना प्यार लुटाया
मैं यदि करता, गीला बिस्तर ,तू सूखे में मुझे सुलाती 
मुझे प्यार से चादर ओढ़ा, गीले में थी खुद सो जाती 
मीठे बोल सदा बोलूं मैं ,यही कामना लेकर मन में 
चांदी के सिक्के से लेकर ,माता शहद चटाई तूने 
जब मैं बोला ,सबसे पहले ,नाम लिया तेरा मां कह कर
मैंने आगे बढ़ना सीखा ,घुटने घुटने ,खिसक खिसक कर 
और फिर तूने उंगली थामी,मुझे सिखाया पग पग चलना 
तेरी गोदी का सुख देता, मेरा रोना और मचलना 
तूने अक्षर ज्ञान कराया ,मेरी उंगली पकड़ पकड़ कर 
इस दुनिया में कौन गुरु मां, हो सकता है तुझसे बढ़कर 
अपने हाथ ,दूध में रोटी चूर, निवाला देती थी तू 
मेरा रोना थम जाता था ,जब बाहों में लेती थी तू 
बुरी नजर से मुझे बचाती , माथ लगा काजल का टीका 
अच्छा क्या है और बुरा क्या, मां मैंने तुझसे ही सीखा 
मां ,तूने मुझ पर जीवन भर कितने ही एहसान किए हैं 
तूने अपनी आशिषों से ,मुझे सदा वरदान दिए हैं 
मैं जो कुछ भी आज बना हूं,वह तेरा लालन-पालन है 
मां ,तू ममता की देवी है ,तुझ को सौ सौ बार नमन है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चिल बेबी चिल 

चिल होने से,टल जाती है,कितनी ही मुश्किल चिल बेबी चिल 
बात बात पर ,गर्मी खाना ,अच्छी बात नहीं है झगड़ा कर लेने का मतलब घूसे लात नहीं है 
अगर क्रोध थोड़ा सा पी लो, होती नहीं लड़ाई फिर से हाथ मिला लेने में, रहती सदा भलाई खटपट सारी हट जाती है ,मिल जाते हैं दिल 
चिल बेबी चिल 
चिल्डबियर या कोल्डड्रिंक की लज्जत होती प्यारी 
नहीं गरम पानी पीने से, मिटती प्यास हमारी
गुस्सा कर लेने से अक्सर ,बढ़ जाता ब्लड प्रेशर 
इसीलिए हर सिचुएशन में ,चिल रहना ही बेहतर 
दूर टेंशन ,मन में शांति, सबको जाती मिल 
 चिल बेबी चिल
 लड़ने पर आमादा कोई हो ,मत बात बढ़ाओ 
शांत रहो चुपचाप रहो तुम बस थोड़ा मुस्काओ  
तुम्हारी मुस्कान करेगी ऐसा असर निराला 
देखोगे कुछ पल में होगा, शांत सामने वाला शिकवे गिले दूर हो जाएंगे आपस में मिल 
 चिल बेबी चिल

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 11 मई 2023

कल की चिंता 

मुझे पता ना, कब जाऊंगा,
तुम्हें पता ना कब जाओगे 
सबके जाने का दिन तय है,
जब जाना है तब जाओगे 
कल जाने की चिंता में क्यों,
अपना आज बिगाड़ रहे हो 
हरी-भरी जीवन की बगिया 
को तुम व्यर्थ उजाड़ रहे हो 

लंबे जीवन की इच्छा में ,
कई सुखों से तुम हो वंचित 
यह मत खाओ ,वह मत खाओ
 कितने व्यंजन है प्रतिबंधित 
 कई दवाई की गोली तुम,
  नित्य गटकते,टानिक पीते 
  खुद को बांधा, अनुशासन में ,
  बहुत नियंत्रित जीवन जीते 
  इच्छा माफिक, कुछ ना करते ,
  अपने मन को मार रहे हो 
  कल जाने की चिंता में क्यों 
  अपना आज बिगाड़ रहे हो 
  
मौत सभी को ही आनी है 
कटु सत्य है यह जीवन का 
तो फिर जब तक जीवन जियें,
क्यों न करें हम अपने मन का 
हर एक बात में ,इससे ,उससे 
क्यों करते हैं हम समझौता 
खुद को तरसा तरसा जीते ,
यह भी कोई जीना होता 
हो स्वतंत्र तुम खुल कर जियो,
 क्या तुम सोच विचार रहे हो 
 कल जीने की चिंता में क्यों 
 अपना आज बिगाड़ रहे हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 
प्यार की प्यास 

मोहता है मोहतरमा का अगर मुखड़ा कोई,
मन मुताबिक मोह में पड़कर मोहब्बत कीजिए

दिल किसी पर आगया तो दिल्लगी मत समझना,
उसको अपना दिल लगाकर बना दिलवर लीजिए
  
अगर प्यासा हो तुम्हारा मन किसी के प्यार का, 
बना करके यार उसको पियो पानी प्रेम का ,

उसको अपना बनाकर ,अपनाओ सारी जिंदगी, 
जान उसको जानेमन, तुम जान उस पर दीजिए

घोटू 

सोमवार, 8 मई 2023

छुट्टी ही छुट्टी 

बुढ़ापा ऐसा आया है ,
हो गई प्यार की छुट्टी 
रोज हीअब तो लगती है,
हमें इतवार की छुट्टी 

झगड़ते ना मियां बीवी,
बड़े ही प्यार से रहते ,
हुई इसरार की छुट्टी 
हुई इंकार की छुट्टी 

जरा सी मेहनत करते,
फूलने सांस लगती है ,
खतम अब हो गया दमखम,
 हुई अभिसार की छुट्टी 
 
जरा कमजोर है आंखे,
और धुंधला सा दिखता है ,
इसी कारण पड़ोसन के 
हुई दीदार की छुट्टी 

लगी पाबंदी मीठे पर 
और खट्टा भी वर्जित है 
जलेबी खा नहीं सकते 
हुई अचार की छुट्टी 

गए ऐसे बदल मौसम 
रिटायर हो गए हैं हम 
न दफ्तर रोज का जाना,
है कारोबार की छुट्टी 

बचा जितना भी है जीवन 
करें हम राम का स्मरण 
पता ना कब ,कहां ,किस दिन ,
मिले संसार की छुट्टी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
यह मत सोचो कल क्या होगा 

