तब की रिमझिम, अब की रिमझिम
ये होती बात जवानी में
पानी बारिश रिमझिम बरसे
चाहे छतरी हो तान रखी
तुम भी भीगो,हम भी भीगे
तब तन में सिहरन होती थी
हम तुम जाते थे तड़फ तड़फ
वो मजा भीगने का अपने
होता था कितना रोमांचक
हम और करीब सिमट जाते
भीगे होते दोनो के तन
हम आपस में सट जाते थे
दूना होता था आकर्षण
अब है ये हाल बुढापे में
पानी बारिश रिमझिम बरसे
ना तुम भीगो ,ना हम भीगे
एक छतरी में हम तुम सिमटे
अब भी हम आपस में सटते
डरते हैं भीग नहीं जाएं
रहते बौछारों से बचते
सर्दी बुखार से घबराएं
तब मजा भीगने में आता
अब लगे भीगने में डर है
यौवन के और बुढापे के
प्यार में ये ही अंतर है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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