चमकना इतना नहीं चाहता ....................
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चमकना इतना नहीं चाहता कि चौंधिया जाओ तुम बस तमन्ना इतनी है कि धरती को छूता
रहूँ। यूं तलवार की धार पर चलता तो रोज ही हूँ मगर बनकर कोई पेड़ छाया किसी
को देत...
11 घंटे पहले
सार्थक कविता ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ..
देवराज दिनेश की पंक्तियाँ याद आ गईं ,में मजदुर मुझे देवों की बस्ती से क्या|अच्छा लिखा है आपने बधाई|
जवाब देंहटाएंसार्थक, सामयिक, सुन्दर, बधाई
जवाब देंहटाएंसच में, बहुत ही सार्थक और सुन्दर रचना हरि जी की |
जवाब देंहटाएंawesome! loving your blog, so keep it up and i'll be back!
जवाब देंहटाएंFrom Creativity has no limit