जब पहला आखर सीखा मैंने
लिखा बड़ी ही उत्सुकता से
हाथ पकड़ लिखना सिखलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
अँगुली पकड़ चलना सिखलाया
चाल चलन का भेद बताया
संस्कारों का दीप जलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
जब मैं रोती तो तू भी रो जाती
साथ में मेरे हँसती और हँसाती
मुझे दुनिया का पाठ सिखाती
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
खुद भूखा रह मुझे खिलाया
रात भर जगकर मुझे सुलाया
हालातों से लड़ना तूने सिखाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
© दीप्ति शर्मा
बहुत ही सुन्दर लिखा है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना:-)
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंसभी कुछ तो साझा होता है माँ के साथ। भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति!
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