यह मत सोचो कल क्या होगा 
जो भी होगा अच्छा होगा 

सोच सकारात्मक जो होगी 
तो बारिश होगी खुशियों की 
जो तुम खुद का ख्याल रखोगे 
गलत सलत यदि ना सोचोगे 
तब ही तो वह ऊपर वाला 
रख पाएगा ख्याल तुम्हारा 
और तन सेहतमंद रहेगा 
मन में भी आनंद रहेगा 
हंसी खुशी से रहो हमेशा 
जीवन जियो पहले जैसा 
सोचो हर दिन ,मैं हूं बेहतर 
प्यार लुटाओ सबपर,मिलकर 
प्यार पाओगे आत्म जनों का 
जो भी होगा ,अच्छा होगा 
यह मत सोचो ,कल क्या होगा

घोटू 

शनिवार, 6 मई 2023

पड़ी है सबको अपनी अपनी

कोई तुम्हारा साथ ना देता ,
पड़ी है सबको अपनी अपनी 
सारा जीवन, सुख में ,दुख में,
साथ निभाती ,केवल पत्नी 

तू था कभी कमाया करता 
घर का खर्च उठाया करता 
खूब कमाता था मेहनत कर 
परिवार था तुझ पर निर्भर 
बच्चे तेरे बड़े हुए सब 
अपने पैरों खड़े हुए सब 
अच्छा खासा कमा रहे हैं 
मौज और मस्ती उड़ा रहे हैं 
अब बूढ़ा लाचार हुआ तू 
उनके सर पर भार हुआ तू 
सबने तुझको भुला दिया है 
पीड़ा ,दुख से रुला दिया है 
मतलब नहीं रहा ,बंद कर दी
तेरे नाम की माला जपनी
पड़ी है सबको अपनी अपनी 

देती दूध गाय है जब तक 
चारा उसे मिलेगा तब तक 
अब तेरी कुछ कदर नहीं है 
जीवन का कटु सत्य यही है 
जिन पर तूने जीवन वारा
वो ना देते तुझे सहारा 
तेरा ख्याल में रखते किंचित 
करते रहते सदा उपेक्षित
हर घर की है यही हकीकत 
वृद्ध हुए ,घट जाती कीमत 
तू चुप रह कर सब कुछ सह ले 
थोड़ा नाम प्रभु का ले ले 
काम, राम का नाम आएगा ,
जिंदगी अब ऐसे ही कटनी 
पड़ी है सबको अपनी-अपनी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मां की याद 

बहुत आशिषे ,पाईं मैंने, मां छू चरण तुम्हारे 
तेरी सेवा करी ,मिल गए ,पुण्य जगत के सारे 

तेरी आंखों में लहराता था ममता का सागर 
तेरी शिक्षा से ही मेरा, जीवन हुआ उजागर 
मैंने पग पग चलना सीखा उंगली थाम तुम्हारी सदा स्नेह छलकाती रहती ,तेरी आंखें प्यारी 
जब भी कोई ,मुश्किल आई ,तूने रखा संभाले बहुत आशिषे,पाई मैंने , मां छू चरण तुम्हारे 

तूने पूरे परिवार को ,बांधे रखा हमेशा 
सब पर प्यार लुटाने वाला कोई न तेरे जैसा 
तेरी एक एक बातें मां , रह रह याद करूं मैं 
कोई गलत काम करने से, बचकर रहूं,डरूं मैं 
धर्म और सत्कर्म करो तुम ,थे आदर्श निराले 
बहुत आशिषे,पाई मैंने , मां छू चरण तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जोरू के गुलाम 

बहुत बेहया,हम तो भैया, खुद की पोल खोलते हैं 
पत्नी जी के डर के मारे ,कुछ भी नहीं बोलते हैं 

हम तो लल्लू के लल्लू हैं ,पर स्मार्ट घरवाली है 
घर की सत्ता , उसने अपने हाथों रखी संभाली है 
कुछ भी अच्छा होता उसका सारा श्रेय स्वयं लेती 
और जो बुरा ,कुछ हो जाए, सारा ब्लेम हमें देती 
पत्नी जी के आगे पीछे, रहते सदा डोलते हैं 
बहुत बेहया, हम तो भैया खुद की पोल खोलते हैं

हमें उंगलियों पर नचवाती और हम नाचा करते हैं 
खुल्ले आम कबूल कर रहे, हम बीबी से डरते हैं 
उड़ा रही वह निज मर्जी से ,मेहनत कर हम कमा रहे 
हम सब सहते ,खुश हो ,घर में प्रेम भाव तो बना रहे 
यस मैडम,यस मैडम ही हम ,डर कर सदा बोलते हैं 
बहुत बेहया, हम तो भैया ,खुद की पोल खोलते हैं

हर घर का बस हाल यही है ,मर्द बहुत कुछ सहते हैं 
बाहर शेर,मगर बन भीगी ,बिल्ली घर पर रहते हैं 
प्यार का लॉलीपॉप खिलाकर, बीबी उन्हें पटाती है 
ऐसा जादू टोना करती ,मनचाहा करवाती है 
घुटते रहते हैं मन ही मन ,पर मुंह नहीं खोलते हैं 
बहुत बेहया ,हम तो भैया, खुद की पोल खोलते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 30 अप्रैल 2023

भूलने की बिमारी

बुढ़ापे में मुश्किल यह भारी हुई है 
मुझे भूलने की बीमारी हुई है

नहीं याद रखा रहता ,कहां क्या रखा है 
याददाश्त देने लगी अब दगा है 
किसी का पता और नाम भूल जाता 
करने को निकला वह काम भूल जाता 
समय पर दवा लूं, नहीं याद रहता 
मस्तिष्क , मन में है अवसाद रहता 
यूं ही मुश्किलें ढेर सारी हुई है 
मुझे भूलने की बीमारी हुई है 

मगर याद रहती है बातें पुरानी 
वो बचपन के किस्से ,वो यादें पुरानी 
जवानी के दिन भी ,भुलाए न जाते 
वो जब याद आते ,बहुत याद आते 
अकेले में होती है यादें सहारा 
इन्हीं से गुजरता समय है हमारा 
घटनायें कितनी ही प्यारी हुई है 
मुझे भूलने की बीमारी हुई है 

नहीं भूल पाता वह ममता का आंचल 
मुझे याद आता ,पिताजी का वो डर
याद आती बचपन की शैतानियां सब 
गुजरे दिनों की वो नादानियां सब 
भाई बहन की , वो तू तू , वो मैं मैं
खुल्ली छतों पर , वो सोना मजे में 
बुढ़ापे में यादों से यारी हुई है 
मुझे भूलने की बीमारी हुई है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
किसी का मजाक मत उड़ाओ

