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सोमवार, 10 मार्च 2014

कुत्ते कि पूँछ

कुत्ते कि पूँछ

जब भी हसीनो से नज़र टकराती है
मुझपे एक दीवानगी सी छाती  है
जवानी के दिनों का ख़याल आता है
बासी कढ़ी में फिर उबाल  आता है
आग सी एक लग जाती है दिल के अंदर
गुलाटी मारने को लगता मचलने बन्दर
भले ही दम नहीं पर चाह मचलती रहती  
पूंछ  है कुत्ते की ,टेढ़ी ही ये  सदा  रहती 

घोटू

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