ये झुकी हुई पलकें,
न जाने क्या कहती है;
लबों की तरह खामोश है,
शायद उनमे कुछ राज है ।
कहती है शायद
रहने दो राज को राज,
आवरण इतनी जल्द न हटाओ,
शायद कुछ खोने का डर भी है इनमे,
कभी लगता कहती है पास आओ ।
ये झुकी हुई पलकें,
हैं सागर को समेटे,
रंजोगम बयाँ करती,
पर फिर भी झुकी रहती ।
हया की चादर में लिपटी,
स्याह की धार में बँधी,
न जाने कितने भेद छुपाये,
तेरी ये झुकी हुई पलकें ।
khaamoshee bahut kucch kahtt
जवाब देंहटाएंkaash sabko ,sabkee samajh aa jaatee
सच कहा आपने | आभार |
हटाएंवाह ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका |
हटाएंअच्छा शब्द चित्र .खामोशी अक्सर मुखर होती है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद |
हटाएंसुन्दर लिखा है..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com