अगर नहीं होना चाहते हो जीवन में परेशान 
तो कभी भी किसी का मजाक मत उड़ाओश्रीमान

 किसी की बोलचाल का 
 किसी की चाल ढाल का 
 किसी के भोलेपन का 
 किसी के मोटे तन का 
 किसी की काठी कद का 
 किसी के नीचे पद का 
 किसी के गंजेपन का 
 या किसी भी निर्धन का 
 कभी भी मजाक मत उड़ाओ 
 क्योंकि उसमें यह जो खामियां है 
 सब कुछ ईश्वर ने ही दिया है 
 और इनका मजाक है ईश्वर का अपमान 
 इसलिए किसी का मजाक मत उड़ाओ श्रीमान
 
 कई बार तुम्हारे व्यंग 
 किसी को चुभ जाए तो 
कर सकते हैं तुम्हे तंग 
द्रौपदी का एक व्यंग ,
 कि अंधों का बेटा भी होता है अंधा 
 भरी सभा में द्रोपदी को करवा सकता है नंगा इसी मजाक के कारण 
 हुआ था महाभारत का रण 
 लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक काट कर
  उड़ाया था उसका उपहास 
  और झेलना पड़ा था सीता हरण का त्रास आपका कोई भी मजाक
  कब किस के दिल को ठेस पहुंचा दे 
  पता ही नहीं लगता 
  शब्दों का व्यंग बाण बहुत गहरा है चुभता इसलिए सोच समझकर इस्तेमाल करो अपनी जुबान
  और किसी का मजाक मत उड़ाओ श्रीमान

मदन मोहन बाहेती घोटू

कर्म करो 

जो होना है ,वह है होता 
करो नहीं तुम ,यह समझौता 
तुम तकदीर बदल सकते हो ,
भाग्य जगा सकते हो सोता 

सिर्फ भाग्य का रोना रोकर ,
अगर कर्म करना छोड़ोगे 
बिन प्रयास के आस करोगे 
तो अपना ही सर फाेड़ोगे 
सच्ची मेहनत और लगन से ,
अगर प्रयास किया है जाता 
बाधाएं सारी हट जाती 
ना मुमकिन ,मुमकिन हो जाता 
उसको कुछ भी ना मिल पाता,
 भाग्य भरोसे जो है सोता 
 जो होना है ,वह है होता 
 करो नहीं ,तुम यह समझौता 
 
सच्चे दिल से कर्म करोगे,
 तुम्हें मिलेगा फल निश्चय ही 
 मेहनत करके जीत मिलेगी 
 आज नहीं तो कल निश्चय ही 
 रखो आत्मविश्वास ,सफलता ,
 तब चूमेगी चरण तुम्हारे 
 वो ही सदा जीत पाते हैं ,
 कभी नहीं जो हिम्मत हारे 
 निश्चय उसे विजय श्री मिलती 
 कभी नहीं जो धीरज खोता
  जो होना है ,वह है होता 
  करो नहीं तुम यह समझौता 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
तारा जी के जन्मदिवस पर 

तुम छिहत्तर, मैं इक्यासी
 प्यार हमारा, हुआ न बासी
 
 प्रिय, तुमने मुझको जीवनभर 
 दिए खुशी के कितने ही पल 
 
 आज तुम्हारे जन्मदिवस पर 
 चाहूं लौटाना , दूने कर 
 
 ऐसा कुछ दूं,जो मन भाए 
 तुम्हारा श्रृंगार बढ़ाएं 
 
 जिसे देख कर मन हर्षाये 
 और खुशी चेहरे पर छाये
 
 हीरक हार , भेंट है तुमको 
 मेरा प्यार ,भेंट है तुमको
 
 गोरे तन पर स्वर्ण दमकता
 हर हीरे में, प्यार चमकता 
 
 जैसे गले लगाया मुझको
 गले लगा कर रखना इसको

मदन मोहन बाहेती 

सोमवार, 24 अप्रैल 2023

लकीरों का खेल 

कोई अमीर है ,कोई गरीब है 
कोई पास है ,कोई फेल है 
यह सब किस्मत की लकीरों का खेल है 
कहते हैं आपका हाथ, जगन्नाथ है,
पर असल में हाथ नहीं, हाथ की लकीरें जगन्नाथ होती है 
जो आपकी जिंदगी में आपका भविष्य संजोती है 
कुछ लकीरें  सीधी तो कुछ  वक्र होती है 
ये हाथों की लकीरें ही जीवन का चक्र होती है 
जो पूर्व जन्म के कर्मों के से हाथ पर बनती है 
और इस जन्म के कर्मों के अनुसार बनती और बिगड़ती है 
कहते हैं किसी भी आदमी के अंगूठे की सूक्ष्म लकीरें ,
दुनिया के किसी अन्य आदमी से नहीं मिलती है 
जीवन पथ की लकीरें टेढ़ी-मेढ़ी ऊंची नीची हुआ करती है ,
जो कई मोड़ से गुजरती है 
ये लकीरें गजब की चीज है ,
चिंता हो तो माथे पर लकीरें खिंच जाती हैं 
बुढ़ापा हो तो शरीर पर झुर्रियां बनकर बिछ जाती है 
औरत की मांग में भरी सिंदूर की लकीर
 सुहाग का प्रतीक है 
 नयनों को और कटीला बनाती काजल की लीक है 
 कुछ लोगों के लिए पत्नी की आज्ञा पत्थर की लकीर होती है 
 नहीं मानने पर बड़ी पीर होती है 
 लक्ष्मण रेखा को पार करने से, हो जाता है सीता का हरण 
 मर्यादा की रेखा में रहना ,होता है सुशील आचरण 
 कुछ लोग लकीर के फकीर होते हैं 
 पुरानी प्रथाओं का बोझ जिंदगी भर ढोते हैं 
 कुछ लोग सांप निकल जाता है पर लकीर पीटते रहते हैं 
 कुछ पुरानी लकीरों पर खुद को घसीटते रहते हैं भाई भाई जो साथ-साथ पलकर बड़े होते हैं 
 धन दौलत और जमीन के विवाद में उनमें जब लकीर खिंच जाती है ,
 तो अदालत में एक दूसरे के सामने खड़े होते हैं 
 ये लकीरें बड़ा काम आती है 
 बड़े-बड़े प्रोजेक्ट का नक्शा लकीरें ही बनाती है दुनिया के नक्शे में लकीरें सरहद बनाती है 
 नारी के शरीर की वक्र रेखाएं,
 उसे बड़ी मनमोहक बनाती है 
 अच्छा यह है कि हम 
 भाई बहनों के बीच 
 यार दोस्तों के बीच
 पति-पत्नी के बीच 
 विवाद की कोई लकीर खींचने से बचें 
 और चेहरे पर मुस्कान की लकीर लाकर 
 सुख से रहें और हंसे

