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मंगलवार, 1 मई 2012

मजदूर दिवस पर विशेष

मजदूर नहीं, तू है कर्मयोगी
कर्मपथ का है पथिक
तेरी सौंधी खुशबूं हरसौ
बाकी सबकुछ है क्षणिक।

तेरे पसीने की इक बूंद
नया भारत रचती है।
कर्म की परिभाषा तूने
नई रीत रे गढ़ दी है।

है! तुझे मेरा नमन
कर्मपथ पर चल अनवरत।
गूंज तेरे पुण्य कर्म की
गूंजे नभ में अनवरत। 

रचनाकार-हरि आचार्य
राजस्थान





5 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक कविता ...
    शुभकामनायें ..

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  2. देवराज दिनेश की पंक्तियाँ याद आ गईं ,में मजदुर मुझे देवों की बस्ती से क्या|अच्छा लिखा है आपने बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  3. सार्थक, सामयिक, सुन्दर, बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. सच में, बहुत ही सार्थक और सुन्दर रचना हरि जी की |

    जवाब देंहटाएं

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