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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

दास्ताने इश्क़


          दास्ताने  इश्क़

ऐसा तुम्हारे इश्क़ का छाया जूनून था ,
                 हम पागलों से ,आप के पीछे थे पड़ गये
एक दिन हमारी आशक़ी ,रंग लायी इस कदर,
                 आकर हमारी बाहों में ,तुम खुद  सिमट गए
दावत तो दी थी आपने और भूखे भी थे हम,
                 लेकिन ये मन ,माना नहीं और हम पलट गए
बदनाम ना कर दे तुम्हे बेदर्द ज़माना ,
                    ये सोच कर   के हम  ही थोड़े पीछे हट गए

घोटू  
   

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