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 22 अप्रैल 2023

म की महिमा 

बच्चा जब बोलना सीखता है 
तो सबसे पहले वो म सीखता है 
पाकर मां की ममता और दुलार 
पिता और भाई बहनों का प्यार 
मिलजुल कर रहने का भाव हम सीखता है 
बच्चा सबसे पहले जब बोलना सीखता है 
तो सबसे पहले म सीखता है 

फिर वह सीखता है बारहखड़ी 
पढ़कर किताबें फिर बड़ी-बड़ी 
उसका मैं जागृत हो जाता है 
और वह अहम सीखता है 
बच्चा जब बोलना सीखता है 
तो सबसे पहले वह म सीखता है 

फिर जब जगती किसी के प्रति चाह
 और हो जाता है उसका विवाह 
 तो वह मां की ममता का म भुला देता है 
 भाई बहन के प्यार का हम भुला देता है 
 यहां तक की अपना मैं याने अहम भुला देता है पत्नी के आगे पीछे डोलता है 
और बस यस मैडम यस मैडम ही बोलता है 
बच्चा जब बोलना सीखता है
तो सबसे पहिले वह म सीखता है 

और जब बुढ़ापा आ जाता है 
तो फिर कोई भी म काम नहीं आता है 
और एक ही म करता है मुक्ति देने का काम 
और वह होता है राम का नाम 
बचपन की मां के नाम के साथ सीखा म,
राम के नाम के म में बदल जाता है 
और यह म ही अन्त समय काम आता है
बच्चा जब बोलना सीखता है
तो सबसे पहले वह म सीखता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
घोटू के पद 

साधो, मान बात निज मन की 
वही करो जिसको मन माने और लगे जो ढंग की साधो,मान बात निज मन की

बहुत सलाहे देने वाले ,मिल जाएंगे तुमको 
लेकिन तुम्हें परखना होगा गुण को और अवगुण को 
कई बार मन और मस्तक में ,होगी खींचातानी 
पर जो सोच समझ निर्णय लें, वह है सच्चा ज्ञानी 
भाव वेग में बहने देते ,हैं जो अपनी नैया
कभी भंवर में फंस जाते तो मिलता नहीं खिवैया 
सद्बुद्धि ही पार कराती है नदिया जीवन की 
साधो,मान बात निज मन की

 घोटू 
शिकायत पत्नी की 

प्रिय मुझको बिल्कुल ना पसंद 
तुम्हारे दोहरे मापदंड 

जब आई तुम्हारी देहरी थी 
मैं दुबली और छरहरी थी 
मैं लगती प्यारी तुम्हें बड़ी 
तुम मुझको कहते कनक छड़ी 
फिर मुझे प्यार आहार खिला 
तुमने तन मेरा दिया फुला 
बढ़ गए बदन के सब घेरे 
और तंग हुए कपड़े मेरे 
तो मोटी मोटी कह कर के 
करते रहते हो मुझे तंग 
प्रिय मुझको बिल्कुल ना पसंद 
तुम्हारे दोहरे मापदंड 

जुल्फें मेरी काली काली 
लगती है तुमको मतवाली 
मोहती है इनकी छटा तुम्हें 
कहते हो काली घटा इन्हे
पर गलती से यदि एक बार 
इन जुल्फों का जो एक बाल
आ जाए दाल में अगर नजर 
तो मुझे कोसते हो जी भर 
तुम थाली छोड़ चले जाते 
मुझको देते इस तरह दंड 
प्रिय मुझको बिल्कुल नापसंद 
तुम्हारे दोहरे मापदंड 

है मेरी ननंद बड़ी प्यारी 
लगती है बहना तुम्हारी 
तुम उसे चिढ़ाते रहते हो 
और उल्टा सुल्टा कहते हो 
लेकिन मेरी बहना प्यारी 
जो लगती तुम्हारी साली 
तुम जान लुटाते हो उस पर 
आधी घरवाली कह अक्सर 
उसके संग फ्लर्टिंग करते हो 
क्या अच्छे हैं यह रंग ढंग
प्रिय मुझको बिल्कुल ना पसंद 
तुम्हारे दोहरे मापदंड

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

प्यार

बीमार हुआ जब से ,रखती है ख्याल पत्नी,
पलकों पर बिठा मुझको,पल-पल वो पालती है

 इंतहा है प्यार की यह ,चलती है छड़ी लेकर,
 खुद तो संभल न पाती, मुझको संभालती है

घोटू 

रविवार, 16 अप्रैल 2023

मेरी बेटी 

मेरी बेटी ,मुझे खुदा की ,बड़ी इनायत 
हर एक बात में, मेरी करती रहे हिमायत

कितनी निश्चल ,सीधी साधी, भोली भाली 
हंसती रहती, उसकी है हर बात निराली 
कुछ भी काम बताओ ,करने रहती तत्पर
कुछ भी कह दो,नहीं शिकन आती चेहरे पर 
सच्चे दिल से ,मेरा रखती ख्याल हमेशा 
नहीं प्यार करता है कोई उसके जैसा 
कितनी ममता भरी हुई है उसकी चाहत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की बड़ी नियामत 

जितना प्यार दिया बचपन में मैंने उसको 
उसे चोगुना करके ,बांट रही है सबको 
चुस्ती फुर्ती से करती सब काम हमेशा 
उसके चेहरे पर रहती मुस्कान हमेशा 
कुछ भी काम बता दो ,ना कहना, ना सीखा 
सब को खुश रखने का आता उसे तरीका 
हर एक बात पर ,देती रहती मुझे हिदायत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की ,बड़ी इनायत 

मैके,ससुराल का रखती ख्याल बराबर 
दोनों का ही रखती है बैलेंस बनाकर 
सबके ही संग बना रखा है रिश्ता नाता 
कब क्या करना ,कैसे करना ,उसको आता जिंदादिल है खुशमिजाज़ है लगती अच्छी 
मुझको गौरवान्वित करती है मेरी बच्ची 
होशियार है ,उसमें है भरपूर लियाकत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की बड़ी इनायत 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बुजुर्ग साथियों से 

हम बुजुर्ग हैं अनुभवी हैं और वरिष्ठ हैं 
पढ़े लिखे हैं, समझदार, कर्तव्यनिष्ठ है 
 बच्चों जैसे, क्यों आपस में झगड़ रहे हम
 अपना अहम तुष्ट करने को अकड़ रहे हम 
 हम सब तो ढलते सूरज, बुझते दिये हैं 
 बड़ी शान से अब तक हम जीवन जिये हैं 
 किसे पता, कब कौन बिदा ले बिछड़ जाएगा कौन वृक्ष से ,फूल कौन सा ,झड़ जाएगा 
 इसीलिए जब तक जिंदा , खुशबू फैलाएं 
 मिल कर बैठे हंसी खुशी आनंद मनाएं 
 आपस की सारी कटुता को आज भुलाएं 
 रहें प्रेम से और आपस में हृदय मिलाएं 
 अबकी बार हर बुधवार 
 ना कोई झगड़ा ना तकरार 
 केवल बरसे प्यार ही प्यार
चवन्नी की पीड़ा 

