जिंदगी की दास्तान
जाने किस किस दौर से ,गुजरी हमारी जिंदगी
ठोकरों से पाठ सीखा , और निखारी जिंदगी
मगर उनकी बेरुखी ने ,टुकड़े टुकड़े दिल किया ,
भर रही है सिसकियाँ,अब तक बिचारी जिंदगी
वो किसी दिन तो मिलेंगे,गले से लग जायेंगे,
काट दी इस आस में ही ,हमने सारी जिंदगी
आँखों से तो ,आंसुओं की ,गंगा जमुनाये बही,
मगर फिर भी प्यास की ,अब तक है मारी जिंदगी
जिस्म पीला पड़ गया पर हाथ ना पीले हुए ,
कब तलक तनहा रहेगी ,ये कुंवारी जिंदगी
स्वाद क्या है जिंदगी का समझ हम पाये नहीं ,
कभी मीठी ,चरपरी फिर ,कभी खारी जिंदगी
हमने तुझको सर नमाया ,पूजा की,की बंदगी,
पर खुदा तूने नहीं ,अब तक संवारी जिंदगी
चैन से अपने लिए,दो पल भी जी पाते नहीं ,
मारा मारी लगी ही रहती है सारी जिंदगी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
जाने किस किस दौर से ,गुजरी हमारी जिंदगी
ठोकरों से पाठ सीखा , और निखारी जिंदगी
मगर उनकी बेरुखी ने ,टुकड़े टुकड़े दिल किया ,
भर रही है सिसकियाँ,अब तक बिचारी जिंदगी
वो किसी दिन तो मिलेंगे,गले से लग जायेंगे,
काट दी इस आस में ही ,हमने सारी जिंदगी
आँखों से तो ,आंसुओं की ,गंगा जमुनाये बही,
मगर फिर भी प्यास की ,अब तक है मारी जिंदगी
जिस्म पीला पड़ गया पर हाथ ना पीले हुए ,
कब तलक तनहा रहेगी ,ये कुंवारी जिंदगी
स्वाद क्या है जिंदगी का समझ हम पाये नहीं ,
कभी मीठी ,चरपरी फिर ,कभी खारी जिंदगी
हमने तुझको सर नमाया ,पूजा की,की बंदगी,
पर खुदा तूने नहीं ,अब तक संवारी जिंदगी
चैन से अपने लिए,दो पल भी जी पाते नहीं ,
मारा मारी लगी ही रहती है सारी जिंदगी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।