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रविवार, 8 जनवरी 2012

धवल चाँदनी

उन्मुक्त से गगन में, पूर्ण चन्द्र की रात में, निखार पर है होती ये धवल चाँदनी । मदमस्त सी करती, धरनि का हर कोना, समरुपता फैलाती ये धवल चाँदनी । क्या नदिया, क्या सागर, क्या जड़, क्या मानव, हर एक को नहलाती ये धवल चाँदनी । निछावर सी करती, परहित में ही खुद को, रातों को उज्ज्वल करती ये धवल चाँदनी । प्रकृति की एक देन ये, श्रृंगार ये निशा रानी का, मन "दीप" का हर लेती ये धवल चाँदनी ।

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