कल मैंने जब गुल्लक खोली 
एक कोने में दबी दबी सी, सहमी एक चवन्नी बोली 
कल मैंने जब गुल्लक खोली 

आज तिरस्कृत पड़ी हुई मैं,इसमें मेरी क्या गलती थी 
मुझे याद मेरे अच्छे दिन ,जोर शोर से मैं चलती थी 
मेरी क्रय शक्ति थी इतनी, अच्छा खानपान होता था 
सवा रुपए की परसादी में ,मेरा योगदान होता था 
अगली सीट सिनेमाघर की ,क्लास चवन्नी थी कहलाती 
सस्ते में गरीब जनता को ,पिक्चर दिखला, दिल बहलाती 
जब छुट्टा होती तो मिलते चार इकन्नी , सोलह पैसे 
मेरी बड़ी कदर होती थी ,मेरे दिन तब ना थे ऐसे 
मार पड़ी महंगाई की पर, आकर मुझे अपंग कर दिया 
मेरी वैल्यू खाक हो गई ,मेरा चलना बंद कर दिया 
अब सैया दिल नहीं मांगते,ना उछालते कोई चवन्नी 
और भिखारी तक ना लेते, मुझे देखकर काटे कन्नी
पर किस्मत में ऊंच-नीच का चक्कर सदा अड़ा रहता है 
कभी बोलती जिसकी तूती, वह भी मौन पड़ा रहता है 
भोग रही मैं अपनी किस्मत ,जितना रोना था वह रो ली 
एक कोने में दबी दबी सी , सहमी एक चवन्नी बोली 
कल मैंने जब गुल्लक खोली

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चिंतन 

कल की बातें, कड़वी खट्टी ,याद करोगे, दुख पाओगे 
आने वाले ,कल क्या होगा, यदि सोचोगे ,
घबराओगे 
जो होना है , सो होना है ,व्यर्थ नहीं चिंता में डूबो,
भरसक मजा ,आज का लो तुम , तभी चैन से जी पाओगे

घोटू 

बुधवार, 12 अप्रैल 2023

मैं पप्पू हूं 

लोग मुझे पप्पू कहते मैं,बचपन से सिरफिरा रहा हूं 
सभी मिलाते हैं हां में हां, मैं चमचों से घिरा रहा हूं

कभी नमाजी टोपी पहनी कभी जनेऊ मैं लटकाता 
अपना धर्म बदलता रहता, ब्राह्मण में खुद को बतलाता 
मैं लोगों को गाली देता, लोग मुझे गाली देते हैं एक प्रतिष्ठित खानदान की, बिगड़ी फसल मुझे कहते हैं 
लंबी-लंबी करी यात्रा ,फिर भी आगे ना बढ़ पाया 
ना तो कुर्सी पर चढ़ पाया, ना ही में घोड़ी चढ़ पाया 
मैंने जो भी काम किया है अपने मन का,
अपने ढंग का
अपनी जिद पर अड़ा रहा मैं ,हार गया सोने की लंका 
अंट शंट मै बकता रहता ,करता रहता हूं गुस्ताखी 
राजघराने का वारिस हूं ,राजा नहीं मांगते माफी 
 कितना लोगों ने समझाया क्षमा मांग लो,हो गई गलती 
लेकिन क्षमा मांग कर कैसे ,कर लूं अपनी मूंछें नीची 
प्राइम मिनिस्टर मैं बन जाऊं, मम्मी जी की यह हसरत है 
मैं विदेश में, बुरा बताता ,भारत को ,मेरी आदत है

अपनी हरकत से मैं अपनी ,पार्टी नीचे गिरा रहा हूं 
लोग मुझे पप्पू कहते मैं बचपन से सिरफिरा रहा हूं

घोटू
कल तक के अंगूर था मैं 

कल तलक अंगूर था मैं ,
आज किशमिश बन गया हूं 

कटा बचपन लताओं संग,
एक गुच्छे में लटकता 
संग में परिवार के मैं ,
समय के संग रहा बढ़ता 

और एक दिन पक गया जब ,
साथियों का साथ छूटा 
त्वचा चिकनी और कसी थी 
स्वाद भी पाया अनूठा 

अगर थोड़ा और पकता 
और मेरा रस निकलता 
समय के संग वारूणी बन,
 मैं नशीला जाम बनता 

उम्र ने लेकिन सुखाया 
वारुणी तो बन न पाया 
बना किशमिश और मीठा ,
सुहाना सा रूप पाया 

तब था जीवन चार दिन का,
 हुई लंबी अब उमर है 
 आदमी में और मुझ में, 
 उम्र का उल्टा असर है 

 आदमी की उम्र बढ़ती 
 अंत उसका निकट आता 
 मुझ में जब आता बुढ़ापा 
उमर है मेरी बढ़ाता 

 उम्र का यह फल मिला है
  अब नहीं मैं फल रहा हूं
  लोग मेवा मुझे कहते,
  सभी के मन भा रहा हूं

  डर न सड़ने, बिगड़ने का,
  स्वाद से मैं सन गया हूं
  कल तलक अंगूर था मैं,
  आज किशमिश बन गया हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सीख ले अब तू ढंग से सोना 

भाग दौड़ में जीवन उलझा, लगा कमाने में तू पैसा 
रत्ती भर भी चैन नहीं है रहता है बेचैन हमेशा 
ढंग से अपने मनमाफिक तू, दो रोटी भी ना खा पाता 
सारा दिन भर किसके खातिर ,मेहनत करता और कमाता 
तुझे रात भर, नींद ना आती, सोता करवट बदल बदल कर
बहुत हुआ माया का चक्कर ,अब तो बस कर अब तो बस कर 
चिंताओं से व्यर्थ ग्रसित तू ,होगा वो ही जो है होना 
बहुत हो गया सोना सोना, सीख ले अब तू ढंग से सोना 

