आओ खुद के खातिर जी लें
परिवार की जिम्मेदारी
थी जितनी भी सभी निभा ली
नहीं चैन से पल भर बैठे,
करी उमर भर ,मारा मारी
बच्चे सभी लगे धंधे पर,
हाथ किए बेटी के पीले
जीवन के अब बचे हुए दिन
आओ खुद के खातिर जी लें
ईंट ईंट कर घर बनवाया
धीरे-धीरे उसे सजाया
जीवन की आपाधापी में ,
उसका सुख पर नहीं उठाया
आओ अब अपने उस घर में,
हंस कांटे, कुछ पल रंगीले
जीवन के कुछ बचे हुए दिन
आओ खुद के खातिर जी लें
करी उम्र भर भागा दौड़ी
कोड़ी कोड़ी, माया जोड़ी
पर उसका उपभोग किया ना
यूं ही है वह पड़ी निगोड़ी
साथ नहीं जाएगा कुछ भी
क्यों ना इसका सुख हम भी लें
जीवन के अब बचे हुए दिन,
आओ खुद के खातिर जी लें
खुले हाथ से खर्च करें हम
देश विदेशों में विचरें हम
करें सहायता निर्धन जन की ,
थोड़ा संचित पुण्य करें हम
जो न कर सके वह मनचाही ,
कर आनंद का अमृत पी लें
जीवन के अब बचे हुए दिन
आओ खुद के खातिर जी लें
मदन मोहन बाहेती घोटू
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