कुत्ते कि पूँछ
जब भी हसीनो से नज़र टकराती है
मुझपे एक दीवानगी सी छाती है
जवानी के दिनों का ख़याल आता है
बासी कढ़ी में फिर उबाल आता है
आग सी एक लग जाती है दिल के अंदर
गुलाटी मारने को लगता मचलने बन्दर
भले ही दम नहीं पर चाह मचलती रहती
पूंछ है कुत्ते की ,टेढ़ी ही ये सदा रहती
घोटू
जब भी हसीनो से नज़र टकराती है
मुझपे एक दीवानगी सी छाती है
जवानी के दिनों का ख़याल आता है
बासी कढ़ी में फिर उबाल आता है
आग सी एक लग जाती है दिल के अंदर
गुलाटी मारने को लगता मचलने बन्दर
भले ही दम नहीं पर चाह मचलती रहती
पूंछ है कुत्ते की ,टेढ़ी ही ये सदा रहती
घोटू
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