बहुत व्यस्त तेरा जीवन तू हरदम रहता परेशान है 
तेरी सारी बीमारी का ,ढंग से सोना ही निदान है 
अगर चैन से नींद आएगी, तुझको बड़ा सुकून मिलेगा 
सुबह उठेगा खुद को हल्का और ताजा महसूस करेगा 
तेरा अगला पूरा दिन ही, रंग, उमंग से भर जाएगा 
नया सवेरा ,तेरे जीवन में खुशियां भर कर लाएगा 
मनचाही भरपूर नींद लें, बंद कर रोज-रोज का रोना 
बहुत हो गया सोना सोना, सीख ले अब तू ढंग से सोना

मदन मोहन बाहेती घोटू
 प्रबल है संभावनाएं 
 
आ रहा चुनाव सर पर 
गहमागहमी है भयंकर 
झूठी झूठी बातें फैला, 
लोग तुमको बरगलायें 
प्रबल है संभावनाएं 

नेता सब हारे पुराने 
आज बनते हैं सयाने 
जुड़े उनकी चौकड़ी और,
 महाभारत ये कराएं 
 प्रबल है संभावनाएं 
 
कई वर्षों बिना खाए 
भूखे बैठे तिल मिलाये 
फिर से हथियाने को सत्ता,
 हाथ आपस में मिलाएं 
 प्रबल है संभावनाएं 
 
कोई नेता बांध मफलर 
भोली भाली छवि दिखाकर 
झूठे वादे करके सबको 
बना बुद्धू ,वोट पाए 
प्रबल है संभावनाएं 

एक पप्पू जो न जाने 
उसे कब क्या बोलना है 
बेतुकी हरकतें कर के, 
तपस्वी खुद को बताए 
प्रबल है संभावनाएं 

सोच अभिमन्यु अकेला 
चाहते हैं खेलें खेला 
राज्य चाहे जल रहा हो,
 पहन टोपी ,पार्टी खाएं 
 प्रबल है संभावनाएं 
 
हमें लेना फैसला है 
क्या बुरा है क्या भला है 
यूं ही झूठे प्रलोभन से ,
कहीं धोखा खा न जाएं 
प्रबल है संभावनाएं 

इसलिए है जरूरी यह
सोचकर हम करें निर्णय 
चुने कर्मठ आदमी को ,
देश जो उन्नत बनाएं 
प्रबल है संभावनाएं 

कई वर्षों देखा भाला 
देश को जिसने संभाला 
योग्य जो है सबसे ज्यादा,
 फिर से मोदी को जिताएं
 प्रबल है संभावनाऐं 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 5 अप्रैल 2023

सब कुछ सिमट गया बोतल में

बनी अभिन्न अंग जीवन का ,मौजूद जीवन के पल पल में
 सब कुछ सिमट गया बोतल में 
 
 रोज सुबह से शाम तलक हम ,बोतल के ही संग संग जीते 
 बालपने में मां की छाती छोड़ दूध बोतल से पीते सुबह दूध बोतल में आता ,बोतल लेकर जाते जंगल 
 बोतल में बंद कोकोकोला ,बोतल भर कर बिकता है जल 
 बोतल में ही तेल भरा है इत्र, सेंट ,परफ्यूम समाए 
 बोतल भर गंगाजल लाते ,बोतल में है भरी दवाएं बोतल में है मीठा शरबत, शैंपेन है, बियर सोड़ा सास टमाटर का बोतल में, है अचार पर माथा चौड़ा 
 कितने ही सौंदर्य प्रसाधन ,शैंपू ,भरकर बोतल आई 
 हार्पिक,कोलोन ,बोतल में ,भरा फिनाइल करे सफाई 
 गर्मी में फ्रिज खोलो ,पीलो, भरा बोतलों का ठंडा जल 
अलादीन का जिन्न भटकता, अगर नहीं जो होती बोतल  
दारू भरी एक बोतल से ,काम निपट जाते हैं पल में 
सब कुछ सिमट गया बोतल में

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

आओ खुद के खातिर जी लें

परिवार की जिम्मेदारी 
थी जितनी भी सभी निभा ली
नहीं चैन से पल भर बैठे,
करी उमर भर ,मारा मारी 
बच्चे सभी लगे धंधे पर,
 हाथ किए बेटी के पीले 
 जीवन के अब बचे हुए दिन 
 आओ खुद के खातिर जी लें 
 
ईंट ईंट कर घर बनवाया
धीरे-धीरे उसे सजाया 
जीवन की आपाधापी में ,
उसका सुख पर नहीं उठाया 
आओ अब अपने उस घर में,
हंस कांटे, कुछ पल रंगीले 
जीवन के कुछ बचे हुए दिन 
आओ खुद के खातिर जी लें

 करी उम्र भर भागा दौड़ी
 कोड़ी कोड़ी, माया जोड़ी 
 पर उसका उपभोग किया ना
 यूं ही है वह पड़ी निगोड़ी 
 साथ नहीं जाएगा कुछ भी
 क्यों ना इसका सुख हम भी लें 
 जीवन के अब बचे हुए दिन,
 आओ खुद के खातिर जी लें
  
 खुले हाथ से खर्च करें हम 
 देश विदेशों में विचरें हम 
 करें सहायता निर्धन जन की ,
 थोड़ा संचित पुण्य करें हम 
 जो न कर सके वह मनचाही ,
 कर आनंद का अमृत पी लें 
 जीवन के अब बचे हुए दिन 
 आओ खुद के खातिर जी लें 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बहुत दिन हुए 

बहुत दिन हुए, तुम पर अपना प्यार लुटाये 
बहुत दिन हुए, फंसा उंगलियां हाथ मिलाये
अब तो सुनती हो ,कह काम निकल जाता है,
 बहुत दिन हुए ,रानी कहकर तुम्हें बुलाये 
 आती नजर घटाएं थी जिनमें सावन की,
 बहुत दिन हुए तुम्हारी जुल्फें सहलाये 
 याद नहीं ,पिछली कब की थी छेड़खानी, 
 बहुत दिन हुए, एक दूजे को हमें सताये 
 संग सोते पर होते मुखड़े इधर-उधर हैं ,
 बहुत दिन हुए होठों पर चुंबन चिपकाये 
 याद नहीं कब पिछली बार बंधे से हम तुम 
 बहुत दिन हुए, बाहुपाश में तुम्हें लगाये 
 बहुत शांति से हम मशीनवत जीवन जीते,
 बहुत दिन हुए, तुमको रुठे ,मुझे मनाये
 इधर उधर की चर्चा में दिन गुजर रहे हैं,
 बहुत दिन हुए प्रेम कथा अपनी दोहराये
 अब ना तो आवेश बचा है ना वह जिद है 
 बहुत दिन हुए, ना कहने की नौबत आये
जितना सुख पा ले संग रह कर, उतने खुश हैं बहुत दिन हुए ,ये बातें ,मन को समझाये

