कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी मुस्कुराहट तेरी |
थक-हार कर संध्या जब घर आता हूँ,
बस देख कर तुझको मैं चहक जाता हूँ |
देखकर हर दिखावे से दूर तेरे नैनों को,
पंख मिल जाता है मेरे मन के मैनों को |
जब गोद में लेके तुम्हे खिलाता हूँ,
सच, मैं स्वयं स्वर्गीय आनंद पाता हूँ |
नन्हें हाथों से तेरा यूँ ऊँगली पकड़ना,
लगता है मुझे स्वयं इश्वर का जकड़ना |
आज हो गयी है तू छः मास की,
बाग़ खिलने लगा है मन में आस की |
पर "परी" जब भी तू रोती है,
हृदय में एक पीड़ा-सी होती है |
देखकर मुझे बरबस खिलखिला देती हो,
पुलकित कर देती हो, झिलमिला देती हो |
कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी मुस्कुराहट तेरी |
इस मुस्कुराहट पे सौ जान कुरबान।
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