जल की अनंत यात्रा
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बादलों में भरा हुआ जल,
जब पानी की बूंदों में बरसता है
तो धरती के दिल में आ बसता है
कुछ सहमा सहमा,
कुए की गहराई में सिमिट कर रह जाता है
कुछ सरोवर में तरंगें भरता है,
तो कुछ नदिया की कल कल में बह जाता है
और कुछ बेचारा,
मुसीबत का मारा,
ठिठुरता है सर्दी में,
और पहाड़ों की चोटियों पर ठहर जाता है
पर जब सूरज को दया आती है,
तो पहाड़ों की जमी बर्फ पिघल जाती है
और इतने दिनों का जमा जल ,जब पिघलता है
तो मचलता ,इठलाता हुआ चलता है
और जवानी के जोश में,
या कहो आक्रोश में,
कितने ही पहाड़ों को काट कर,
अपना रास्ता बनाता है
और अपना एक धरातल पाता है
और कल कल करता हुआ ,
अपनी मंजिल की ओर,
निकल पड़ता है
पर कई बार ,उसको ,
ऊंचे धरातल से ,
निचले धरातल पर गिरना पड़ता है
तो वो दहाड़ता है
अपने में सिमटी हुई ,चांदी उगलता है,
गर्जना करता है,
और छोटी छोटी बूंदों में बिखर बिखर,
फिर से ऊपर को उछालें मारता है
और उसे सूरज की कुछ किरणे,
इंद्र धनुष सा चमका देती है
कुछ क्षणों के लिए,सुहावना बना देती है
और फिर बेबस सा,
अपने नए धरातल पर,
धीरे धीरे ,अपनी पुरानी चल से चलने लगता है
कितने ही कटाव और बिखराव के बाद,
अंत में सागर में जा मिलता है
क्योंकि हर जल की नियति ,
सागर में विलीन होना ही होता है
और फिर से बादल बन ,
जल की अनंत यात्रा का आरम्भ होता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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बादलों में भरा हुआ जल,
जब पानी की बूंदों में बरसता है
तो धरती के दिल में आ बसता है
कुछ सहमा सहमा,
कुए की गहराई में सिमिट कर रह जाता है
कुछ सरोवर में तरंगें भरता है,
तो कुछ नदिया की कल कल में बह जाता है
और कुछ बेचारा,
मुसीबत का मारा,
ठिठुरता है सर्दी में,
और पहाड़ों की चोटियों पर ठहर जाता है
पर जब सूरज को दया आती है,
तो पहाड़ों की जमी बर्फ पिघल जाती है
और इतने दिनों का जमा जल ,जब पिघलता है
तो मचलता ,इठलाता हुआ चलता है
और जवानी के जोश में,
या कहो आक्रोश में,
कितने ही पहाड़ों को काट कर,
अपना रास्ता बनाता है
और अपना एक धरातल पाता है
और कल कल करता हुआ ,
अपनी मंजिल की ओर,
निकल पड़ता है
पर कई बार ,उसको ,
ऊंचे धरातल से ,
निचले धरातल पर गिरना पड़ता है
तो वो दहाड़ता है
अपने में सिमटी हुई ,चांदी उगलता है,
गर्जना करता है,
और छोटी छोटी बूंदों में बिखर बिखर,
फिर से ऊपर को उछालें मारता है
और उसे सूरज की कुछ किरणे,
इंद्र धनुष सा चमका देती है
कुछ क्षणों के लिए,सुहावना बना देती है
और फिर बेबस सा,
अपने नए धरातल पर,
धीरे धीरे ,अपनी पुरानी चल से चलने लगता है
कितने ही कटाव और बिखराव के बाद,
अंत में सागर में जा मिलता है
क्योंकि हर जल की नियति ,
सागर में विलीन होना ही होता है
और फिर से बादल बन ,
जल की अनंत यात्रा का आरम्भ होता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने जल चक्र का | आभार |
जवाब देंहटाएंjal ke jeevan ka varnan sundar shabdon mein :)
जवाब देंहटाएंWelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
prakriti ka banaya chakra hai ye, sundar rachna, badhai.
जवाब देंहटाएं