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 3 अप्रैल 2023

तब की रिमझिम, अब की रिमझिम

ये होती बात जवानी में
पानी बारिश रिमझिम बरसे
चाहे छतरी हो तान रखी
तुम भी भीगो,हम भी भीगे
तब तन में सिहरन होती थी
हम तुम जाते थे तड़फ तड़फ 
वो मजा भीगने का अपने
होता था कितना रोमांचक 
हम और करीब सिमट जाते
भीगे होते दोनो के तन
हम आपस में सट जाते थे
दूना होता था आकर्षण

अब  है ये हाल बुढापे में
पानी बारिश रिमझिम बरसे 
ना तुम भीगो ,ना हम भीगे 
एक छतरी में हम तुम सिमटे
अब भी हम आपस में सटते
डरते हैं भीग नहीं जाएं 
रहते बौछारों से बचते 
सर्दी बुखार से घबराएं 
तब मजा भीगने में आता
अब लगे भीगने में डर है
यौवन के और बुढापे के
प्यार में ये ही अंतर है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 1 अप्रैल 2023

सफेदपोश नेता 

कई नेता पहनते उजले वसन 
किंतु काला बहुत उनका आचरण
ढोंग करते देश सेवा कर रहे 
मगर वो अपनी तिजोरी भर रहे 
बहुत खोटी पाओगे उनकी नियत 
ढूंढते रह जाओगे इंसानियत

घोटू 
पैसे वाले 

कई धनपति ,जो कहलाते पैसे वाले 
उनके घर की अगर तिजोरी आप खंगाले 
मिल जाएंगे सोना ,चांदी ,हीरा ,मोती 
और गड्डियां ,कितनी बड़े-बड़े नोटों की 
किंतु नतीजा तुम्हें बहुत यह अचरज देगा 
एक पैसे का ,एक सिक्का भी नहीं मिलेगा

घोटू 
कहानी एक कौवे की 

कौवे की मां चाह रही थी बेटा उसका हंस बने

 फिर से आसमान का राजा,उसका पूरा वंश बने
 
 धोया देश विदेशों में जा, रंग सफेद न हो पाया
 
 और जब भी मौका आया ,वो कांव-कांव ही चिल्लाया
 
घोटू 

बुधवार, 29 मार्च 2023

रह रह कर आता याद मुझे,
 वह बीता वक्त जवानी का,
  कितना प्यारा और मजेदार,
  वह यौवन वाला दौर ही था 
  
  मैं बाइक पर राइड करता ,
  तुम कमर पकड़ चिपकी रहती 
  टूटी सड़कों पर ड्राइव का 
  वह आनंद भी कुछ और ही था
  
  ऐसे में भी जब कभी कभी 
  पड़ती बारिश की बौछारें,
  पानी से जाते भीग भीग,
   सब कपड़े मेरे तुम्हारे 
   तब सड़क किनारे रुक करके
   एक झुग्गी वाली होटल में
     चुस्की ले गरम चाय पीना ,
   करता आनंद विभोर ही था 
   कितना प्यारा और मजेदार
    वह यौवन वाला दौर ही था 
    
छुट्टी के दिन तुम काम में व्यस्त 
घरभर को व्यवस्थित करती थी 
मैं प्याज पकोड़े तल अपने 
हाथों से तुम्हें खिलाता था 

तुम गरम पकोड़े खाती थी 
और आधा मुझे खिलाती थी 
तो संग पकोड़ो के अधरों 
का स्वाद मुझे मिल जाता था

संध्या को निकला करते थे
 हम तो तफ़री करने इधर उधर 
 सड़कों पर ठेले वालों से
  खा लेते थे कुछ चटर-पटर 
  वह भेल पुरी ,पानी पुरी 
  और स्वाद भरी चटपटी चाट 
  वो गरम जलेबी बलखाती ,
  गाजर हलवा चितचोर ही था 
  कितना प्यारा और मजेदार
  वो यौवन वाला दौर ही था 
  
हम पिक्चर जाया करते थे 
और खाया करते पॉपकॉर्न,
 जब भी कुछ मौका मिल जाता 
 कुछ छेड़ाखानी करते थे 
 
और चांदनी रातों में छत पर
 तुम चांद निहारा करती थी
  मैं तुम्हें निहारा करता था 
  थोड़ी मनमानी करते थे 
  
सर्दी में मज़ा धूप का ले
करते थे वक्त गुजारा हम 
बेफिक्री से और खुशी-खुशी 
करते थे मस्ती मारा हम 
वह दिन भी कितने प्यारे थे 
राते कितनी रंगीली थी
 तेरी संगत की रंगत में 
 मन मांगा करता मोर ही था 
 कितना प्यारा और मजेदार 
 वह यौवन वाला दौर ही था

मदन मोहन बाहेती घोटू 
इस बढी उम्र में वृद्ध लोग इस तरह गुजारा करते हैं 
मित्रों के संग बैठ मंडली में, वो गपशप मारा करते हैं 
कुछ जैसे तैसे भी कटता ,वैसे ही वक्त काटते हैं 
कुछ सुबह चाय के प्याले संग, पूरा अखबार चाटते हैं 
कुछ सुबह-शाम घूमा करते, रखते सेहत का ख्याल बहुत 
कुछ त्रस्त बहू और बेटों से ,घर में रहते बेहाल बहुत 
कुछ पोते पोती को लेकर, उनको झूला झुलवाते हैं 
कुछ रोज शाम झोला भरकर, सब्जी और फल ले आते हैं
कुछ मंदिर जाते सुबह शाम, और भजन कीर्तन करते हैं 
कुछ टीवी से चिपके रहकर ही जीवन व्यापन करते हैं 
कुछ हाथों मोबाइल रहता, जो नहीं छूटता है पल भर 
कुछ आलस मारे दिन भर ही ,लेटे रहते हैं बिस्तर पर 
कुछ करते याद जवानी के बीते दिन, खोते ख्वाबों में 
कुछ होते भावुक और दुखी , खो जाते हैं जज्बातों में 
कुछ उम्र जनित पीड़ाओं से, हरदम रहते हैं परेशान 
कुछ लोगों को देते प्रवचन और बांटा करते सदा ज्ञान 
कुछ तीरथ मंदिर धर्मस्थल जा, दर्शन लाभ लिया करते 
कुछ पर्वों में ,मेलों में जा, गंगा स्नान किया करते 
कुछ कथा भागवत सुनते हैं और अपना पुण्य बढ़ाते हैं 
कुछ करते हैं प्रसाद ग्रहण और भंडारॉ में खाते हैं 
कुछ की खो जाती याददाश्त जाते लोगों के भूल नाम 
 कुछ सेहत को रखने कायम, टॉनिक लेते हैं सुबह शाम 
 कुछ बैठे रखते है हिसाब ,अपनी जोड़ी सब दौलत का 
 कुछ प्राणायाम योग करते और ख्याल रखें निज सेहत का 
 होती है उमर विरक्ति की,पर कुछ मोह माया में फंसते
 तनहाई में तड़पा करते और लाफिंग क्लब में जाकर हंसते 
 पर जितनी अधिक उमर बढ़ती,जीने की ललक बढ़ी जाती 
 चाहे कम दिखता ,सुनता है ,तन मन में कमजोरी आती
 कितने ही अनुभव पाए है,जीवन में कर मारामारी
 पर वृद्धावस्था का अनुभव, पड़ता हर अनुभव पर भारी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बचपन और बुढ़ापे की यह बात निराली होती है 
उगते और ढलते सूरज की एक सी लाली होती है 
 होता है स्वभाव एक जैसा, वृद्धों का और बालक का 
क्योंकि जवानी सदा न रहती,अंत बुढ़ापा है सबका 
जैसे हमको आया बुढ़ापा,कभी तुम्हे भी आयेगा 
जो पीड़ा हम भोग रहें हैं,तुमको भी दिखलाएगा 
हमने तुम पर प्यार लुटाया, बचपन में जितना ज्यादा
 हमें बुढ़ापे में तुम लौटा देना बस उसका आधा 
क्योंकि उस समय हमको होगी ,जरूरत प्यार तुम्हारे की 
 तन अशक्त को आवश्यकता होगी किसी सहारे की
जो जिद तुम बचपन में करते यदि हम करें बुढ़ापे में 
तो तुम हम पर खफा ना होना, रहना अपने आपे मे 
तिरस्कार व्यवहार न करना हमको पीड़ित मत करना 
तुमसे यही अपेक्षा है कि हमे उपेक्षित मत करना

