बहुत दिन हुए
बहुत दिन हुए, तुम पर अपना प्यार लुटाये
बहुत दिन हुए, फंसा उंगलियां हाथ मिलाये
अब तो सुनती हो ,कह काम निकल जाता है,
बहुत दिन हुए ,रानी कहकर तुम्हें बुलाये
आती नजर घटाएं थी जिनमें सावन की,
बहुत दिन हुए तुम्हारी जुल्फें सहलाये
याद नहीं ,पिछली कब की थी छेड़खानी,
बहुत दिन हुए, एक दूजे को हमें सताये
संग सोते पर होते मुखड़े इधर-उधर हैं ,
बहुत दिन हुए होठों पर चुंबन चिपकाये
याद नहीं कब पिछली बार बंधे से हम तुम
बहुत दिन हुए, बाहुपाश में तुम्हें लगाये
बहुत शांति से हम मशीनवत जीवन जीते,
बहुत दिन हुए, तुमको रुठे ,मुझे मनाये
इधर उधर की चर्चा में दिन गुजर रहे हैं,
बहुत दिन हुए प्रेम कथा अपनी दोहराये
अब ना तो आवेश बचा है ना वह जिद है
बहुत दिन हुए, ना कहने की नौबत आये
जितना सुख पा ले संग रह कर, उतने खुश हैं बहुत दिन हुए ,ये बातें ,मन को समझाये
मदन मोहन बाहेती घोटू
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