जमीन से जुड़ो
घास ,
जमीन से जुडी होती है
जो शबनम की बूंदों को भी,
बना देती मोती है
एक छोटा सा बीज,
जब धरती की कोख में समाता है
तो विशालकाय वृक्ष बन जाता है
या कई गुणित होकर,
फसल सा लहलहाता है
तारे,
जो ऊपर आसमान से ताल्लुक रखते है
लुप्त हो जाते है उजाले में,
बस रात को चमकते है
ये धरा क्या है
ये धरा हमारी माँ है
हमारी काया
को धरा की माटी ने बनाया
हमारा सहारा है,
हमारा आसरा है
आसमान में क्या धरा है
रत्नों की खान,रत्नगर्भा धरा है
इसलिए ज्यादा ऊंचे मत उड़ो
आसमान का तारा बनने से बेहतर है,
जमीन से जुड़ो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पुस्तक समीक्षा : बुद्धिनाथ मिश्र को समझने का सफल प्रयास — रामनारायण रमण
-
समीक्षित पुस्तक : बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता, सम्पादक : अवनीश सिंह चौहान
, प्रकाशक : प्रकाश बुक डिपो, बड़ा बाज़ार, बरेली-243003, दूरभाष:
0581-2572217,...
5 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।