मदन मोहन बाहेती घोटू
जीवन का कुछ ऊबा ऊबा 
तो मन ने बांधा मनसूबा 
जीने की राह नजर आई,
 तन्मय तन, भक्ति में डूबा 
 
कुछ प्राणायाम और योग किया 
तन ने पूरा सहयोग दिया 
मन रहता हे अब खिला-खिला 
खुशियां भी दी, आरोग्य दिया 

कर जीवन शैली परिवर्तन 
अब खुश है तन,अब खुश है मन 
आ गई नई चुस्ती फुर्ती 
अब बदल गया मेरा जीवन 

प्रभु भक्ति की पाई भेषज 
श्री राम और गोविंदा भज 
संचित है शांति और प्रेम
उलझा जीवन अब गया सुलझ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

प्रकृति से बातचीत 

आज सवेरे ,प्रातः प्रातः
मैंने प्रकृति से करी बात 
 
कोयल को कूकी, मैं भी कुहका
चिड़िया चहकी , मैं भी चहका
कलियां चटकी और फूल खिले,
वे भी महके , मैं भी महका

 जब चली हवाएं मंद मंद 
 मैंने त्यागे सब प्रतिबंध 
 मैं भी बयार के संग संग 
 स्वच्छंद बहा, लग गए पंख 
 
 और जब कपोत का झुंड उड़ा 
 तो मैं भी उनके साथ जुड़ा 
 पूरे अंबर की सैर करी ,
 मैंने भी उनके साथ साथ 
 मैंने प्रकृति से करी बात 
 
जब रजनी बीती, भोर हुआ 
तो मैं आनंद विभोर हुआ 
पूरब में छाई जब लाली 
तो आसमान चितचोर हुआ 

भ्रमरों ने किया मधुर गुंजन 
हो गया रसीला मेरा मन 
तितली फुदकी, मैं भी फुदका,
कर नर्तन पाया नवजीवन 

बादल से जब सूरज झांका 
तो मैंने भी उसको ताका 
किरणे चमकी , मैं भी चमका
 फिर की प्रकाश से मुलाकात 
 मैंने प्रकृति से करी बात 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भूनना 

कई चीजों का स्वाद 
बढ़ जाता है भूनने के बाद 
जैसे जब भुनता है चना 
स्वाद हो जाता है चौगुना 
भुनी हुई मूंगफली 
होती है स्वाद भरी 
पापड़ का असली स्वाद 
आता है भूनने के बाद 
मकई के दाने जब भुने जाते हैं 
स्वादिष्ट पॉपकॉर्न बन जाते हैं 
हम चाव से भुनी हुई शकरकंद खाते हैं 
चावल भी भूनकर पर परमल हो जाते हैं
भुने हुए बैंगन से बनता है भरता 
जिसको की खाने को सब का मन करता 
भुने हुए आलू का स्वाद होता है कमाल 
भुने खोए से बनते है,पेड़े लाल लाल 
और बड़े नोट को भुनाया जाय अगर
हमें प्राप्त होती है ढेर सारी चिल्लर
लेकिन जब आदमी जला भुना होता है 
तो वह खतरनाक ,कई गुना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
जब बूढ़े बूढ़े मिलते हैं 

1
गणित का एक नियम जो हमें सिखलाया है जाता 
 माइनस से मिले माइनस नतीजा प्लस में हैआता 
हो बूढ़े माइनस तुम और बूढ़े माइनस हम है,
मिले तो प्लस,जवानी का, मजा दूना है हो जाता

2
परीक्षा में अगर मिलते, हैं नंबर साठ से ज्यादा सफलता तुम को मिलती है डिवीजन फस्ट कहलाता 
उम्र के साठ से ज्यादा, गुजारे वर्ष ,मेहनत कर,
डिवीजन फस्ट पाया है,जिएं हम ठाठ से ज्यादा 
3
 अनुभव से भरे रहते ,भले ही वृद्ध होते हैं 
 करा लो काम कुछ भी तुम, सदा कटिबद्ध होते हैं 
अगर मिलते इकट्ठे हो,जवानी लौट फिर आती,
  इन्हे कमजोर मत समझो ,बड़े समृद्ध होते हैं
  4
भले धुंधली सी आंखें हैं, भले कमजोर होता तन 
जवानी जोश जज्बे से ,भरा रहता है लेकिन मन 
न जाओ उम्र पर ,चावल पुराने स्वाद होते हैं महकता उतना ज्यादा है पुराना जितना हो चंदन
  5 
जमा पूंजी है अनुभव की, किसी के ना सहारे हम 
बुलंद है हौसले अपने, नहीं समझो बिचारे हम 
रहे हम दोस्त बन कर के, हमारे तुम, तुम्हारे हम 
यूं मिल खुशियों से जीवन के, बचे दिन भी गुजारे हम

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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